शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

अवसरवादियों का गुट [दैनिक जागरण राष्ट्रीय में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

दैनिक जागरण राष्ट्रीय 
अब जबकि लोकसभा चुनाव में बस कुछ ही महीने शेष रह गए हैं, ऐसे में हमारे राजनीतिक गलियारे में जोड़-तोड़ के खेल होना तो वर्तमान राजनीति का  स्वाभाविक चरित्र ही है ! जैसा कि अब लगभग साफ़ हो चुका है कि इस लोकसभा चुनाव मोदी और राहुल के बीच की टक्कर है ! पर इसी बीच तमाम छोटे-बड़े क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने साम्प्रदायिक शक्तियों की खिलाफत के नाम पर मंच साझा करके आम चुनाव के मद्देनज़र तीसरे मोर्चे के संकेत भी दे दिए हैं ! गौरतलब है कि अभी हाल ही में वाम दलों द्वारा साम्प्रदायिकता के खिलाफ एकजुट होने के लिए बुलाए गए एक सम्मेलन में डेढ़ दर्जन के आसपास छोटे-बड़े क्षेत्रीय दलों द्वारा शिरकत की गई ! इनमे सपा, जेडीयू, अन्नाद्रमुक, झाविमी, बीजद, अगप आदि के साथ-साथ केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस की सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी राकापा भी थी ! अब ऊपरी तौर पर भले ही इन दलों द्वारा इस सम्मेलन को साम्प्रदायिकता के विरुद्ध एकजुटता का नाम देकर तीसरे मोर्चे की संभावना से इंकार किया जा रहा हो ! पर साम्प्रदायिकता के विरुद्ध हुए इस सम्मेलन के कुछ बिंदुओं तथा वक्तव्यों पर अगर एक नज़र डालें तो ये संभावना स्पष्टतः परिलक्षित होती है कि ये सम्मेलन आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र एक तीसरी ताकत के गठन की ही पृष्ठभूमि है ! गौर करना होगा कि सम्मेलन के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने तो एकदम खुले तौर पर साम्प्रदायिकता के विरुद्ध इस एकजुटता को चुनावी एकजुटता में बदलने की बात तक कह दी ! सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने भी इशारों-इशारों में ही तीसरे मोर्चे की संभावना जता दी ! उन्होंने कहा कि यहाँ मौजूद सभी दलों के नेता अगर इकट्ठे हो जाएँ तो सांप्रदायिक ताकते देश में कहीं अपना सिर नही उठा पाएंगी ! साथ ही मुलायम ने ये भरोसा भी दिया कि जहाँ भी ये सभी दल एकसाथ खड़े होंगे, वे उनका साथ देंगे ! इसके अतिरिक्त यहाँ यह भी उल्लेखनीय होगा कि कहने को तो ये सम्मेलन सांप्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध गैरकांग्रेस और गैरभाजपा दलों की एकजुटता के लिए था, पर आखिरश ये सम्मेलन भाजपा और मोदी के विरुद्ध राजनीतिक एकजुटता का पर्याय बनकर रह गया ! किसी भी दल की तरफ से केन्द्र की सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ कुछ नही बोला गया ! ये सर्वस्वीकार्य है कि आज जहाँ केन्द्र की कांग्रेसनीत यूपीए-२ सरकार के खिलाफ जनता में सत्ता-विरोधी रुझान एकदम प्रबल है, वहीँ भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी  की  देश में भीषण लहर है ! लिहाजा पूरी संभावना है कि आम चुनाव २०१४ में कांग्रेस की हालत भाजपा के मुकाबले काफी कमजोर रहने वाली है और भाजपा नम्बर एक की पार्टी बनकर उभरेगी ! ऐसे में संभावित तीसरे मोर्चे के इन दलों का कांग्रेस के खिलाफ कुछ नही बोलना लगभग यही संकेत देता है कि आम चुनाव के बाद अगर भाजपा या कांग्रेस की इतनी सीटें नही आती हैं कि वो सरकार बना सकें अथवा भाजपा के बाद नम्बर दो पर तीसरा मोर्चा रहता है तो इस जोड़-घटाव की स्थिति में इन दलों को साम्प्रदायिक शक्तियों के विरोध के नाम पर कांग्रेस का समर्थन लेने में कोई हिचक या परेशानी नही होगी ! लिहाजा इन सब बातों को देखते हुए अब ये समझना बेहद आसान है कि ये सम्मेलन आगामी आम चुनाव के मद्देनज़र एक तीसरी ताकत का ही संकेत है जो कि इसबार हवाओं के रुख को भांपते हुए एकदम पुख्ता रणनीति के साथ मैदान में उतरने का मन बना चुकी है ! हाँ, इतना जरूर दिलचस्प होगा कि ये तीसरा मोर्चा चुनाव से पहले हमारे सामने आता है या चुनाव के बाद सबको चौकाता है !
   इतिहास गवाह है कि प्रायः आम चुनावों के समय जितनी तीव्रता और ऊर्जा के साथ तीसरा मोर्चा सक्रिय हो उठता है, चुनाव बाद उतनी ही तीव्रता के साथ विफल होकर शांत भी हो जाता है ! हम देख चुके हैं कि हमारे संसदीय इतिहास में दो बार ऐसे मौके आए हैं जब केन्द्र में तीसरे मोर्चे की सरकार बनी, पर यह भी एक सच है कि दोनों ही बार अपने घटक दलों के व्यक्तिगत हितों तथा तमाम जोड़-घटाव आदि के कारण ये सरकार अपना कार्यकाल पूरा नही कर सकी ! इसी क्रम में भारतीय राजनीति में तीसरे मोर्चे के सर्वप्रथम उद्भव पर एक  सरसरी निगाह डालें तो क्षेत्रीय स्तर पर तो तीसरा मोर्चा सत्तर के दशक में ही सक्रिय हो गया था जिसने कि बंगाल में सन ६७ से ७१ तक शासन चलाया ! पर राष्ट्रीय राजनीति में तीसरे मोर्चे के उद्भव का मुख्य बिंदु नब्बे के दशक के अंतिम वर्षों में है जब राष्ट्रीय मोर्चा के तहत देश में बड़ा राजनीतिक परिवर्तन हुआ और जनता पार्टी की सरकार बनी ! हालाकि ये सरकार अपने घटक दलों की दलीय महत्वाकांक्षा के कारण अपना कार्यकाल पूरा नही कर सकी ! बहरहाल, आज जब एकबार फिर लोकसभा चुनाव करीब है और लड़ाई एकदम सीधी मोदी बनाम राहुल हो रही है ! ऐसे में इस संभावित तीसरे मोर्चे से आम चुनाव में क्या प्रभाव पड़ेगा, ये विचारणीय है ! वैसे एक बात तो पूरी तरह से साफ़ है कि तीसरा मोर्चा अभी बने या चुनाव के बाद बने, पर ये भाजपा के लिए संकटकारी ही सिद्ध होगा ! कारण कि इस संभावित तीसरे मोर्चे के घटक दलों का जो इतिहास रहा है वो अधिकाधिक रूप से कांग्रेस समर्थक और भाजपा विरोधी ही रहा है ! साथ ही हर समय के तीसरे मोर्चे का इतिहास भी निरपवाद रूप से कुछ ऐसा ही है ! लिहाजा ये संभावना प्रबल है कि अगर भाजपा या कांग्रेस दोनों ही सरकार बनाने लायक सीटों से वंचित रह जाते हैं जिसकी पूरी संभावना है, तो इस संभावित तीसरे मोर्चे के इन सभी दलों द्वारा या तो कांग्रेस को सहयोग दिया जाएगा या फिर उससे सहयोग लिया जाएगा ! बहरहाल, राजनीति मे क्षण-क्षण में समीकरण बदलते हैं, अतः चुनाव के परिणाम से पहले पूर्णतः कुछ भी कहना जल्दबाजी ही होगी !

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