रविवार, 26 अक्तूबर 2014

देखेंगे कि एक ठीकठाक लेखक, कैसा ब्लॉगर बन पाता है..?

  • पीयूष द्विवेदी भारत 
अबतक तो इस ब्लॉग पर सिर्फ वह लेख आदि ही डालता था जो कहीं प्रकाशित हों या न हों, इसके अलावा इस ब्लॉग का अन्य कुछ लिखने के लिए कभी कोई प्रयोग नहीं किया. पर यूँ ही एक रोज सूझा कि क्यों न इसके प्रयोग क्षेत्र को थोड़ा और विस्तार दिया जाय, क्यों न इसे अपने सामान्य और दैनिक जीवन में होने वाले अनुभवों को बांटने का माध्यम भी बनाया जाए, जैसा कि तमाम ब्लॉगर मित्र करते हैं. अब जब ये सूझा तो करने की बेचैनी भी आई..पर इसके लिए जरूरी था कि सबसे पहले इसका नाम बदले. कोई अच्छा नाम जो थोड़ा अलग भी हो और सार्थक भी. तो कुछ मित्रों से सलाह-मशवरे व कुछ अपनी बुद्धि के प्रयोग  से निकला ये नाम - ममक्षर. ममक्षर अर्थात मेरे अक्षर...! अपने पुराने नाम के साथ यह ब्लॉग मेरे अखबारों  व पत्रिकाओं आदि के लेखन का एक संग्रहालय मात्र था और अब भी रहेगा..लेकिन अब उसके साथ-साथ कुछ दिल की बातें, कुछ बैठे-ठाले आए ख्याल, कुछ  यूँ ही देखा-सुना व ऐसी ही और तमाम चीजें भी इस ब्लॉग के पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश करूँगा. बाकी देखने वाली बात यह होगी कि पाठकों की नज़र में ये एक ठीकठाक लेखक, कैसा ब्लॉगर बन पाता है..बन पाता है भी कि नहीं...




शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

पीएम के कश्मीर दौरे के निहितार्थ [दैनिक जागरण राष्ट्रीय (कुछ अंश) और डीएनए में प्रकाशित]


  • पीयूष द्विवेदी भारत
दैनिक जागरण
जम्मू-कश्मीर की बाढ़ आपदा को गुजरे कुछ वक़्त हो चुका है, लेकिन उसने प्रदेश में जो तबाही मचाई, उसके निशान अब भी मौजूद हैं. ऐसे अनगिनत लोग जिनके आशियाने इस बाढ़ में तबाह हो गए, अब भी राहत शिविरों में पड़े अपने भविष्य को प्रश्नसूचक निगाहों से देख रहे हैं. ऐसे में आज जब देश में दिवाली का अवसर आया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपनी दिवाली जम्मू-कश्मीर के बाढ़ पीड़ितों के साथ बीताना, कई मायनों में महत्वपूर्ण है. अब चूंकि, कुछ समय बाद ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में पीएम के इस कश्मीर दौरे को कांग्रेस, एनसीपी समेत जम्मू-कश्मीर के एक स्थानीय दल पैंथर्स पार्टी आदि के द्वारा राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है जो कि बतौर विपक्ष उनके राजनीतिक चरित्र के अनुरूप ही है. यह सही है कि पीएम का ये दौरा कहीं न कहीं जम्मू-कश्मीर के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र भी था, लेकिन इसके अतिरिक्त इस दौरे के और भी कई मायने हैं. अगर इस दौरे पर गंभीरता से विचार करें तो स्पष्ट होता है कि पीएम का ये कश्मीर दौरा न सिर्फ उनके दल भाजपा को कश्मीर विधानसभा चुनाव में राजनीतिक लाभ देने वाला हो सकता है, बल्कि कश्मीर समस्या के सन्दर्भ में ये भारत के राष्ट्रीय हित को भी सांधने में बड़ी भूमिका निभा सकता है. अब चूंकि, भाजपा हमेशा से जम्मू-कश्मीर से धारा  ३७० जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों से इतर तमाम विशेषाधिकार प्राप्त हैं, हटाने की बात कहती आई है.  इस आम चुनाव भी उसने अपने घोषणापत्र में कश्मीर से धारा ३७० को हटाने का वादा किया है. लेकिन, यह काम कत्तई सरल नहीं है. धारा ३७० हटाने के लिए वहां की विधानसभा की मंजूरी आवश्यक है और वहां की मौजूदा नेशनल कांफ्रेंस सरकार धारा ३७० की कट्टर समर्थक है. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री  उमर अब्दुल्ला ये बात जब-तब जाहिर भी कर चुके हैं. इसके अलावा  जम्मू-कश्मीर के स्थानीय दलों के नेता अपनी राजनीति चाक-चौबंद रखने के लिए भोले-भाले कश्मीरियों को भारतीय  हुकूमत के प्रति लगातार बरगलाते रहे हैं. भारतीय हुकूमत व सेना आदि के प्रति उनके मन में ज़हर भरते रहते हैं. परिणामतः जम्मू-कश्मीर के स्थानीय निवासियों के मन में कुछ बरगलाने के कारण तो कुछ परिस्थितिजन्य कारणों से भारत की केन्द्रीय हुकूमत व भारतीय सेना आदि के प्रति काफी दुर्भावना का माहौल घर कर लिया है.
डीएनए 
ऐसे में स्पष्ट है कि अगर भाजपा को कश्मीर से धारा ३७० हटाना है तो वो बिना कश्मीर की सत्ता में आए संभव नहीं है; और सत्ता में आने के लिए आवश्यक है कि वहां के स्थानीय निवासियों के मन में भारत की केन्द्रीय हुकूमत जो अभी भाजपा के पास है, के प्रति बैठी दुर्भावना का खात्मा हो. और बस यही करने की दिशा में प्रधानमंत्री मोदी सत्ता सम्हालने के बाद से लगातार प्रयासरत दिख रहे हैं. जम्मू-कश्मीर को लेकर पीएम की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि अपने चार-पांच महीने के शासनकाल में ही पीएम का ये (वर्तमान दौरा) चौथा जम्मू-कश्मीर दौरा था. अभी जम्मू-कश्मीर आपदा को जिस तरह से राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया, आर्थिक-संसाधनिक सहायता दी गई; तथा हमारी भारतीय सेना ने जिस तरह से बाढ़ के बीच से वहां के लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए अपना खून-पसीना एक कर दिया, इन सब चीजों से जम्मू-कश्मीर के स्थानीय लोगों के नज़रिए में भारत सरकार व सेना के प्रति कुछ-कुछ बदलाव जरूर आया है. ये बदलाव बाढ़ के बाद वहां के तमाम लोगों से खबरिया चैनलों द्वारा की गई बातचीत में दिखा. लेकिन, यह सिर्फ एक छोटी-सी शुरुआत है, इस दिशा में अभी बहुत प्रयास की जरूरत है जिससे कश्मीरी लोगों के मन में भारत के प्रति पूरी तरह से विश्वास का माहौल कायम हो सके.
   उपर्युक्त सभी बातों के बाद अब यह समझना बेहद सरल है कि पीएम नरेंद्र मोदी का मौजूदा जम्मू-कश्मीर दौरा केवल उनकी दलीय राजनीति से प्रेरित नहीं था, वरन ये कश्मीर समस्या के समाधान के सन्दर्भ में किए जा रहे उनके प्रयासों की एक और कड़ी भी था. इस दौरे को अकेले नहीं, वरन इससे पहले हुए प्रधानमंत्री मोदी के पिछले तीन कश्मीर दौरों के साथ ही जोड़कर देखा जाना चाहिए. हमने देखा है कि लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू-कश्मीर में भी कई रैलियां की थीं और परिणाम ये हुआ कि वहां के मतदाताओं ने भाजपा को हाथो-हाथ लिया. वहां की छः में से दो सीटें भाजपा ने जीतीं. इसको देखते हुए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि वहां का मतदाता वहां के स्थानीय दलों से बहुत खुश नहीं है. कहीं न कहीं इन्हीं चीजों को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी कश्मीर को लेकर हर तरह से अत्यंत गंभीर हैं. उनका प्रयास होगा कि कश्मीर के जिस मतदाता ने लोकसभा में भाजपा को छः में से दो सीटें जिताई, वो विधानसभा में भी उसे कहीं अच्छी जीत दे. अतः प्रधानमंत्री के जम्मू-कश्मीर बाढ़ पीड़ितों संग दिवाली मनाने को सिर्फ राजनीतिक सन्दर्भ में नहीं, वरन उससे ऊपर उठकर व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है.

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

अच्छे दिन आने के संकेत [डीएनए]


  • पीयूष द्विवेदी भारत
डीएनए
मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी तो उसकी सबसे बड़ी चुनौती बेलगाम हो रही खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने की थी. इस सरकार से आम लोगों की अपेक्षाएं भी यही थीं कि ये महंगाई को नियंत्रण में लाकर उन्हें कुछ राहत देगी. सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार की तरफ से जनता की इस उम्मीद को पूरा करने की दिशा में छोटे-मोटे प्रयास भी शुरू किए गए, पर तत्काल में उन प्रयासों का कोई ठोस प्रभाव दृष्टिगत नहीं हुआ. जिस कारण विपक्षी दलों द्वारा सरकार को तरह-तरह से कोसा जाने लगा. कांग्रेस आदि दलों की तरफ से कहा गया कि ये झूठे वादों की सरकार है जिसने जनता को धोखा दिया है. पर मोदी सरकार ने इन बातों पर बहुत ध्यान नहीं दिया और  महंगाई कम करने के लिए जमाखोरों की धर-पकड़, महँगी वस्तुओं के निर्यात में कमी, दैनिक जरूरत की वस्तुओं के दाम को नियंत्रित रखने के लिए विशेष फंड की व्यवस्था  समेत और भी तमाम प्रयास करती रही. जमाखोरों पर अंकुश से बाजार से खाने-पीने की वस्तुओं की किल्लत में कमी आई, जिससे कि उनके दाम बहुत ऊपर नहीं गए. मोदी सरकार के उन सभी  प्रयासों का परिणाम धीरे-धीरे अब लोगों के सामने आ रहा है जब महंगाई का स्तर नीचे हो रहा है. अभी सामने आए आंकड़ों के मुताबिक इस महीने खुदरा महंगाई दर पिछले ३३ महीनों के सबसे निचले स्तर ६.४६ प्रतिशत पर आ गई है. इसके अलावा थोक महंगाई दर में भी भारी गिरावट देखी जा रही है. इस महीने थोक महंगाई दर पिछले पांच सालों के सबसे निचले स्तर २.३८ प्रतिशत पर पहुँच गई है. स्पष्ट है कि मोदी सरकार द्वारा किए गए प्रयासों के परिणाम स्वरूप महंगाई दर में ये कमी दिख रही है. हालांकि इसका एक कारण यह भी है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें घटने से देश में भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में काफी गिरावट आई है. इनकी कीमते कई दफे कम की गई हैं. डीजल की कीमत में तो रिकार्ड ३ रूपये से अधिक की कमी अभी की गई है. अब यातायात शुल्क के कारण पेट्रोल-डीजल की कीमतों का प्रभाव अन्य सभी चीजों की कीमतों पर भी पड़ता है, अतः जब इनकी कीमते कम हुई तो खाने-पीने की चीजों के दामों में भी गिरावट आई. अब यूँ तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर सरकार का कोई विशेष अधिकार नहीं होता, इनकी कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार भाव के हिसाब से तय होती हैं. इसबार भी कुछ ऐसा ही हुआ है. लेकिन, यहाँ सवाल ये उठता है कि पिछली संप्रग सरकार के समय में भी तो यही अंतर्राष्ट्रीय बाजार थे और भारत की तेल कम्पनियाँ भी यही थीं, फिर भी देश में डीजल-पेट्रोल की कीमतों में आए दिन इजाफा ही क्यों होते रहता था ? एक आंकड़े के अनुसार संप्रग-२ सरकार ने अपने पांच साल के शासनकाल में तकरीबन ५१ बार पेट्रोल तो ३३ बार डीजल की कीमतों में इजाफा किया. इसका परिणाम यह हुआ कि इन दोनों ही चीजों की कीमत क्रमशः ६२ और ६५ फिसद बढ़ गई. अगर इसमें संप्रग-१ के शासनकाल को भी जोड़ दें तो ये आंकड़े  सैकड़ा पार कर जाते हैं.  ऐसा कत्तई नहीं था कि संप्रग के समय में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में कमी नहीं आती थी, पर समुचित देख-रेख व नियंत्रण न होने के अभाव में उस कमी का लाभ आम जनता तक पहुँचने की बजाय तेल कंपनियों व सरकार के नुमाइंदों की भेंट चढ़ जाता था. इन चीजों को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि भले ही डीजल-पेट्रोल की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार से तय होती हों, पर अबकी मोदी सरकार के समुचित प्रबंधन के कारण ही उनका लाभ आम लोगों तक पहुँच पा रहा है.
    हालांकि एक बेहद गंभीर सवाल यह उठ रहा है कि क्या महंगाई दर में कमी आने से बाजार में भी महंगाई कम होगी ? यह वाजिब सवाल है. क्योंकि, अक्सर होता ये है कि कागज़ में महंगाई  तो कम हो जाती है, पर चीजों के बाजार भाव में कोई गिरावट नहीं आती, जिससे आम जन को घटती महंगाई का कुछ भी लाभ नहीं मिल पाता. इसका मुख्य कारण होता है थोक व्यापारियों के अतिरिक्त मुनाफा कमाने की दुष्प्रवृत्ति.  होता ये है कि थोक महंगाई दर में कमी आने के बाद भी अधिकांश थोक व्यापारी खुदरा व्यापारियों को पुरानी व अधिक कीमतों पर ही चीजें देते हैं. विवशता में खुदरा व्यापारी भी उसी कीमत पर चीजे ले लेते हैं और फिर उसमे और बढ़ोत्तरी करके बाजार में बेचते हैं. परिणाम ये होता है कि महंगाई दर में कमी सिर्फ आंकड़ों में ही रह जाती है और जनता के बीच उसका पूरा लाभ नहीं पहुँच पाता. ऐसा नहीं है कि ऐसे  व्यापारियों पर अंकुश के लिए हमारे यहाँ कोई क़ानून नहीं है. इस सम्बन्ध में देश में ‘उपभोक्ता फोरम अधिनियम’ नामक क़ानून है, जिसके तहत देश के प्रत्येक जिले में ‘उपभोक्ता फोरम’ का गठन किया गया है. उपभोक्ता फोरम में किसी भी तरह की व्यापारिक धोखाधड़ी करने वाले व्यक्ति के खिलाफ शिकायत की जा सकती है. लेकिन, कुछ जागरूकता के अभाव में तो कुछ खुद भी अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में हमारे खुदरा व्यापारी थोक व्यापारियों की शिकायत नहीं करते हैं और इस कारण ये गोरखधंधा यथावत चलता रहता है. अतः स्पष्ट है कि इस समस्या के निवारण के लिए उपभोक्ता की जागरूकता ही पहली आवश्यकता है. इसके अलावा सरकार भी इस बात की निगरानी के लिए कोई व्यवस्था बनाए कि कागज़ में जो महंगाई कम हो रही है, क्या वो आम लोगों तक उसी रूप में पहुँच पा रही है.

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

सतर्कता के कारण कम हुई तबाही [अप्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

तूफ़ान से बचने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते लोग 
संभवतः मानव द्वारा प्रकृति के साथ की जा रही अनावश्यक छेड़-छाड़ से कुपित प्रकृति का कोप विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के रूप में लगातार मानव को झेलना पड़ रहा है. अभी देश जम्मू-कश्मीर बाढ़ के कहर से ठीक से उबर भी नहीं पाया था कि तभी ओड़िसा और आंध्रा में ‘हुदहुद’ नामक ये तूफ़ान तबाही मचाने आ पहुँचा. २०० किमी प्रति घंटे के आसपास की रफ़्तार से ये तूफ़ान विशाखापत्तनम के तट से टकराया और अनेकों लोगों की हंसती-खेलती व वर्षों के परिश्रम से बसी-बसाई घर-गृहस्थी को उजाड़ गया. हालांकि अगले छः घंटे में तूफ़ान की रफ़्तार में कुछ कमी आ गई, पर फिर भी उसकी गति ऐसी थी कि वो तबाही के लिए काफी था. चूंकि, तूफ़ान एक प्राकृतिक आपदा है, अतः इसे रोका तो नहीं जा सकता. लेकिन, इस दौरान कोशिश यही होती है कि तूफ़ान में कम से कम क्षति हो. हुदहुद तूफ़ान की भयावहता के अनुसार देखें तो इस तूफ़ान जो अब काफी धीमा पड़ चुका है, से अबतक लोगों के जान की कोई बहुत क्षति हुई नहीं कही जा सकती. लोगों के घर-बार आदि अचल संपत्तियां जरूर तबाह हो गईं, पर छोटे से छोटे तूफ़ान के दौरान भी इन तबाहियों को रोकना संभव नहीं होता है. संभव इतना ही होता है कि लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाकर अधिक से अधिक संख्या में उनकी जान बचाई जाय और यही किया भी जाता है. इस तूफ़ान में अबतक कुल २४ लोगों के मरने की ही खबर है, जो कि इस २०० किमी प्रति घंटा की रफ़्तार के भयानक तूफ़ान के अनुसार कुछ भी अधिक नहीं कही जा सकती. ऐसा कत्तई नहीं है कि इस तूफ़ान में अधिक जानें न जाना यूँ ही संभव हो गया. ऐसा इसलिए हो सका कि हमारे मौसम विभाग ने न सिर्फ समय रहते इस तूफ़ान के विषय में सटीक भविष्यवाणी कर दी थी, बल्कि तूफ़ान के बढ़ने की दिशा आदि की भी जानकारी भी सरकार को उससे मिलती रही थी. पूर्व की कुछ प्राकृतिक आपदाओं में मौसम विभाग की चेतावनियों को अनदेखा करने या गंभीरता से न लेने के कारण ही सरकार द्वारा तमाम बचाए जा सकने वाले लोगों की जिंदगियां भी नहीं बचाई जा सकीं थी. अभी हाल ही की जम्मू-कश्मीर आपदा को ही देखें तो उसमे मौसम विभाग की तरफ से केंद्र व राज्य दोनों ही सरकारों को भारी बारिश की चेतावनी दी गई थी, पर शायद किसीने भी समय रहते उस चेतावनी पर बहुत गंभीरता से ध्यान नहीं दिया. परिणाम यह हुआ कि बहुत सी ऐसी जानें जो बच सकती थीं, नहीं बच पाईं. लेकिन, इस दफे मौसम विभाग ने हुदहुद के विषय में जो जानकारी  दी, उसपर केंद्र व राज्य दोनों ही सरकारें एकदम गंभीर रहीं. सही मायने में इन जानकारियों के लिए मौसम विभाग बधाई व धन्यवाद का पात्र है. बहरहाल, मौसम विभाग द्वारा दी गई जानकारियों के आधार पर ही केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा इस तूफ़ान से निपटने के लिए पहले ही से भरपूर तैयारी कर ली गई. एनडीआरएफ की कई टीमें ओडिसा और आंध्र में तैनात कर दी गईं, साथ ही तूफ़ान से काफी पहले ही लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचा दिया गया. एक आंकड़े के अनुसार करीब साढ़े तीन लाख लोगों जो इस तूफ़ान की चपेट में आ सकते थे, को ओड़िसा और आंध्र की सरकारों ने समय रहते ही सुरक्षित स्थानों पर पहुँचा दिया था. यही कारण रहा है कि हुदहुद जैसा बड़ा तूफ़ान अबतक २४  लोगों की जान ही ले पाया है. हालांकि अब ये तूफ़ान काफी हद तक शांत हो चुका है, पर बारिश का संकट अब भी बना हुआ है. ऐसा अंदेशा जताया जा रहा है कि भारी बारिश के चलते इससे प्रभावित  राज्यों के कुछ इलाकों में बाढ़ आ सकती है, जो कि एक अलग तबाही होगी. साथ ही, झारखंड, बिहार आदि राज्यों की तरफ भी इस तूफ़ान से पड़ने वाले प्रभावों पर नज़र रखी जा रही है. लेकिन, इन सब खतरों की जानकारी पहले से ही होने से केंद्र व राज्य सरकारें इन सभी चीजों पर पूरी तरह से चौकस हैं और हर स्थिति से निपटने के लिए एकदम तैयार भी.
तूफ़ान में लोग 
  हुदहुद तूफ़ान से लोगों की जानों को कोई विशेष क्षति भले न हो, लेकिन ढांचागत विनाश तो इसने भरपूर किया है. अभी जितनी जानकारी मिल रही है उसके अनुसार इस तूफ़ान ने मोबाइल टॉवरों व हवाई अड्डों को काफी क्षति पहुंचाई है. इसके अतिरिक्त और भी भारी तबाही इस तूफ़ान की वजह से हुई है, जिसका पता तूफ़ान के पूरी तरह से थमने के बाद ही पता चलेगा. अब आंध्रा के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू तो यह इच्छा तक जता दिए हैं कि हुदहुद को भी जम्मू-कश्मीर आपदा की ही तरह राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाय. साथ ही, उन्होंने केंद्र सरकार से इसके लिए दो हजार करोड़ के राहत पैकेज की मांग भी की है. इसमें तो कोई शक नहीं कि आन्ध्र और ओड़िसा दोनों ही राज्यों को केन्द्रीय मदद मिलनी चाहिए और मिलेगी भी. वहां अनगिनत लोग बेघर हो गए होंगे, जिनका पुनर्वास केंद्र व राज्य सरकार दोनों ही के लिए एक बड़ी चुनौती है. इसमें न सिर्फ मोटी रकम खर्च होगी, बल्कि और भी तमाम तरह की मुश्किलातें आएंगी. कहना गलत नहीं होगा कि अभी जम्मू-कश्मीर आपदा के विस्थापितों का पूरी तरह पुनर्वास हुआ नहीं, तभी हुदहुद जैसी इस आपदा का आ जाना कहीं न कहीं देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर ही डालेगा. पर विद्रूप यह है कि कोई चाहकर भी इन प्राकृतिक आपदाओं के विषय में सिवाय इनका सामना करने के कुछ नहीं कर सकता.

रविवार, 12 अक्तूबर 2014

विधानसभा चुनावों के पूर्व संकेत [अप्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

महाराष्ट्र और हरियाणा, देश के इन दो सूबों में विधानसभा चुनावों की हलचल है. हर राजनीतिक दल अपनी जोर आजमाइश में लगा है. हर किसीकी यही कोशिश है कि मतदाता वर्ग को अधिक से अधिक अपनी तरफ मोड़ा जा सके. बात महाराष्ट्र  की करें तो इसबार यहाँ का चुनाव बेहद दिलचस्प रूप ले चुका है. अब से पहले तक तो महाराष्ट्र की लड़ाई मुख्यतः भाजपा-शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी गठबन्धनों के बीच अर्थात द्विध्रुवीय ही होती आई थी. लेकिन, इसबार संयोग ऐसा है कि महाराष्ट्र की राजनीति के ये दोनों ही गठबंधन सीटों को लेकर हुए मतभेद के कारण ख़त्म हो चुके हैं. इस नाते अब यहाँ लड़ाई राज ठाकरे की मनसे को लेकर पंचकोणीय  हो चुकी है. एक तरफ महाराष्ट्र की सत्ता पर पिछले १५ साल से कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार का कब्ज़ा रहा है, लेकिन अब जब यह गठबंधन टूट चुका है तो कांग्रेस या एनसीपी किसी के लिए भी सरकार लायक या उसके आसपास भी सीटें लाना कत्तई आसन नहीं दिख रहा. दूसरी तरफ ठीक यही हालत भाजपा और शिवसेना की भी है. अबतक दोनों साथ लड़ते थे तो भी सरकार बनाने जितनी सीटें लाने में पिछले विधानसभा चुनावों में असफल ही रहे थे, तो अब जब वे अकेले-अकेले लड़ रहे हैं तो ये मानना कठिन है कि उनमे से किसीको भी पूर्ण बहुमत मिलेगा. हाँ, इसबार अगर भाजपा-शिवसेना साथ लड़ते तो उनके सरकार बनाने की पूरी संभावना थी. क्योंकि कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के लम्बे और उबाऊ शासन से ऊब चुकी महाराष्ट्र की जनता का मिजाज इस दफे शिवसेना-भाजपा गठबंधन को मौका देना का ही था, जिसका संकेत वहां की जनता द्वारा बीते लोकसभा चुनावों में शिवसेना-भाजपा को महाराष्ट्र में सर्वाधिक सीटें जिताकर दे भी दिया गया था. लेकिन, महत्वाकांक्षाओं की टकराहट के कारण अब जब ये गठबंधन नहीं रहा तो कहना कठिन है कि जनादेश क्या करवट लेगा. वैसे, गठबंधन टूटने के बाद महाराष्ट्र की राजनीति के इन चारों प्रमुख दलों द्वारा पूरा जोर लगाया जा रहा है कि अकेले के दम पर ही सरकार बनाने जितनी सीटें आ जाएं. अब जहाँ भाजपा खुद पीएम मोदी से महाराष्ट्र में धुआंधार रैलियां करवा रही है, वहीँ उसकी पूर्व सहयोगी शिवसेना उसे कोसते हुए उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे के चेहरे के दम पर युवाओं को अपनी तरफ मोड़ने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस भी महाराष्ट्र चुनाव की कसौटी पर एकबार फिर राहुल गांधी को आजमाने में लगी है, तो एनसीपी भी अपनी ताकत भर जोर लगा रही है. अब ये सभी दल पूर्ण बहुमत के लिए चाहें जितना जोर लगा लें, पर फ़िलहाल ऐसा कोई संकेत नहीं दिखता जिसके आधार पर यह कहा जाय कि इस बार महाराष्ट्र में किसीको भी अकेले सरकार बनाने जितनी संख्या मिलेगी. खंडित जनादेश आना लगभग तय है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि फिर महाराष्ट्र में सरकार बनेगी कैसे ? उत्तर यही है कि चुनाव के बाद इन टूटे गठबंधनों में से जो भी सरकार बनाने की स्थिति में होंगे, वे पुनः एक होकर सरकार बना लेंगे. संभव है कि वो गठबंधन भाजपा-शिवसेना का ही होगा.

   इसी क्रम में अब अगर कुछ बात हरियाणा चुनाव की करें तो अबकी यहाँ मुकाबला त्रिकोणीय है. हालांकि बसपा, हजकां, वामदल आदि के रूप में कुछ नए खिलाड़ी भी मैदान में जरूर उतरे हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस, भाजपा और इन्डियन नेशनल लोक दल के बीच ही रहने की संभावना है. सन १९६६ में पंजाब से टूटकर अलग अस्तित्व में आए हरियाणा में अबतक तो मुख्य मुकाबला कांग्रेस और आईएनएलडी के बीच ही रहा है, लेकिन ये पहली बार है जब भाजपा ने यहाँ की कुल ९० सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और इस मुकाबले में एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में नज़र आ रही है. न सिर्फ प्रबल प्रतिद्वंद्वी नज़र आ रही है, बल्कि उसकी जीत की संभावना भी सबसे अधिक दिख रही है. इसका कारण यह है कि हरियाणा के दोनों मजबूत दलों अर्थात कांग्रेस और आईएनएलडी की हालत फ़िलहाल काफी ख़राब ही चल रही है. कांग्रेस जहाँ सत्ता विरोधी रुझान और आतंरिक कलह से जूझ रही है तो वहीँ आईएनएलडी अपने शीर्ष नेता ओ पी चौटाला सजायाफ्ता होने के कारण दिक्कत में है. ऐसे में, स्पष्ट है कि भाजपा के लिए हरियाणा की राह कुछ बहुत मुश्किल नहीं रहने वाली. तिसपर भाजपा पीएम नरेंद्र मोदी के जरिये हरियाणा में माहौल बनाने की कोशिश में लग चुकी है. मोदी दनादन हरियाणा में रैलियां किए जा रहे हैं. इन बातों का निष्कर्ष ये है कि हरियाणा में इसबार जिन तीन दलों के बीच कड़े मुकाबले की संभावना है, उनमे सबसे अच्छी हालत में फ़िलहाल भाजपा ही दिख रही है. हाँ, बीते उपचुनावों में भाजपा के प्रदर्शन स्तर में आई गिरावट भाजपा के लिए चिंता का कारण जरूर है, लेकिन उन परिणामों का असर इन चुनावों पर रहेगा ऐसा नहीं लगता. वैसे, कहीं न कहीं इन राज्यों के चुनाव परिणामों के आधार पर ही भाजपा द्वारा दिल्ली के विषय में भी कुछ निर्णय लिया जाएगा कि दिल्ली में चुनाव में जाया जाय या जोड़-तोड़ की सरकार की कवायद की जाय. बहरहाल, अब जनता के मन में क्या छिपा है, इसका पता तो १९ अक्तूबर को मतगणना के बाद ही चलेगा और उसीके आधार पर आगे के समीकरण साफ़ होंगे. 

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

भारत समेत विश्व के लिए खतरा है पाकिस्तान [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
पाकिस्तान द्वारा जम्मू में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर जिस तरह से लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन करते हुए हमला किया जा रहा है, वह न सिर्फ चिंताजनक है बल्कि कई प्रश्न भी खड़े करता है. वैसे तो संघर्ष विराम का ऐलान होने के बाद से अबतक पाकिस्तान की तरफ से इतनी बार इसका उल्लंघन किया गया है कि अब वो बस नाम के लिए ही रह गई. लेकिन फिर भी माना जा रहा है कि अबकी पाकिस्तान जो संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रहा है, वो २००३ के बाद का सबसे बड़ा उल्लंघन है. पाकिस्तानी रेंजर्स की तरफ से लगातार मोर्टार समेत स्वचालित हथियारों से हमला किया जा रहा है. इस हमले में सीमावर्ती क्षेत्र के निवासी पांच लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है साथ ही ३ दर्जन के आसपास लोग घायल भी हुए हैं. हालांकि पाकिस्तानी रेंजर्स की तरफ से हो रही इस गोलीबारी का भारतीय सीमा सुरक्षा बल के जवानों द्वारा पूरा जवाब दिया जा रहा है, जिसमे कि पाकिस्तान के भी नागरिकों के हताहत होने की खबर है. लेकिन, दुर्भाग्य कि भारत को चोट पहुंचाने की कोशिश में लगे पाकिस्तान को अपने नागरिकों तक की भी कोई परवाह नहीं है. अब यहाँ सवाल ये उठता है कि आखिर वो क्या कारण है कि पाकिस्तान ने जम्मू में अचानक इतनी भीषण गोलीबारी, वो भी वहां के नागरिकों को निशाना बनाकर, शुरू कर दी ? इस सवाल का जवाब तलाशने पर स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान के इस भीषण हमले के पीछे का कारण उसकी खीझ है. इस खीझ के भी कई कारण दिखते हैं. पहला कारण कि अभी संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कश्मीर समस्या का रोना रोया था, लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के उस मसले को अंतर्राष्ट्रीय मंच से अलग रखने की बात के बाद किसी अन्य देश ने पाकिस्तान की बात पर ध्यान नहीं दिया. परिणामतः कश्मीर समस्या के अंतर्राष्ट्रीयकरण की पाकिस्तान की नापाक कोशिश एकबार फिर नाकाम हो गई. दूसरा कारण, कि अभी जम्मू-कश्मीर में आई भीषण बाढ़ के दौरान जिस तरह से भारतीय सेना ने वहां के लोगों की हिफाजत के लिए अपना खून-पसीना एक कर दिया, उससे भारत और भारतीय सेना के प्रति वहां के लोगों के नज़रिए में  बदलाव भी होने लगा है. साथ ही लोग वहां के कट्टरपंथी नेताओं की हकीकत को भी इस बाढ़ में काफी हद तक समझ गए हैं. यह बात भी पाकिस्तान को नहीं पच रही. इसके अलावा देश में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने हैं, तो कहीं न कहीं उनमे खलल डालने के लिए आतंकियों को देश में घुसना भी पाकिस्तान की इस भीषण गोलीबारी का मकसद हो सकता है. साथ ही, भारत-अमेरिका के बीच आतंकवाद से मिलकर लड़ने के लिए बनी सहमति से भी पाकिस्तान को पीड़ा हो रही होगी. उपर्युक्त बातों से स्पष्ट होता है कि अंतर्राष्ट्रीय मंच से लेकर कश्मीर में तक, हर मोर्चे पर भारत से पीटने के कारण पाकिस्तान खीझ खाया हुआ है और इस गोलीबारी के जरिये वो अपनी इसी खीझ का इजहार कर रहा है. संभवतः वह भारत समेत विश्व को यह सन्देश देना चाहता है कि अगर उससे बात-चीत नहीं की जाएगी, तो वो ऐसे ही अशांति फैलाएगा. यह एक तरह से न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया को ब्लैकमेल करने जैसी नीति है. दरअसल, दिक्कत ये है कि भारत समेत दुनिया के किसी भी विकासशील व विकसित देश की हालत पाकिस्तान जैसी नहीं है कि वो बात-बात पर हथियार उठा ले. सभी देशों को अपने नागरिकों व देश की तरक्की आदि की चिंता है, जबकि पाकिस्तान को अपने नागरिकों, उनके हितों आदि की कोई परवाह नहीं है. वो तो बस युद्धोन्माद में जी रहा है. अगर ऐसा न होता तो विदेशों से मिलने वाले पैसे का बड़ा हिस्सा वो विकास पर खर्च करने की बजाय हथियार खरीदने-बनाने में क्यों खर्च करता ? यहाँ यह भी उल्लेखनीय होगा कि पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है. और उसके सुरक्षा हालात ऐसे हैं कि आतंकी जब, जहाँ चाहें हमला करके कब्ज़ा कर लेते हैं. ऐसे में यह अंदेशा कत्तई गलत नहीं है कि उसके परमाणु हथियार आतंकियों के हाथ लग सकते हैं. और अगर ऐसा हुआ तो फिर दुनिया की क्या हालत होगी यह कल्पना भी भयावह लगती है. कहने का अर्थ ये है कि आज पाकिस्तान न सिर्फ भारत बल्कि समूची दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है. ऐसा खतरा जिसको समय रहते अगर नहीं रोका गया तो वो दुनिया को आफत में डाल सकता है.
  भाजपा जब विपक्ष में थी तो पाकिस्तान के संघर्ष विराम के उल्लंघनों पर संप्रग सरकार को कड़ा रुख अख्तियार करने को कहती थी. लेकिन, अब जब वो सत्ता है तो पाकिस्तान पर उसकी नीतियां भी कमोबेश संप्रग जैसी ही हैं. संप्रग के समय भी पाकिस्तानी गोलीबारी का जवाब सीमा पर जवान देते थे और अब भी दे रहे हैं. नया कुछ नहीं है. भाजपा सरकार को नीतियों में नयापन लाना चाहिए. कई ऐसी चीजें हैं जिन्हें  सरकार कर सकती है. भारत सरकार को विश्व समुदाय को यह बात समझाने के लिए प्रयास करना चाहिए कि आज पाकिस्तान सिर्फ भारत के लिए नहीं विश्व समुदाय के लिए खतरनाक हो चुका है. ऐसे में उसको ठीक करने की जिम्मेदारी भी विश्व समुदाय की ही है. भारत की यह भी कोशिश होनी चाहिए कि दुनिया के विकासशील व शांतिप्रिय देश पाकिस्तान के खिलाफ एक हो सकें और उसे मिलने वाली आर्थिक मदद पर रोक लग सके. साथ ही, भारत को चाहिए कि वो खुद पाकिस्तान से निपटने के लिए एक ठोस नीति बनाए. ऐसी नीति जिसमे वैश्विक, आर्थिक, रणनीतिक, आदि तमाम बिन्दुओं पर पाकिस्तान को लेकर क्या और कैसा रुख रखना है, ये तय किया जाय. इन चीजों को करके ही पाकिस्तान पर अंकुश स्थापित किया जा सकता है और इनके लिए जरूरत है मजबूत इच्छाशक्ति की.

बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

दो लघु कथाएँ [बिंदिया पत्रिका में प्रकाशित]


  • पीयूष द्विवेदी भारत 

जिम्मेदारी  

महिमा रोज की ही तरह आज भी सुबह पाँच बजे अधपूरी नींद से उठ गई फिर घर की दैनिक सफाई के बाद बेड टी बनाकर अजय को जगाया वो चाय पीकर फिर सों गया अब महिमा  सोनू को जगाकर स्कूल के लिए तैयार करने लगी सोनू स्कूल चला गया  फिर उसने अजय के ऑफिस के कपड़े इस्त्री किए, उसका नाश्ता बनाया और उसे फिर जगाया अजय उठा और महिमा को इधर-उधर की दो चार हिदायते देते हुवे तैयार हुआ, और आखिर नौ बजे ऑफिस चला गया उसके जाने के बाद महिमा ने नहाकर थोड़ी पूजा की, फिर लंच तैयार किया और लंच लेकर सोनू के स्कूल गई, समय था बारह घर आकर खाना खाई और फिर किचन की साफ़-सफाई में लगी, ये सब करते समय हुवा दो अब उसने कुछ पल आराम करना चाहा कि तभी सोनू स्कूल से गया वो सोनू में लग गई उसकी स्कूल ड्रेस उतारी, फिर होमवर्क कराने लगी इन सबमे चार बज गए अब वो लेटी कुछ ही पल बीते कि अजय गया आते ही महिमा को जगाया बोला, महिमा उठो-उठो...मेरी वो पार्टी वाली शर्ट कहाँ हैं...जल्दी दो
शर्ट तो अलमारी में होगी, पर इस्त्री नही है अभी कर देती हूँ
क्या मतलबइस्त्री नही है! अजय चिल्लाया, तुम करती क्या हो दिन भर…? सोने से और इधर-उधर की बकवास से फुरसत मिलेगी तब करोगी इस्त्रीआदमी काम पे गया नही  कि तुम्हारी बकवास शुरू….और तो कोई चिंता है नहीजाने कब समझोगी अपनी जिम्मेदारी!कहते हुवे अजय चला गया
बिंदिया 

नपुंसक 

“अनिता, यार जल्दी करो, ऐसे तो दोपहर का शो भी निकल जाएगा ।” विजय अपनी पत्नी अनिता से बोला ।
“बस अब सब्जी कट ही गई, इसे गैस चढ़ाकर तैयार हो जाऊंगी, टेंसन नॉट, समय पर पहुँच जाएंगे ।” अनिता सब्जी काटते हुवे कह रही थी कि तभी, “आह...।” अचानक चाकू हाथ पर लग गया ।
“अरे अनिता! ध्यान कहाँ था..? छोड़ो ये सब्जी, चलो मै दवा लगा देता हूँ ।” विजय चौकता हुवा बोला, और फिर जख्म पर दवा लगाकर पट्टी किया । इसके बाद सब्जी काटकर गैस पर चढ़ा दिया । इधर अनिता तैयार होने की कोशिश में थी ।
“अरे यार, बोलना चाहिए न... हाथ में ताजे घाव की पट्टी है, फिर भी....” विजय बोल ही रहा था कि अनिता बीच में ही बोल पड़ी, “तैयार तो होना ही था, और अब तो हो भी गई, बस ये चूड़ियाँ....?”
“लाओ, आज अपनी प्यारी बीवी को मै अपने हाथों से चूड़ियाँ पहनाऊंगा..।” कहके, विजय चूड़ी पहनाने लगा ।
“विजय...कहाँ हो भाई..?” संजय, सुनिता के साथ कमरे में प्रवेश करते हुवे बोला, “अरे ये क्या कर रहे हो..?” चूड़ी पहनाते देख थोड़ा चौका और फिर बोला, “खैर । ये लो तुम्हारी गाड़ी की चाभी, हमारी ट्रिप हो गई..। अच्छा, बहुत थक गए हैं, अभी चलते हैं ।” कहकर, संजय सुनिता को खींचते हुवे चल दिया ।
“देखा! कितना प्यार करते हैं विजय भाई अनिता से, और एक तुम...” सुनिता बाहर आकर संजय से बोली।
“चुप रहो...प्यार है कि जोरू की गुलामी....नपुंसक कहीं का!” कहते हुवे संजय का सीना गर्व से तन गया ।