- पीयूष द्विवेदी भारत
जिम्मेदारी
महिमा रोज की ही तरह आज भी सुबह पाँच बजे अधपूरी नींद से उठ गई। फिर घर की दैनिक सफाई के बाद बेड टी बनाकर अजय को जगाया। वो चाय पीकर फिर सों गया। अब महिमा सोनू को जगाकर स्कूल के लिए तैयार करने लगी। सोनू स्कूल चला गया। फिर उसने अजय के ऑफिस के कपड़े इस्त्री किए, उसका नाश्ता बनाया और उसे फिर जगाया। अजय उठा और महिमा को इधर-उधर की दो चार हिदायते देते हुवे तैयार हुआ, और आखिर नौ बजे ऑफिस चला गया। उसके जाने के बाद महिमा ने नहाकर थोड़ी पूजा की, फिर लंच तैयार किया और लंच लेकर सोनू के स्कूल गई, समय था बारह। घर आकर खाना खाई और फिर किचन की साफ़-सफाई में लगी, ये सब करते समय हुवा दो। अब उसने कुछ पल आराम करना चाहा कि तभी सोनू स्कूल से आ गया। वो सोनू में लग गई। उसकी स्कूल ड्रेस उतारी, फिर होमवर्क कराने लगी। इन सबमे चार बज गए। अब वो लेटी। कुछ ही पल बीते कि अजय आ गया। आते ही महिमा को जगाया। बोला, “महिमा उठो-उठो...मेरी वो पार्टी वाली शर्ट कहाँ हैं...जल्दी दो ।”
“शर्ट तो अलमारी में होगी, पर इस्त्री नही है। अभी कर देती हूँ ।”
“क्या मतलब…इस्त्री नही है!” अजय चिल्लाया, “तुम करती क्या हो दिन भर…? सोने से और इधर-उधर की बकवास से फुरसत मिलेगी तब न करोगी इस्त्री…आदमी काम पे गया नही कि तुम्हारी बकवास शुरू….और तो कोई चिंता है नही…जाने कब समझोगी अपनी जिम्मेदारी!” कहते हुवे अजय चला गया ।बिंदिया |
नपुंसक
“अनिता, यार जल्दी करो, ऐसे तो दोपहर का शो भी निकल जाएगा ।” विजय अपनी पत्नी अनिता से बोला ।
“बस अब सब्जी कट ही गई, इसे गैस चढ़ाकर तैयार हो जाऊंगी, टेंसन नॉट, समय पर पहुँच जाएंगे ।” अनिता सब्जी काटते हुवे कह रही थी कि तभी, “आह...।” अचानक चाकू हाथ पर लग गया ।
“अरे अनिता! ध्यान कहाँ था..? छोड़ो ये सब्जी, चलो मै दवा लगा देता हूँ ।” विजय चौकता हुवा बोला, और फिर जख्म पर दवा लगाकर पट्टी किया । इसके बाद सब्जी काटकर गैस पर चढ़ा दिया । इधर अनिता तैयार होने की कोशिश में थी ।
“अरे यार, बोलना चाहिए न... हाथ में ताजे घाव की पट्टी है, फिर भी....” विजय बोल ही रहा था कि अनिता बीच में ही बोल पड़ी, “तैयार तो होना ही था, और अब तो हो भी गई, बस ये चूड़ियाँ....?”
“लाओ, आज अपनी प्यारी बीवी को मै अपने हाथों से चूड़ियाँ पहनाऊंगा..।” कहके, विजय चूड़ी पहनाने लगा ।
“विजय...कहाँ हो भाई..?” संजय, सुनिता के साथ कमरे में प्रवेश करते हुवे बोला, “अरे ये क्या कर रहे हो..?” चूड़ी पहनाते देख थोड़ा चौका और फिर बोला, “खैर । ये लो तुम्हारी गाड़ी की चाभी, हमारी ट्रिप हो गई..। अच्छा, बहुत थक गए हैं, अभी चलते हैं ।” कहकर, संजय सुनिता को खींचते हुवे चल दिया ।
“देखा! कितना प्यार करते हैं विजय भाई अनिता से, और एक तुम...” सुनिता बाहर आकर संजय से बोली।
“चुप रहो...प्यार है कि जोरू की गुलामी....नपुंसक कहीं का!” कहते हुवे संजय का सीना गर्व से तन गया ।
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