शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

राजनीति में युग परिवर्तन लाती 'आप' [डीएनए और आईनेक्स्ट इंदौर में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए में प्रकाशित  
वाकई में ये अत्यंत आश्चर्यजनक है कि राजनीति के अखाड़े में महज एक वर्ष पहले प्रवेश करने वाली अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) आज दिल्ली की सल्तनत पर काबिज हो चुकी है ! राजनीति में प्रवेश के बाद से ही अरविन्द केजरीवाल द्वारा लगातार ये कहा जाता रहा है कि कांग्रेस-भाजपा आदि राजनीतिक दलों को हम राजनीति करना सिखाएंगे ! आज उनकी ये बात काफी हद तक सही होती दिख रही है ! हालत ये है कि दिल्ली चुनाव से पहले जिस पार्टी का कांग्रेस-भाजपा द्वारा मजाक उड़ाया जा रहा था, आज उसी आम आदमी पार्टी से कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दल सैद्धांतिक से लिए व्यावहारिक तौर पर तक सीख लेते हुए दिख रहे हैं ! कांग्रेस की तरफ से तो खुद राहुल गाँधी द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली भीषण हार के बाद प्रत्यक्ष रूप से ये स्वीकारा जा चुका है कि कांग्रेस को ‘आप’ से सीखना चाहिए ! इसके अलावा दिल्ली में केजरीवाल सरकार के सस्ती बिजली दिए जाने के निर्णय से प्रभावित महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार द्वारा भी बिजली के दामों में कटौती की बात की जाने लगी है ! अब रही बात भाजपा की तो अरविन्द केजरीवाल की देखादेखी राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा भी सरकारी बंगला लेने से मना कर दिया गया तथा अपनी सुरक्षा भी आधी कर दी गई ! इतने के बाद भी अब भले ही कांग्रेस-भाजपा में से कोई भी खुद में आ रहे इन परिवर्तनों के लिए ‘आप’ का असर मानने को तैयार नही है ! पर इसमे कोई संदेह नही है कि देश के नम्बर एक और दो के इन दलों में अचानक ये जो परिवर्तन आ रहे हैं वो हो न हो ‘आप’ के डर का असर है !
आईनेक्स्ट 
   ये सर्वविदित है कि ‘आप’ का जन्म अन्ना आंदोलन की कोख से हुआ है ! अगर ‘आप’ के बनने से लेकर दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने और फिर सत्ता की दहलीज पर पहुँचने तक के सफर पर एक नज़र डालें तो साफ़-साफ़ समझा जा  सकता है कि ‘आप’ पूरी तरह से राजनीतिक दलों द्वारा मचाए गए भ्रष्टाचार की खिलाफत और अपने जनसरोकारी वादों की बुनियाद पर खड़ी हुई पार्टी है ! आप  की इस आकस्मिक सफलता का मुख्य कारण ये है कि इसने सियासी हुक्मरानों के सत्ताजन्य अहंकार और विलासिता के कारण जन और तंत्र के बीच उपजी खाई को न सिर्फ पाटा बल्कि खुद को सीधे तौर पर जनता से जोड़ा भी ! यहाँ समझना होगा कि दिल्ली में आप की ये सफलता आकस्मिक अवश्य है, पर अनायास नही है ! इसके पीछे जमीनी तौर पर आप द्वारा किया गया भारी संघर्ष है जिसमे उसे दिल्ली के सत्ता विरोधी रुझान का भी कुछ लाभ मिल गया ! व्यापक जनसंपर्क और जनहितैषी मुद्दों के प्रति सजगता वो प्रमुख कारण हैं जिन्होंने राजनीतिक दृष्टिकोण से एक वर्ष के बेहद कम समय में दिल्ली की जनता में आप के प्रति इतना भरोसा जगा दिया कि वो दिल्ली में नम्बर दो की पार्टी बन गई ! इन सब बातो के अलावा अरविन्द केजरीवाल जैसा ईमानदार, बेदाग़ और निडर छवि वाला नेतृत्व भी आप के लिए सोने पर सुहागा का ही काम कर रहा है ! आप दिल्ली में अपने पाँव लगभग जमा चुकी है और धीरे-धीरे देश के अन्य हिस्सों में भी उसका विस्तार हो रहा है ! हालिया हालातों को देखते हुए ये कह सकते हैं कि अगर आप इसी गति से बढ़ती रही तो आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-भाजपा के बाद निश्चित ही वो नम्बर तीन की पार्टी बनकर सामने आएगी !
  ऐसा कत्तई नही है कि अपने उद्भव से लेकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने तक आप की राह में मुश्किलें नही आईं ! अगर नज़र डालें तो हम देखते हैं कि इस पूरे सफर में कांग्रेस-भाजपा आदि पारम्परिक दलों द्वारा आप के सामने तमाम तरह की मुश्किलें खड़ी करने की कोशिश की गई ! पर यहाँ अरविन्द केजरीवाल को दाद देनी पड़ेगी कि सभी मुश्किलों के बावजूद उन्होंने न सिर्फ ‘आप’ को सम्हाला बल्कि हर मुश्किल का समयानुसार माकूल जवाब भी दिया ! चुनाव से पहले तक विपक्षियों द्वारा आप के विषय में ‘बरसाती मेढ़क’ जैसी तरह-तरह की फब्तियां कसी गईं ! उसके बाद जब वो २८ सीटों के साथ नम्बर दो की पार्टी बन गई तो विपक्षी दलों द्वारा उसके वादों को अव्यावहारिक बताया गया ! कांग्रेस-भाजपा की तरफ से कहा गया कि आप ने बिजली-पानी से सम्बंधित जिन वादों के दम पर २८ सीटें जीती हैं, उन्हें पूरा करना संभव नही है ! खैर ! जनता की राय से कांग्रेस से अपनी शर्तों पर समर्थन के साथ आप ने सरकार बनाई और सरकार बनते ही सबसे पहले उसके द्वारा मुफ्त पानी और सस्ती बिजली देने का फैसला भी ले लिया गया ! इन बातो को देखते हुए साफ़ है कि हमारे पारम्परिक दलों द्वारा आप को रोकने की लाख कोशिशों के बावजूद भी अपने नेक इरादों के कारण वो सभी मुश्किलों और चुनौतियों को पार करते हुए दिल्ली की सियासत पर काबिज हो गई ! 

  सीधे शब्दों में कहें तो आप का अबतक का ये पूरा राजनीतिक सफर जितना छोटा है, उतना ही विलक्षण भी है ! अब अरविन्द केजरीवाल दिल्ली की व्यवस्था में कितना बदलाव ला पाएंगे व जनता से किए अपने वादों पर कितना खरा उतरेंगे, ये तो आने वाले महीनों में धीरे-धीरे साफ़ हो ही जाएगा ! पर फ़िलहाल तो यही कह सकते हैं कि नेताओं के भ्रष्टाचार व उनके दोहरे चरित्रों के सामने आने के कारण आज जब जनता में नेता व सरकार के प्रति गहरा अविश्वास घर करता जा रहा है ! ऐसे में आप की ये जनसरोकारी राजनीति व्यवस्था और सरकार के प्रति जनविश्वास बहाली की तरफ एक बड़ा कदम तो है ही, भारतीय राजनीति में एक नए युग का सुसंकेत भी है !

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