- पीयूष द्विवेदी भारत
कोविड-19 वैश्विक महामारी के
प्रकोप ने जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया है। शिक्षा भी इससे अछूती
नहीं है। कोविड के दौर में शिक्षा के क्षेत्र में एक तरफ जहां विविध चुनौतियाँ खड़ी
हुई हैं, वहीं उन चुनौतियों से निपटने के लिए विभिन्न प्रयोग भी हो रहे हैं।
प्राथमिक व माध्यमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक शिक्षण संस्थानों द्वारा ऑनलाइन पढ़ाई
करवाई जा रही है।
शहर तो शहर, गांवों में भी यह ऑनलाइन शिक्षण की यह
व्यवस्था कमोबेश देखने-सुनने में आने लगी है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से लेकर संचार
व संपर्क के अन्य माध्यमों तक से अध्यापक घर बैठे छात्रों को पढ़ाने में लगे हैं।
इन शैक्षिक नवाचारों के बीच ही पिछले दिनों देश के प्रतिष्ठित दिल्ली
विश्वविद्यालय द्वारा गत 14 मई को एक अधिसूचना जारी की गयी जिसका सार यह था कि
कोविड-19
द्वारा
पैदा परिस्थितियों के कारण स्नातक और परास्नातक कर रहे अंतिम वर्ष या सेमेस्टर के
छात्रों के लिए विश्वविद्यालय ओपन बुक मोड में परीक्षा करवाने जा रहा है।
इस तरीके से परीक्षा
में यह होगा कि छात्रों को तय प्रारूप के अंतर्गत प्रश्न भेजे जाएंगे जिन्हें उनको
एक निर्धारित समय के भीतर लिखकर ऑनलाइन भेजना होगा। इस विषय में डीयू के डीन एग्जामिनेशन की तरफ से जारी
जानकारी के मुताबिक, प्रत्येक प्रश्न पत्र के लिए दो घंटे का समय निर्धारित किया
जाएगा, कुल छह प्रश्न होंगे,
जिसमें से विद्यार्थियों
को चार प्रश्न हल करने होंगे और एक घंटे के अंदर उसे वापस भेज देना होगा।
विश्वविद्यालय प्रशासन की इस घोषणा के बाद से ही डीयू के छात्र संघ तथा दिल्ली
विश्वविद्यालय शिक्षक संघ एकसाथ इसके विरोध में खड़े हैं। इस घोषणा के बाद ट्विटर
पर ‘डीयूअगेंस्टऑनलाइनएग्जाम’ हैश टैग के साथ हजारों की तादाद में विद्यार्थियों
ने ट्विट कर इस निर्णय के प्रति अपना विरोध व्यक्त किया है।
प्रश्न
यह है कि आखिर विश्वविद्यालय के इस निर्णय का इतना विरोध क्यों हो रहा है? गौर
करें तो इस विरोध के पीछे कारणों की लम्बी फेहरिश्त नजर आती है। दरअसल दिल्ली
विश्वविद्यालय जिस प्रकार की परीक्षा लेने की तैयारी कर रहा, उसके लिए छात्रों के
पास कम्यूटर-लैपटॉप या स्मार्टफोन के साथ-साथ अच्छे इंटरनेट की उपलब्धता भी जरूरी
है। ऐसे में जिन छात्रों के पास ये तकनीकी संसाधन नहीं होंगे, वे कैसे इस परीक्षा
में भाग ले पाएंगे? वो कौन-सा तंत्र है जिसने यह सुनिश्चित कर लिया कि छात्रों के
पास लैपटॉप-स्मार्टफोन जैसे संसाधन तथा बढ़िया इंटरनेट भी उपलब्ध होगा? क्या डीयू
प्रशासन की तरफ से कभी अपने सभी छात्रों को यह संसाधन उपलब्ध कराए गए थे? जवाब है,
नहीं. जब ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो अब इस संकटकाल में अचानक विश्वविद्यालय प्रशासन
किस आधार पर छात्रों से ऑनलाइन परीक्षा देने की अपेक्षा कर रहा है? इतना ही नहीं,
ऑनलाइन परीक्षा का जो प्रारूप विश्वविद्यालय ने तय किया है, उसमें न्याय की भावना
भी कम ही दिखती है। क्या यह संभव नहीं कि कोई कम पढ़ा छात्र इस ओपन बुक परीक्षा में
किताब की सहायता से बेहतर कर जाए जबकि कोई खूब पढ़ा छात्र तकनीकी संसाधनों के अभाव
में परीक्षा दे ही न पाए। जाहिर है, ऑनलाइन परीक्षा का यह प्रारूप फिलहाल किसी भी
ढंग से उचित व व्यावहारिक नहीं प्रतीत होता।
वैसे
भी, सवाल ये है कि जब देश के कई बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों ने अपनी परीक्षा आदि
गतिविधियाँ आगे बढ़ा दी हैं; यहाँ तक कि यूजीसी और संघ लोकसेवा आयोग ने अपनी
परीक्षाओं का समय भी आगे कर दिया है, फिर
दिल्ली विश्वविद्यालय को परीक्षाएं कराने की इतनी हड़बड़ी क्यों है? कहीं ऐसा
तो नहीं कि केवल अपने सत्र को नियमित और अबाध रखने की मंशा के मोह में डीयू
प्रशासन ने तमाम छात्रों के लिए परेशानी पैदा करने वाला यह अविवेकपूर्ण निर्णय ले
लिया है।
यह
सही है कि हाल के वर्षों में भारत में तकनीकी उपकरणों का प्रयोग बढ़ा है और
स्मार्टफोन भी लोगों के हाथ में दिखने लगे हैं, लेकिन बावजूद इसके आंकड़ों की मानें
तो 135
करोड़
की आबादी वाले इस देश में स्मार्टफोन चलाने वालो की संख्या मात्र 40 करोड़ है। पूरी
संभावना है कि कम्प्यूटर और लैपटॉप जैसे संसाधन जो सामान्यतः स्मार्टफोन से महंगे
होते हैं, का उपयोग करने वालों की संख्या इससे कम ही होगी। इसी तरह इंटरनेट
उपभोक्ताओं की संख्या भी फिलहाल लगभग 55 करोड़ के आसपास है। इन आंकड़ों का सार यही
है कि देश की आबादी के अनुपात में उक्त तकनीकी संसाधनों से संपन्न लोग आधे भी नहीं
हैं, ऐसी स्थिति में फिलहाल देश में ऑनलाइन परीक्षा जैसी चीज पर बिना पुख्ता
तैयारी के सोचा भी नहीं जा सकता।
अगर
कोई शिक्षण संस्थान इस दिशा में बढ़ना चाहता है तो पहले उसे इसके लिए छात्रों को
तैयार करना होगा तभी उसके द्वारा किया गया ऐसा कोई प्रयास तर्कसंगत सिद्ध होगा
अन्यथा इससे केवल छात्रों की मुश्किलें ही बढ़ेंगी। अतः उचित होगा कि दिल्ली
विश्वविद्यालय फिलहाल ऑनलाइन परीक्षा आयोजित कर छात्रों की मुश्किलें न बढ़ाए बल्कि
सत्र की तारीख आगे बढ़ाकर चीजें ठीक होने की थोड़ी और प्रतीक्षा करे। इसके अलावा यदि
विश्वविद्यालय चाहे तो भविष्य में ऑनलाइन परीक्षा कराने के लिए एक बेहतर व्यवस्था,
जिसमें छात्रों का हित सुरक्षित रहे, विकसित करने की दिशा में भी काम कर सकता है।