गुरुवार, 5 सितंबर 2013

चीनी शैली में जवाब दे भारत [दैनिक ट्रिब्यून और डीएनए में प्रकाशित]



  • पीयूष द्विवेदी भारत  

डीएनए
किसी विद्वान ने सही ही कहा है कि ‘अटैक इज द बेस्ट डिफेंस’ ! चीन शुरू से ही भारत के प्रति यही नीति अपनाता रहा है, पर भारत ने हमेशा से चीन के प्रति रक्षात्मक रवैया अख्तियार करने में ही विश्वास किया है ! लिहाजा आज वही रक्षात्मक रवैया भारत के गले की फांस बनता नज़र आ रहा है ! हालत ये है कि चीन लगातार हमारी सीमाओं के भीतर घुसकर हमें सरेआम  धमका रहा है और हम चंद वार्ताओं और बयानबाजियों के अतिरिक्त कुछ नही कर पा रहे ! सवाल ये है कि आखिर हम क्यों कुछ नही कर पा रहे ? इस सवाल का सिर्फ एक ही जवाब है कि हम कुछ करना ही नही चाहते हैं और ये ‘कुछ न करने’ की प्रथा आज से नही आजादी के समय से चली आ रही है ! इतिहास गवाह है कि १९५७ में पं जवाहर लाल नेहरू द्वारा चीन के साथ पंचशील नामक एक शांति समझौता किया गया था, जिसे चीन ने तत्कालीन दौर में भी कभी नही माना ! बावजूद इसके शांतिप्रिय नेहरू ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का अपना काल्पनिक नारा तबतक रटते रहे, जबतक कि हमने ६२ के युद्ध में हजारों जांबाज सैनिकों को नही खो दिया और पराजय का दंश झेलने को विवश नही हो गए ! इस युद्ध में हमारी पराजय का मुख्य कारण चीन के प्रति हमारा लापरवाह और रक्षात्मक रवैया था जो कि अब भी जस का तस कायम  है ! हम तब भी रक्षात्मक व लापरवाह थे और अब भी हैं ! बस, यही कारण है कि आज चीन हमारे सिर पर चढ़ा हुआ है !
दैनिक ट्रिब्यून
युद्ध को निश्चित ही कोई विकल्प नही कहा जा सकता, पर जब प्रश्न राष्ट्र की गरिमा और अखण्डता की रक्षा का हो, तो एक हद तक उसपर भी विचार किया जा सकता है ! पर, फिलहाल स्थिति इतनी विकट नही है ! अगर समय रहते भारत चीन के प्रति अपने रक्षात्मक और लापरवाह रवैये को किनारे कर सजग होते हुए आक्रामक रुख अपना ले, तो अभी सबकुछ अपने हाथ में ही है ! भारत अगर चाहे तो चीन को उन्ही नीतियों के द्वारा न सिर्फ खुद पर हावी होने से रोक सकता है, बल्कि दबा भी सकता है, जिनके द्वारा चीन अबतक भारत को मात देता रहा है ! इस संबंध में भारत की पहली ज़रूरत ये है कि वो सीमा पर ढांचागत सुविधाएँ विकसित करे, जोकि चीन द्वारा बहुत पहले से की जा चुकी हैं ! चीन ने अपनी सीमा तक रेलमार्ग तथा सड़कों का जाल पूरी तरह से बिछा लिया है, इस नाते किसी भी आपदा की स्थिति में अधिकाधिक २४ घंटे में वो बड़े आराम से सीमा तक रसद और सैनिकों की आपूर्ति कर सकता है ! बेशक, इस मामले में चीन, भारत से कोसो आगे है, पर देर से ही सही, भारत को भी इस संबंध में अब तीव्र प्रयास शुरू करने चाहिए ! साथ ही, भारत को चाहिए कि वो चीन की दुखती रग को पकड़े, जैसा कि चीन हमेशा से भारत के साथ करता रहा है ! चीन द्वारा  कश्मीर मामले में बार-बार हस्तक्षेप की कोशिश करना, उसकी इसी नीति का हिस्सा है ! इस स्तर पर चीन को पटकनी देने के लिए भारत के पास तिब्बत का मुद्दा एक अच्छे विकल्प के रूप में है ! भारत को दलाई लामा, जो प्रायः भारतीय विचारों के समर्थक और चीन के कट्टर विरोधी रहे हैं, को अपने साथ जोड़कर, चीनी नाराज़गी की परवाह किए बगैर, तिब्बत मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाते हुए चीन पर दबाव बनाना चाहिए कि वो तिब्बत को स्वतंत्र करे !
  चीन के विषय में अक्सर ये सुनने को मिलता रहा है कि उसकी तरफ से पाकिस्तानी आतंकी संगठनों को भारत के खिलाफ आतंकी वारदातों के लिए भरपूर मदद दी जाती है ! उचित होगा कि भारतीय जांच एजेंसियां व ख़ुफ़िया ब्यूरो आदि मिलकर इस विषय में चीनी भूमिका की गुप्त जांच करें और उसकी संलिप्तता पाए जाने पर, उसे ससाक्ष्य विश्व समुदाय के सामने लाकर, चीन के ढोंगी चरित्र का पर्दाफाश करें ! इस प्रकार चीन को सामाजिक स्तर पर प्रतिष्ठाशून्य और कमजोर किया जा सकता है !
  वो समय गया जब तलवारों और बंदूकों के दम पर साम्राज्य स्थापित होते थे ! वर्तमान दौर आर्थिक-साम्राज्यवाद का है और चीन ये बात बहुत अच्छे से जानता है ! इसीलिए वो अपनी  बेटिकाऊ किन्तु, सस्ती वस्तुओं के द्वारा भारतीय बाजारों को लुभाने का प्रयास कर रहा है और   बड़े पैमाने पर सफल भी है ! आज भारतीय बाजारों में चीनी वस्तुओं के प्रति लगातार बढ़ रहा आकर्षण चीन की इसी कोशिश का परिणाम है, जोकि निश्चित ही भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है ! इस कड़वे सच से इंकार नही किया जा सकता कि इस विषय में लाख चाहने पर भी भारत चीन को रोकने की स्थिति में नही है, पर भारत को इतना तो अवश्य करना चाहिए कि वो स्वनिर्माण के क्षेत्र में अधिकाधिक निवेश के द्वारा चीनी बाजारों पर से अपनी निर्भरता को कम करते हुए, आत्मनिर्भर होने के लिए यथासंभव प्रयास करे !  
  चीन के एक प्राचीन विद्वान सुनुत्से ने अपनी एक किताब में लिखा है कि दुश्मन को हराने का सबसे अचूक हथियार है कि उसे, उसके दुश्मनों से भिड़ा दो ! चीन का पाकिस्तान प्रेम इसी नीति के तहत है ! भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए ! इसी संदर्भ में उल्लेखनीय होगा कि पूर्वी चीन सागर में जापान द्वारा विवादास्पद द्वीप खरीदने के फैसले के कारण वर्तमान दौर में चीन और जापान के संबंध तनावयुक्त हैं, अतः भारत को इसका लाभ लेते हुए जापान से अधिकाधिक मेल-जोल बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए ! गौरतलब है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाद जापान, चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है ! दोनों देशों के बीच अभी लगभग साढ़े तीन सौ अरब डॉलर का व्यापार है ! यहाँ ये बताना आवश्यक होगा कि वर्तमान समय चीनी अर्थव्यवस्था के लिए वैसे भी कोई बहुत अच्छा नही है ! चूंकि, चीन के निरंतर और तीव्रतम विकास की वजह उसकी सस्ती श्रम-शक्ति अब धीरे-धीरे महँगी होती जा रही है ! इस नाते अर्थव्यवस्था का पूर्ववत प्रकार से विकास उसके लिए सहज नही रह गया है ! ऐसे में अगर भारत, जापान को चीन से तोड़कर व्यापारिक गतिविधियों में बढोत्तरी के द्वारा खुद की ओर उन्मुख कर ले, तो ये चीन की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही बड़ा झटका होगा ! अमेरिका, रूस, इंग्लैण्ड आदि देश चीन की बात आने पर हर हालत में भारत के साथ हैं, ऐसे में जापान जैसा मजबूत सहयोगी मिल जाने से भारत की शक्ति में और भी इजाफा हो जाएगा ! इसके बाद चीन में इतना साहस नही रह जाएगा कि वो भारत पर हावी हो सके !
  बहरहाल, जबतक हमारे हुक्मरानों द्वारा दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय नही दिया जाता तथा शांति के नाम पर किसी भी तरह के समझौते को तैयार रहने वाली घिसी-पिटी सोच नही बदली जाती, तबतक उपर्युक्त सभी बातों का सिर्फ उतना ही अर्थ है, जितना कि भैंस के आगे बीन बजाने का !

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