बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

सीबीआई पर सवाल उठाना गलत [दैनिक जागरण राष्ट्रीय में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

दैनिक जागरण राष्ट्रीय 
कोल ब्लाक आवंटन मामले की जाँच कर रही सीबीआई द्वारा आदित्य बिड़ला समूह के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला और पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख पर प्राथमिकी क्या दर्ज की गई कि कारपोरेट जगत से लेकर हमारे सियासी गलियारे तक में हंगामा मच गया है ! पीसी पारेख को लेकर तो कुछ नही हुआ, पर बिड़ला को लेकर हर तरफ हडकंप मचा हुआ है ! फिर चाहें वो बड़े-बड़े उद्योगपति हों या हमारे सियासी हुक्मरान, हरकोई सीबीआई की इस कारवाई का विरोध व इसके लिए सीबीआई की आलोचना कर रहा है ! दरअसल ये पूरा मामला कुछ यूँ है कि सन २००५ में कोल ब्लोक आवंटन के समय गठित स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा सम्बंधित कोल ब्लाक तालबिरा को एक सरकारी कंपनी को देने का निर्णय लिया गया था, पर बाद में प्रधानमंत्री ने कमेटी के निर्णय को बदलते हुए ये कोल ब्लोक कुमार मंगलम बिड़ला की कंपनी हिंडाल्को को दे दिया ! वैसे, इस मामले में उद्योगपतियों द्वारा सीबीआई की कारवाई का विरोध तो एक हद तक समझ भी आता है कि वो अपने वर्ग के एक व्यक्ति का समर्थन कर रहे हैं ! पर यहाँ समझ न आने वाली बात ये है कि इस मामले को लेकर हमारी केन्द्र सरकार इतनी परेशान क्यों है कि खुद प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से तक बयान जारी कर सारी जिम्मेदारी अपने पर ली जा रही है ! पीएमओ की तरफ से कहा गया है कि कुमार मंगलम की कंपनी हिंडाल्को को कोल ब्लाक आवंटित करना एकदम सही फैसला था और इसमें कुछ भी गलत नही है ! हालाकि पीएमओ की तरफ से ये तो स्वीकार गया है कि हिंडाल्को को कोल ब्लोक स्क्रीनिंग कमेटी के फैसले को बदल के दिया गया, पर साथ ही यह भी कहा गया है कि इसमे कहीं, किसी  नियम का उल्लंघन नही हुआ ! पीएमओ की तरफ से यह भी कहा गया है कि उस समय कोयला आवंटन में अंतिम फैसला करने का अधिकार प्रधानमंत्री के पास था और उन्होंने सोच-समझकर कोयला ब्लोक हिंडाल्को को देने का निर्णय लिया ! यहाँ थोड़ा विचार करें तो जैसा कि पीएमओ द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने सोच-समझकर कोल ब्लाक आवंटित किए थे ! ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर इस आवंटन में कुछ गलत हुआ है तो क्या इसमें सबसे पहले स्वयं प्रधानमंत्री की जवाबदेही नही बनती हैं ? या उनका दोष नही बनता है ? नैतिकता तो यही कहती है कि प्रधानमंत्री स्वयं आगे आकर इन सवालों का निराकरण करें ! बहरहाल, पीएमओ के अतिरिक्त सरकार के मंत्री भी कुमार मंगलम पर प्राथमिकी दर्ज करने के कारण सीबीआई की आलोचना ही कर रहे हैं ! गौरतलब है कि सरकार के पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली द्वारा इस मामले में सीबीआई की तुलना औरंगजेब के शासन से तक कर दी गई है ! इस विषय में सरकार का तर्क है कि सीबीआई द्वारा इस तरह से किसी भी उद्योगपति पर एफआईआर दर्ज करने से उद्योगपतियों के मन में यहाँ अपनी असुरक्षा का भाव आएगा जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए घातक होगा ! उद्योगपतियों की ओर से भी कुछ ऐसा ही तर्क दिया जा रहा है ! उनका कहना है कि अगर उद्योगपतियों के साथ इस तरह का व्यवहार होगा तो कोई भी बाहरी निवेशक भारतीय बाजारों में पैसा नही लगाएगा ! ऐसे में प्रश्न ये है कि अगर कोई उद्योगपति कुछ गलत करता है तो क्या उसके खिलाफ सिर्फ इसलिए कार्रवाई न की जाए क्योंकि इससे हमारी अर्थव्यवस्था संकट में आ सकती है ! कुल मिलाकर कुमार मंगलम बिड़ला पर हाथ डालकर सीबीआई फिलहाल चौतरफा रूप से घिर चुकी है ! अब सवाल ये उठता है कि क्या एक जांच एजेंसी को इतनी भी आजादी नही कि वो जांच के दौरान सबूत के आधार पर किसी व्यक्ति पर प्राथमिकी तक दर्ज कर सके ?
  हम ये देखते आए हैं कि कोरपोरेट जगत के व्यक्तियों पर जब भी कोई आरोप लगता है तो सरकार प्रायः उनके बचाव में उतर पड़ती है ! कई कारपोरेट दिग्गजों के साथ तो सरकार के संबंध तो प्रत्यक्ष भी हो चुके हैं ! तिसपर अबकि मामला तो अन्यों की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से बेहतर बिड़ला समूह के चेयरमैन से जुड़ा है ! ऐसे में बिड़ला के बचाव में सरकार का कमर कसकर उतर पड़ना आश्चर्यजनक तो नही है, पर ये सोचने पर अवश्य विवश करता है कि आज हमारा लोकतंत्र किस दिशा में जा रहा है ? लोकतंत्र में सरकार जनता की और जनता के लिए होती है, पर क्या हमारी सरकार कारपोरेट घरानों के लिए काम कर रही हो ? वर्तमान कुमार मंगलम बिड़ला पर सीबीआई प्राथमिकी दर्ज किए जाने पर उद्योग जगत समेत हमारे सियासी आकाओं के द्वारा जो बयान आए हैं उन्हें देखते हुए यही कहा जा सकता है कि आज हमारे लिए आर्थिक उन्नति न्याय से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो चुकी है जो कि हमारे भावी लोकतंत्र के लिए अत्यंत भयानक है !     

  लोकतंत्र की सुदृढता के लिए उसके एक महत्वपूर्ण स्तंभ न्यायपालिका का सशक्त और प्रभावी होना अत्यंत महत्वपूर्ण है और न्यायपालिका तभी सुदृढ़ होगी जब उसकी जाँच एजेंसियां बिना किसी रोकटोक के स्वतंत्र रूप से अपना कार्य कर सकेंगी ! अतः आज ये आवश्यक है कि हमारे सियासी आका और उद्योगपति कुमार मंगलम मामले में सीबीआई की जांच में कोई हस्तक्षेप न करते हुए उसे जांच में सहयोग दें ! साथ ही इस बात से भयभीत होने की न तो कोई आवश्यकता है और न ही कोई औचित्य कि किसी उद्योगपति पर कानूनी कार्रवाई होने से देश की अर्थव्यवस्था डवाडोल हो जाएगी ! और अगर देश की अर्थव्यवस्था पर इसका कुछ दुष्प्रभाव पड़ता है तो भी इसके लिए न्याय से कोई समझौता नही किया जा सकता ! अंततः ध्यान रहे कि अगर कुमार मंगलम बिड़ला निर्दोष हैं तो उन्हें डरने की जरूरत नही है, वो इस जांच प्रक्रिया में तपकर खरा सोना होके निकलेंगे ! 

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