गुरुवार, 28 नवंबर 2013

सुलझा-अनसुलझा सा आरुषि केस [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
आख़िरकार देश की सबसे बड़ी मर्डर-मिस्ट्री आरुषि-हेमराज हत्याकांड पर फैसला आ ही गया ! सीबीआई अदालत द्वारा परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर आरुषि के माता-पिता नूपुर और राजेश तलवार को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई ! हालांकि अब भी इस मामले में तमाम ऐसी बातें हैं जिनके विषय में न तो इस मामले की जांच कर रही सीबीआई के पास कोई जवाब है और न ही सज़ा देने वाले न्यायालय के पास ! बनिस्बत, जिससे आरुषि का गला काटा गया, वो हथियार क्या हुआ ? हेमराज का फोन कहाँ गया ? आदि तमाम ऐसे सवाल हैं जो अब भी अनुत्तरित रूप से कायम हैं ! पर ये मामला इतना लंबा और पेंचीदा हो गया कि आखिरकार अदालत को परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर ही फैसला सुनाना पड़ा ! इसी क्रम में अगर इस पूरे मामले पर एक संक्षिप्त दृष्टि डालें तो दिल्ली के जलविहार स्थिति राजेश तलवार के फ़्लैट में १५ मई २००८ की सुबह उनकी एकलौती बेटी आरुषि मृत पाई गई ! आरुषि के माता-पिता के कहने पर तब पुलिस को लगा कि नौकर हेमराज ने आरुषि को मारा है, क्योंकि तब वो घर में नही था ! पर अगले ही दिन उसी घर की छत से जब हेमराज का शव मिला तब इस मामले ने नया मोड़ ले लिया ! मामले की प्रारंभिक जांच कर रही दिल्ली पुलिस ने शक की बिना पर जल्द ही इस मामले में आरुषि के पिता राजेश तलवार को गिरफ्तार कर लिया ! पर दिल्ली पुलिस राजेश तलवार के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नही जुटा पाई ! लिहाजा ये केस कमजोर रहा और मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई ! सीबीआई को सौंपे जाने के बाद से इस केस में कई मोड़ आते गए और दिन पर दिन मामला और पेंचीदा होता गया ! इस पूरे मामले को देखते हुए कहना गलत नही होगा कि जब दिल्ली पुलिस ने अपनी लापरवाही भरी जांच से इस केस को काफी हद तक खराब कर दिया तब इसे सीबीआई को सौंपा गया ! अगर शुरुआत में ही समय रहते ये केस सीबीआई को दे दिया गया होता, तो न तो ये मामला इतना पेंचीदा होता और न ही आज परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर फैसला करने की नौबत आती ! वैसे, इस मामले की पेंचीदगी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी जांच में लगी सीबीआई ने कोई सुराग न मिलने के कारण ये मामला बंद कर दिया था ! पर अदालत ने सीबीआई द्वारा पेश इस मामले की क्लोजर रिपोर्ट को ही चार्जशीट मान लिया और प्रत्यक्ष साक्ष्यों के अभाव में परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को ही आधार मानकर आरुषि के माता-पिता पर केस चलाने के आदेश दे दिए ! परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की बात करें तो इन साक्ष्यों का कोई दस्तावेजी अथवा बयानी रूप नही होता है ! ये पूरी तरह से सतही स्थिति को देखते हुए जांच एजेसी व न्यायालय द्वारा लगाए गए अनुमान पर आधारित होते हैं ! इस मामले में सभी परिस्थितिजन्य साक्ष्य आरुषि के माता-पिता के खिलाफ ही दिखाई दे रहे हैं !
   इसी संदर्भ में अगर इस मामले से सम्बंधित कुछ प्रमुख परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की बात करें तो पहला साक्ष्य कि आरुषि-हेमराज की हत्या के समय घर में आरुषि के माता-पिता के सिवा और कोई नही था ! दूसरा साक्ष्य कि आरुषि के माता-पिता ने हत्या के दिन पुलिस को छत की चाबी नही दी जहाँ हेमराज की लाश छुपाई गई थी ! साथ ही राजेश तलवार द्वारा तमाम बाहरी लोगों पर आरोप लगाकर इस मामले को उलझाने और सीबीआई को गुमराह करने की कोशिश की गई ! ये तथा इसके अतिरिक्त और भी कई परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं जो पूरी तरह से तलवार दम्पति के खिलाफ जाते हैं ! इन्ही साक्ष्यों के आधार पर अदालत ने अब इस मामले में फैसला सुनाया ! हालांकि ये फैसला निचली अदालत का है, अतः अभी इसका उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जाना शेष है ! पहले तो ये मामला उच्च न्यायालय में जाएगा और देखने वाली बात होगी कि इस मामले का आधार बने परिस्थितिजन्य साक्ष्य उच्च न्यायालय को कितना संतुष्ट कर पाते हैं ? क्योंकि कई मामलों में ये देखा गया है कि निचली अदालत द्वारा दोषी करार लोग ऊपरी अदालत में अपील करके प्रत्यक्ष साक्ष्यों के अभाव में छूट जाते हैं ! अब चूंकि ये मामला पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है, अतः इसमें भी ऐसी किसी संभावना से इंकार नही किया जा सकता है !

  अब जो भी हो, पर इतना तो अवश्य है कि सामान्य तरह से हुए इस दोहरे हत्याकांड के पूरे मामले को देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बनाने का श्रेय हमारी जांच एजेंसियों, खासकर कि दिल्ली पुलिस को ही जाता है ! इस मामले की शुरुआती जांच में दिल्ली पुलिस द्वारा पूरी तरह से लापरवाही बरती गई जिस कारण गुनाहगारों को सबूत मिटने के लिए पर्याप्त समय मिल गया ! दिल्ली पुलिस ने तत्काल में उन महत्वपूर्ण स्थानों का निरिक्षण तक नही किया जहाँ काफी सुराग मिल सकते थे ! इसके बाद जब जांच सीबीआई को सौंपी गई तबतक प्रत्यक्ष सबूतों के मामले में काफी देर हो चुकी थी ! सीबीआई जांच भी इस मामले में भटकी-भटकी ही रही और देखते-देखते ही ये मामला देश की सबसे बड़ी मर्डर-मिस्ट्री बन गया ! अब फ़िलहाल तो ये कहना कठिन है कि ऊपरी अदालतों में जाने के बाद इस मामले में क्या फैसला आएगा ! पर आखिर में सवाल यही  उठता है कि अगर कमजोर केस के कारण आरुषि के माता-पिता बरी हो जाते हैं तो क्या देश कभी इस दोहरे हत्याकांड की असल हकीकत जान पाएगा ? या फिर ये केस यूँ ही रहस्य के अंधेरे में दफ़न हो जाएगा !

सोमवार, 25 नवंबर 2013

राजनीतिक दुष्चक्र का शिकार होती आप [दैनिक जागरण राष्ट्रीय में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

दैनिक जागरण में इस लेख के कुछ अंश 
अगर दिल्ली के संसदीय इतिहास पर एक नज़र डालें तो अब से पहले दिल्ली की सियासत अधिकाधिक रूप से सिर्फ कांग्रेस और भाजपा के बीच ही गुमटी-सिमटी रही थी ! पर इसबार आम आदमी पार्टी (आप) के आ जाने से ये मुकाबला तीन तरफा हो गया है ! अभी हाल ही में हुए कुछ मीडिया सर्वेक्षणों में ‘आप’ की जो स्थिति सामने आई है वो काफी हद तक इस बात की तस्दीक करती है कि इस बार के दिल्ली चुनाव में कांग्रेस-भाजपा किसीके भी लिए ‘आप’ से पार पाना आसान नही होगा ! पर शायद सच ही कहा जाता है कि जैसे-जैसे आपकी ताकत बढ़ती है वैसे-वैसे आपके दुश्मन भी बढ़ते जाते हैं ! फ़िलहाल ये उक्ति केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पर पूरी तरह से सटीक बढ़ रही है ! क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र  काफी लोकप्रियता होने के बावजूद भी केजरीवाल की ‘आप’ के लिए सबकुछ आसान नज़र नही आ रहा ! हालत ये है कि अभी एक मुश्किल का हल वो तलाश रहे होते हैं कि दूसरी मुश्किल आ धमकती है ! इस प्रकार एक के बाद एक मुश्किलातें उनके आगे आती जा रही हैं ! फिर चाहें वो अन्ना के पत्र का प्रकरण हो या आप के कुछ नेताओं का एक संस्थान द्वारा किया गया स्ट्रिंग ऑपरेशन हो  अथवा केजरीवाल आईआरएस विभाग द्वारा केजरीवाल के बयान के विरोध में लिखी गई चिट्ठी हो, ये सब चीजे लगातार आप के राजनीतीक सफर को उसके आरम्भ में ही समाप्त करने की कोशिश कर रही हैं !

  अब अगर आप के रास्ते में आ रही इन सब मुश्किलों को विस्तृत रूप से समझने का प्रयास करें तो ‘आप’ के नेताओं पर हुए स्ट्रिंग के वीडियो की जांच फ़िलहाल चुनाव आयोग कर रहा है अतः इसपर अभी कुछ भी कहना उचित नही होगा ! अब इस स्ट्रिंग की जो भी सत्यता होगी, वो चुनाव आयोग की जांच पूरी होने के बाद सामने आ ही जाएगी ! इसके बाद अब अगर एक नज़र अन्ना द्वारा केजरीवाल को भेजे गए  पत्र के प्रकरण पर डालें तो इस पत्र में अन्ना की तरफ से उनके आंदोलन के समय चंदे में मिले पैसे तथा दिल्ली चुनाव में उनका नाम इस्तेमाल करने के विषय में केजरीवाल से कुछ सवाल पूछे  गए हैं ! अब चूंकि केजरीवाल एक राजनीतिक व्यक्ति हो चुके हैं ! ऐसे में उनके माथे पर शिकन लाने वाली हर बात उनके विपक्षियों के लिए वरदान के समान ही है ! अतः अन्ना के इस पत्र के सामने आते ही दिल्ली में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के विपक्षी दल  कांग्रेस-भाजपा आदि ने उनपर बयानों के तीर छोड़ने शुरू कर दिए ! दरअसल हुआ यूँ था कि अभी कुछ ही दिन पहले अरविन्द केजरीवाल ने अन्ना का एक पत्र सार्वजनिक किया था जिसमे कि उन्होंने आंदोलन के चंदे आदि के संबंध में कुछ सवाल उठाए थे ! हालाकि बाद में अन्ना द्वारा खुद इस मामले में सफाई देते हुए स्पष्ट किया गया कि उन्होंने केजरीवाल से सिर्फ चंदे के पैसे के विषय में पूछा था, उनपर कोई आरोप नही लगाया था ! अन्ना ने ये भी स्पष्ट किया कि उन्हें चंदे के पैसे से अधिक इस बात की चिंता थी कि कहीं ‘आप’ चुनाव में उनका नाम तो इस्तेमाल नही कर रही ! अब इस मामले में अन्ना द्वारा भले ही सफाई दे दी गई हो, पर ये कहना कठिन है कि इससे केजरीवाल को कोई बड़ी राहत मिल जाएगी और वो अपने विपक्षियों के निशाने पर आने से बच जाएंगे ! क्योंकि राजनीति में सबसे अधिक महत्व अवसर और मुद्दे का होता है ! अतः कांग्रेस और भाजपा ‘आप’ के खिलाफ हाथ आए इस अवसर और मुद्दे को बमुश्किल ही जाने देंगी ! यहाँ अगर विचार करें तो बड़ी आसानी से समझ सकते हैं कि आम आदमी पार्टी के दिल्ली में बड़ी जल्दी लोकप्रिय होने के लिए  के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारण अरविन्द केजरीवाल की स्वच्छ छवि और पार्टी का जनप्रिय मुद्दों से जुड़ाव है ! अतः अगर इस अन्ना के पत्र वाले प्रकरण में अरविन्द केजरीवाल की छवि खराब होती है तो ये आम आदमी पार्टी के लिए इस चुनाव के समय बहुत बड़ा झटका होगा ! लिहाजा इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता कि अन्ना के पत्र का ये सारा प्रकरण अरविन्द केजरीवाल और आप की छवि को खराब करने के उद्देश्य से उनके राजनीतिक विरोधियों द्वारा ही रचा गया हो ! हो सकता है कि ये सब सच्चाई से परे सिर्फ एक प्रायोजित षड्यंत्र हो ! क्योंकि बेशक अन्ना हजारे व्यक्तिगत रूप से पूर्णतः ईमानदार और स्वच्छ छवि व्यक्ति हैं, पर ये आवश्यक नही कि जो लोग उनके साथ हैं वो भी ईमानदार हों ! वैसे भी अन्ना से अभी जो लोग जुड़े हैं उनमे से अधिकाधिक ऐसे हैं जो किन्ही न किन्ही कारणों से केजरीवाल के विरोधी हैं ! कुछ बातों पर विचार करने पर केजरीवाल के खिलाफ किसी राजनीतिक साजिश का ये अंदेशा काफी हद तक सही ही प्रतीत होता है ! पहली बात कि अगर वाकई में अन्ना को चंदे के पैसे को लेकर कोई शक था तो वो अबतक चुप क्यों बैठे थे ? उन्होंने ये बात पहले क्यों नही कही ? अब जब दिल्ली चुनाव में मतदान होने में गिने-चुने दिन शेष हैं तो ही उन्हें उस चंदे के पैसे की याद क्यों आई ? इन प्रश्नों को देखते हुए जाहिर है कि हो न हो भोले-भाले अन्ना को बरगला कर के ये पत्र किसी राजनीतिक साजिश के तहत लिखवाया गया है जिससे कि केजरीवाल की छवि खराब को किया जा सके !  बहरहाल अब जो भी हो, पर इतना जरूर है कि अगर आम आदमी पार्टी और केजरीवाल वाकई में निर्दोष होंगे तो वे इन सब बाधाओं को पार करते हुए चुनाव की आग में तपकर खरा सोना होके निकलेंगे ! 

शनिवार, 23 नवंबर 2013

भारत रत्न पर यह कैसा महाभारत [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
संभवतः ये हमारी राजनीतिक परम्परा रही है कि हमारे देश में जब भी कोई राष्ट्रीय स्तर की घटना घटती है तो उसपर हमारे राजनीतिक महकमे में तुरंत सुगबुगाहट शुरू हो जाती है ! यहाँ इसका भी बहुत कम ही महत्व है कि घटना का रूप कैसा है ? वो सुखद है या दुखद ! कुल मिलाकर घटना चाहें कैसी भी हो, उसपर राजनीति होनी ही है ! इस बात का सबसे ताज़ा और सटीक उदाहरण सचिन और वैज्ञानिक सीएनआर राव को ‘भारत रत्न’ दिए जाने की घोषणा बाद से हमारे राजनीतिक दलों के बीच मचा सियासी घमासान है ! गौरतलब है कि सचिन के क्रिकेट से सन्यास लेने के बाद सरकार की तरफ से उन्हें खेल के क्षेत्र में भारत का नाम रोशन करने के लिए भारत रत्न देने का ऐलान किया गया ! उनके साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में विराट योगदान देने वाले वैज्ञानिक सीएनआर राव को भी देश के इस सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान से नवाजने की घोषणा सरकार द्वारा की गई ! यहाँ तक तो पूरा मामला सही था, पर इसके बाद इस सम्मान पर हमारे राजनीतिक दलों की दलीय महत्वाकांक्षा से प्रेरित सियासी घमासान शुरू हुआ ! हर तरफ से वाद-प्रतिवाद और बयानबाजियों का दौर शुरू हो गया जो कि अब भी पूरी तरह से थमा नही है ! संभावना है कि भारत रत्न पर ये सियासी महाभारत अभी और कुछ दिन तक चलेगी ! कुछ और बयान आएंगे, वाद-प्रतिवाद होंगे और राजनीतिक दलों के बीच इस पुरस्कार पर अपने बिंदु को सही व श्रेष्ठ साबित करने की ये जुबानी जंग और कुछ समय तक जारी रहेगी ! दरअसल इस पूरे सियासी घमासान की मुख्य वजह ये है कि हर राजनीतिक दल ‘भारत रत्न’ के  लिए अपने अनुसार कुछ व्यक्तियों का चुनाव किए बैठा है ! अब चूंकि वर्तमान सत्ताधारी कांग्रेस लंबे समय तक केंद्रीय सत्ता में रही है, लिहाजा उसने जिन-जिनको चाहा उनको-उनको भारत रत्न दे दिया ! वहीँ कांग्रेस की अपेक्षा काफी कम समय सत्ता में बिताने वाली मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा हो या फिर जेडीयू आदि क्षेत्रीय दल हों, हरकिसी के पास भारत रत्न के लिए अपने लोगों के चयनित नाम हैं ! अब जब सचिन और वैज्ञानिक राव को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा हुई है तब मौके की नजाकत को भांपते हुए भाजपा की तरफ से अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की अपनी पुरानी मांग एकबार फिर दोहराई गई है ! यहाँ उल्लेखनीय होगा कि  कुछ अटल जी की स्वच्छ व दलगत राजनीति से मुक्त छवि के कारण तो कुछ राजनीतिक लाभ लेने की नीयत से भाजपा की इस मांग का कई अन्य दलों के नेताओं द्वारा भी समर्थन किया जा रहा है ! फिर चाहें वो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हो, राजग की महत्वपूर्ण सहयोगी शिवसेना हो या संप्रग की महत्वपूर्ण सहयोगी नेशनल कांग्रेस, इन सबने भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की मांग का खुलकर पुरजोर समर्थन किया है ! और तो और, कांग्रेस के मानव संसाधन विकास मंत्री पल्लम राजू ने भी भाजपा की इस मांग का समर्थन किया हैं ! हालाकि केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने अटल जी को ‘भारत रत्न’ न दिए जाने की वकालत करते हुए कहा है कि वाजपेयी ने गुजरात दंगों के समय नरेंद्र मोदी को तो राजधर्म की नसीहत दी, पर खुद कुछ नही किया, अतः उन्हें भारत रत्न देने पर सोचना होगा ! अब ये कहते हुए मनीष तिवारी शायद ये भूल गए कि राजीव गाँधी जिनपर बोफोर्स घोटाले के दाग अब भी हैं, को कबका भारत रत्न दिया जा चुका है ! साथ ही, देश को आपातकाल की त्रासदी में डालने वाली इंदिरा गाँधी को भी भारत रत्न से नवाजा जा चुका है ! अतः अब अगर इन नेताओं को भारत रत्न दिया जाना सही है, तो अटल बिहारी वाजपेयी को भी निश्चित ही भारत रत्न मिलना चाहिए !  बहरहाल इसी क्रम में अब अगर भाजपा की इस मांग को अन्य दलों से मिलने वाले इन समर्थनों पर एकबार विचार करें तो साफ़-साफ़ समझा जा सकता है कि यहाँ अधिकाधिक खेल राजनीतिक है ! अब जहाँ नीतीश कुमार अटल बिहारी वाजपेयी के समर्थन के जरिये अपने मोदी विरोध के एजेंडे को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं तो वही कांग्रेस व उसके सहयोगी दल के नेताओं द्वारा इस समर्थन के जरिए वाजपेयी को अबतक भारत रत्न न दिए जाने के कारण होने वाली किरकिरी से बचने का प्रयास किया जा रहा है ! वैसे ‘भारत रत्न’ पर जारी इस राजनीतिक खींचतान के बीच जेडीयू नेता शिवानन्द तिवारी की तरफ से भी एक बड़ा ही विवादास्पद बयान आया है ! उनका कहना है कि सचिन ने क्रिकेट खेलने के लिए पैसे लिए हैं. अतः उन्हें भारत रत्न देने का कोई औचित्य नही है ! इसके साथ ही अन्य नेताओं की तरह उन्होंने भी हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की पैरवी की है ! विचार करें तो बेशक ध्यानचंद को भारत रत्न मिलना चाहिए, पर इससे सचिन का भारत रत्न पर हक कम नही हो जाता ! अतः उचित होगा कि सचिन को भारत रत्न मिलने पर उलूल-जुलूल बयानबाजियों की बजाय हम इसका स्वागत करें !
  अंततः साफ़ है कि ‘भारत रत्न’ को लेकर हर राजनीतिक दल द्वारा अपने-अपने तरह से राजनीति की जा रही है और देश का ये सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान एक निचले दर्जे की राजनीति का सामान भर बनकर रह गया है ! अब इससे अधिक दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण और क्या होगा कि हमारे सियासी हुक्मरान एकदूसरे को नीचा दिखाते हुए अपने-अपने लोगों को भारत रत्न देने की वकालत में इस कदर मशगूल हैं कि उन्हें इसका भी भान नही कि इस चक्कर में वो देश के इस सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान की गरिमा पर लगातार कुठाराघात करते जा रहे हैं !  

बुधवार, 20 नवंबर 2013

क्रिकेट में एक युग का अंत [अप्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 


सुनील गावस्कर, कपिल देव, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ आदि तमाम खिलाड़ियों के बाद अब pआख़िरकार सचिन रमेश तेंदुलकर ने भी क्रिकेट को अलविदा कह दिया ! ऐसे में जीवन के चालीस वसंत देख चुके सचिन के लिए उनके प्रशंसकों से लेकर मित्रों तक हरकिसी के तरफ से अलग-अलग संदेश आए और अब भी आ रहे हैं ! कोई इस निर्णय को सही बताते हुए इसका स्वागत कर रहा है. तो कोई ये कह रहा है कि अभी और खेलो सचिन, अभी तुममे और क्रिकेट बाकी है ! वैसे, सचिन में अभी और क्रिकेट बाकी है अथवा नही, इसपर सचिन के अतिरक्त किसी और का कुछ भी कहना सही नही लगता ! कारण कि खेलना सचिन को होता है इसलिए ये उन्हें ही पता होगा कि वो अब खेल सकते हैं या नही ! लिहाजा अगर सचिन ने अब क्रिकेट से सन्यास का निर्णय लिया है तो ये स्वागतयोग्य है ! पर लोगों का भी क्या दोष उन्हें तो जैसे आदत सी पड़ गई है सचिन को खेलते हुए देखने की ! इसलिए सचिन के बिना अब क्रिकेट अधूरा सा ही महसूस होता है और इसमे कुछ भी आश्चर्य नही है ! क्योंकि जो खिलाड़ी पिछले २४ साल से लगातार शानदार-जानदार क्रिकेट खेलता आ रहा हो, वो दर्शकों की आदत बन ही जाएगा ! सन १९८९ में कराची में पाकिस्तान के खिलाफ अपने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट करियर की शुरुआत करने वाले छोटे और दुबले-पतले से सचिन को वक्त के साथ निखरते उनके प्रदर्शन ने कब मास्टर ब्लास्टर, लिटिल मास्टर, क्रिकेट के भगवान आदि जाने कितने नामों से मशहूर कर दिया, इसका अंदाजा शायद उन्हें भी न रहा हो ! भारत में तो सचिन की लोकप्रियता उस स्तर पर है कि बड़ा-बूढ़ा-बच्चा कोई भी हो, फिर चाहें वो क्रिकेट देखता हो या नही, सचिन सबके दिल में बसते हैं और हरकोई सचिन पर गर्व करता है ! पर इसके अतिरिक्त आज सचिन समूचे विश्व के लोगों के दिलों पर भी राज करते हैं ! इस संदर्भ में कहना गलत नही होगा कि सचिन संभवतः ऐसे पहले अथवा उन चंद अपवाद खिलाड़ियों में से हैं जिनकी लोकप्रियता उन मुल्कों तक में फैली है जहाँ क्रिकेट नही खेला जाता ! नजीर के तौर पर देखें तो वैश्विक महाशक्ति अमेरिका जहाँ क्रिकेट का कोई अर्थ नही है, के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सचिन की लोकप्रियता को रेखांकित करते हुए सोशल साइट्स पर लिखा था, “मै क्रिकेट की समझ नही रखता, पर जब सचिन  खेलते हैं तो मै क्रिकेट जरूर देखता हूँ ! बस ये जानने के लिए कि जब वो बल्लेबाजी करते हैं तो मेरे देश की उत्पादन क्षमता ५ प्रतिशत कम क्यों हो जाती है ?” ओबामा के इस कथन को देखते हुए बड़ी सरलता से सचिन की वैश्विक लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है ! न सिर्फ ओबामा ही, बल्कि दुनिया के और भी कई देशों के राजनयिकों द्वारा सचिन के प्रति ऐसी बातें कही जाती रही हैं !

  विश्व क्रिकेट में एक से बढ़कर एक खिलाड़ी हुए हैं ! ब्रेडमैन, रिचर्ड्स, लारा, गावस्कर, पांटिंग आदि तमाम बेहतरीन खिलाड़ियों से क्रिकेट का इतिहास भरा पड़ा है ! इनमे से कुछ खिलाड़ी सचिन से पहले हुए तो कई उनके समान्तर रहे ! पर न सिर्फ रिकार्ड्स बल्कि चारित्रिक रूप से भी इनमे से कोई भी खिलाड़ी सचिन की बराबरी नही कर सका ! लगभग इन सभी खिलाड़ियों को अपने क्रिकेट करियर के दौरान किसी न किसी विवाद का सामना जरूर करना पड़ा, पर यही सचिन के व्यक्तित्व की  विशेषता रही कि अपने पूरे क्रिकेट करियर के दौरान उन्होंने हमेशा ही खुद को विवादों से बचाए रखा ! ऐसा बिलकुल नही है कि इस महान खिलाड़ी के २४ साल के इस क्रिकेट सफर में मुश्किलें नही आईं या उन्हें आलोचनाओं का सामना नही करना पड़ा ! हर खिलाड़ी के तरह सचिन के प्रदर्शन में भी कई बार उतार-चढ़ाव के दौर आए ! पर हर उतर-चढ़ाव, हर मुश्किल, हर आलोचना का सचिन ने न सिर्फ पूरी दृढ़ता से मुकाबला किया बल्कि पूरे संयम के साथ शब्दों की बजाय अपने बल्ले से दमदार प्रदर्शन कर के अपने आलोचकों को जवाब भी दिया ! कभी, कोई आलोचना सचिन को इतना विचलित नही कर पायी कि वो अपना जबानी संयम खो दें और किसीके लिए कुछ गलत कहें ! अपनी इन्ही चारित्रिक विशेषताओं के कारण सचिन न सिर्फ एक शानदार और दमदार खिलाड़ी बल्कि एक बेहतरीन इंसान के रूप में लोगों के दिलों में मौजूद हैं और हमेशा रहेंगे ! क्रिकेट के क्षेत्र में भारत का नाम आसमान की बुलंदियों पर ले जाने वाले सचिन के सन्यास के बाद सरकार द्वारा उन्हें देश का सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा की गई है !
 वैसे, सचिन के सन्यास के बाद अब एक नई बहस ने जन्म ले लिया है कि क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद अब सचिन आगे क्या करेंगे ? इस विषय में जितने लोग हैं लगभग उतनी ही बातें भी हैं ! कोई सचिन को राजनीति में सक्रिय होने, कोई सामाजिक कार्यों से जुड़ने, तो कोई क्रिकेट आदि खेलों के विकास के लिए प्रयास करने की बात कह रहा है ! बहरहाल उचित तो यही होगा कि क्रिकेट से सन्यास के बाद फ़िलहाल कुछ दिनों तक सचिन आराम करें और अपने परिवार के साथ समय बिताएँ ! उसके बाद वो स्वयं विचार करें कि वो क्या कर सकते हैं और फिर जो सही लगे वो वही करें ! हाँ, इतना अवश्य है कि क्रिकेट से उनका गहरा जुड़ाव है अतः अगर वो क्रिकेट समेत तमाम खेलों के लिए कुछ करें तो इससे बेहतर कुछ और नही हो सकता ! खैर ये सब बाद की बातें हैं, इनपर अभी बहुत अधिक कुछ कहना समय के हिसाब से उचित नही है ! आज तो बस इतना ही कहा जाना चाहिए कि सचिन सिर्फ एक है और एक ही रहेगा ! दूर भविष्य में भले ही कोई खिलाड़ी सचिन के रिकार्ड्स की समानता प्राप्त कर ले, पर उनके व्यक्तित्व की समानता प्राप्त करना किसीके लिए भी आसान नही होगा ! सचिन के इस सन्यास के साथ ही क्रिकेट में एक युग का अंत हो गया है जोकि दूबारा नही आ सकता ! आज के इस दनादन क्रिकेट में कोई देर-सबेर सचिन के रिकार्ड्स का पार भले पा जाए, पर क्रिकेट के प्रति उनके जैसी आस्था, समर्पण और लगाव का पार कोई नही पाएगा ! सचिन के सन्यास के बाद शायद इसी चीज को रेखांकित करते हुए उनकी पत्नी अंजलि तेंदुलकर ने कहा, “क्रिकेट तो सचिन के बिना भी चलता रहेगा, पर मै परेशान हूँ कि क्रिकेट के बिना सचिन कैसे रहेंगे !”

सोमवार, 18 नवंबर 2013

सीबीआई जीत सकेगी अस्तित्व की लड़ाई [आईनेक्स्ट इंदौर में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

आईनेक्स्ट 
देश की सर्वोच्च जाँच एजेंसी सीबीआई अपनी विश्वसनीयता और कार्यशैली के लिए तो हमेशा से ही विवादों में रही है, पर अब इन विवादों के क्रम में एक और विवाद जुड़ गया है और ये कोई ऐसा-वैसा विवाद नही है ! कारण कि अबतक तो सिर्फ सीबीआई की विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिन्ह लगते थे, पर इस विवाद ने तो उसके अस्तित्व को ही संदेह के घेरे में ला दिया है ! अभी हाल ही में गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने नवेन्द्र कुमार नामक व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका पर अपने फैसले में कहा कि सीबीआई कोई पुलिस फ़ोर्स नही है, अतः वह न तो अपराधों की जांच कर सकती है और न ही चार्जशीट दायर कर सकती है ! दरअसल हुआ यूँ था कि सन २००१ में एक बीएसएनएल कर्मचारी नवेन्द्र कुमार के खिलाफ सीबीआई द्वारा आपराधिक षड्यंत्र रचने और धोखाधड़ी करने का मामला दर्ज किया गया था ! जिसके बाद नवेन्द्र कुमार ने सीबीआई के गठन की वैधानिकता को चुनौती देती एक याचिका उच्च न्यायालय में दायर की थी ! उनका मत था कि सीबीआई को अवैधानिक घोषित करते हुए उनपर दायर मामला खारिज कर दिया जाए ! बस इसी मामले में अब गुवाहाटी उच्च न्यायालय का फैसला आया है जिससे कि सीबीआई के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मडराने लगे हैं ! ये कहना गलत होगा कि अपने अस्तित्व पर आए इस संकट से सिर्फ सीबीआई परेशान होगी, बल्कि इस चुनावी मौसम में ये फैसला सीबीआई से कहीं अधिक सरकार को चिंतित करने वाला होगा ! शायद यही कारण है कि गुवाहाटी उच्च न्यायालय का फैसला आते ही सरकार द्वारा आनन्-फानन में इस फैसले पर रोक लगाने के लिए न सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका डाली गई, बल्कि अनुरोध करके छुट्टी के दिन ही मामले की सुनवाई भी करवाई गई ! अंततः परिणाम ये रहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा  मामले की सुनवाई ६  दिसंबर को तय करते हुए फ़िलहाल के लिए गुवाहाटी उच्च न्यायालय के इस फैसले पर रोक लगा दिया गया ! अब फ़िलहाल के लिए भले ही सीबीआई पर से संकट कुछ कम हो गया है, पर इसका ये कत्तई अर्थ नही कि अब सीबीआई को लेकर पूरी तरह से निश्चिंत हो लिया जाए ! अभी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गुवाहाटी उच्च न्यायालय के फैसले पर सिर्फ एक निश्चित अवधी तक की रोक लगाई गई है, उसे ख़ारिज नही किया गया है ! अभी सारी कहानी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ६ दिसंबर को होने वाली सुनवाई पर निर्भर है ! सर्वोच्च न्यायालय मामले का अध्ययन करेगा और फिर सुनवाई में सभी पक्षों की बातों को सुनने के बाद कोई निर्णय लेगा ! अब जो भी हो, पर अभी सवाल ये उठता है कि क्या वाकई में सन १९६३ में हुए सीबीआई के गठन में ऐसी कुछ कमी रह गई थी कि आज गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा उसे अवैधानिक घोषित कर दिया गया है ? इस सवाल का उत्तर तलाशने के लिए हमें गुवाहाटी उच्च न्यायालय के तर्कों की कसौटी पर सीबीआई के गठन के इतिहास को रखना होगा ! इतिहास को देखने पर हमें पता चलता है कि भारत में सीबीआई के गठन की बुनियाद आजादी से लगभग आधा दशक पहले अंग्रेजी हुकूमत द्वारा रख दी गई थी ! उल्लेखनीय होगा कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय युद्ध आपूर्ति विभाग में व्यापक तौर पर फैले भ्रष्टाचार की जांच व रोकथाम के लिए ब्रिटिश हुकूमत द्वारा विशेष पुलिस प्रतिष्ठान की स्थापना की गई ! कालांतर में दिल्ली विशेष पुलिस अधिनियम बना और ये पुलिस प्रतिष्ठान गृहमंत्रालय को हस्तांतरित कर दिया गया ! आजादी के बाद १ अप्रैल, सन १९६३ में गृहमंत्रालय द्वारा इसी दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान को ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (सीबीआई) के रूप में एक नया और लोकप्रिय नाम दिया गया ! अब आज गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई की अवैधानिकता के संबंध ये तर्क दिया जा रहा है कि सीबीआई के गठन को न तो कैबिनेट के सामने रखा गया था और न ही राष्ट्रपति से मंजूरी दिलाई गई थी ! सीबीआई के गठन के इतिहास को देखते हुए तो गुवाहाटी उच्च न्यायालय ये तर्क काफी हद तक सही ही प्रतीत होता है ! पर अब जब मामला सर्वोच्च न्यायालय के पास है तो ऐसे में कुछेक ऐसी बातें दिखती है जो सीबीआई के पक्ष में जा सकती हैं ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सन १९६३ में सीबीआई का नए सिरे से कोई गठन नही किया गया था, बल्कि अंग्रेजी हुकूमत द्वारा पूर्व में ही स्थापित किए गए दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान को ही एक नया नाम देकर सीबीआई बना दिया गया था ! साफ़ है कि सीबीआई का गठन दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के नाम से अंग्रेजी हुकूमत द्वारा ही हो गया था ! भारतीय शासन के दौरान सिर्फ इसका नाम परिवर्तित किया गया ! अंग्रेजी शासन की व्यवस्था से कई बातें हमने ग्रहण की हैं और कई पारम्परिक रूप से प्राप्त हुई हैं, सीबीआई भी इसीका एक हिस्सा है ! लिहाजा हम ये नही कह सकते कि राष्ट्रपति से मंजूरी न मिलने अथवा हमारी अन्य संसदीय प्रक्रियाओं से नही गुजरने के कारण सीबीआई का गठन अवैधानिक है !
  बहरहाल अभी स्थिति ये है कि सीबीआई का अस्तित्व सर्वोच्च न्यायालय के स्टे के सहारे है ! कहना कठिन है कि ६ दिसंबर को होने वाली सुनवाई में क्या आएगा ! पर इतना जरूर है कि आज अगर सीबीआई वैधानिकता पर किसी तरह का कोई सवाल उठता है तो इसका सीधा प्रभाव उसके अधीन जांच और सुनवाई के लिए पड़े मामलों पर पड़ेगा ! कुछ प्रभाव तो दिखने भी लगा है कि सीबीआई जांच का सामने कर रहे तमाम आरोपी इस स्थिति का लाभ लेते हुए अपने पर लगे आरोपों को ख़ारिज करने के लिए न्यायालय में अपील दायर करने लगे हैं ! कुल मिलाकर आज जहाँ ६ दिसंबर की तारीख पर सारे देश की नज़रें टिकी हैं, वहीँ यही तारीख सरकार और सीबीआई की उम्मीदों के लिए एकमात्र सहारा भी है !


शनिवार, 2 नवंबर 2013

पाकिस्तान के प्रति सख्त हो भारत [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
इसमे कोई दोराय नही कि सहनशीलता बहुत अच्छी चीज है, पर इसकी भी एक सीमा होती है ! सीमा से अधिक सहनशीलता कायरता कहलाती है ! आज भारत की पाकिस्तान के प्रति विदेश नीति के संदर्भ में ये बात प्रासंगिक हो जाती  है ! आज जिस प्रकार पाकिस्तानी सेना द्वारा लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन करके भारतीय सीमा पर फायरिंग की जा रही है, उसे देखते हुए ये आवश्यक हो जाता है कि भारत पाकिस्तान के संदर्भ में अपनी नीतियों पर एकबार पुनः विचार करे ! वैसे तो पाकिस्तान द्वारा हमेशा से ही भारत के प्रति नकारात्मक रवैये और धोखेबाजी का परिचय दिया जाता रहा है, पर हाल के कुछ सालों, खासकर इस साल में पाकिस्तान की इन हरकतों में भारी इजाफा हुआ है ! फिर चाहें वो पाकिस्तानी सेना के जवानों का भारतीय सीमा में घुसकर हमारे जवानों के सर काटकर ले जाने की घटना हो या पाकिस्तानी फ़ौज की शह पर कश्मीर के केरन सेक्टर में घुसपैठियों के आ धमकने की अथवा पाकिस्तानी सेना द्वारा लगातार हो रहे संघर्ष विराम के उल्लंघन की, ये सब घटनाएँ साफ़ करती हैं कि पाकिस्तान के ह्रदय में भारत को लेकर सिर्फ और सिर्फ शत्रुता का भाव है ! एक आंकड़े की माने तो इस साल में अबतक पाकिस्तान द्वारा १३६ बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जा चुका है ! और तो और, पाकिस्तान की उद्दण्डता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा भारतीय सीमा पर जनहित के मद्देनजर किए जा रहे एक निर्माण कार्य को संघर्ष विराम का उल्लंघन कहते हुए रुकवा दिया गया ! लिहाजा इन सभी बातो को देखते हुए अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों पाकिस्तान इस कदर हमारे सिर पर चढ़ा हुआ है ? इस प्रश्न का सिर्फ यही उत्तर है कि पाकिस्तान की इन नापाक हरकतों पर भारत की तरफ से चंद बयानों और निन्दाओं के अतिरिक्त कभी, कोई कड़ा रुख अख्तियार ही नही किया जाता ! उदाहरणार्थ स्थिति ये है कि पाकिस्तान की तरफ से संघर्ष विराम का उल्लंघन करके सीमा पर गोलीबारी की गई और अगर उसमे हमारा कोई जवान शहीद हो गया तो इसपर हमारी सरकार के कोई एक मंत्री सामने आकर पाकिस्तान के प्रति दो-चार कड़ी और शहीद जवान के प्रति एकाध  आदरसूचक बातें कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं ! बस यही कारण है कि आज पाकिस्तान लगातार सीमा पर अपनी मनमानी कर रहा है और विश्व की श्रेष्ठ पाँच सेनाओं में से एक हमारी भारतीय सेना कुछ नही कर पा रही ! पाकिस्तान को पता है कि भारतीय हुक्मरान उसकी बड़ी से बड़ी हरकत पर भी सिर्फ ‘कड़ी’ निंदा के अतिरिक्त जमीनी तौर पर कुछ नही करेंगे ! क्योंकि भारतीय हुकूमत में ऐसा कुछ भी करने के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति ही नही है !
  हमारे नेताओं की तरफ से प्रायः ये तर्क दिया जाता है कि भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र है, इसलिए वो पाकिस्तान की तरह हर बात पर बन्दूक उठाए नही चल सकता ! अब नेताओं को ये कौन समझाए कि निश्चित ही भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र है और इसी नाते उसकी ये जिम्मेदारी बनती है कि वो अपनी संप्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखे ! इसमे कोई दोराय नही कि पड़ोसी चुने नही जा सकते, अतः ये आवश्यक है कि आपके अपने पड़ोसी से बेहतर संबंध हों ! पर इसका ये भी अर्थ नही कि पड़ोसी शत्रुता का परिचय देता रहे और आप चुपचाप उसे सहते रहें ! बेशक शांति और सद्भाव से किसीको परहेज नही हो सकता, पर अगर वो राष्ट्र की संप्रभुता की कीमत पर मिल रहे हों तो उन्हें दरकिनार कर देना ही उचित है ! यहाँ तो स्थिति और भी विषम और दुर्भाग्यपूर्ण है ! कारण कि यहाँ राष्ट्र की संप्रभुता भी जा रही है और शांति और सद्भाव का भी दूर-दूर तक कोई पता नही है ! इसीके साथ एक और बात कि युद्ध निश्चित ही कोई विकल्प नही हो सकता ! पर इसका ये भी मतलब नही कि अपनी आत्मरक्षा भी न की जाए ! भारत के साथ यही समस्या है कि वो अपने शांति के सनातन सिद्धांत के अन्धोत्साह में इस कदर मग्न हो रहा है कि उसे इसका तनिक भी भान नही कि जिस पाकिस्तान से वो सद्भाव कायम करना चाहता है उसके ह्रदय में भारत के लिए सिर्फ और सिर्फ घृणा और शत्रुता का भाव है ! इसे इस देश का और वर्तमान समय का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि आज हमारे हुक्मरान पड़ोसी मुल्क से शांति और प्रेमपूर्ण संबंध कायम करने के लिए ऐसे समर्पित हैं कि इसके लिए वो भारत की संप्रभुता तक से भी समझौता करने को तैयार दिख रहे हैं जिससे कि राष्ट्र के आतंरिक हालातों के अशांतिपूर्ण और विद्रोहमय होने की आशंका प्रबल होती जा रही है !

  उपर्युक्त सभी बातों को देखते हुए आज पाकिस्तान के संदर्भ भारत की पहली जरूरत ये है कि वो पाकिस्तान के प्रति अपनी विदेश नीति में बुनियादी तौर पर बदलाव लाए ! भारत को चाहिए कि वो सर्वप्रथम पाकिस्तान के समक्ष किसी भी तरह की बातचीत व संवाद प्रक्रिया के लिए ये शर्त रखे कि वो अपनी जमीन से हमारे खिलाफ जारी आतंकी गतिविधियों पर न सिर्फ अंकुश लगाए बल्कि २६/११ के मुख्य गुनाहगार हाफिज सईद पर भी जल्द से जल्द सख्त कार्रवाई करे ! इसके अतिरिक्त जैसा कि सर्वविदित है कि पाकिस्तान में तमाम आतंकी प्रशिक्षण शिविर सतत गतिशील हैं ! लिहाजा इसपर भारत को पाकिस्तान से स्पष्ट कहना चाहिए कि पाकिस्तान स्वयं उन आतंकी शिविरों को सैन्य कार्रवाई के द्वारा या जैसे भी हो जल्द से जल्द नेस्तनाबूद करे, वरना भारत को अपनी सुरक्षा के लिए उनपर कार्रवाई करनी पड़ेगी ! इन चीजों के साथ ही भारत को पाकिस्तान के प्रति अपनी विदेश नीति का हिस्सा बन चुके अमेरिका से भी परहेज करना चाहिए ! क्योंकि, भारत एक सक्षम राष्ट्र है, उसे अपने मामलों में किसीके हस्तक्षेप की कोई जरूरत नही है ! और वैसे भी, इतिहास गवाह है कि अमेरिका आजतक अपने अलावा कभी, किसीका नही हुआ ! वो जिससे भी जुड़ा अपने स्वार्थ के कारण जुड़ा ! भारत-पाकिस्तान के बीच भी अमेरिका अपनी इसी नीति पर चल रहा है ! वो एक तरफ तो भारत से मधुर संबंध की बात करता है और दूसरी तरफ पाकिस्तान को हर स्तर पर भरपूर मदद देता है ! लिहाजा इन सब बातों पर विचार करके अगर भारत पाकिस्तान के प्रति अपनी विदेश नीति में परिवर्तन कर ले तो वो बिना किसी जंग के अपनी सुरक्षा भी सुनिश्चित करने के साथ-साथ पाकिस्तान को भारी मात भी दे सकता है !

शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

अवसरवादियों का गुट [दैनिक जागरण राष्ट्रीय में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

दैनिक जागरण राष्ट्रीय 
अब जबकि लोकसभा चुनाव में बस कुछ ही महीने शेष रह गए हैं, ऐसे में हमारे राजनीतिक गलियारे में जोड़-तोड़ के खेल होना तो वर्तमान राजनीति का  स्वाभाविक चरित्र ही है ! जैसा कि अब लगभग साफ़ हो चुका है कि इस लोकसभा चुनाव मोदी और राहुल के बीच की टक्कर है ! पर इसी बीच तमाम छोटे-बड़े क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने साम्प्रदायिक शक्तियों की खिलाफत के नाम पर मंच साझा करके आम चुनाव के मद्देनज़र तीसरे मोर्चे के संकेत भी दे दिए हैं ! गौरतलब है कि अभी हाल ही में वाम दलों द्वारा साम्प्रदायिकता के खिलाफ एकजुट होने के लिए बुलाए गए एक सम्मेलन में डेढ़ दर्जन के आसपास छोटे-बड़े क्षेत्रीय दलों द्वारा शिरकत की गई ! इनमे सपा, जेडीयू, अन्नाद्रमुक, झाविमी, बीजद, अगप आदि के साथ-साथ केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस की सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी राकापा भी थी ! अब ऊपरी तौर पर भले ही इन दलों द्वारा इस सम्मेलन को साम्प्रदायिकता के विरुद्ध एकजुटता का नाम देकर तीसरे मोर्चे की संभावना से इंकार किया जा रहा हो ! पर साम्प्रदायिकता के विरुद्ध हुए इस सम्मेलन के कुछ बिंदुओं तथा वक्तव्यों पर अगर एक नज़र डालें तो ये संभावना स्पष्टतः परिलक्षित होती है कि ये सम्मेलन आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र एक तीसरी ताकत के गठन की ही पृष्ठभूमि है ! गौर करना होगा कि सम्मेलन के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने तो एकदम खुले तौर पर साम्प्रदायिकता के विरुद्ध इस एकजुटता को चुनावी एकजुटता में बदलने की बात तक कह दी ! सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने भी इशारों-इशारों में ही तीसरे मोर्चे की संभावना जता दी ! उन्होंने कहा कि यहाँ मौजूद सभी दलों के नेता अगर इकट्ठे हो जाएँ तो सांप्रदायिक ताकते देश में कहीं अपना सिर नही उठा पाएंगी ! साथ ही मुलायम ने ये भरोसा भी दिया कि जहाँ भी ये सभी दल एकसाथ खड़े होंगे, वे उनका साथ देंगे ! इसके अतिरिक्त यहाँ यह भी उल्लेखनीय होगा कि कहने को तो ये सम्मेलन सांप्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध गैरकांग्रेस और गैरभाजपा दलों की एकजुटता के लिए था, पर आखिरश ये सम्मेलन भाजपा और मोदी के विरुद्ध राजनीतिक एकजुटता का पर्याय बनकर रह गया ! किसी भी दल की तरफ से केन्द्र की सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ कुछ नही बोला गया ! ये सर्वस्वीकार्य है कि आज जहाँ केन्द्र की कांग्रेसनीत यूपीए-२ सरकार के खिलाफ जनता में सत्ता-विरोधी रुझान एकदम प्रबल है, वहीँ भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी  की  देश में भीषण लहर है ! लिहाजा पूरी संभावना है कि आम चुनाव २०१४ में कांग्रेस की हालत भाजपा के मुकाबले काफी कमजोर रहने वाली है और भाजपा नम्बर एक की पार्टी बनकर उभरेगी ! ऐसे में संभावित तीसरे मोर्चे के इन दलों का कांग्रेस के खिलाफ कुछ नही बोलना लगभग यही संकेत देता है कि आम चुनाव के बाद अगर भाजपा या कांग्रेस की इतनी सीटें नही आती हैं कि वो सरकार बना सकें अथवा भाजपा के बाद नम्बर दो पर तीसरा मोर्चा रहता है तो इस जोड़-घटाव की स्थिति में इन दलों को साम्प्रदायिक शक्तियों के विरोध के नाम पर कांग्रेस का समर्थन लेने में कोई हिचक या परेशानी नही होगी ! लिहाजा इन सब बातों को देखते हुए अब ये समझना बेहद आसान है कि ये सम्मेलन आगामी आम चुनाव के मद्देनज़र एक तीसरी ताकत का ही संकेत है जो कि इसबार हवाओं के रुख को भांपते हुए एकदम पुख्ता रणनीति के साथ मैदान में उतरने का मन बना चुकी है ! हाँ, इतना जरूर दिलचस्प होगा कि ये तीसरा मोर्चा चुनाव से पहले हमारे सामने आता है या चुनाव के बाद सबको चौकाता है !
   इतिहास गवाह है कि प्रायः आम चुनावों के समय जितनी तीव्रता और ऊर्जा के साथ तीसरा मोर्चा सक्रिय हो उठता है, चुनाव बाद उतनी ही तीव्रता के साथ विफल होकर शांत भी हो जाता है ! हम देख चुके हैं कि हमारे संसदीय इतिहास में दो बार ऐसे मौके आए हैं जब केन्द्र में तीसरे मोर्चे की सरकार बनी, पर यह भी एक सच है कि दोनों ही बार अपने घटक दलों के व्यक्तिगत हितों तथा तमाम जोड़-घटाव आदि के कारण ये सरकार अपना कार्यकाल पूरा नही कर सकी ! इसी क्रम में भारतीय राजनीति में तीसरे मोर्चे के सर्वप्रथम उद्भव पर एक  सरसरी निगाह डालें तो क्षेत्रीय स्तर पर तो तीसरा मोर्चा सत्तर के दशक में ही सक्रिय हो गया था जिसने कि बंगाल में सन ६७ से ७१ तक शासन चलाया ! पर राष्ट्रीय राजनीति में तीसरे मोर्चे के उद्भव का मुख्य बिंदु नब्बे के दशक के अंतिम वर्षों में है जब राष्ट्रीय मोर्चा के तहत देश में बड़ा राजनीतिक परिवर्तन हुआ और जनता पार्टी की सरकार बनी ! हालाकि ये सरकार अपने घटक दलों की दलीय महत्वाकांक्षा के कारण अपना कार्यकाल पूरा नही कर सकी ! बहरहाल, आज जब एकबार फिर लोकसभा चुनाव करीब है और लड़ाई एकदम सीधी मोदी बनाम राहुल हो रही है ! ऐसे में इस संभावित तीसरे मोर्चे से आम चुनाव में क्या प्रभाव पड़ेगा, ये विचारणीय है ! वैसे एक बात तो पूरी तरह से साफ़ है कि तीसरा मोर्चा अभी बने या चुनाव के बाद बने, पर ये भाजपा के लिए संकटकारी ही सिद्ध होगा ! कारण कि इस संभावित तीसरे मोर्चे के घटक दलों का जो इतिहास रहा है वो अधिकाधिक रूप से कांग्रेस समर्थक और भाजपा विरोधी ही रहा है ! साथ ही हर समय के तीसरे मोर्चे का इतिहास भी निरपवाद रूप से कुछ ऐसा ही है ! लिहाजा ये संभावना प्रबल है कि अगर भाजपा या कांग्रेस दोनों ही सरकार बनाने लायक सीटों से वंचित रह जाते हैं जिसकी पूरी संभावना है, तो इस संभावित तीसरे मोर्चे के इन सभी दलों द्वारा या तो कांग्रेस को सहयोग दिया जाएगा या फिर उससे सहयोग लिया जाएगा ! बहरहाल, राजनीति मे क्षण-क्षण में समीकरण बदलते हैं, अतः चुनाव के परिणाम से पहले पूर्णतः कुछ भी कहना जल्दबाजी ही होगी !