बुधवार, 8 जनवरी 2014

भाजपा के लिए दिल्ली अभी दूर की कौड़ी [अमर उजाला कॉम्पैक्ट में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

अमर उजाला 
अभी हाल ही में संपन्न हुए पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों ने आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र एक बात तो पक्के तौर पर स्पष्ट कर दी कि अभी देश में कांग्रेस विरोधी लहर अपने पूरे उफान पर है ! पाँच में से चार राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया ! मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तो कांग्रेस को मिले नही, उल्टे दिल्ली और राजस्थान भी हाथ से चले गए ! यहाँ तक कि लगातार तीन बार से दिल्ली की कुर्सी पर जमी कांग्रेस की शीला सरकार ४३ से सीधे ८ सीटों पर आ गई ! जाहिर है कि ये सारी बातें आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा का पलड़ा भारी रहने के संकेत देती हैं ! पर अगर आगामी लोकसभा चुनाव के भावी समीकरणों पर थोड़ा विचार करें तो स्पष्ट होता है कि देश में लाख कांग्रेसी विरोधी और मोदी पक्षीय लहर होने के बावजूद भी भाजपा के लिए केन्द्र तक पहुँचने की राह आसान नही रहने वाली ! इसमे तो कोई संदेह नही कि भाजपा ये लोकसभा चुनाव मुख्यतः मोदी की लोकप्रियता और कुछ-कुछ कांग्रेस विरोधी लहर के भरोसे लड़ रही है ! पर इन चीजों के बावजूद ये भी लगभग तय मानिए कि लोकसभा चुनाव में मोदी की लोकप्रियता के दम पर भाजपा नम्बर एक पार्टी भले बन जाए, पर पूर्ण बहुमत उसे भी नही मिलेगा ! यानि कि चाहें जिसकी बने, सरकार तो गठबंधन वाली ही बनेगी ! अब बात जहाँ तक गठबंधन सरकार की है तो इतिहास गवाह है कि इस मोर्चे पर कांग्रेस हमेशा भाजपा पर बीस ही रही है ! कांग्रेस का यूपीए गठबंधन भाजपा के एनडीए से कहीं ज्यादा विस्तृत और विश्वसनीय है ! अभी कांग्रेस के पास अपने अंदरूनी घटक दलों के साथ बाहर से यूपी की राजनीति के धुर विरोधी सपा-बसपा का भी समर्थन है ! जबकि भाजपा का पहले से ही कमजोर एनडीए गठबंधन बिहार में नीतीश के अलग हो जाने के कारण और भी कमजोर हो गया है ! साथ ही, मोदी की जिस पीएम उम्मीदवारी को भाजपा के अंदरखाने में ही पूरा समर्थन नही है, उसे चुनाव बाद किन्ही अन्य बाहरी दलों से समर्थन मिलेगा, ये कहना कठिन है ! लिहाजा ये कहना गलत नही होगा कि कांग्रेस के खिलाफ देशव्यापी लहर होने के बावजूद  आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र राजनीतिक दृष्टिकोण से कांग्रेस, भाजपा से अधिक सुरक्षित दिख रही है !
   उपर्युक्त बातें तो लोकसभा चुनाव के संदर्भ में कांग्रेस-भाजपा की हुईं, पर इन्ही सबके बीच दिल्ली की राजनीति में अपने पैर जमा चुकी एक साल कुछ महीने पुरानी आम आदमी पार्टी (आआपा) भी लोकसभा चुनाव में उतरने का ऐलान कर चुकी है, वो भी लगभग बीस राज्यों में ! दिल्ली में जिस चमत्कारिक ढंग से आआपा ने राजनीतिक दृष्टिकोण से एक साल के बेहद कम समय में अपनी ऐसी पैठ बना ली कि शून्य से वो सीधे २८ सीटों के बड़े आंकड़े तक पहुँच गई, वो इस बात की काफी उम्मीद जगाता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भी ये नई नवेली पार्टी कोई बड़ा उलटफेर करेगी और कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी ! अब सबसे बड़ा सवाल  ये है कि लोकसभा चुनाव में आआपा के आ जाने से कांग्रेस-भाजपा में से ज्यादा नुकसान किसे होगा ? इस सवाल का काफी हद तक जवाब हमें दिल्ली चुनाव के परिणामों को देखने पर मिल जाता है जहाँ आआपा ने वोट और सीट हर तरह से कांग्रेस का सर्वाधिक नुकसान किया ! जाहिर है कि लोकसभा में भी आआपा कांग्रेस की परेशानी जरूर बढ़ाएगी ! पर इसे कांग्रेस की राजनीतिक दूरदर्शिता ही कहेंगे कि उसने दिल्ली में आआपा को समर्थन देकर लोकसभा में आआपा से होने वाली समस्या के समाधान के लिए अभी से व्यवस्था कर ली है !  ये समाधान ऐसा है जो न सिर्फ कांग्रेस को आआपा से बचा सकता है, बल्कि भाजपा को सत्ता से दूर भी रख सकता है ! इन बातों को जरा खुलकर समझने का प्रयास करें तो जैसा कि आआपा की तरफ से कहा जा रहा है कि वो बीस राज्यों की लगभग ३०० लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी ! अब अगर इन ३०० में से ४०-५० सीटें भी वो जीत लेती है तो ये किसी भी गठबंधन सरकार के बनने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ! अब यहाँ समझने वाली बात ये है कि दिल्ली में भाजपा आआपा सरकार के विपक्ष और पूरी तरह से विरोध में है जबकि कांग्रेस विरोध में होने के बावजूद आआपा को समर्थन दे रही है ! ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव में आआपा को गठबंधन की सरकार में जाना होगा तो उसके सामने कांग्रेसनीत यूपीए ही विकल्प होगा ! ये तय मानिए कि इस समर्थन के बदले अगर कांग्रेस को केजरीवाल को प्रधानमंत्री बनाना पड़ा तो भी भाजपा को केन्द्र में आने से रोकने के लिए वो पीछे नही हटेगी ! हालांकि अगर समय रहते भाजपा ने चाहा होता तो आज ये स्थिति, अब से कहीं बेहतर रूप में,  उसके पक्ष में होती ! दिल्ली में अगर भाजपा ने आआपा से मिलकर सरकार बना ली होती तो आज दिल्ली में तो वो सत्ता में होती ही, आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी उसे एक महत्वपूर्ण व मजबूत सहयोगी मिल गया होता ! पर ये भाजपा की राजनीतिक अदूरदर्शिता या अतिआत्मविश्वास ही है कि वो इन पहलुओं पर गौर किए बिना बस मोदी की लोकप्रियता और कांग्रेस विरोधी लहर के सहारे केन्द्र की सत्ता तक पहुँचने का सपना देख रही है ! भाजपा के इस अतिआत्मविश्वास की परिणति कही ये न हो कि लोकसभा में नम्बर एक की पार्टी होने के बावजूद बहुमत के अभाव में वो सरकार बनाने से वंचित रह जाए और केन्द्र में जनादेश के विरुद्ध यूपीए की सरकार फिर एकबार स्थापित हो जाए ! अगर ऐसा हुआ तो ये न सिर्फ मोदी की लोकप्रियता के साथ अन्याय होगा बल्कि हमारे लोकतंत्र के साथ भी बड़ा मजाक होगा !

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