- पीयूष द्विवेदी भारत
आईनेक्स्ट |
देश की सर्वोच्च जाँच एजेंसी सीबीआई अपनी
विश्वसनीयता और कार्यशैली के लिए तो हमेशा से ही विवादों में रही है, पर अब इन
विवादों के क्रम में एक और विवाद जुड़ गया है और ये कोई ऐसा-वैसा विवाद नही है !
कारण कि अबतक तो सिर्फ सीबीआई की विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिन्ह लगते थे, पर इस
विवाद ने तो उसके अस्तित्व को ही संदेह के घेरे में ला दिया है ! अभी हाल ही में
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने नवेन्द्र कुमार नामक व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका पर
अपने फैसले में कहा कि सीबीआई कोई पुलिस फ़ोर्स नही है, अतः वह न तो अपराधों की
जांच कर सकती है और न ही चार्जशीट दायर कर सकती है ! दरअसल हुआ यूँ था कि सन २००१
में एक बीएसएनएल कर्मचारी नवेन्द्र कुमार के खिलाफ सीबीआई द्वारा आपराधिक षड्यंत्र
रचने और धोखाधड़ी करने का मामला दर्ज किया गया था ! जिसके बाद नवेन्द्र कुमार ने
सीबीआई के गठन की वैधानिकता को चुनौती देती एक याचिका उच्च न्यायालय में दायर की
थी ! उनका मत था कि सीबीआई को अवैधानिक घोषित करते हुए उनपर दायर मामला खारिज कर
दिया जाए ! बस इसी मामले में अब गुवाहाटी उच्च न्यायालय का फैसला आया है जिससे कि
सीबीआई के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मडराने लगे हैं ! ये कहना गलत होगा कि अपने
अस्तित्व पर आए इस संकट से सिर्फ सीबीआई परेशान होगी, बल्कि इस चुनावी मौसम में ये
फैसला सीबीआई से कहीं अधिक सरकार को चिंतित करने वाला होगा ! शायद यही कारण है कि
गुवाहाटी उच्च न्यायालय का फैसला आते ही सरकार द्वारा आनन्-फानन में इस फैसले पर
रोक लगाने के लिए न सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका डाली गई, बल्कि अनुरोध
करके छुट्टी के दिन ही मामले की सुनवाई भी करवाई गई ! अंततः परिणाम ये रहा कि
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मामले की सुनवाई
६ दिसंबर को तय करते हुए फ़िलहाल के लिए गुवाहाटी
उच्च न्यायालय के इस फैसले पर रोक लगा दिया गया ! अब फ़िलहाल के लिए भले ही सीबीआई
पर से संकट कुछ कम हो गया है, पर इसका ये कत्तई अर्थ नही कि अब सीबीआई को लेकर पूरी
तरह से निश्चिंत हो लिया जाए ! अभी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गुवाहाटी उच्च
न्यायालय के फैसले पर सिर्फ एक निश्चित अवधी तक की रोक लगाई गई है, उसे ख़ारिज नही
किया गया है ! अभी सारी कहानी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ६ दिसंबर को होने वाली
सुनवाई पर निर्भर है ! सर्वोच्च न्यायालय मामले का अध्ययन करेगा और फिर सुनवाई में
सभी पक्षों की बातों को सुनने के बाद कोई निर्णय लेगा ! अब जो भी हो, पर अभी सवाल
ये उठता है कि क्या वाकई में सन १९६३ में हुए सीबीआई के गठन में ऐसी कुछ कमी रह गई
थी कि आज गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा उसे अवैधानिक घोषित कर दिया गया है ? इस
सवाल का उत्तर तलाशने के लिए हमें गुवाहाटी उच्च न्यायालय के तर्कों की कसौटी पर सीबीआई
के गठन के इतिहास को रखना होगा ! इतिहास को देखने पर हमें पता चलता है कि भारत में
सीबीआई के गठन की बुनियाद आजादी से लगभग आधा दशक पहले अंग्रेजी हुकूमत द्वारा रख
दी गई थी ! उल्लेखनीय होगा कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय युद्ध आपूर्ति
विभाग में व्यापक तौर पर फैले भ्रष्टाचार की जांच व रोकथाम के लिए ब्रिटिश हुकूमत
द्वारा विशेष पुलिस प्रतिष्ठान की स्थापना की गई ! कालांतर में दिल्ली विशेष पुलिस
अधिनियम बना और ये पुलिस प्रतिष्ठान गृहमंत्रालय को हस्तांतरित कर दिया गया ! आजादी
के बाद १ अप्रैल, सन १९६३ में गृहमंत्रालय द्वारा इसी दिल्ली विशेष पुलिस
प्रतिष्ठान को ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (सीबीआई) के रूप में एक नया और लोकप्रिय नाम
दिया गया ! अब आज गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई की अवैधानिकता के संबंध ये
तर्क दिया जा रहा है कि सीबीआई के गठन को न तो कैबिनेट के सामने रखा गया था और न
ही राष्ट्रपति से मंजूरी दिलाई गई थी ! सीबीआई के गठन के इतिहास को देखते हुए तो गुवाहाटी
उच्च न्यायालय ये तर्क काफी हद तक सही ही प्रतीत होता है ! पर अब जब मामला
सर्वोच्च न्यायालय के पास है तो ऐसे में कुछेक ऐसी बातें दिखती है जो सीबीआई के
पक्ष में जा सकती हैं ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सन १९६३ में सीबीआई का नए
सिरे से कोई गठन नही किया गया था, बल्कि अंग्रेजी हुकूमत द्वारा पूर्व में ही
स्थापित किए गए दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान को ही एक नया नाम देकर सीबीआई बना
दिया गया था ! साफ़ है कि सीबीआई का गठन दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के नाम से
अंग्रेजी हुकूमत द्वारा ही हो गया था ! भारतीय शासन के दौरान सिर्फ इसका नाम
परिवर्तित किया गया ! अंग्रेजी शासन की व्यवस्था से कई बातें हमने ग्रहण की हैं और
कई पारम्परिक रूप से प्राप्त हुई हैं, सीबीआई भी इसीका एक हिस्सा है ! लिहाजा हम ये
नही कह सकते कि राष्ट्रपति से मंजूरी न मिलने अथवा हमारी अन्य संसदीय प्रक्रियाओं
से नही गुजरने के कारण सीबीआई का गठन अवैधानिक है !
बहरहाल
अभी स्थिति ये है कि सीबीआई का अस्तित्व सर्वोच्च न्यायालय के स्टे के सहारे है !
कहना कठिन है कि ६ दिसंबर को होने वाली सुनवाई में क्या आएगा ! पर इतना जरूर है कि
आज अगर सीबीआई वैधानिकता पर किसी तरह का कोई सवाल उठता है तो इसका सीधा प्रभाव
उसके अधीन जांच और सुनवाई के लिए पड़े मामलों पर पड़ेगा ! कुछ प्रभाव तो दिखने भी
लगा है कि सीबीआई जांच का सामने कर रहे तमाम आरोपी इस स्थिति का लाभ लेते हुए अपने
पर लगे आरोपों को ख़ारिज करने के लिए न्यायालय में अपील दायर करने लगे हैं ! कुल
मिलाकर आज जहाँ ६ दिसंबर की तारीख पर सारे देश की नज़रें टिकी हैं, वहीँ यही तारीख
सरकार और सीबीआई की उम्मीदों के लिए एकमात्र सहारा भी है !
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