शनिवार, 23 नवंबर 2013

भारत रत्न पर यह कैसा महाभारत [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
संभवतः ये हमारी राजनीतिक परम्परा रही है कि हमारे देश में जब भी कोई राष्ट्रीय स्तर की घटना घटती है तो उसपर हमारे राजनीतिक महकमे में तुरंत सुगबुगाहट शुरू हो जाती है ! यहाँ इसका भी बहुत कम ही महत्व है कि घटना का रूप कैसा है ? वो सुखद है या दुखद ! कुल मिलाकर घटना चाहें कैसी भी हो, उसपर राजनीति होनी ही है ! इस बात का सबसे ताज़ा और सटीक उदाहरण सचिन और वैज्ञानिक सीएनआर राव को ‘भारत रत्न’ दिए जाने की घोषणा बाद से हमारे राजनीतिक दलों के बीच मचा सियासी घमासान है ! गौरतलब है कि सचिन के क्रिकेट से सन्यास लेने के बाद सरकार की तरफ से उन्हें खेल के क्षेत्र में भारत का नाम रोशन करने के लिए भारत रत्न देने का ऐलान किया गया ! उनके साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में विराट योगदान देने वाले वैज्ञानिक सीएनआर राव को भी देश के इस सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान से नवाजने की घोषणा सरकार द्वारा की गई ! यहाँ तक तो पूरा मामला सही था, पर इसके बाद इस सम्मान पर हमारे राजनीतिक दलों की दलीय महत्वाकांक्षा से प्रेरित सियासी घमासान शुरू हुआ ! हर तरफ से वाद-प्रतिवाद और बयानबाजियों का दौर शुरू हो गया जो कि अब भी पूरी तरह से थमा नही है ! संभावना है कि भारत रत्न पर ये सियासी महाभारत अभी और कुछ दिन तक चलेगी ! कुछ और बयान आएंगे, वाद-प्रतिवाद होंगे और राजनीतिक दलों के बीच इस पुरस्कार पर अपने बिंदु को सही व श्रेष्ठ साबित करने की ये जुबानी जंग और कुछ समय तक जारी रहेगी ! दरअसल इस पूरे सियासी घमासान की मुख्य वजह ये है कि हर राजनीतिक दल ‘भारत रत्न’ के  लिए अपने अनुसार कुछ व्यक्तियों का चुनाव किए बैठा है ! अब चूंकि वर्तमान सत्ताधारी कांग्रेस लंबे समय तक केंद्रीय सत्ता में रही है, लिहाजा उसने जिन-जिनको चाहा उनको-उनको भारत रत्न दे दिया ! वहीँ कांग्रेस की अपेक्षा काफी कम समय सत्ता में बिताने वाली मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा हो या फिर जेडीयू आदि क्षेत्रीय दल हों, हरकिसी के पास भारत रत्न के लिए अपने लोगों के चयनित नाम हैं ! अब जब सचिन और वैज्ञानिक राव को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा हुई है तब मौके की नजाकत को भांपते हुए भाजपा की तरफ से अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की अपनी पुरानी मांग एकबार फिर दोहराई गई है ! यहाँ उल्लेखनीय होगा कि  कुछ अटल जी की स्वच्छ व दलगत राजनीति से मुक्त छवि के कारण तो कुछ राजनीतिक लाभ लेने की नीयत से भाजपा की इस मांग का कई अन्य दलों के नेताओं द्वारा भी समर्थन किया जा रहा है ! फिर चाहें वो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हो, राजग की महत्वपूर्ण सहयोगी शिवसेना हो या संप्रग की महत्वपूर्ण सहयोगी नेशनल कांग्रेस, इन सबने भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की मांग का खुलकर पुरजोर समर्थन किया है ! और तो और, कांग्रेस के मानव संसाधन विकास मंत्री पल्लम राजू ने भी भाजपा की इस मांग का समर्थन किया हैं ! हालाकि केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने अटल जी को ‘भारत रत्न’ न दिए जाने की वकालत करते हुए कहा है कि वाजपेयी ने गुजरात दंगों के समय नरेंद्र मोदी को तो राजधर्म की नसीहत दी, पर खुद कुछ नही किया, अतः उन्हें भारत रत्न देने पर सोचना होगा ! अब ये कहते हुए मनीष तिवारी शायद ये भूल गए कि राजीव गाँधी जिनपर बोफोर्स घोटाले के दाग अब भी हैं, को कबका भारत रत्न दिया जा चुका है ! साथ ही, देश को आपातकाल की त्रासदी में डालने वाली इंदिरा गाँधी को भी भारत रत्न से नवाजा जा चुका है ! अतः अब अगर इन नेताओं को भारत रत्न दिया जाना सही है, तो अटल बिहारी वाजपेयी को भी निश्चित ही भारत रत्न मिलना चाहिए !  बहरहाल इसी क्रम में अब अगर भाजपा की इस मांग को अन्य दलों से मिलने वाले इन समर्थनों पर एकबार विचार करें तो साफ़-साफ़ समझा जा सकता है कि यहाँ अधिकाधिक खेल राजनीतिक है ! अब जहाँ नीतीश कुमार अटल बिहारी वाजपेयी के समर्थन के जरिये अपने मोदी विरोध के एजेंडे को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं तो वही कांग्रेस व उसके सहयोगी दल के नेताओं द्वारा इस समर्थन के जरिए वाजपेयी को अबतक भारत रत्न न दिए जाने के कारण होने वाली किरकिरी से बचने का प्रयास किया जा रहा है ! वैसे ‘भारत रत्न’ पर जारी इस राजनीतिक खींचतान के बीच जेडीयू नेता शिवानन्द तिवारी की तरफ से भी एक बड़ा ही विवादास्पद बयान आया है ! उनका कहना है कि सचिन ने क्रिकेट खेलने के लिए पैसे लिए हैं. अतः उन्हें भारत रत्न देने का कोई औचित्य नही है ! इसके साथ ही अन्य नेताओं की तरह उन्होंने भी हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की पैरवी की है ! विचार करें तो बेशक ध्यानचंद को भारत रत्न मिलना चाहिए, पर इससे सचिन का भारत रत्न पर हक कम नही हो जाता ! अतः उचित होगा कि सचिन को भारत रत्न मिलने पर उलूल-जुलूल बयानबाजियों की बजाय हम इसका स्वागत करें !
  अंततः साफ़ है कि ‘भारत रत्न’ को लेकर हर राजनीतिक दल द्वारा अपने-अपने तरह से राजनीति की जा रही है और देश का ये सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान एक निचले दर्जे की राजनीति का सामान भर बनकर रह गया है ! अब इससे अधिक दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण और क्या होगा कि हमारे सियासी हुक्मरान एकदूसरे को नीचा दिखाते हुए अपने-अपने लोगों को भारत रत्न देने की वकालत में इस कदर मशगूल हैं कि उन्हें इसका भी भान नही कि इस चक्कर में वो देश के इस सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान की गरिमा पर लगातार कुठाराघात करते जा रहे हैं !  

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