- पीयूष द्विवेदी भारत
इसमें कोई दो राय नहीं कि हिंदी के प्रचार-प्रसार में हिंदी सिनेमा
का महत्वपूर्ण योगदान है। लेकिन इसी हिंदी सिनेमा के सितारों का व्यक्तिगत व
सार्वजनिक जीवन में हिंदी के प्रति जो रवैया दिखाई देता है, वो चकित करने के साथ-साथ उनपर कई सवाल भी खड़े करता है। सवाल ये कि
हिंदी में फ़िल्में बनाकर अकूत पैसा और लोकप्रियता प्राप्त करने वाले बॉलीवुड के ये
सितारे परदे से बाहर आते ही हिंदी से परहेज क्यों करने लगते हैं? क्या हिंदी इनके लिए केवल कैमरे के सामने रटकर बोली जाने वाली एक
भाषा है, जिसमें बड़े-बड़े संवाद बोलकर वे लाखों-करोड़ों दर्शकों की तालियाँ और
वाहवाही हासिल कर अपनी ‘स्टारडम’ बना लेते हैं?
क्या इससे अधिक हिंदी का उनके लिए कोई महत्व
नहीं है? इन सवालों का जवाब बॉलीवुड के सितारों को देना चाहिए, लेकिन इसका कोई तर्कसंगत जवाब उनके पास होगा, इसकी संभावना बहुत कम है।
ऐसा लगता है कि बॉलीवुड के लोगों, फिर चाहें वो निर्माता-निर्देशक हों या
अभिनेता-अभिनेत्री, के लिए हिंदी एक व्यावसायिक मजबूरी से अधिक कुछ
और नहीं है। व्यावसायिक मजबूरी के ही कारण परदे पर वे हिंदी को समर्पित होते हैं
और उससे बाहर आते ही अंग्रेजीदां हो जाते हैं। परदे से बाहर की उनकी ज्यादातर
गतिविधियों की भाषा अंग्रेजी होती है। एकबार फिल्म बन गयी, उसके बाद फिल्म के प्रचार आदि सभी कार्य अंग्रेजी में होते हैं।
फिल्म के ट्रेलर को प्रसारित करने पर होने वाली प्रेसवार्ता हो या फिल्म के प्रचार
से सम्बंधित विविध साक्षात्कार हों, इन सबकी अधिकांश बातचीत अंग्रेजी में होती है।
कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो ज्यादातर नए-पुराने सभी बॉलीवुड कलाकारों के साथ यही
स्थिति है।
हालांकि बॉलीवुड के पुरस्कार समारोहों में जरूर हिंदी को जगह मिलती
है, लेकिन उसके मूल में भी कोई हिंदी प्रेम नहीं बल्कि विशुद्ध
व्यावसायिकता ही होती है। चूंकि उन पुरस्कार कार्यक्रमों का प्रसारण जिन टीवी
चैनलों पर होता है, उनका बहुत बड़ा दर्शकवर्ग हिंदीभाषी होता है, अतः उस दर्शकवर्ग के मद्देनजर वे कार्यक्रम हिंदी में होते हैं।
हालांकि ऐसे कार्यक्रमों में जो हिंदी बोली जाती है,
उसमें भी आधे से अधिक अंग्रेजी ही होती
है।
इसके अलावा बॉलीवुड कलाकारों के सोशल मीडिया पर अगर नजर डाली जाए तो
वहां भी अंग्रेजी का ही वर्चस्व दिखता है। अमिताभ बच्चन, आशुतोष राणा जैसे कुछेक लोग जरूर यहाँ भी एक अपवाद की तरह हैं, जो अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते
हैं। लेकिन अंग्रेजीप्रेमी सितारों की भीड़ में ऐसे लोगों की संख्या गिनती की ही
है।
साथ ही, यह भी देखा जा सकता है कि बॉलीवुड के लोगों की
आत्मकथा हो, जीवनी हो या किसी और विधा पर कोई किताब हो, अधिकांश का मूल लेखन अंग्रेजी में ही होता। बेशक बाद में उसका हिंदी
अनुवाद भी ला दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर करण जौहर की आत्मकथा ‘एन अनसूटेबल बॉय’ अंग्रेजी में है,
जिसका हिंदी अनुवाद बाद में ‘एक अनोखा लड़का’ के नाम से आया। दिलीप कुमार की आत्मकथा ‘द सब्सटेंस एंड द शैडो’ 2014 में अंग्रेजी में प्रकाशित हुई, जिसका हिंदी अनुवाद 2017 में ‘वजूद और पहचान’
के नाम से आया। ऋषि कपूर की आत्मकथा ‘खुल्लम खुल्ला’ भी पहले अंग्रेजी में आई और उसके लगभग साल भर
बाद इसी नाम से हिंदी में उसका प्रकाशन हुआ। आत्मकथाओं के अलावा अन्य प्रकार के
लेखन में भी बॉलीवुड की पसंद अंग्रेजी ही है। अभिनेत्री से लेखिका बनीं ट्विंकल
खन्ना अबतक तीन किताबें ‘मिस फनीबोन्स’,
‘द लीजेंड ऑफ़
लक्ष्मी प्रसाद’, ‘पायजामाज आर फोर्गिविंग’ लिख चुकी हैं और तीनों ही अंग्रेजी में हैं। अमिताभ बच्चन की बेटी
श्वेता नंदा ने हाल ही में अपने पहले उपन्यास ‘पैराडाइस टावर्स’
के साथ लेखन के क्षेत्र में प्रवेश किया जो कि
अंग्रेजी में ही है। श्वेता बॉलीवुड में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन उनके पिता का हिंदी प्रेम देखते हुए ये उम्मीद कोई ज्यादा नहीं
थी कि वे अपने लेखन की शुरुआत हिंदी में करतीं। हालांकि यहाँ भी कुछेक अपवाद हैं
जैसे कि आशुतोष राणा जो न केवल सोशल मीडिया पर जमकर हिंदी में लिखते हैं बल्कि
अपनी किताब ‘मौन मुस्कान की मार’ (व्यंग्य-संग्रह) भी उन्होंने हिंदी में ही लिखी
है। मगर कुल मिलाकर इन उदाहरणों से समझा जा सकता है कि बॉलीवुड में अंग्रेजी का
कैसा वर्चस्व है।
बॉलीवुड सितारों के अंग्रेजी प्रेम के पक्ष में तर्क दिया जाता है कि
ऐसा वे अपनी पहुँच को भारत के अहिन्दीभाषी क्षेत्रों सहित वैश्विक स्तर तक विस्तार
देने के लिए करते हैं। सवाल ये है कि अगर उन्हें अपनी वैश्विक पहुँच की इतनी ही
चिंता है तो फिर फ़िल्में भी अंग्रेजी में ही क्यों नहीं बनाते? कितना विचित्र है कि फ़िल्में हिंदी में बनाएंगे और उससे देश की
बहुसंख्यक हिंदीभाषी जनता के जरिये पैसा और वाहवाही भी बटोरेंगे, लेकिन जब बात हिंदी को अपनाने की आएगी तो अंग्रेजी के जरिये अपनी
वैश्विक पहुँच बनाने चल देंगे। निस्संदेह अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा है और उसकी
पहुँच बहुत अधिक है, लेकिन हमारे कलाकारों को समझना चाहिए कि
अंग्रेजी चाहें कितनी भी बड़ी भाषा हो, लेकिन उनके लिए हिंदी का महत्त्व सबसे ऊपर है।
वे आज जो कुछ भी हैं, उनको जो भी नाम-पैसा मिला है, उसकी बुनियाद में अंग्रेजी नहीं, हिंदी और हिन्दीभाषी लोग हैं। ऐसे में
बोलने-लिखने से जितना अधिक संभव हो, उनके व्यवहार की भाषा हिंदी ही होनी चाहिए।
यहाँ यह सफाई भी नहीं चल सकती कि हमें हिंदी ठीक से आती नहीं, इसलिए अंग्रेजी में सबकुछ करना पड़ता है। अगर हिंदी अच्छे-से नहीं आती
तो उसे आवश्यक मानकर, सिर्फ फ़िल्मी जरूरतों के लिए नहीं बल्कि एक
भाषा के रूप में गंभीरता से सीखने की जरूरत है।
किसी भी भाषा का विस्तार और विकास उसके बोलने-लिखने वालों के जरिये
ही होता है। अंग्रेजी की जिस वैश्विक पहुँच पर आज बॉलीवुड सितारे मुग्ध हैं, उसके बनने में अंग्रेजीभाषी लोगों का अंग्रेजी के प्रति समर्पित रुख
एक बड़ा कारण है। हिंदी में बाबू देवकीनंदन खत्री का उदाहरण समीचीन है, जिन्होंने हिंदी में लिखा और ऐसा लिखा कि उसे पढ़ने के लिए
हजारों-लाखों लोग हिंदी सीखने पर मजबूर हो गए। बॉलीवुड के हिंदी कलाकारों की
प्रशंसक श्रृंखला भारत ही नहीं, दुनिया भर में फैली हुई है, ऐसे में यदि वे हिंदी में ही अपना समस्त भाषा-व्यवहार करेंगे तो
देश-विदेश के बहुत से अहिंदीभाषी लोग हिंदी सीखने-समझने को प्रेरित हो सकते हैं।
उनका यह रुख हिंदी को वैश्विक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मगर यह
तभी होगा जब वे हिंदी को दीन-हीन और साधारण लोगों की भाषा समझने की अपनी मानसिकता
से बाहर आकर उसे देश की भाषा समझते हुए एक गर्व की अनुभूति के साथ अपनाएंगे और
अधिकाधिक रूप से उसका व्यवहार करेंगे।