- पीयूष द्विवेदी भारत
दैनिक जागरण |
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की नई नवेली मोदी सरकार से देश को अनेकों उम्मीदें हैं और उन्ही उम्मीदों में से
एक है नदियों का पुनरुद्धार । इस उम्मीद के पीछे कई कारण हैं । पहला कारण कि भाजपा
के घोषणापत्र में नदियों की साफ़-सफाई के बाबत काफी लुभावने वायदे किर गए हैं । दूसरा
कारण ये कि प्रधानमंत्री मोदी अपने चुनावी वक्तव्यों में न सिर्फ बनारस में गंगा
को स्वच्छ बनाने की बात कह चुके हैं, बल्कि शासन में आने के बाद अपने मंत्रालय में
उन्होंने उमा भारती को बाकायदा गंगा सफाई अभियान मंत्री भी बनाया है । और उमा
भारती ने भी गंगा को स्वच्छ बनाने की अपनी कोई ठोस योजना यथाशीघ्र सरकार के सामने
रखने की बात कही है । इसके अलावा सरकार के कुछ अन्य मंत्रालयों में भी नदी संरक्षण
के संबंध में अपने-अपने स्तर पर धीरे-धीरे काम होना शुरू हो चुका है । एक तरफ जहाँ
केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय की पहल पर बनारस के दशाश्वमेघ घाट समेत दस प्रमुख घाटों
को विकसित करने के लिए देश की होटल और पर्यटन क्षेत्र की शीर्ष निजी कम्पनियाँ आगे
आई हैं, तो वहीँ दूसरी तरफ जहाजरानी मंत्रालय द्वारा ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, गंगा
और महानदी जैसी नदियों को जोड़कर नदियों का एक जल परिवहन ग्रिड तैयार करने की भारी-भरकम
लागत वाली महत्वाकांक्षी योजना भी तैयार की जा चुकी है । घाटों के विकास कार्य को
तो पर्यटन मंत्रालय द्वारा अपने सौ दिनों के एजेंडे में प्रमुख रूप से रखा गया है ।
इन दोनों ही कार्यों के संदर्भ में उल्लेखनीय होगा कि मोदी पूर्व में अपने
वक्तव्यों में ये कह चुके हैं कि नदियों को पर्यटन के योग्य विकसित किया जाएगा साथ
ही व्यापारिक दृष्टि से भी उनका उपयोग किया जाएगा । गौर करें तो केंद्रीय पर्यटन
मंत्रालय और जहाजरानी मंत्रालय के उपर्युक्त कार्य मोदी की इन बातों को ही
क्रियान्वित करने की दिशा में उठाए गए कुछ शुरूआती कदम प्रतीत होते है । विचार
करें तो घाटों को विकसित करना जहाँ पर्यटन के लिहाज से उपयुक्त है, वहीँ नदियों का
जल परिवहन ग्रिड बनाने से नदियों के जरिये व्यापारिक गतिविधियों में भी बढ़ोत्तरी
होना आसान होगा । इसके जरिए व्यापारिक गतिविधियों के मद्देनज़र सामानों की ढुलाई जल
जहाजों के द्वारा की जा सकेगी, जिसमे ट्रक आदि की अपेक्षा काफी कम लागत लगेगी । साथ
ही, परिवहन ग्रिड बनने की स्थिति में सम्बंधित नदियों के जलस्तर में भी संतुलित
सुधार आएगा । बहरहाल, कुल मिलाकर ये स्पष्ट है कि मोदी ने नदियों के संबंध में जो
कहा है, वे उसे हुबहू जमीन पर उतारने के
लिए संभवतः अपने मंत्रियों ठोस निर्देश दे दिए हैं । तभी तो उनके मंत्रालयों
द्वारा नदियों से संबद्ध कार्यों के लिए तैयार की जा रही योजनाएं मोदी के यत्र-तत्र
दिए गए वक्तव्यों का ही प्रतिरूप प्रतीत हो रही हैं । इन सभी बातों को देखते हुए
अब ये उम्मीद तो जगती ही है कि हो ना हो, मोदी के द्वारा धीरे-धीरे गंगा समेत तमाम
अन्य नदियों का भी काफी हद तक पुनरुद्धार किया जाएगा । हालांकि नदियों के संबंध
में अब भी मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती उनकी साफ़-सफाई की ही है, जिससे पार
पाना उनके लिए कत्तई आसान नहीं दिखता । उनके इस कार्य को व्यवहृत करने की राह में
तमाम यक्ष-प्रश्न चुनौती बनकर आने वाले हैं, जिनका समाधान किए बगैर नदियों को
स्वच्छ और सुन्दर बनाने के लक्ष्य को हासिल करना संभव नहीं है । इन योजनाओं के क्रियान्वयन की
राह में सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक प्रबंधन की है । इसी संदर्भ में उल्लेखनीय होगा कि
ऊपर वर्णित जल परिवहन ग्रिड को तैयार करने में लगभग २५ हजार करोड़ रूपये की लागत का
अनुमान है । इसके अलावा अन्य योजनाओं में भी ठीकठाक मोटी रकम ही लगेगी । अतः ये देखना दिलचस्प होगा कि आज जब देश की
आर्थिक दशा काफी बुरे दौर में है, तब मोदी सरकार नदी संरक्षण से सम्बंधित अपनी इन
योजनाओं आदि के लिए आवश्यक धन का प्रबंध कैसे करती है ?
भारत में नदियाँ सिर्फ जल का स्रोत या
प्राकृतिक सम्पदा नहीं मानी जाती हैं, बल्कि उनके प्रति लोगों में विराट आस्था और
आध्यात्मिक लगाव भी होता है । पर दुर्भाग्य कि ये सारा आदर, सारा लगाव अधिकांश रूप
से केवल प्रतीकात्मकता तक ही सिमट कर रह गया है । इसी कारण आज स्थिति ऐसी
विडंबनात्मक है कि नदियों को माता कहने वाले इस देश में आज नदियों की हालत बद से
बदतर हो चुकी है । यथार्थ के धरातल पर हालत ये है कि माता कही जाने वाली
गंगा-यमुना आदि नदियों का पानी किसी नाले के पानी इतना गन्दा हो चुका है और अब भी
उसमे नगर निगम व औद्योगिक सस्थानों से निकसित अपशिष्ट पदार्थ लगातार गिर रहे हैं । एक आंकड़े
के मुताबिक देश में प्रतिदिन ३३०००० लीटर तरल अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित होता है,
जबकि देश में प्रतिदिन अपशिष्ट पदार्थों के शोधन की अधिकतम क्षमता मात्र ७००००
लीटर है । ऐसे में शेष अशोधित अपशिष्ट पदार्थ हमारी नदियों में गिरकर उन्हें दूषित
करते हैं । अब अगर नदियों को प्रदूषण से मुक्त और स्वच्छ बनाना है तो उसकी
बुनियादी जरूरत ये है कि सबसे पहले या तो आवश्यकतानुरूप अपशिष्ट पदार्थों के पर्याप्त
शोधन की व्यवस्था की जाए अथवा नदियों से इतर उनके निष्कासन के लिए कोई अन्य स्थान
तलाशा जाए । इसके अलावा एक आवश्यकता ये भी है कि अंध आस्था व परम्परा के नाम
पर जिस तरह से आम लोगों द्वारा शव, मूर्ति तथा धार्मिक कर्मकांडों आदि के सामान
नदियों में बहाए जाते हैं, उसपर प्रशासनिक सख्ती से, सामाजिक जागरूकता से या चाहें
जिस प्रकार से हो सके, अंकुश लगाया जाए । अगर संभव हो तो इस संबंध में कोई कड़ा
क़ानून बनाने पर भी विचार किया जा सकता है । क्योंकि, लोगों द्वारा नदियों में बहाई
जाने वाली ये चीजे भी नदियों को प्रदूषित करने के लिए कम जिम्मेदार नहीं होती, जबकि
इनको नदियों में बहाने का न तो कोई औचित्य है और न ही आवश्यकता । बिना इनपर अंकुश
लगाए नदियों को स्वच्छ नहीं बनाया जा सकता है और । अभी मोदी सरकार की तरफ से इस
संबंध में जिन कार्यों व योजनाओं की पहल होती दिख रही है, वो फ़िलहाल सिर्फ कागज़
में हैं । जब उन्हें जमीन पर उतारा जाएगा तो जानी-अनजानी अनेकों चुनौतियाँ सरकार
और सम्बंधित व्यक्तियों के सम्मुख आएंगी । ऐसे में, तब ये देखना बेहद दिलचस्प होगा
कि मोदी सरकार उन चुनौतियों से पार पाते हुए नदियों को कहाँ तक स्वच्छ और सुन्दर
कर पाती है । हालांकि ये तो काफी बाद की बात है, लेकिन उल्लेख करना आवश्यक है कि
अगर नदियों को स्वच्छ करने में सरकार कामयाब होती है, तो साथ ही साथ उसे नदियों को
पुनः गन्दा न होने से बचाने के लिए भी व्यवस्था बनानी होगी । क्योंकि बिना इस तरह
की कोई ठोस व्यवस्था बनाए, नदियों को अधिक समय तक स्वच्छ नहीं रखा जा सकेगा ।
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