शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

वैज्ञानिक प्रगति की बाधा [राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

राष्ट्रीय सहारा 
अभी हाल ही में भारत सरकार द्वारा वैज्ञानिक सीएनआर राव को भारत रत्न देने की घोषणा की गई ! इस घोषणा के बाद वैज्ञानिक क्षेत्र में कम निवेश से नाराज वैज्ञानिक राव ने कहा था, “हमारे नेता मूर्ख हैं उन्होंने हमें बहुत कम दिया, फिर भी हमने उससे बहुत अधिक करके दिखाया !” अगर विचार करें तो वैज्ञानिक राव की ये बात काफी हद तक सही ही प्रतीत होती है ! क्योंकि इसमें कोई संदेह नही कि अन्य मुल्कों की अपेक्षा वैज्ञानिक क्षेत्र में भारत का निवेश बेहद कम है ! एक आंकड़े के मुताबिक शोध और विकास पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का  खर्च करने वाले शीर्ष दस देशों की सूची में भारत का स्थान आठवा है ! अपने सकल घरेलू उत्पाद का २.७० फिसदी शोध और विकास पर खर्च करने के साथ अमेरिका इस सूची में पहले, तो वहीँ १.९७ फिसदी खर्च के साथ चीन दूसरे पायदान पर मौजूद है ! जबकि अपने सकल घरेलू उत्पाद का मात्र ०.९० फिसदी वैज्ञानिक शोध आदि पर खर्च करने के कारण भारत को इस सूची में आठवा स्थान दिया गया है ! यहाँ ये भी गौर करना होगा कि वैज्ञानिक क्षेत्र में निजी कंपनियों का निवेश सरकार से कहीं ज्यादा है ! एक आंकड़े की माने तो सन २००९-१० के वित्तीय वर्ष में वैज्ञानिक क्षेत्र में जहाँ निजी निवेश ६६९४ करोड़ रूपये था, वहीँ सरकारी निवेश मात्र १८०९ करोड़ रूपये था ! सन २०११-१२ में ये निजी निवेश बढ़कर ९६५२ करोड़ हो गया, जबकि सरकारी निवेश बहुत थोड़ी बढोत्तरी के साथ २४५३ करोड़ रहा ! इन आंकड़ों को देखते हुए सवाल ये उठता है कि आज जब वैज्ञानिक उन्नति किसी भी राष्ट्र की समूची उन्नति का आधार बन चुकी है, तब आखिर किस कारण इस क्षेत्र में हमारा निवेश इतना कम है ? इस सवाल का हमारे सियासी हुक्मरानों के पास जो प्रमुख उत्तर होता है वो ये कि देश की आर्थिक दशा को देखते हुए विज्ञान के क्षेत्र में निवेश के लिए इतना ही धन दिया जा सकता है ! बेशक ये बात सही है कि अमेरिका, चीन आदि की अपेक्षा अभी भारत की आर्थिक दशा काफी मजबूत नही है ! पर ये इतनी भी कमजोर  नही है कि कुछ गैरजरूरी योजनाओं व खर्चों में कटौती के द्वारा वैज्ञानिक क्षेत्र में निवेश के लिए सकल घरेलू उत्पाद का एक से डेढ़ फिसदी भी नही दिया जा सके ! अगर गौर करें तो अभी सरकार द्वारा संचालित मनरेगा, मिड डे मिल आदि  भारी-भरकम खर्च वाली तमाम ऐसी योजनाएं हैं जो व्यवस्थाजन्य खामियों के कारण जनहित करने की बजाय सम्बंधित अधिकारियों के लिए धन उगाही का माध्यम बन चुकी हैं ! पर बावजूद इसके उन्हें बदस्तूर चलाया जा रहा है ! अतः अगर सरकार चाहे तो इन योजनाओं पर स्थायी अथवा अस्थायी विराम लगाकर इनके पैसे को वैज्ञानिक क्षेत्र में निवेश कर सकती है ! इसके अतिरिक्त विज्ञान में निवेश बढ़ाने के और भी कई उपाय हो सकते हैं ! पर असल जरूरत है तो निवेश बढ़ाने के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की, जिसका कि हमारे राजनीतिक महकमे में काफी हद तक अभाव ही दिखता है ! अगर विचार करें तो वैज्ञानिक क्षेत्र में निवेश को लेकर हमारे राजनीतिक महकमे की उदासीनता का मुख्य कारण यही प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र में निवेश से हमारे सियासी हुक्मरानों को तत्काल कोई बड़ा सियासी लाभ नही होता है ! कारण कि वैज्ञानिक निवेश दूरगामी होते हैं और उनकी लाभ-हानि का तुरंत प्रभाव नही दिखता है ! लिहाजा इस क्षेत्र में निवेश से हमारे नेताओं को तत्काल कोई सियासी लाभ होने की संभावना न के बराबर होती है ! बस इसी कारण हमारे नेताओं द्वारा वैज्ञानिक क्षेत्र की बजाय उन क्षेत्रों में निवेश को अधिक प्राथमिकता दी जाती है जिनमें निवेश का तत्काल प्रभाव दिखता हो ! साफ़ है कि यहाँ मामला आर्थिक से कहीं ज्यादा राजनीतिक है !

  वैसे भारत के विज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ने के लिए सिर्फ निवेश की कमी ही कारण नही है ! बल्कि निवेश के बाद तमाम ऐसी नीतिगत खामियां भी हैं जो हमें विज्ञान के क्षेत्र में लगातार पीछे ले जा रही हैं ! बेशक वैज्ञानिक क्षेत्र में हमारा निवेश काफी कम है, पर वो जितना भी है उसे कैसे खर्च किया जाता है ये अत्यंत  महत्वपूर्ण है ! आज जहाँ समूची दुनिया द्वारा वैज्ञानिक निवेश का सर्वाधिक ३५  फिसदी हिस्सा आईटी एवं इलेक्ट्रोनिक्स के शोध व विकास पर खर्च किया जाता है, वहीँ भारत अपने वैज्ञानिक निवेश का सर्वाधिक ३८ फिसदी हिस्सा दवाईयों के शोध, परीक्षण व विकास आदि पर व्यय करता है ! वैसे इस विषय में ये तर्क हो सकता है कि हर देश की अपनी-अपनी प्राथमिकताएँ होती हैं, पर ये भी एक सत्य है कि आज के इस तेज-तरार्र समय में राष्ट्र के तीव्र विकास के लिए आईटी क्षेत्रों का विकास सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो गया है ! ऐसा कत्तई नही है कि दवाओं के क्षेत्र में व्यय गलत है, पर प्राथमिकता के लिहाज से इसे सबसे पहले रखने को आज के दौर के हिसाब से सही नीति भी नही कहा जा सकता ! कुछ समस्या हमारे राजनेताओं की सोच की भी है ! उदाहरणार्थ अभी हाल ही में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बेहद कम खर्च वाले इसरो के मंगलयान पर उन्हें बधाइयाँ तो मिलीं, पर कुछ राजनेताओं द्वारा इसे ‘अत्यधिक महंगा’ बताने जैसी  टिप्पणियां भी की गईं ! इसके अतिरिक्त अगर आपको याद हो तो हमारे राजनीतिक तबके से ऐसी ही कुछ टिप्पणियां इसरो के ‘चंद्रयान’ मिशन के समय भी आई थीं ! एक तो नेताओं द्वारा वैज्ञानिक क्षेत्र के लिए बेहद कम धन दिया जाता है, उतने में भी अगर हमारे वैज्ञानिक कुछ बेहतर करते हैं, तो अगर उन्हें ऐसी टिप्पणियां सुनने को मिलें तो ये उनमे हताशा का ही संचार करेगा ! बहरहाल, वैज्ञानिक प्रगति के लिए निश्चित ही आज हमारी प्रथम आवश्यकता यही है कि हमारे सियासी हुक्मरान इस क्षेत्र के प्रति अपना सौतेला नजरिया बदलते हुए इसमे अधिकाधिक निवेश बढ़ाने का प्रयास करें ! साथ ही, उस निवेश के उपयोग के लिए पुख्ता नीतियां व उचित प्राथमिकताएँ भी तय की जाएँ ! आखिर में, ऐसा कत्तई नही है कि इन बातों को अपनाने के बाद हमारी वैज्ञानिक प्रगति बहुत तेज हो जाएगी ! पर इतना जरूर है कि अगर इन सभी बातों का सही ढंग से क्रियान्वयन होता है तो धीरे-धीरे ही सही हमारी वैज्ञानिक प्रगति सही दिशा में आगे बढ़ने लगेगी ! 

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