मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

शीतकालीन सत्र में सरकार की चुनौतियां [आईनेक्स्ट इंदौर और डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
संसद के शीतकालीन सत्र का आगाज़ हो चुका है ! इससे पहले हम देख चुके हैं कि कैसे संसद के पिछले कई सत्र बिना किसी काम-काज के सत्तापक्ष के अड़ियल रवैये और विपक्ष के हंगामे की भेट चढ़ गए ! उन संसदीय सत्रों में कुछ काम नही होने के कारण आज स्थिति ये है कि सरकार के तमाम महत्वपूर्ण विधेयक अब भी कतार में खड़े अपने पारित होने का इंतज़ार कर रहे हैं ! यहाँ ये भी गौर करना होगा कि संसद के पिछले सत्र जिन मुद्दों के कारण बर्बाद हुए अबतक उन मुद्दों की सूची में कोई खासा कमी होने की बजाय बढोत्तरी हुई है ! पिछले सत्रों की नाकामी के कारण इस संसदीय सत्र में सरकार के सामने काफी सारी चुनौतियाँ हैं ! मसलन, अब लोकसभा चुनाव २०१४ में बहुत अधिक समय शेष नही है, पर अपनी नीतिजन्य विफलता तथा केंद्रीय मंत्रियों के भ्रष्टाचार के कारण जनता के सामने सरकार की छवि पूरी तरह से खराब हो चुकी है ! तिसपर पिछले कई संसदीय सत्रों में कुछ काम-काज न होने के कारण भी सरकार की बड़ी भारी किरकिरी हुई है ! इन सब बातों को देखते हुए इस संसदीय सत्र में सरकार की कोशिश होगी कि वो काफी समय से अटके पड़े कई  महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित करवाके लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र जनता के बीच अपनी धूमिल हुई छवि को कुछ ठीक कर सके ! पर वहीँ विपक्ष का प्रयास होगा कि लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र बेहद महत्वपूर्ण संसद के इस शीतकालीन सत्र में सरकार की नाकामियों व भ्रष्टाचार के मुद्दों के जरिए उसकी घेराबंदी करके उसे इस संसदीय सत्र का सियासी लाभ नही लेने दिया जाए ! कहा जाता है कि राजनीति में अवसर और मुद्दा सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं और फ़िलहाल ये दोनों ही विपक्ष के पास हैं ! कारण कि फ़िलहाल कहीं भी सरकार के लिए कुछ अच्छा नही चल रहा है ! बात चाहें आर्थिक नीतियों की हो या विदेश नीति की अथवा देश के आतंरिक हालात की इनमे से किसी भी मोर्चे पर सरकार के पास नाकामियों की फेहरिस्त के सिवा कुछ नही है ! अतः इस संसदीय सत्र में मौका और मुद्दा दोनों विपक्ष के पास है और पूरी संभावना है कि इनके जरिये वो सरकार पर हावी होने की पूरी कोशिश करेगा !
आईनेक्स्ट 
हालांकि सरकार के संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ द्वारा शीतकालीन सत्र को बिना किसी गतिरोध के सुचारू ढंग से चलाने के लिए सभी दलों की बैठक जरूर की गई, पर नही लगता कि इस सर्वदलीय बैठक में ऐसी कोई सहमति बनी होगी जिससे कि सरकार की समस्या कुछ कम हो ! क्योंकि इस बैठक के बाद कुछेक दलों की तरफ से जिस तरह के बयान आए हैं वो सरकार के लिए कोई अच्छा संकेत नही दे रहे हैं ! सपा की तरफ से कहा गया है कि अगर सरकार महिला आरक्षण विधेयक संसद में नही लाती है तो वो संसद में हंगामा नही करेगी ! मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने भी अपना रुख साफ़ करते हुए कह दिया कि सरकार सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक जो कि बहुसंख्यक विरोधी है, को हटाए ! वर्ना भाजपा द्वारा संसद में उसका विरोध किया जाएगा ! भाजपा की इस मांग पर सरकार दंगा विरोधी बिल में कुछ संसोधन के लिए राजी भी हुई है ! इसके अतिरिक्त भाजपा द्वारा तेलंगाना समेत और भी कई महत्वपूर्ण विधेयकों को संसद में पेश और पारित करवाने की बात कही गई है ! लिहाजा साफ़ है कि अब अगर सरकार भाजपा, सपा आदि दलों की इन मांगों को मान लेती है तभी संसद का सत्र सुचारू ढंग से चलाने में इन सभी दलों का सहयोग मिल सकेगा ! 

  इसी संदर्भ में अगर एक नज़र पारित होने की कतार में खड़े सरकार के कुछ महत्वपूर्ण विधेयकों पर डालें तो इस संसदीय सत्र में सरकार द्वारा लगभग ३० विधेयकों को सूचीबद्ध किया गया है ! जिनमे कई साल से अटके लोकपाल बिल समेत पदोन्नति मे आरक्षण विधेयक, सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक, महिला आरक्षण विधेयक, तेलंगाना विधेयक आदि और भी कई छोटे-बड़े विधेयक शामिल हैं ! अब चूंकि संसद का ये सत्र ५ से २० दिसंबर तक चलना है जिसमे कि महज १२ बैठकें ही होनी हैं ! इस नाते इतने कम समय में सरकार के लिए इन सभी विधेयकों को संसद में पेश करके इनपर चर्चा करवाना और इन्हें पारित करवाना एक बड़ी चुनौती होगी ! स्थिति को देखते हुए स्पष्ट है कि यहाँ हर हाल में सत्तारूढ़ कांग्रेस ये चाहेगी कि इस संसदीय सत्र में पेश सब विधेयकों में से सभी नही तो कुछ महत्वपूर्ण विधेयकों को ही पारित करवा लिया जाए जिससे कि लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने के लिए कुछ साजो-समान हो जाए ! पर वहीँ मुख्य विपक्षी दल भाजपा की सोच होगी कि इन विधेयकों को जिस-तिस तरह से भी पारित होने से रोककर सरकार को इस संसदीय सत्र का चुनावी लाभ न लेने दिया जाए ! अब ये देखना दिलचस्प होगा कि संसद के इस शीतकालीन सत्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भाजपा में किसका दाव किसपर भारी पड़ता है और कौन किसे मात देता है ? आखिर में अब जो भी हो, पर इस बात के पूरे संकेत हैं कि चुनावी लाभ की प्रत्याशा में राजनीतिक दलों के बीच मचे इस सिरफुटौव्वल के कारण संसद के पिछले कुछ सत्रों की तरह ही ये सत्र भी बेवजह के हंगामे की भेट चढ़ सकता है ! 

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