बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

सीबीआई पर सवाल उठाना गलत [दैनिक जागरण राष्ट्रीय में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

दैनिक जागरण राष्ट्रीय 
कोल ब्लाक आवंटन मामले की जाँच कर रही सीबीआई द्वारा आदित्य बिड़ला समूह के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला और पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख पर प्राथमिकी क्या दर्ज की गई कि कारपोरेट जगत से लेकर हमारे सियासी गलियारे तक में हंगामा मच गया है ! पीसी पारेख को लेकर तो कुछ नही हुआ, पर बिड़ला को लेकर हर तरफ हडकंप मचा हुआ है ! फिर चाहें वो बड़े-बड़े उद्योगपति हों या हमारे सियासी हुक्मरान, हरकोई सीबीआई की इस कारवाई का विरोध व इसके लिए सीबीआई की आलोचना कर रहा है ! दरअसल ये पूरा मामला कुछ यूँ है कि सन २००५ में कोल ब्लोक आवंटन के समय गठित स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा सम्बंधित कोल ब्लाक तालबिरा को एक सरकारी कंपनी को देने का निर्णय लिया गया था, पर बाद में प्रधानमंत्री ने कमेटी के निर्णय को बदलते हुए ये कोल ब्लोक कुमार मंगलम बिड़ला की कंपनी हिंडाल्को को दे दिया ! वैसे, इस मामले में उद्योगपतियों द्वारा सीबीआई की कारवाई का विरोध तो एक हद तक समझ भी आता है कि वो अपने वर्ग के एक व्यक्ति का समर्थन कर रहे हैं ! पर यहाँ समझ न आने वाली बात ये है कि इस मामले को लेकर हमारी केन्द्र सरकार इतनी परेशान क्यों है कि खुद प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से तक बयान जारी कर सारी जिम्मेदारी अपने पर ली जा रही है ! पीएमओ की तरफ से कहा गया है कि कुमार मंगलम की कंपनी हिंडाल्को को कोल ब्लाक आवंटित करना एकदम सही फैसला था और इसमें कुछ भी गलत नही है ! हालाकि पीएमओ की तरफ से ये तो स्वीकार गया है कि हिंडाल्को को कोल ब्लोक स्क्रीनिंग कमेटी के फैसले को बदल के दिया गया, पर साथ ही यह भी कहा गया है कि इसमे कहीं, किसी  नियम का उल्लंघन नही हुआ ! पीएमओ की तरफ से यह भी कहा गया है कि उस समय कोयला आवंटन में अंतिम फैसला करने का अधिकार प्रधानमंत्री के पास था और उन्होंने सोच-समझकर कोयला ब्लोक हिंडाल्को को देने का निर्णय लिया ! यहाँ थोड़ा विचार करें तो जैसा कि पीएमओ द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने सोच-समझकर कोल ब्लाक आवंटित किए थे ! ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर इस आवंटन में कुछ गलत हुआ है तो क्या इसमें सबसे पहले स्वयं प्रधानमंत्री की जवाबदेही नही बनती हैं ? या उनका दोष नही बनता है ? नैतिकता तो यही कहती है कि प्रधानमंत्री स्वयं आगे आकर इन सवालों का निराकरण करें ! बहरहाल, पीएमओ के अतिरिक्त सरकार के मंत्री भी कुमार मंगलम पर प्राथमिकी दर्ज करने के कारण सीबीआई की आलोचना ही कर रहे हैं ! गौरतलब है कि सरकार के पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली द्वारा इस मामले में सीबीआई की तुलना औरंगजेब के शासन से तक कर दी गई है ! इस विषय में सरकार का तर्क है कि सीबीआई द्वारा इस तरह से किसी भी उद्योगपति पर एफआईआर दर्ज करने से उद्योगपतियों के मन में यहाँ अपनी असुरक्षा का भाव आएगा जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए घातक होगा ! उद्योगपतियों की ओर से भी कुछ ऐसा ही तर्क दिया जा रहा है ! उनका कहना है कि अगर उद्योगपतियों के साथ इस तरह का व्यवहार होगा तो कोई भी बाहरी निवेशक भारतीय बाजारों में पैसा नही लगाएगा ! ऐसे में प्रश्न ये है कि अगर कोई उद्योगपति कुछ गलत करता है तो क्या उसके खिलाफ सिर्फ इसलिए कार्रवाई न की जाए क्योंकि इससे हमारी अर्थव्यवस्था संकट में आ सकती है ! कुल मिलाकर कुमार मंगलम बिड़ला पर हाथ डालकर सीबीआई फिलहाल चौतरफा रूप से घिर चुकी है ! अब सवाल ये उठता है कि क्या एक जांच एजेंसी को इतनी भी आजादी नही कि वो जांच के दौरान सबूत के आधार पर किसी व्यक्ति पर प्राथमिकी तक दर्ज कर सके ?
  हम ये देखते आए हैं कि कोरपोरेट जगत के व्यक्तियों पर जब भी कोई आरोप लगता है तो सरकार प्रायः उनके बचाव में उतर पड़ती है ! कई कारपोरेट दिग्गजों के साथ तो सरकार के संबंध तो प्रत्यक्ष भी हो चुके हैं ! तिसपर अबकि मामला तो अन्यों की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से बेहतर बिड़ला समूह के चेयरमैन से जुड़ा है ! ऐसे में बिड़ला के बचाव में सरकार का कमर कसकर उतर पड़ना आश्चर्यजनक तो नही है, पर ये सोचने पर अवश्य विवश करता है कि आज हमारा लोकतंत्र किस दिशा में जा रहा है ? लोकतंत्र में सरकार जनता की और जनता के लिए होती है, पर क्या हमारी सरकार कारपोरेट घरानों के लिए काम कर रही हो ? वर्तमान कुमार मंगलम बिड़ला पर सीबीआई प्राथमिकी दर्ज किए जाने पर उद्योग जगत समेत हमारे सियासी आकाओं के द्वारा जो बयान आए हैं उन्हें देखते हुए यही कहा जा सकता है कि आज हमारे लिए आर्थिक उन्नति न्याय से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो चुकी है जो कि हमारे भावी लोकतंत्र के लिए अत्यंत भयानक है !     

  लोकतंत्र की सुदृढता के लिए उसके एक महत्वपूर्ण स्तंभ न्यायपालिका का सशक्त और प्रभावी होना अत्यंत महत्वपूर्ण है और न्यायपालिका तभी सुदृढ़ होगी जब उसकी जाँच एजेंसियां बिना किसी रोकटोक के स्वतंत्र रूप से अपना कार्य कर सकेंगी ! अतः आज ये आवश्यक है कि हमारे सियासी आका और उद्योगपति कुमार मंगलम मामले में सीबीआई की जांच में कोई हस्तक्षेप न करते हुए उसे जांच में सहयोग दें ! साथ ही इस बात से भयभीत होने की न तो कोई आवश्यकता है और न ही कोई औचित्य कि किसी उद्योगपति पर कानूनी कार्रवाई होने से देश की अर्थव्यवस्था डवाडोल हो जाएगी ! और अगर देश की अर्थव्यवस्था पर इसका कुछ दुष्प्रभाव पड़ता है तो भी इसके लिए न्याय से कोई समझौता नही किया जा सकता ! अंततः ध्यान रहे कि अगर कुमार मंगलम बिड़ला निर्दोष हैं तो उन्हें डरने की जरूरत नही है, वो इस जांच प्रक्रिया में तपकर खरा सोना होके निकलेंगे ! 

लापरवाही का शिकार होती प्राथमिक शिक्षा [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
किसी भी राष्ट्र का सतत प्रगतिशील रहना काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश की शिक्षा व्यवस्था कैसी है ! इसमे कोई दोराय नही कि जिस राष्ट्र के नागरिक अधिकाधिक संख्या में सुशिक्षित होंगे, वो राष्ट्र प्रगति के नित नए कीर्तिमान गढ़ेगा ! सुशिक्षित नागरिक तैयार करने के लिए आवश्यक होता है कि बच्चों की प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान दिया जाए ! क्योंकि प्राथमिक शिक्षा ही समूची शिक्षा व्यवस्था की नीव होती है और अगर वो मजबूत होगी तभी आगे चलके उसपर ज्ञान की दमदार ईमारत खड़ी हो सकेगी ! कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा के बगैर किसी भी राष्ट्र के लिए सुशिक्षित और चरित्रवान नागरिक तैयार करना किसी भी लिहाज से व्यावहारिक नही है ! इस बात को अगर भारत के संदर्भ में देखें तो हम पाते हैं कि भारत की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में अगर कुछ खूबियां हैं तो बहुत सारी खामियां भी हैं ! इसमे कोई दोराय नही कि हमारी सरकार द्वारा बच्चों की प्राथमिक शिक्षा को सुनिश्चित करने के लिए तमाम प्रयास किए जाते रहे हैं, पर ये भी एक कड़वा सच है कि उन तमाम प्रयासों के बावजूद आज देश के लगभग एक तिहाई बच्चे स्कूली अनुभवों से वंचित हैं ! अब सवाल ये उठता है कि आखिर वो क्या कारण है कि सरकार द्वारा तमाम प्रयास किए जाने के बाद भी भारत की प्राथमिक शिक्षा की ये दुर्दशा हो रही है ? इस सवाल का जवाब सिर्फ यही है कि सरकार की अधिकाधिक योजनाओं की ही तरह शिक्षा संबंधी योजनाएं भी बस कागज़ तक सिमटकर रह गई हैं, यथार्थ के धरातल पर उनका कोई अस्तित्व नही है ! क्योंकि, सरकार योजनाएं बनाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती है और उसे इससे कोई मतलब नही रह जाता कि उन योजनाओं का क्रियान्वयन कैसे हो रहा है ? इसलिए सरकार की बेहतरीन योजनाएं भी सम्बंधित अधिकारियों व मंत्रियों के बीच धन उगाही का एक माध्यम मात्र बनकर रह जाती हैं और जनता तक उनका लाभ नही पहुँच पाता ! यहाँ भी यही स्थिति है ! नजीर के तौर पर देखें तो सरकार द्वारा अधिकाधिक बच्चों को स्कूलों से जोड़ने के लिए सन २००९ में ‘शिक्षा का अधिकार’ नामक क़ानून लागू किया गया ! जिसके तहत ६ से १४ साल तक के प्रत्येक बच्चे के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की गई है ! इस क़ानून के तहत निजी स्कूलों को भी अपने यहाँ ६ से १४ साल तक के कमजोर और गरीब तबकों के २५ प्रतिशत बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना अनिवार्य कर दिया गया ! पर आज इस क़ानून के लागू होने के लगभग ४ साल बाद अगर हम इसके क्रियान्वयन पर एक नजर डाले तो देखते हैं हैं कि इसके नियमों का कोई समुचित क्रियान्वयन अबतक  कहीं नही हुआ है ! साफ़ है कि ये क़ानून  भी सिर्फ कागजों तक सिमटकर रह गया है और सरकार इस तरफ से आँख-कान बंद किए ‘शिक्षा का अधिकार’ क़ानून को अपनी उपलब्धियों में शामिल किए घूम रही है ! उसे कहाँ परवाह कि राष्ट्र के सुखद और मजबूत भविष्य की द्योतक हमारी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था गर्त में जा रही है !

  उपर्युक्त बाते तो सरकार की प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी योजनाओं और उनके क्रियान्वयन आदि की थी ! अब अगर एक नज़र प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम पर डालें तो हम देखते हैं कि यहाँ भी सबकुछ सही नही है ! साधारण शब्दों में कहें तो हालत ये है कि एक एलकेजी कक्षा का बच्चा जब स्कूल निकलता है तो पीठ पर लदे बस्ते के बोझ के मारे उससे चला नही जाता ! आशय ये है कि आज बच्चों पर उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमता से कहीं अधिक का बोझ डाला जा रहा है ! ये समस्या अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चो के साथ कुछ ज्यादा ही है ! अंग्रेजी माध्यम से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों के लिए जो पाठ्यक्रम अधिकृत किया गया है वो किसी लिहाज से उन बच्चों की बौद्धिक क्षमता के योग्य नही है ! कारण कि उसमे केजी कक्षा के बच्चों के लिए तैयार पाठ्यक्रम दूसरी-तीसरी कक्षा के बच्चों के पाठ्यक्रम जैसा है ! उदाहरण के तौर पर देखें तो जिन बच्चों  की अवस्था ‘दिस’, ‘दैट’ आदि की स्पेलिंग याद करने की है, उनके लिए ‘दिस’, ‘दैट’ का प्रयोग सिखाने वाला पाठ्यक्रम तैयार किया गया है ! कहना गलत नही होगा कि ये पाठ्यक्रम भारत की प्राथमिक शिक्षा के लिए नुकसानदेह होने के साथ-साथ बच्चों के कोमल मस्तिष्क और मन के लिए घातक भी है ! ऐसे पाठ्यक्रम से ये उम्मीद बेमानी है कि बच्चे कुछ नया जानेंगे, बल्कि ये मानिए कि ऐसे पाठ्यक्रम के बोझ तले दबकर बच्चे पढ़ी चीजें भी भूल जाएंगे ! बच्चे इस भारी-भरकम पाठ्यक्रम के दबाव से पढेंगे न कि अपनी इच्छा से और ध्यान रहे कि शिक्षा दबाव से नही, इच्छा से आती है ! जाहिर है कि ऐसा पाठ्यक्रम बच्चों की बौद्धिक क्षमता के अनुसार किसी लिहाज से उपयुक्त नही है ! पर बावजूद इसके अगर इस तरह का पाठ्यक्रम स्कूलों द्वारा स्वीकृत है तो इसका सिर्फ एक ही कारण दिखता है - मोटा मुनाफा कमाना ! चूंकि, बच्चों के पाठ्यक्रम की ये किताबें अभिभावकों को स्कूल से ही लेनी होती हैं, अतः इस संभावना से इंकार नही किया जा सकता कि इसके पीछे स्कूलों और प्रकाशकों आदि के मेलजोल से शिक्षा के नाम पर मुनाफाखोरी का बड़ा गोरखधंधा चल रहा होगा ! इन सब बातो को देखते हुए देश के नौनिहालों के भविष्य के लिए ये आवश्यक है कि सरकार इस संबंध में स्वतः संज्ञान ले तथा इस तरह के पाठ्यक्रमों को निरस्त करते हुए सम्बंधित लोगों पर उचित कार्रवाई करे ! साथ ही बच्चों के लिए एक ऐसा पाठ्यक्रम तैयार किया जाए जो उनकी बौद्धिक क्षमता के अनुरूप होने के साथ-साथ मानसिक विकास के लिए उपयुक्त भी हो ! अगर ये किया जाता है, तो ही हम सही मायने में अपने देश के लिए सही नागरिक तैयार कर पाएंगे ! लिहाजा विश्वविद्यालयों और आईआईटी आदि की संख्या बढ़ाने से पहले सरकार को इन बातों पर ध्यान देना होगा, क्योंकि ये बातें भारत की प्राथमिक शिक्षा से जुड़ी हैं और अगर यहीं खामी रही तो आप लाख विश्वविद्यालय स्थापित कर लें, उनका कोई अर्थ नही होगा !

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

पाक के खिलाफ़ सख्त कूटनीति जरूरी [आईनेक्स्ट इंदौर में प्रकाशित]



  • पीयूष द्विवेदी भारत
इसे मात्र एक संयोग कहा जाए या आतंकियों की सोची-समझी रणनीति कि जब अमेरिका में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच मेलजोल की तैयारी हो रही थी, तब जम्मू-कश्मीर के केरन सेक्टर में पाक-प्रेरित घुसपैठियों द्वारा हमारी सीमा लांघकर हमारे इलाके पर कब्जे की कोशिश की जा रही थी ! पर ये हमारे बहादुर जवानों का हौसला ही था जिसने उन घुसपैठियों के काले मंसूबों को कामयाब नही होने दिया ! घुसपैठियों और सेना के जवानों के बीच पन्द्रह दिन तक भीषण मुठभेड़ चली जिसमे सात घुसपैठियों के शव सेना द्वरा बरामद किए गए हैं ! सेना ने अबतक मारे गए घुसपैठियों के पास से जो युद्धक सामग्री बरामद की है उसे देखते हुए इसकी पूरी संभावना जताई जा रही है कि यहाँ किसी बड़े युद्ध की तैयारी चल रही थी ! अब सवाल ये उठता है कि जवानों की तैनाती होने के बावजूद भी आखिर किस प्रकार हमारी सीमा के भीतर घुसपैठ हो गई ? यहाँ कुछ बिंदुओं पर विचार करें तो तमाम ऐसे सवाल सामने आते है जो चाहे-अनचाहे इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में पाक सेना की संलिप्तता को ही पुख्ता करते हैं ! जैसे कि बिना पाकिस्तानी सेना की शह के भारी संख्या में आतंकी पाक सीमा से भारतीय सीमा में कैसे घुस सकते हैं ? दूसरी चीज कि इन घुसपैठियों को रसद तथा लंबे समय तक भारतीय जवानों का सामना करने के लिए गोली-बंदूकें कहाँ से प्राप्त हो रही थीं ? जाहिर है कि बगैर पाक सेना की मदद के सिर्फ आतंकी संगठनों द्वारा इतने दिनों तक भारतीय सीमा में घुसकर भारतीय फ़ौज का मुकाबला करना संभव नही है ! अतः संशय नही कि इसमे आतंकियों को पाक सेना द्वारा हर स्तर पर भरपूर सहयोग दिया जा रहा होगा ! भारतीय सेना की तरफ से तो खुले तौर पर ये संकेत भी दिए जा रहे हैं कि इस घुसपैठ में आतंकियों के साथ पाक सेना के विशेष जवान भी मौजूद थे, पर ये हमारे सियासी महकमे की कूटनीतिक विफलता ही है कि हमारे सियासी हुक्मरान इस संबंध में पाकिस्तान पर अबतक किसी तरह का कोई दबाव नही बना पाए हैं ! इस संबंध में हमारे हुक्मरान अबतक सिर्फ बड़ी-बड़ी बातों के हवाई किले बनाने में ही लगे हैं, यथार्थ के धरातल पर अबतक कोई ठोस कदम नही उठाया गया है ! पाकिस्तान के द्वारा तो हमेशा की ही तरह इसबार भी इस घुसपैठ अपनी संलिप्तता से साफ़ इंकार किया जा रहा है ! पर आश्चर्य इस बात का है कि हमारे नेता भी आँख-कान बंद किए पाकिस्तान की बात पर ही यकीन किए बैठे हैं ! ऐसा लगता है जैसे हमारे हुक्मरान पाकिस्तान को अपना बहुत बड़ा हमदर्द और सच्चा मित्र मान चुके हैं जिस कारण वो उसकी बात पर कोई संदेह नही कर रहे ! अगर ऐसा नही होता तो क्या अबतक अपनी सीमा में इस पाक समर्थित आतंकी घुसपैठ को मुद्दा बनाकर  सरकार द्वारा पाकिस्तान के ऊपर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनैतिक दबाव बनाने की कोशिश नही  गई होती ! पर हमारे सियासी आकाओं द्वारा ये दबाव बनाने की सिर्फ बातें ही की जा रही है, जमीनी हकीकत ये है कि अबतक पाकिस्तान पर किसी तरह का कोई दबाव नही बनाया जा सका है !
आईनेक्स्ट इंदौर
  पाकिस्तान को लेकर हमारी नीतियों की असल खामी भी यही है कि हम उसकी नापाक हरकतों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा नही बना पाते हैं या कहें कि बनाना चाहते ही नही हैं ! पाकिस्तान की हालत हर स्तर पर हमारे सामने बौनी है, पर बावजूद इसके वो हमारे खिलाफ लगातार आक्रामक रुख अपनाए रहता है जबकि विश्व बिरादरी में एक मजबूत साख रखने वाले हम हमेशा ही उसकी मान-मनौव्वल में लगे रहते हैं ! हमने कभी भी स्वयं को पाकिस्तान के समक्ष एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत ही नही किया ! पाकिस्तान सदैव से हर स्तर पर हमारे हितों का विरोध करने की नीति पर चलता रहा है, पर हमने हमेशा ही पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाने में विश्वास किया है ! यहाँ उल्लेखनीय होगा कि आचार्य चाणक्य ने कभी कहा था कि आदमी को थोड़ा टेढ़ा भी होना चाहिए, सिर्फ सीधा होना उसके हितों के लिए हानिकारक हो सकता है ! भारत के साथ यही समस्या है कि वो शांति समर्थन के अपने सनातन सिद्धांत को निभाने के अन्धोत्साह में इस कदर मशगूल है कि उसे इसका तनिक भी भान नही कि इस कारण विश्व समुदाय में उसकी छवि एक ऐसे राष्ट्र की बनती जा रही है जो शक्तिसंपन्न होते हुए भी अपने हितों की रक्षा नही कर सकता ! निश्चित ही शांति का समर्थन हमारे सनातन सिद्धांतों में से एक रहा है, पर ये भी एक सत्य है कि समय के साथ हर सिद्धांत परिवर्तन चाहता है ! दूसरी बात कि कोई भी सिद्धांत राष्ट्र से बड़ा नही हो सकता ! ऐसे सिद्धांतों के प्रति मोह का क्या अर्थ जिनसे कि राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को ही खतरा उत्पन्न हो जाय ! कोई दोराय नही कि युद्ध कोई विकल्प नही है, पर राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा के लिए एकबार इसपर भी विचार किया जा सकता है ! पर फिलहाल स्थिति इतनी विकट नही है ! अगर हमारे सियासी हुक्मरान थोड़ी सूझबूझ का परिचय दें तो बिना किसी जंग के कूटनैतिक स्तर पर पाकिस्तान को दबाया जा सकता है !
  आज जरूरत इस बात की है कि हम विश्व समुदाय के सामने पाकिस्तान को एक समस्या के रूप में पेश करें ! साथ ही उसकी नापाक हरकतों का कच्चा-चिठ्ठा विश्व बिरादरी में खोले ! उल्लेखनीय होगा कि मुंबई हमलों से जुड़े तमाम सबूत हम अबतक पाकिस्तान को सौप चुके हैं, पर इसका कोई सकारात्मक परिणाम नही निकला है ! अब जरूरत इस बात की है कि उन सबूतों को विश्व समुदाय के समक्ष पेश करते हुए पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को उजागर किया जाए ! साथ ही पाकिस्तान से किसी तरह की कोई भी बातचीत तबतक न की जाए जबतक कि वो अपनी ज़मीन से हमारे खिलाफ चल रही आतंकी गतिविधियों पर विराम लगाने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नही करता है ! हमारी कोशिश होनी चाहिए कि पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा दबाव बने कि वो अपनी ज़मीन पर स्थित आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को सैन्य कार्रवाई के द्वारा जल्द से जल्द नेस्तनाबूद करे ! बहरहाल, इन सभी चीजों के लिए आवश्यक है कि हमारे सियासी आका शांति के नाम पर हर समझौते के लिए तैयार रहने वाली अपनी घिसी-पिटी सोच को छोड़कर दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए पाकिस्तान के प्रति सख्त रुख अपनाएं ! क्योंकि बिना दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के इन सब बातों का कोई विशेष अर्थ नही है !

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

पाकिस्तान की शह पर घुसपैठ [दैनिक जागरण राष्ट्रीय व डीएनए में प्रकाशित]



  • पीयूष द्विवेदी भारत

डीएनए
कश्मीर के केरन सेक्टर में भारतीय सेना और पाकिस्तानी घुसपैठियों के बीच जारी मुठभेड़ आख़िरकार समाप्त हो ही गई ! सेना द्वारा सात घुसपैठियों के शव तथा कुछ हथियार बरामद किए गए हैं ! बहरहाल अब ये मुठभेड़ भले ही समाप्त हो गई हो, पर अपनी समाप्ती के साथ ही इसने कई सारे सवाल भी छोड़ दिए हैं ! ऐसे सवाल जो भारतीय सीमा सुरक्षा के विषय में तमाम संदेह पैदा करते हैं ! इस संबंध में सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि अगर घुसपैठियों की संख्या मात्र सात थी तो फिर इस मुठभेड़ को खत्म होने में इतना अधिक समय क्यों लगा ? क्या हमारे हजारों जवान सेना के सर्वोच्च कमांडरों के नेतृत्व में मात्र सात घुसपैठियों से पखवाड़े भर लड़ते रहे ? इन सवालों पर अबतक कोई पुख्ता जवाब कहीं से नही आया है ! फिर चाहे वो सेनाध्यक्ष हों या सियासी हुक्मरान सभी इन सवालों पर मौन ही धारण किए हुए हैं ! इन सबके अतिरिक्त एक सवाल यह भी उठता है कि जब बीते २७ सितम्बर को सेना द्वारा ही बताया गया था कि १०-१२ घुसपैठियों के शव देखे गए हैं तो फिर अब ये सात ही शव क्यों है ? ऐसी स्थिति में इस संभावना से कत्तई इंकार नही किया जा सकता कि बाकी घुसपैठियों के शव उनके साथी आकर लेते गए हों  ! अतः अब ये समझने में कोई समस्या नही होनी चाहिए कि भारत की सीमा में आकर घुसपैठियों के शव ले जाना पाकिस्तानी सेना के सहयोग के बिना कत्तई आसान नही है ! हालाकि भारतीय सेना द्वारा ये संदेह जरूर जताया जा रहा है कि इस घुसपैठ में पाकिस्तानी स्पेशल फ़ोर्स का हाथ हो सकता है, पर इस बात का सेना के पास फिलहाल कोई आधार नही है ! वैसे इस घुसपैठ को देखते हुए कुल मिलाकर एक बात तो साफ़ है कि भारत-पाक सीमा  को लेकर अभी किसी तरह से निश्चिंत नही हुआ जा सकता !
दैनिक जागरण राष्ट्रीय
  इस घुसपैठ के विषय में हमारी सेना और सियासी हुक्मरान भले ही पाकिस्तान की संलिप्तता को अभी तक शक के घेरे में रखे हों, पर कुछ ऐसे सवाल हैं जो इस घुसपैठ में पाक सेना की संलिप्तता को काफी हद तक पुख्ता करते हैं ! सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि बिना पाकिस्तानी सेना की शह के कोई भी पाक सीमा से भारतीय सीमा में कैसे घुस सकता हैं ? दूसरी चीज कि इन घुसपैठियों को रसद तथा लंबे समय तक भारतीय जवानों का सामना करने के लिए गोली-बंदूकें कहाँ से प्राप्त हो रही थीं ? जाहिर है कि बगैर पाक सेना की मदद के सिर्फ आतंकी संगठनों द्वारा इतने दिनों तक भारतीय सीमा में घुसकर भारतीय फ़ौज का मुकाबला करना किसी लिहाज से संभव नही है ! अतः साफ़ है कि ये घुसपैठी पाक सेना की शह पर ही भारतीय सीमा में घुसे थे और हो न हो इस घुसपैठ के पीछे इनका जरूर कुछ बड़ा उद्देश्य था ! ये सुखद है कि देर से ही सही, हमारे जवानों के हौसले के आगे इन घुसपैठियों के सारे नापाक इरादों ने दम तोड़ दिया और इनकी घुसपैठ की कोशिश नाकाम हो गई ! पर एक बात ये भी है कि भले ही ये घुसपैठ नाकाम हो गई हो, पर इस घुसपैठ को देखते हुए भविष्य में इस तरह की किसी गतिविधि से इंकार नही किया जा सकता ! इस नाते आवश्यक है कि हमारी सेना इस विषय में अत्यंत सजग रहें और हमारे नेता भी इस विषय में कुछ ठोस कदम उठाते हुए अपनी सीमा की सुरक्षा सुनिश्चित करें ! ध्यान रहे कि पाकिस्तानी सेना द्वारा इससे पहले भी सीमा पर युद्ध विराम के उल्लंघन की हरकतें की जाती रही हैं ! पर दुर्भाग्य कि पाकिस्तानी सेना की उन हरकतों को हमारे सियासी तबके द्वारा कभी संजीदगी से नही लिया गया और बस इसी कारण आज ये इतनी बड़ी घुसपैठ हुई ! अतः हमारे हुक्मरानों को चाहिए कि वो इस घुसपैठ से सबक लें और अपनी सीमा सुरक्षा के प्रति सजग हों !
  आज जरूरत इस बात की है कि हमारी सेना और ख़ुफ़िया ब्यूरो आदि मिलकर इस घुसपैठ में पाकिस्तानी भूमिका की गुप्त जांच करें और उसकी संलिप्तता पाए जाने पर उसे ससाक्ष्य विश्व समुदाय के सामने पेश करते हुए उसकी नापाक हरकतों का कच्चा-चिठ्ठा विश्व बिरादरी में खोले ! उल्लेखनीय होगा कि मुंबई हमलों से जुड़े तमाम सबूत हम अबतक पाकिस्तान को सौप चुके हैं, पर इसका कोई सकारात्मक परिणाम नही निकला है ! लिहाजा भारत को चाहिए कि वो उन सबूतों को विश्व समुदाय के समक्ष पेश करते हुए पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को उजागर करे ! साथ ही पाकिस्तान से किसी तरह की कोई भी बातचीत तबतक न की जाए जबतक कि वो अपनी ज़मीन से हमारे खिलाफ चल रही आतंकी गतिविधियों पर विराम लगाने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नही करता है ! हमारी कोशिश होनी चाहिए कि पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा दबाव बने कि वो अपनी ज़मीन पर, खासकर सीमा पर स्थित आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को सैन्य कार्रवाई के द्वारा जल्द से जल्द नेस्तनाबूद करे ! क्योंकि अगर ऐसा हो जाता है तो फिर पाक प्रेरित आतंक के संबंध में भारत की चिंता काफी हद तक कम हो जाएगी ! इन सब चीजों के क्रियान्वयन के बाद ही हम इस तरह की घुसपैठों को रोक और सही मायने में अपनी सीमा को सुरक्षित मान सकते हैं ! वर्ना बड़े-बड़े बयान देने से कुछ नही होने वाला ! बहरहाल, इन सभी चीजों के लिए आवश्यक है कि हमारे सियासी हुक्मरान शांति के नाम पर हर समझौते के लिए तैयार रहने वाली अपनी घिसी-पिटी सोच को छोड़कर दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए इन बातो के क्रियान्वयन के लिए प्रयास करें ! क्योंकि बिना दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के इन सब बातों का कोई विशेष अर्थ नही है !

सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

अध्यादेश वापसी के बहाने नई राजनीति [आईनेक्स्ट इंदौर और डीएनए में प्रकाशित]



  • पीयूष द्विवेदी भारत

आईनेक्स्ट
डीएनए
जैसा कि पूरी उम्मीद थी कि दागी नेताओं को बचाने वाले अध्यादेश पर राहुल गाँधी के खुले विरोध के बाद सरकार द्वारा इसे वापस ले लिया जाएगा, बिलकुल वैसा ही हुआ ! बेशक ये बहुत अच्छी बात है कि इस अध्यादेश की वापसी के बाद अब दागी नेताओं के बचने का रास्ता बंद हो गया, पर बात यहीं खत्म नही होती ! यहाँ कुछ बातो पर विचार करना आवश्यक होगा ! सबसे पहले तो ये समझना होगा कि सरकार ने ये अध्यादेश वापस जरूर ले लिया है, पर जब और जिस स्थिति में ये फैसला किया गया है, वो सरकार की नीयत को संदेह के घेरे में लाता है ! इसी  संदर्भ में उल्लेखनीय होगा कि जिस कांग्रेस कोर ग्रुप द्वारा २१ सितम्बर को इस अध्यादेश को मंजूरी दी गई थी, उसीके द्वारा इसे वापस लेने का निर्णय भी लिया गया है ! साथ ही ये भी कि जिन राहुल गाँधी ने इस अध्यादेश को फाड़कर फेंकने की बात कही है, वो भी इसपर चर्चा के दौरान मौजूद रहे थे ! इन सब बातो को देखते हुए अब सवाल ये उठता है कि क्या सरकार उसवक्त अंधी और बहरी हो रही थी जब जनता और विपक्ष के विरोध के बावजूद भी वो दागियों को बचाने वाले संशोधन विधेयक पर अध्यादेश ले आयी ? तिसपर जो कांग्रेसी नेता आज इस अध्यादेश को गलत ठहरा रहे हैं, क्या वो उस कैबिनेट में मौजूद नही थे जिसके द्वारा इस अध्यादेश को मंजूरी दी गई ? और तो और, क्या सरकार को इस अध्यादेश के बकवासपने का तब अंदाज़ा नही था जब इसे राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया ? सरकार के पास तो इन सवालों के जवाब के रूप में हजारों कुतर्क हैं, पर थोड़ा विचार करते ही सारी असलियत हमारे सामने आ जाती है ! बड़ी आसानी से समझा जा सकता है कि सरकार की ये अध्यादेश वापसी पूरी तरह से अवसरवादी राजनीति से प्रेरित है जिसके तहत सरकार का उद्देश्य लोकसभ चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने का है ! यहाँ समझना होगा कि तबतक सरकार ये अध्यादेश आगे बढ़ाती रही जबतक इसपर जनता और विपक्ष का विरोध था, पर जब स्वयं राष्ट्रपति ने भी इसके प्रावधानों पर संदेह जताया तब सरकार के लिए मुश्किल हो गई ! तब सरकार की स्थिति ऐसी हो गई कि उसके लिए इस अध्यादेश को न उगलते बनता न निगलते ! ऐसे में कांग्रेस द्वारा राहुल गाँधी के द्वारा इस अध्यादेश का खुला विरोध करवाके वो चाल चली गई जिससे कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे ! मतलब कि सरकार को अध्यादेश वापसी का आधार भी मिल जाए औए विपक्ष को इसका श्रेय भी न मिल सके ! साथ ही राहुल गाँधी को जनता के सामने सरकार से अलग जनता के लिए लड़ने वाले एक जननेता के रूप में प्रस्तुत भी किया जा सके ! पर दुर्भाग्य कि अपने राजनीतिक लाभ के इस अन्धोत्साह में शायद सरकार ये भूल गई कि वो एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत जनता द्वारा चुनकर सत्ता में आयी है और उसपर किसी व्यक्ति विशेष की नही समूचे राष्ट्र की भावनाओं का ख्याल रखने का दायित्व है ! ये कितना अजीब है कि जनता और विपक्ष के विरोध के बावजूद भी एक अध्यादेश राष्ट्रपति के पास स्वीकृति तक के लिए चला जाता है और तभी अचानक सरकार का एक नेता उस अध्यादेश को बकवास करार दे देता है और फिर तो सारी कहानी ही बदल जाती है ! ये देखते हुए सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि इस सरकार के लिए किसी जनभावना का कोई महत्व नही है, ये पूरी तरह से वन मैन आर्मी सरकार हो गई है ! कुल मिलाकर इस अध्यादेश के लाए जाने, राहुल गाँधी द्वारा इसका विरोध करने तथा इसे वापस लिए जाने तक के सम्पूर्ण घटनाक्रम को देखने पर जो एक तथ्य स्पष्ट रूप से सामने आता है वो ये कि हमारी सरकार इस कदर व्यक्ति केंद्रित हो गई है कि उसे इसका तनिक भी भान नही हो रहा कि वो कुछ लोगों की संतुष्टि मात्र के लिए लगातार लोकतंत्र का मज़ाक उड़ा रही है ! लोकतंत्र का इससे बड़ा अपमान और क्या होगा कि राहुल गाँधी जिन्हें सरकार में कोई पद तक प्राप्त नही है, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट के निर्णय को बकवास कह देते हैं और प्रधानमंत्री उनकी बात को स्वीकारने के सिवाय कुछ नही कर पाते ! ये देखते हुए एक सीधा-सा सवाल उठता है कि सरकार मनमोहन सिंह चला रहे हैं या राहुल गाँधी ?
  प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर तो हमेशा से ही कमजोर प्रधानमंत्री होने जैसी टिप्पणियां जनता समेत विपक्षी नेताओं द्वारा भी की जाती रही हैं ! कहा जाता रहा है कि बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का हर निर्णय सोनिया-राहुल का होता है ! विचार करने पर ये बातें लगभग सही ही प्रतीत होती हैं ! कारण कि मनमोहन सिंह के दो बार के प्रधानमंत्री काल में एक भी निर्णय ऐसा नही दिखता जो उनकी अपनी इच्छाशक्ति व सूझबूझ को दर्शाता हो ! बल्कि उलट उनके बयानों में सोनिया-राहुल के लिए जो समर्पण दिखाता है उससे यही स्पष्ट होता है कि वो स्वयं भी खुद को प्रधानमंत्री नही मानते बल्कि इसे सोनिया गाँधी की मेहरबानी ही समझते हैं ! अभी हाल ही में आया उनका ये बयान कि मुझे राहुल के नेतृत्व में कार्य करके खुशी होगी, उनकी कमजोर सोच और राजनीतिक सूझबूझ के अभाव को दर्शाने वाला होने के साथ-साथ लोकतंत्र के लिए अपमानकारी भी है ! प्रधानमंत्री की इस कमजोर मानसिकता के कारण ही आज उनकी स्थिति ये है कि उनका इस्तेमाल बलि के बकरे की तरह किया जा रहा है ! जब कोई गलत कार्य होता है तो उसकी जवाबदेही प्रधानमंत्री पर आती है जबकि सभी अच्छे कार्यों का सारा सेहरा कांग्रेसी युवराज के सिर बंधता है ! यही कारण है कि व्यक्तिगत रूप से स्वच्छ चरित्र होते हुए भी वो दूसरों के दागों को ढो रहे हैं ! दागियों पर  अध्यादेश मामले में भी यही हुआ है ! पर दुर्भाग्य कि हमारे प्रधानमंत्री इन बातों को जानने और समझने की बजाय मौन रूप से इन्हें स्वीकारते जा रहे हैं ! अब उनको ये कौन समझाए कि वो एक लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री हैं इसलिए उनपर उछलने वाले कीचड़ से सिर्फ वो नही हमारा लोकतंत्र भी दागदार हो रहा है ! अतः ये समय मौन रहने तथा किसीके इशारों पर चलने का नही बल्कि स्वयं की सूझबूझ से स्वतन्त्रतापूर्वक निर्णय लेने का है !