मंगलवार, 2 जून 2015

गर्मी के कहर से मरते लोग [अमर उजाला कॉम्पैक्ट, नेशनल दुनिया और कल्पतरु एक्प्रेस में प्रकाशित]



  •  पीयूष द्विवेदी भारत

कल्पतरु एक्सप्रेस
देश फिलहाल गर्म हवाओं यानी लू से त्रस्त है। इससे न केवल लोगों का दैनिक जीवन हलकान है, वरन यह भीषण रूप से जानलेवा भी साबित हो रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो अबतक लू के कारण देश के विभिन्न राज्यों में कुल मिलाकर लगभग २००० लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। इसका सर्वाधिक असर देश के दक्षिण में है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे देश के दक्षिण भारतीय राज्यों में लू ने सबसे ज्यादा आतंक मचाया है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अबतक लू से होने वाली २००० मौतों में से लगभग १४०० मौतें सिर्फ आंध्र और तेलंगाना में हुई हैं। तिसपर मौसम विशेषज्ञों का यह कहना कि इन दक्षिण भारतीय राज्यों में अभी तापमान का पारा ५० डिग्री तक जा सकता है, और भयभीत करता है। वैसे, दक्षिणी राज्यों के अलावा लू का प्रकोप उत्तर भारत में भी है। उत्तर भारत के राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड आदि तमाम राज्यों में लगभग ३० से ३५ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से लू चल रही है। उसपर ये सब थमने के फिलहाल कोई संकेत नहीं हैं। जिस तरह से लू का कहर मचा हुआ है, उसे देखते हुए कहा जा रहा है कि लू के लिहाज से यह वर्ष अबतक सबसे घातक वर्ष सिद्ध हो सकता है। घातक इसलिए कि सन २०१० में भी लू का पारा कुछ ऐसा ही या कि अबसे थोड़ा अधिक ही रहा था, लेकिन तब इससे मौतें इतनी अधिक नहीं हुई थीं। लेकिन इस दफे चूंकि फ़रवरी-मार्च महीने में तो मौसम अपेक्षाकृत ठण्डा था, मगर उसमे अचानक परिवर्तन हुआ और ये लू बहनी शुरू हो गई। और लोगों का शरीर अचानक हुए इस मौसमी बदलाव के हिसाब से ढल नहीं पाया, बस यही कारण है कि अबकी लू के कारण इतनी अधिक मौतें हो रही हैं।
नेशनल दुनिया
अमर उजाला कॉम्पैक्ट
मौसम विशेषज्ञों के शब्दों में लू को समझें तो ‘जब किसी खास दिन पिछले तीन दशक की तुलना में औसत तापमान पांच डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है तो बहने वाली गर्म हवाएं लू कहलाती हैं।” यूँ तो लू हर जगह के लोगों के लिए हानिकारक ही है, लेकिन गांवों की अपेक्षा शहरों में इसका अधिक प्रभाव होता है। इसका प्रमुख कारण शहरों में पेड़-पौधों का अभाव होना और ईंट-पत्थर के मकानों का बढ़ता जाना है। बढ़ते तापमान में ये मकान तपकर गर्म हो जाते हैं, जिससे शहरों के तापमान में तीन-चार फीसदी की बढ़ोत्तरी हो जाती है। जबकि गांवों मे पर्याप्त पेड़-पौधे होने के कारण ऐसी स्थिति नहीं होती। स्पष्ट है कि पेड़-पौधों का अभाव होना इस लू का एक प्रमुख कारण है। इस बात को और अच्छे से समझने के लिए अगर जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी एक रिपोर्ट  पर गौर करें तो भारत के दस सर्वाधिक गर्म वर्षों में से ८ पिछले दशक यानी २००१ से २०१० के बीच के रहे हैं। यह दशक देश का सर्वाधिक गर्म दशक रहा। सीएसई के अनुसार पिछले १०० वर्षों में वैश्विक तापमान में औसतन ०.८ डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हुई है। इन तथ्यों के आधार पर ही इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह से वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, दुनिया को भविष्य में तेज और लम्बी अवधि की लू के तैयार रहना चाहिए। इन सभी बातों  को देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि  एक तरफ जलवायु परिवर्तन पर दुनिया के विकासशील और विकसित देश अड़ियल रुख अपनाए हुए हैं और दूसरी तरफ यह जलवायु परिवर्तन समाधान न होने के कारण दुनिया में जीने की संभावनाओं को ही लगातार कम करता जा रहा है। उचित होता कि दुनिया के ये देश इसपर जल्द कोई आम सहमति बनाकर समाधान की दिशा में काम करते। क्योंकि किसी भी प्रगति का महत्व तभी है जब धरती जीने लायक रहे। धरती पर जीवन की अनुकूलताओं को नष्ट करने की शर्त पर प्रगति चाहने वाला दुनिया में कौन है ? यक़ीनन कोई नहीं! लू बेशक एक प्राकृतिक आपदा या समस्या है, मगर यह भी उतना ही सच है कि इस समस्या को जन्म मनुष्य की गलतियों और प्रकृति के साथ की गई अनावश्यक छेड़-छाड़ ने दिया है। अतः अब भी समय है कि मनुष्य अपनी गलतियों को सुधार ले, अन्यथा आने वाला समय उसके लिए बहुत अच्छा नहीं रहने वाला।
  बहरहाल, इतना तो साफ़ है कि हम लू को रोक नहीं सकते, मगर इससे बच जरूर सकते हैं। जरूरत है तो बस इससे बचाव के उपायों के विषय में समुचित जागरूकता व ज्ञान की। लू का खतरा कमजोर व्यक्तियों को अधिक होता है। पसीना होने से शरीर का पानी निकल जाता है, जिससे कई दफे व्यक्ति चलते-चलते ही रास्ते में बेहोश होकर गिर भी जाता है। यह मुख्यतः ह्रदय, किडनी पर आघात करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए तो हृदयाघात का खतरा भी हो जाता है। साथ ही लू के कारण प्रदूषण भी बढ़ता है और  सांस सम्बन्धी बीमारियाँ भी पैदा होती हैं। लू से बचने के लिए आदर्श स्थिति  तो यह है कि घर से कम से कम निकला जाय, लेकिन आज की दौड़ती-भागती ज़िन्दगी में यह कहीं से संभव नहीं है। अतः इससे बचने कुछ हलके-फुल्के उपाय किए जा सकते हैं जैसे पानी और पानी वाले फलों का अधिकाधिक सेवन, कम और सादा खाना, धूप से बचने के लिए छाता-टोपी वगैरह का उपयोग, आदि और भी अनेकों छोटे-छोटे उपाय हैं जिनसे लू से बचा जा सकता है। यह दायित्व सरकार का है कि वो टीवी, अखबार आदि संचार माध्यमों के जरिये देश में लू के कुप्रभावों औउ इससे बचने के उपायों से सम्बंधित जागरूकता अभियान चलाए। यह सरकार के वश में है और उसे  कम से कम इस दिशा में प्रयास करने ही चाहिए।