सोमवार, 23 जून 2014

ऊर्जा संकट पर गंभीर होने की जरूरत [राष्ट्रीय सहारा और प्रजातंत्र लाइव में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

राष्ट्रीय सहारा 
आधुनिक मानव को गतिशील रखने के लिए ऊर्जा का होना अनिवार्य है लेकिन दिन पर दिन सूखते जा रहे ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों के कारण आज न सिर्फ भारत बल्कि अधिकांश विश्व के लिए आवश्यक ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति  चिंता का विषय बनती जा रही है । प्रारंभिक समय में तो लोग ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए केवल कोयले पर निर्भर थे, पर उन्नीसवी शताब्दी के उत्तरार्ध में समय के साथ कोयले पर से ये निर्भरता कुछ कम हुई और लोग पेट्रोलियम तथा गैस की तरफ भी उन्मुख हो गए । हालांकि ऊर्जा पूर्ति के ये सभी स्रोत न सिर्फ सीमित हैं, बल्कि धरती के अस्तित्व के लिए घातक भी हैं । कोयला, पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस के ऊर्जा उत्पादन हेतु किए जा रहे निरंतर और अनवरत दोहन से होने वाले  हानिकारक गैसों के उत्सर्जन के कारण धरती का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ता जा रहा है, जिससे धरती के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं । लेकिन इन तमाम विसंगतियों के बावजूद आज सम्पूर्ण विश्व की अधिकाधिक ऊर्जा जरूरतें ऊर्जा के इन्ही पारम्परिक स्रोतों से पूरी होती हैं । एक आंकड़े के मुताबिक आज जहाँ दुनिया की ४० फिसदी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति पेट्रोलियम करता है, तो वहीँ एक तिहाई विद्युत ऊर्जा का उत्पादन  प्राकृतिक गैस के माध्यम से होता है । इनके अलावा एक चौथाई ऊर्जा जरूरतों के लिए दुनिया अब भी कोयले पर ही निर्भर है । चौंकाने वाली बात तो ये है कि दुनिया के ४० फिसदी कोयले की खपत केवल अकेले भारत में ही हो जाती है । अब ऊर्जा के ये स्रोत सीमित हैं, लिहाजा अनवरत उपयोग होने के कारण धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं । बताना आवश्यक है कि ऊर्जा के ये सभी स्रोत अगले तीन-चार दशकों में समाप्त हो जाएंगे । ऐसे में विकट प्रश्न ये है कि आने वाले समय में जब ऊर्जा के ये पारम्परिक स्रोत नहीं रहेंगे, तब मानव की ऊर्जा जरूरते किस प्रकार पूरी होंगी ? उल्लेखनीय होगा कि एक शोध के मुताबिक २०३०-४० तक दुनिया की ऊर्जा जरूरतें आज की तुलना में ५० से ६० फिसदी तक बढ़ जाएंगी । ऐसे में ये एक कटु सत्य है कि अगर अभी से हमने पारम्परिक स्रोतों से अलग ऊर्जा के ऐसे वैकल्पिक स्रोतों जो अक्षय हों, को विकसित करने की तरफ गंभीरता से कदम बढ़ाना शुरू नहीं किया तो आने वाले समय में हमें ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों के अभाव में बिना ऊर्जा के ही जीना पड़ सकता है ।
   ऐसा नहीं है कि आज ऊर्जा के वैकल्पिक या नवीन स्रोतों पर बिलकुल भी काम नहीं हो रहा या आज दुनिया में उनके प्रति बिलकुल भी गंभीरता न हो । बेशक आज दुनिया के तमाम देशों में ऊर्जा के नवीन स्रोतों के इस्तेमाल से ऊर्जा उत्पादन किया जा रहा है, लेकिन नवीन स्रोतों से उत्पादित ऊर्जा की मात्रा अपेक्षाकृत रूप से  काफी कम है । पनबिजली परियोजनाओं, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि ऊर्जा के नवीन स्रोतों में प्रमुख हैं । पनबिजली परियोजनाओं के द्वारा जल के धार में मौजूद गतिज ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में रूपांतरण करके बिजली प्राप्त की जाती है । ये ऊर्जा के नवीन स्रोतों में वर्तमान में काफी अधिक प्रयोग होने वाला स्रोत है । आज पनबिजली बांधों के माध्यम से दुनिया की तकरीबन २० फिसदी विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होता है । अब अगर इस स्रोत को विकसित तथा विस्तारित करने की तरफ गंभीरता से ध्यान दिया जाए तो इसके जरिए अन्य पारम्परिक स्रोतों की अपेक्षा बेहद कम प्रदूषण में काफी अधिक विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है । इसके अलावा ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति का एक अन्य नवीन और अक्षय स्रोत सौर ऊर्जा भी है । सौर ऊर्जा तो प्रकृति का ऐसा अनूठा वरदान है, जिसके प्रति गंभीर होते हुए अगर मानव जाति इसके उपयोग की सही, सहज और सस्ती तकनीक विकसित कर ले तो सम्पूर्ण विश्व की ऊर्जा जरूरत से कहीं ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है । सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिहाज से दुनिया के अधिकांश देशों की अपेक्षा भारत की स्थिति बेहद अनुकूल है, क्योंकि यहाँ वर्ष के अधिकत्तर महीनों में सूर्य का तापमान अधिक तीव्रता के साथ उपलब्ध रहता है । लिहाजा, अगर सही तकनीक हो तो सूर्य के जरिए पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है ।
प्रजातंत्र लाइव
आज सौर ऊर्जा का सर्वाधिक उपयोग विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करके किया जा रहा है । सौर ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में रूपांतरण करने के लिए आज
फोटोवोल्टेइक सेल की जिस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, वो जरूरत के लिहाज से बेहद महंगी है । इसलिए इस तकनीक के सहारे अधिक सौर ऊर्जा का उत्पादन करना घाटे का ही सौदा लगता है ।  लिहाजा, जरूरत ये है कि सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए सस्ती तकनीक विकसित की जाए और ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए सौर ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाई जाए । सौर ऊर्जा के अतिरिक्त पवन ऊर्जा भी ऊर्जा उत्पादन का एक नवीन और बेहतरीन माध्यम है । ये भी सौर ऊर्जा की तरह ही ऊर्जा प्राप्ति का अक्षय स्रोत होने के साथ-साथ प्रदूषण रहित भी है । इसके अंतर्गत पवनचक्कियों को हवादार स्थानों में लगाया जाता है और फिर जब वे हवा के जोर से घूमने लगती हैं, तो हवा की उस गतिज ऊर्जा को यांत्रिक अथवा विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर दिया जाता है । हालांकि मूलतः इस ऊर्जा का उत्पादन तकनीक से ज्यादा वायु पर निर्भर है, जितनी तेज और ज्यादा वायु मिलेगी, इस तकनीक से उतनी ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की जा सकेगी । कहने का अर्थ है कि इस तकनीक  के लिए पेड़-पौधों आदि से भरे-पूरे क्षेत्र की ही जरूरत होती है । नवीन ऊर्जा स्रोतों में ये सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला माध्यम है ।

   उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है कि अगर दुनिया को आने वाले समय में ऊर्जा व  पर्यावरणीय संकट से बचना है तो उसे ऊर्जा के नवीन स्रोतों के प्रति पूरी तरह से गंभीर होना होगा । इस संबंध में आज इस स्तर पर प्रयास किए जाने की जरूरत है कि दुनिया की अधिकाधिक ऊर्जा जरूरतें ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों से इतर केवल नवीन माध्यमों, विशेषतः सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से पूरी की जा सकें । इसके लिए आवश्यक है कि इस दिशा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक निवेश बढ़ाते हुए शोध तथा आविष्कार को बढ़ावा दिया जाए । क्योंकि ऊर्जा के इन नवीन माध्यमों को पूर्ण विकसित किए बिना आने वाले समय में हमारे लिए अपनी किसी भी तरह की ऊर्जा जरूरत को पूरा करना कत्तई आसान नहीं दिख रहा । 

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