- पीयूष द्विवेदी भारत
डीएनए |
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी द्वारा जिस तरह से
गोवा में दिए अपने वक्तव्य में ये कहा गया था कि देश की आर्थिक भलाई के लिए कुछ
कड़े निर्णय लिए जाएंगे, उससे ये तो काफी हद तक साफ़ हो गया था कि जनता की जेब पर
महंगाई की और मार पड़ने वाली है। लेकिन,
यहाँ तो बजट सत्र से पहले ही सरकार द्वारा रेल किराये में १४।२ और माल भाड़े में ६.२
फीसद की भारी वृद्धि कर दी गई। संभवतः ये इसलिए किया गया हो कि संसद में बजट पेश
करते हुए सरकार को ज्यादा चीजों के दाम बढ़ाते हुए न दिखना पड़े। अब चूंकि, राजनीति
का ये सिद्धांत है कि इसमें अवसर और मुद्दे का सर्वाधिक महत्व होता है। लिहाजा अभी
रेल किराये में सरकार द्वारा की गई १४।२ प्रतिशत की भारी वृद्धि के कारण
विपक्षियों को सरकार को घेरने का अवसर हाथ
लग गया है, जिसे वे हल्के में नहीं जाने देना चाहते। लिहाजा रेल किराया वृद्धि के
इस निर्णय को लेकर हमारे समूचे राजनीतिक गलियारे में न सिर्फ तमाम विपक्षी दलों
द्वारा बल्कि सरकार के अपनों द्वारा भी सरकार पर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं।
अब जहाँ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं द्वारा इस वृद्धि के विरोध में देश भर में
प्रदर्शन किया गया तो वहीँ एनसीपी और जेडीयू आदि दलों द्वारा भी इस निर्णय पर
सरकार पर निशाना साधा गया। यहाँ तक कि खुद सरकार की घटक शिवसेना द्वारा भी
प्रधानमंत्री से ये किराया वृद्धि कम करने की मांग की गई। लेकिन, इस वृद्धि को
सरकार के रेल मंत्री सदानंद गौणा द्वारा जायज ठहराते हुए ये कहा गया है कि ये
वृद्धि तो यूपीए सरकार के अंतरिम बजट में ही प्रस्तावित थी, लेकिन चुनाव के कारण
यूपीए सरकार ने इसका क्रियान्वयन नहीं किया। स्पष्ट है कि रेल किराये में हुई इस
वृद्धि पर सरकार से लेकर विपक्ष तक सबके अपने-अपने तर्क हैं। लेकिन इन सब राजनीतिक
खिंचतानों से इतर कुछ सवाल तो आम आदमी के मन में भी हिचकोले ले ही रहे हैं कि रेल किराये में हुई ये भारी वृद्धि न
सिर्फ रेल यात्रियों की जेबों पर भारी पड़ेगी बल्कि इसका प्रभाव रोजमर्रा की चीजों
के यातायात शुल्क पर भी पड़ेगा, जिससे कि महंगाई में और बढ़ोत्तरी होगी। ऐसे में ‘अच्छे
दिन’ लाने का वादा करने वाली मोदी सरकार ने रेल किराये में इतनी बड़ी वृद्धि क्यों
की ? ऐसे अच्छे दिनों का वादा करके तो मोदी सरकार सत्ता में नहीं आई थी ? यही मोदी
जब सत्ता से बाहर थे तो किराया बढ़ोत्तरी का विरोध कर रहे थे, तो अब क्या हो गया ?
ऐसे तमाम सवाल आम आदमी के मन में सुगबुगा रहे हैं, वैसे, यह भी एक सच है कि चुनाव
के दौरान भाषणों में वादे करना एक बात है और सत्ता मिलने पर उन्हें हुबहू जमीन पर
उतरना दूसरी बात।
बहरहाल, उपर्युक्त सब सवालों के
अलावा रेल किराये में हुई इस वृद्धि से कुछ उम्मीदें भी जगती हैं कि सरकार ने अगर
रेल के किराये में इतनी अधिक बढ़ोत्तरी की है तो वो अब रेल के सफर की गुणवत्ता भी
बढ़ाएगी। आज भारतीय रेल की वास्तविक स्थिति ये है कि वो गाड़ियों की कमी से लेकर
दुर्घटना रोधी तकनीकों के अभाव आदि तमाम
समस्याओं से ग्रस्त है। ऐसे में रेल किराये हुई ये भारी वृद्धि इस बात की
उम्मीद तो जगाती ही है कि अब रेल की ये समस्याएं खत्म होंगी व रेल के सफर में
गुणात्मक सुधार होगा। सही मायने में आज स्थिति ये है कि हमारी रेलवे के पास आवश्यकतानुसार पर्याप्त गाड़ियां तक नहीं हैं, जिसके कारण
प्रायः यात्रियों को सीट के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। तिसपर जो गाड़ियां
हैं, उनके लिए भी रेलवे के पास पर्याप्त चालक व अन्य आवश्यक कर्मचारी नहीं हैं।
लिहाजा कम कर्मचारियों से ही ज्यादा काम लिया जाता है, जिससे कि उन्हें समुचित
आराम नहीं मिल पाता और इसका परिणाम प्रायः किसी न किसी रेल दुर्घटना के रूप में
हमारे सामने आता है। रेलवे में कर्मचारियों की कमी की इस बात को रेल सुरक्षा से
जुड़े सुझाव देने के लिए गठित काकोदकर समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में उठाते हुए कहा
था कि कर्मचारियों के रिक्त पदों को ६ महीने में भर दिया जाए। पर समिति के इस
सुझाव पर सरकार ने कितनी गंभीरता से काम किया इसका अंदाजा इस आंकड़े से लगाया जा
सकता है कि रेलवे में अब भी सवा लाख से ऊपर कर्मचारियों के पद रिक्त हैं। ये सभी
कर्मचारी तीसरी और चौथी श्रेणी के हैं। इसके अलावा रेल दुर्घटनाओं में भारी कमी
लाने के उद्देश्य से यूपीए-२ सरकार के दौरान तत्कालीन रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी
द्वारा जीरो टक्कर तकनीक लाने की बात कही गई थी। इस तकनीक पर तकरीबन ५ लाख करोड़ के
खर्च का अनुमान था। लेकिन ये तकनीक भी धन के अभाव में ठंडे बस्ते में चली गई। इसके
अतिरिक्त ट्रेनों व स्टेशनों पर साफ़-सफाई तथा यात्रियों की सुरक्षा आदि भी तमाम वो
बातें हैं जिनमे गुणात्मक सुधार की जरूरत है। अतः कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है
कि अब जब मोदी सरकार ने रेल किराये में १४।२ फिसदी जैसी भारी-भरकम वृद्धि की है तो
वो इन सब समस्याओं पर भी गौर करेगी। और न सिर्फ गौर करेगी, बल्कि इनके समाधान की
दिशा में ठोस कदम भी उठाएगी। वैसे, रेलवे
के प्रति सरकार के इरादे का काफी हद तक पता तो अगले महीने की आठ तारीख को सरकार का
रेल बजट देख के ही चल जाएगा। और ये भी साफ़ हो जाएगा कि सरकार ने रेल किराए में ये
मोटा इजाफा करके जनता की जेब पर जो अतिरिक्त बोझ डाला है, उसके बदले में वो जनता
को क्या देने वाली है। अगर आगामी रेल बजट में सरकार की तरफ से उपर्युक्त रेल
समस्याओं के समाधान की दिशा में कुछ प्रावधान किए जाते हैं, तो ही रेल किराये में
हुई इस वृद्धि को जनता की नज़र में स्वीकार्यता मिल पाएगी।