रविवार, 19 जनवरी 2014

तम्बाकू के विरोधाभास [जनसत्ता रविवारी, आईनेक्स्ट इंदौर, दैनिक जागरण राष्ट्रीय, कल्पतरु एक्सप्रेस और प्रजातंत्र लाइव में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

जनसत्ता 
किसी भी राष्ट्र का प्रगतिशील रहना काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ के नागरिक शारीरिक-मानसिक रूप से कितने स्वस्थ और सुदृढ़ हैं ! ये सर्वस्वीकार्य है कि जिस राष्ट्र के लोग जितना अधिक स्वस्थ और सुदृढ़ रहेंगे, वो राष्ट्र उतनी ही तीव्रता से प्रगति को प्राप्त होगा ! लोगों के स्वस्थ  रहने के लिए मुख्य रूप से तीन चीजें आवश्यक होती हैं ! पौष्टिक व पर्याप्त आहार, समुचित चिकित्सा व्यवस्था और नुकसानदेह चीजों से दूरी ! इनमे से प्रथम दो चीजों की समुचित व्यवस्था करने का दायित्व तो मुख्यतः सरकार का होता है, पर अंतिम बात के लिए सरकार के साथ-साथ देश के नागरिकों को भी सजग और सचेत रहने की जरूरत होती है ! नागरिकों के लिए आवश्यक होता है कि वो ऐसे अवशिष्ट तत्वों के सेवन से बचें जिनका उनके शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो ! ऐसे ही अवशिष्ट तत्वों में से एक है तम्बाकू ! ये एक मादक और उत्तेजक पदार्थ है ! बात अगर इसके निर्माण की करें तो एक विशेष प्रजाति के पौधे (निकोशियाना) के पत्तों को सुखाकर तम्बाकू बनाया जाता है जिसका कि उपयोग तमाम तरह से नशा करने के लिए होता है ! भारत में तम्बाकू का पौधा सर्वप्रथम पुर्तगालियों द्वारा लाया गया था और बस तभी से इसकी खेती का चलन शुरू हो गया ! दुनिया में सर्वाधिक तम्बाकू उत्पादन के मामले में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर भारत का ही नाम आता है ! पर यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने उत्पादन के एक बड़े हिस्से की खपत नशाखोरी के कारण देश में ही हो जाती है और निर्यात के लिए काफी कम तम्बाकू बचता है ! कोई गुटके, खैनी आदि के रूप में तम्बाकू चबाता है तो कोई इसे बीड़ी-सिगरेट के रूप में लेता है ! हर नशे की ही तरह तम्बाकू का भी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ता है ! यह व्यक्ति के स्वास्थ्य पर धीमे जहर की तरह असर करता है ! आंकड़े की माने तो देश में हर साल लगभग दस लाख मौतें तम्बाकूजनित बीमारियों के कारण होती हैं तथा ६.१ प्रतिशत लोग तम्बाकू के सेवन के कारण तमाम तरह की बीमारियों से ग्रस्त अस्वस्थ जीवन जीने को मजबूर होते हैं ! पर बावजूद इन सबके अगर भारत में तम्बाकू उत्पादन पूरी तरह से वैध है तो इसके लिए कारण है कि इसके व्यापार से भारत सरकार को राजस्व का भारी लाभ होता है ! इस भारी राजस्व लाभ के कारण ही भारत सरकार द्वारा जहाँ एक तरफ तम्बाकू की खेती को वैध घोषित किया गया है, वहीँ दूसरी तरफ तम्बाकू के नशे के उन्मूलन के लिए तमाम कार्यक्रम व क़ानून भी बनाए गए हैं ! इसी संबंध में सन २००८ में सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान को वर्जित करने सम्बन्धी क़ानून बनाया गया !
दैनिक जागरण
आईनेक्स्ट इंदौर 

इसके अतिरिक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा २००२ में तम्बाकू नशा उन्मूलन केन्द्र की स्थापना भी की गई जिसका उद्देश्य लोगों को तम्बाकू छोड़ने के लिए प्रेरित करना व तम्बाकू छोड़ने के उपाय बताना था ! धीरे-धीरे ऐसे और भी कई केन्द्र खोले गए और इन्होने काफी अच्छे ढंग से अपना काम भी किया ! तम्बाकू नशा उन्मूलन के लिए सरकार के इन कार्यक्रमों व कानूनों आदि के कारण आज भारत में तम्बाकू का नशा करने वाले लोगों की संख्या में पहले की अपेक्षा काफी कमी आयी है, पर बावजूद इसके अब भी देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा तम्बाकू के नशे की चपेट में है !
कल्पतरु एक्सप्रेस
   एक आंकड़े के मुताबिक देश में १५ साल से ऊपर की आयु के लगभग ३५ प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन करते हैं ! इनमे से २१ प्रतिशत लोग गुटका आदि के रूप में तम्बाकू चबाते हैं, जबकि बाकी लोग बीड़ी-सिगरेट आदि के द्वारा तम्बाकू का सेवन करते हैं ! हालांकि बीड़ी-सिगरेट का सेवन करने वाले लोगों की संख्या में पहले की तुलना में काफी गिरावट आयी है, पर फिर भी आज देश के लगभग २६ प्रतिशत लोग बीड़ी-सिगरेट आदि का नशा  करते हैं जिनमे कि ३ प्रतिशत महिलाऐं भी हैं ! शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा तम्बाकू का अधिक सेवन  ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता है ! ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ ५७ प्रतिशत पुरुष तम्बाकू का सेवन करते हैं, वहीँ १९ प्रतिशत महिलाऐं भी तम्बाकू का नशा करती हैं ! अगर विचार करें तो शहरी लोगों की अपेक्षा ग्रामीण लोगों के तम्बाकू   का अधिक सेवन करने के लिए मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य नशा सामग्रियों की अपेक्षा इसका सहजता से उपलब्ध हो जाना है ! अब चूंकि, शहरी क्षेत्रों में तो नशे के लिए लोगों को विभिन्न प्रकार की शराबों समेत कई तरह की ड्रग्स आदि बड़े आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं, इसलिए वो तम्बाकू को अधिक तवज्जो नही देते हैं ! जबकि ग्रामीण इलाकों में तम्बाकू ही एकमात्र ऐसी सामग्री है जो नशे के लिए आसानी से मिल सकती है ! ग्रामीण इलाकों के बड़े बाजारों से लेकर पंसेरी की दुकान तक हर जगह तम्बाकू मौजूद होती है ! तम्बाकू की इस सहज उपलब्धता के कारण ही ग्रामीण लोगों में तम्बाकू का नशा शहरी लोगों की अपेक्षा अधिक पाया जाता है ! पर इन सब बातों के ठीक उलट भारत सरकार के तम्बाकू नशा उन्मूलन सम्बन्धी कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिकाधिक रूप से शहरों में चलाए जाते हैं जबकि इनकी असल जरूरत ग्रामीण क्षेत्रों में है ! साफ़ है कि सरकार द्वारा इस समस्या का ठीक ढंग से अध्ययन किए बिना ही समाधान बनाया और लागू किया गया जिससे आज स्थिति ये हो गई है कि रोग कहीं और है और निदान कहीं और हो रहा है ! ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि क्या ग्रामीण क्षेत्रों पर सरकार  के इस अनदेखेपन के होते हुए इस देश का पूरी तरह से तम्बाकू के नशे से मुक्त हो पाना संभव है ?
   एक तरफ तम्बाकू उद्योग से जहाँ देश को राजस्व की भारी आमद होती है, वही इससे बड़ी तादाद में लोगों को रोजगार भी मिला है ! ऐसे में तम्बाकू नशा मुक्ति के लिए जल्दबाजी और उत्तेजना में इसकी खेती पर प्रतिबन्ध लगाने की बात करना, किसी लिहाज से उचित नही है ! लेकिन सरकार को इस बात का एकबार पुनः अवश्य अध्ययन करना चाहिए कि तम्बाकू की खेती से होने वाले राजस्व लाभ और उसके नशे के रोकथाम पर होने वाले खर्च के बीच कितना अंतर है ! इसके बाद जो तथ्य सामने आएं उनके आधार पर ये तय होना चाहिए  कि तम्बाकू की खेती कितनी लाभकारी है और कितनी नुकसानदेह तथा इसपर प्रतिबन्ध लगना चाहिए या नही ! इसके अलावा सरकार को चाहिए कि वो अपने  तम्बाकू नशा मुक्ति कार्यक्रमों का गांवों तक विस्तार भी करे जिससे ग्रामीण लोगों को भी तम्बाकू से मुक्त होने में सहायता मिले ! अगर सरकार द्वारा इन सब चीजों पर सही ढंग से अमल किया जाए तो इसमे कोई दोराय नही कि आने वाले समय में हम तम्बाकू के नशे से पूरी तरह मुक्त राष्ट्र होंगे ! 

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