गुरुवार, 28 नवंबर 2013

सुलझा-अनसुलझा सा आरुषि केस [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
आख़िरकार देश की सबसे बड़ी मर्डर-मिस्ट्री आरुषि-हेमराज हत्याकांड पर फैसला आ ही गया ! सीबीआई अदालत द्वारा परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर आरुषि के माता-पिता नूपुर और राजेश तलवार को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई ! हालांकि अब भी इस मामले में तमाम ऐसी बातें हैं जिनके विषय में न तो इस मामले की जांच कर रही सीबीआई के पास कोई जवाब है और न ही सज़ा देने वाले न्यायालय के पास ! बनिस्बत, जिससे आरुषि का गला काटा गया, वो हथियार क्या हुआ ? हेमराज का फोन कहाँ गया ? आदि तमाम ऐसे सवाल हैं जो अब भी अनुत्तरित रूप से कायम हैं ! पर ये मामला इतना लंबा और पेंचीदा हो गया कि आखिरकार अदालत को परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर ही फैसला सुनाना पड़ा ! इसी क्रम में अगर इस पूरे मामले पर एक संक्षिप्त दृष्टि डालें तो दिल्ली के जलविहार स्थिति राजेश तलवार के फ़्लैट में १५ मई २००८ की सुबह उनकी एकलौती बेटी आरुषि मृत पाई गई ! आरुषि के माता-पिता के कहने पर तब पुलिस को लगा कि नौकर हेमराज ने आरुषि को मारा है, क्योंकि तब वो घर में नही था ! पर अगले ही दिन उसी घर की छत से जब हेमराज का शव मिला तब इस मामले ने नया मोड़ ले लिया ! मामले की प्रारंभिक जांच कर रही दिल्ली पुलिस ने शक की बिना पर जल्द ही इस मामले में आरुषि के पिता राजेश तलवार को गिरफ्तार कर लिया ! पर दिल्ली पुलिस राजेश तलवार के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नही जुटा पाई ! लिहाजा ये केस कमजोर रहा और मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई ! सीबीआई को सौंपे जाने के बाद से इस केस में कई मोड़ आते गए और दिन पर दिन मामला और पेंचीदा होता गया ! इस पूरे मामले को देखते हुए कहना गलत नही होगा कि जब दिल्ली पुलिस ने अपनी लापरवाही भरी जांच से इस केस को काफी हद तक खराब कर दिया तब इसे सीबीआई को सौंपा गया ! अगर शुरुआत में ही समय रहते ये केस सीबीआई को दे दिया गया होता, तो न तो ये मामला इतना पेंचीदा होता और न ही आज परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर फैसला करने की नौबत आती ! वैसे, इस मामले की पेंचीदगी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी जांच में लगी सीबीआई ने कोई सुराग न मिलने के कारण ये मामला बंद कर दिया था ! पर अदालत ने सीबीआई द्वारा पेश इस मामले की क्लोजर रिपोर्ट को ही चार्जशीट मान लिया और प्रत्यक्ष साक्ष्यों के अभाव में परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को ही आधार मानकर आरुषि के माता-पिता पर केस चलाने के आदेश दे दिए ! परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की बात करें तो इन साक्ष्यों का कोई दस्तावेजी अथवा बयानी रूप नही होता है ! ये पूरी तरह से सतही स्थिति को देखते हुए जांच एजेसी व न्यायालय द्वारा लगाए गए अनुमान पर आधारित होते हैं ! इस मामले में सभी परिस्थितिजन्य साक्ष्य आरुषि के माता-पिता के खिलाफ ही दिखाई दे रहे हैं !
   इसी संदर्भ में अगर इस मामले से सम्बंधित कुछ प्रमुख परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की बात करें तो पहला साक्ष्य कि आरुषि-हेमराज की हत्या के समय घर में आरुषि के माता-पिता के सिवा और कोई नही था ! दूसरा साक्ष्य कि आरुषि के माता-पिता ने हत्या के दिन पुलिस को छत की चाबी नही दी जहाँ हेमराज की लाश छुपाई गई थी ! साथ ही राजेश तलवार द्वारा तमाम बाहरी लोगों पर आरोप लगाकर इस मामले को उलझाने और सीबीआई को गुमराह करने की कोशिश की गई ! ये तथा इसके अतिरिक्त और भी कई परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं जो पूरी तरह से तलवार दम्पति के खिलाफ जाते हैं ! इन्ही साक्ष्यों के आधार पर अदालत ने अब इस मामले में फैसला सुनाया ! हालांकि ये फैसला निचली अदालत का है, अतः अभी इसका उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जाना शेष है ! पहले तो ये मामला उच्च न्यायालय में जाएगा और देखने वाली बात होगी कि इस मामले का आधार बने परिस्थितिजन्य साक्ष्य उच्च न्यायालय को कितना संतुष्ट कर पाते हैं ? क्योंकि कई मामलों में ये देखा गया है कि निचली अदालत द्वारा दोषी करार लोग ऊपरी अदालत में अपील करके प्रत्यक्ष साक्ष्यों के अभाव में छूट जाते हैं ! अब चूंकि ये मामला पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है, अतः इसमें भी ऐसी किसी संभावना से इंकार नही किया जा सकता है !

  अब जो भी हो, पर इतना तो अवश्य है कि सामान्य तरह से हुए इस दोहरे हत्याकांड के पूरे मामले को देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बनाने का श्रेय हमारी जांच एजेंसियों, खासकर कि दिल्ली पुलिस को ही जाता है ! इस मामले की शुरुआती जांच में दिल्ली पुलिस द्वारा पूरी तरह से लापरवाही बरती गई जिस कारण गुनाहगारों को सबूत मिटने के लिए पर्याप्त समय मिल गया ! दिल्ली पुलिस ने तत्काल में उन महत्वपूर्ण स्थानों का निरिक्षण तक नही किया जहाँ काफी सुराग मिल सकते थे ! इसके बाद जब जांच सीबीआई को सौंपी गई तबतक प्रत्यक्ष सबूतों के मामले में काफी देर हो चुकी थी ! सीबीआई जांच भी इस मामले में भटकी-भटकी ही रही और देखते-देखते ही ये मामला देश की सबसे बड़ी मर्डर-मिस्ट्री बन गया ! अब फ़िलहाल तो ये कहना कठिन है कि ऊपरी अदालतों में जाने के बाद इस मामले में क्या फैसला आएगा ! पर आखिर में सवाल यही  उठता है कि अगर कमजोर केस के कारण आरुषि के माता-पिता बरी हो जाते हैं तो क्या देश कभी इस दोहरे हत्याकांड की असल हकीकत जान पाएगा ? या फिर ये केस यूँ ही रहस्य के अंधेरे में दफ़न हो जाएगा !

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