बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

जल संकट से कैसे बचेंगे ? [दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

दैनिक जागरण 
विगत दिनों में हरियाणा में जाट आरक्षण की मांग के मद्देनज़र जाटों द्वारा मचाए गए उत्पात का असर सिर्फ हरियाणा तक सीमित नहीं रहा बल्कि राजधानी दिल्ली को भी जाटों के इस तथाकथित आन्दोलन के कारण पानी की समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। दरअसल जाट आन्दोलनकारियों ने हरियाणा मुनक नहर जिससे दिल्ली को बड़ी मात्रा में जलापूर्ति होती है, को क्षतिग्रस्त कर वहीँ डेरा डाल दिया था, जिस  कारण दिल्ली को पानी की आपूर्ति रुक गई। परिणामतः दिल्लीवासियों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ा और अब जब आन्दोलन काफी हद तक नियंत्रित है तथा मुनक नहर पर सेना का कब्ज़ा हो गया है फिर भी नहर के बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण उसकी मरम्मत तक लगभग पन्द्रह दिन तक दिल्लीवासियों को पानी की समस्या से जूझना पड़ सकता है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि देश की राजधानी में ऐसी स्थिति क्यों है कि एक नहर के बाधित होने के कारण वहां पानी के लाले ही पड़ जाते हैं ? सच्चाई  यही है कि देश की राजधानी में जल का भारी संकट है और फिलवक्त इस संकट से निपटने की दिशा में कुछ विशेष नहीं किया जा रहा। देश की राजधानी ही क्यों, जलसंकट तो इस वक़्त लगभग समूचे देश के लिए बड़ी समस्या बन चुका है। देश का भू-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। गिरते जलस्तर को आंकड़े से समझें तो पहले जहाँ ३० फीट की खुदाई पर पानी मिल जाता था, वहां अब ६० से ७० फीट की खुदाई करनी पड़ती है। भारतीय केंद्रीय जल आयोग द्वारा २०१४ में जारी आंकड़ों के अनुसार देश के अधिकांश बड़े जलाशयों का जलस्तर वर्ष २०१३ के मुकाबले घटता हुआ पाया गया था। आयोग के अनुसार देश के बारह राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशयों के जलस्तर में काफी गिरावट पाई गई थी। आयोग की तरफ से ये भी बताया  गया  कि २०१३ में इन राज्यों का जलस्तर जितना अंकित किया गया था, वो तब ही काफी कम था। लेकिन, २०१४ में  वो गिरकर तब से भी कम हो गया। गौरतलब है कि केंद्रीय जल आयोग (सीडब्लूसी) देश के ८५ प्रमुख जलाशयों की देख-रेख व भंडारण क्षमता की निगरानी करता है। संभवतः इन स्थितियों के मद्देनज़र ही अभी  हाल में जारी जल क्षेत्र में प्रमुख परामर्शदाता  कंपनी ईए की एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक भारत २०२५ तक जल संकट वाला देश बन जाएगाअध्ययन में कहा गया है कि परिवार की आय बढ़ने और सेवा व उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है। देश की सिंचाई का करीब ७० फीसदी और घरेलू जल खपत का ८०  फीसदी हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है। हालांकि घटते जलस्तर को लेकर जब-तब देश में पर्यावरण विदों द्वारा चिंता जताई जाती रहती हैं, लेकिन जलस्तर को संतुलित रखने के लिए सरकारी स्तर पर कभी कोई ठोस प्रयास किया गया हो, ऐसा नहीं दिखता।
   अब सवाल ये उठता है कि आखिर भू-जल स्तर के इस तरह निरंतर रूप से गिरते जाने का मुख्य कारण क्या है ? अगर इस सवाल की तह  में जाते हुए हम घटते भू-जल स्तर के कारणों को समझने का प्रयास करें तो तमाम बातें सामने आती  हैं। घटते भू-जल के लिए सबसे प्रमुख कारण तो उसका अनियंत्रित और अनवरत दोहन ही है। आज दुनिया  अपनी जल जरूरतों की पूर्ति के लिए सर्वाधिक रूप से भू-जल पर ही निर्भर है। लिहाजा, अब एक तरफ तो भू-जल का ये अनवरत दोहन हो रहा है तो वहीँ दूसरी तरफ औद्योगीकरण के अन्धोत्साह में हो रहे प्राकृतिक विनाश के चलते पेड़-पौधों-पहाड़ों आदि की मात्रा में कमी आने के कारण बरसात में भी काफी कमी आ गई है । परिणामतः धरती को भू-जल दोहन के अनुपात में जल की प्राप्ति नहीं हो पा रही है। सीधे शब्दों में कहें तो धरती जितना जल दे रही है, उसे उसके अनुपात में बेहद कम जल मिल रहा है। बस, यही वो प्रमुख कारण है जिससे कि दुनिया का भू-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। हालांकि मौसम विभाग द्वारा अनुमान व्यक्त किया गया है कि अलनीनो में आई कमी के कारण इस वर्ष मानसून अच्छा रह सकता है और बढ़िया बरसात हो सकती है। अब यह पूर्वानुमान कितना सही है ये तो आगे पता चलेगा लेकिन, इतना तो किया जाना चहिए कि अच्छी बरसात होने की स्थिति में उसके जल का संग्रहण किया जाय ताकि भू-जल पर से हमारी निर्भरता कम हो सके। अगर प्रत्येक घर की छत पर वर्षा जल के संरक्षण के लिए एक-दो टंकियां लग जाएँ व घर के आस-पास कुएँ आदि की व्यवस्था हो जाए, तो वर्षा जल का समुचित संरक्षण हो सकेगा, जिससे जल-जरूरतों की पूर्ति के लिए भू-जल पर से लोगों की निर्भरता भी कम हो जाएगी। परिणामतः भू-जल का स्तरीय संतुलन कायम रह सकेगा। जल संरक्षण की यह व्यवस्थाएं हमारे पुरातन समाज में थीं जिनके प्रमाण उस समय के निर्माण के ध्वंसावशेषों में मिलते हैं, पर विडम्बना यह है कि आज के इस आधुनिक समय में हम उन व्यवस्थाओं को लेकर बहुत गंभीर नहीं हैं।

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