मंगलवार, 28 जनवरी 2014

गणतंत्र के साढ़े छः दशक [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
आज हमे आजाद हुए लगभग साढ़े छः दशक बीत चुके हैं और हम अपना ६४ वा गणतंत्र मना रहे हैं ! ऐसे में एक स्वतंत्र गणराज्य के गणतंत्र दिवस के अवसर पर यह जरूरी है कि उसके आजाद एवं लोकतांत्रिक इतिहास की उपलब्धियों और विफलताओं का मूल्यांकन किया जाय ! आजादी के बाद दर्जनों पंचवर्षीय योजनाओं के साथ बढ़ते हुए अगर हमने बहुत कुछ पाया है तो कई मोर्चों पर हम बुरी तरह असफल भी रहे  है ! इसी संदर्भ में अगर हम आजादी के इन साढ़ें छः दशकों में भारत की सफलताओं-विफलताओं के इतिहास पर एक  नजर डालें तो थोड़े असंतुलन के साथ ये दोनों ही चीजें हमें कहीं ना कहीं देखने को मिलती हैं ! कुछ प्रमुख सफलताओं से बात शुरू करें तो आजादी के बाद हमारी सबसे बड़ी सफलता यही रही कि हमने अविलम्ब एक मजबूत और आदर्श लोकतंत्र की स्थापना की तथा अपने संविधान को भी बड़ी शीघ्रता से आत्मसात कर लिया ! इस विषय में कहा जा सकता है कि भारतीय जनमानस अपने संविधान से जितना शीघ्र जुड़ा, उतना गहरा और जल्दी में हुआ जुडाव  बहुत कम देशों में देखने को मिला है ! उदाहरण के तौर पर ऐसे देशों की कोई कमी नहीं है जहाँ हर वर्ष एक नया संविधान बनता और जनता द्वारा खारिज होता है ! हमारी दूसरी महत्वपूर्ण सफलता है कि आजादी के बाद चार-चार युद्धों तथा तमाम अन्य राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को झेलने के बावजूद हमने न सिर्फ उनसे अपनी मातृभूमि को सुरक्षित रखा, बल्कि कभी तेज तो कभी धीमी गति से ही सही निरंतर प्रगतिशील भी रहे ! इसके लिए पहला श्रेय जाता है देश की ढाल बनकर सीमा पर खड़े हमारे उन बहादुर जवानों को जिनके भरोसे देश दुश्मनों के हर षडयंत्र से निर्भय होकर प्रगति की ओर उन्मुख रहता है ! आजादी के बाद की एक और बड़ी उपलब्धि पर नजर डालें तो विश्व समुदाय में पूर्व की अपेक्षा आज हर क्षेत्र में भारत ने अपनी एक विशेष साख कायम की है ! फिर चाहें वो आर्थिक क्षेत्र हो या सामाजिक, कला हो या विज्ञान, खेल-कूद हो या शिक्षा-दीक्षा, इन सब में तथा और भी बहुत सारे क्षेत्रों में अब समूची दुनिया में भारत का झंडा लहराने लगा है ! स्थिति ये है कि जिन मुल्कों के भरोसे कभी भारत की अर्थव्यवस्था चलती थी, आज वो मुल्क भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए इच्छुक हैं ! कुल मिलाकर ये कह सकते हैं कि आज भारत भले ही विकसित राष्ट्र न हो, पर वो  एक सक्षम और समर्थ राष्ट्र अवश्य बन चुका है !    
  हालाकि उपलब्धियों के फेहरिश्त की गुमान में हम अपनी तमाम खामियों से मुह नहीं मोड़ सकते ! उन तमाम प्रमुख बिंदुओं जिनपर आजादी के बाद से ही भारत काफी हद तक विफल रहा है, पर भी विचार करना जरूरी है ! वर्तमान में अगर देखा जाय तो भारत भ्रष्टाचार, महंगाई, गरीबी, स्वास्थ्य सहित कई आंतरिक समस्याओं का समाधान खोज पाने में अभी तक नाकाम रहा है  ! आंकड़ों की माने तो भ्रष्टाचार के मामले में भारत धीरे-धीरे दुनिया के महाभ्रष्ट देशों की सूची में शुमार होने की तरफ बढ़ रहा है ! एक सम्मानित संस्था ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में १८६ देशों में भारत को ९४ वे स्थान पर रखा गया है ! ये दुखद है कि इस मामले में भारत की स्थिति श्रीलंका जैसे देश जो कि भारत के सामने कहीं नही ठहरता, से भी बदतर है ! आजादी के बाद से ही भारत में भ्रष्टाचार की समस्या बहुत छोटे रूप में धीरे-धीरे पनपने लगी थी जो कि आज अपने चरम तक पहुँच चुकी है ! भारत की विफलता के कई अन्य  बिंदु भी इस भ्रष्टाचार से ही जुड़े हुए हैं  ! भ्रष्टाचार ही वो  कारण है जिससे कि आज भारतीय राजनीति का नैतिक अवमूल्यन अपने चरम पर पहुँच चुका है ! आज भ्रष्टाचार के कीचड़ में लगभग पूरा राजनीतिक महकमा आकंठ डूब चुका है ! ऐसे नेता गिने-चुने हैं जिनपर भ्रष्टाचार का कोई प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष आरोप न हो ! अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए सियासी  आकाओं द्वारा हर स्तर पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने के कारण आज लोक और तंत्र के बीच अविश्वास की एक गहरी खाई सी बन गई है ! लोक और तंत्र के बीच की इस खाई ने यह भय पैदा कर दिया है कि कहीं जनता और सत्ता के बीच संघर्ष की स्थिति न आ जाय ! जनता के बीच से लगातार सत्ता-विरोधी आवाजें उठने लगी हैं ! इस संदर्भ में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि भ्रष्टाचार का ये रोग सबसे अधिक उन्हीको लगा है जिनके ऊपर इसके निदान का दायित्व है ! इसके अतिरिक्त आतंरिक सुरक्षा के मसले पर भी भारत पूरी तरह से विफल रहा है ! इस स्तर पर भारत की विफलता का सर्वश्रेष्ठ परिचायक भारतीय सुरक्षा व्यवस्था के लिए सिरदर्द बन चुके नक्सली हैं ! इससे कत्तई इंकार नही किया जा सकता कि नक्सलियों के उदय के शुरुआती दौर में भारत सरकार द्वारा उनके प्रति उदारवादी रुख अपनाने के कारण ही आज वो इतने ताकतवर हो चुके हैं कि हमारे विशेष पुलिस बलों के लिए भी उन्हें रोकना आसान नही पड़ रहा है ! इन सबके बाद जिस बिंदु पर हम सर्वाधिक विफल हुए हैं वो है सांस्कृतिक संरक्षण ! प्रगतिशीलता के अन्धोत्साह के कारण युवाओं में पाश्चात्य संस्कृति के प्रति बढ़ते झुकाव तथा संप्रेषण के तमाम तकनीकी माध्यमो के द्वारा गलत तत्वों से जुड़ाव के कारण आज भारतीय संस्कृति पतन की ओर अग्रसर है ! आलम ये है कि रिश्तों की मर्यादाओं पर मानसिक विकृति हावी हो रही है जोकि निश्चित ही बड़ी चिंता का विषय है ! इस विषय में समझ न आने वाली बात ये है कि जिस भारतीय संस्कृति की समूचे विश्व में सराहना होती है, उसे अपने ही लोग कैसे और क्यों भूलते जा रहे हैं !
  बहरहाल, उपर्युक्त सभी सफलताओं-विफलताओं के बावजूद संतोष की बात ये है कि जैसे-तैसे ही सही, हमने अपनी आजादी को न सिर्फ सुरक्षित रखा है बल्कि अपने लोकतंत्र को स्थिर रखते हुए विश्व बिरादरी में ससम्मान प्रतिष्ठित भी हुए हैं ! हाँ, अब जरूरत इस बात की है कि हमारे सियासी हुक्मरान हमारी आजादी व गणतंत्र के इतिहास का पुनरावलोकन करते हुए अपने चरित्र को भी उस दौर के नेताओं सा बनाने का प्रयास करें ! अगर वो उस दौर के नेताओं का आंशिक चरित्र भी अपने में ला पाते हैं, तो तय मानिए कि देश अब की तुलना में दुगनी-तिगुनी रफ़्तार से प्रगतिशीलता को प्राप्त होगा ! साथ ही, सही मायने में यही हमारे उन वीर सपूतों, जिनके कारण आज ये आजादी और लोकतंत्र है, के लिए सच्ची श्रद्धांजली भी होगी !  

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