शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

देवयानी प्रकरण पर बेजा हंगामा [डीएनए में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
आख़िरकार भारतीय राजनयिक देवयानी खोब्रागड़े अपनी गिरफ़्तारी पर मचे भारी विवाद के बाद अमेरिकी न्यायालय से ढाई लाख डॉलर के बांड पर रिहा होकर भारत लौट ही आईं ! दरअसल, इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब देवयानी को वीजा धोखाधड़ी और अपनी नौकरानी सुनीता रिचर्ड का आर्थिक शोषण करने के आरोप में अमेरिकी पुलिस द्वारा न सिर्फ गिरफ्तार किया गया बल्कि उनके साथ काफी अभद्र व्यवहार भी किया गया ! भारत सरकार द्वारा अपने राजनयिक के प्रति अमेरिका के इस आचरण पर अबतक की सबसे कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए देश में अमेरिकी राजनयिकों को दी गईं तमाम विशेष सुविधाएँ वापस ले लीं गई ! भारत सरकार का कहना था कि अमेरिका देवयानी पर लगे आरोपों को वापस ले और उनके प्रति अमेरिकी अधिकारियों की अभद्रता के लिए माफ़ी मांगे ! लेकिन अमेरिका पर भारत की इन बातों का कोई असर नही पड़ा और वो कानूनी प्रक्रिया का हवाला देते हुए अपने रुख पर कायम रहा ! अब अगर इस पूरे घटनाक्रम पर विचार करें तो स्पष्ट होता है कि इस मामले को तिल का ताड़ बनाने के लिए जितना दोषी अमेरिका है, उससे कुछ अधिक ही दोषी भारत भी है ! अमेरिका की गलती ये है कि उसने देवयानी के साथ अमेरिकी अधिकारियों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के लिए माफ़ी नही मांगी और अपनी बात पर अड़ियल रुख अपनाए रहा ! लेकिन भारत ने इससे कही बड़ी गलती ये की कि उसने इस पूरे मामले को ही मुद्दा बना दिया और आरोप वापस लेने की बेहद बचकानी मांग अमेरिका के सामने रख दी ! भारत के लिए उचित होता कि वो सिर्फ अमेरिकी अधिकारियों के दुर्व्यवहार को मुद्दा बनाकर माफ़ी के लिए अमेरिका पर दबाव बनाता, न कि इस पूरी कानूनी प्रक्रिया को ही गलत ठहराते हुए मामला वापस लेने की बात कहता ! भारत द्वारा मामला वापस लेने की मांग के कारण दुनिया में भारत के प्रति ‘क़ानून को नही मानने’ का जो संदेश गया है वो भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र की वैश्विक छवि के लिए किसी लिहाज से उचित नही है !

   उपर्युक्त बातों के बाद अब एक नज़र अगर देवयानी पर लगे आरोपों और उनसे जुड़े कुछ पहलुओं पर डालें तो यहाँ भी हमें भारत का ही पक्ष कमजोर दिखाई देता है ! पहली बात कि न्यूयार्क पुलिस द्वारा अगर देवयानी को गिरफ्तार किया गया तो जरूर किन्ही साक्ष्यों के पर ही किया गया होगा ! वैसे भी, भारत सरकार के पास इस बात का कोई आधार व प्रमाण नही कि देवयानी निर्दोष हैं या वो धांधली नही कर सकतीं ! बल्कि, देश के जाने-माने आदर्श घोटाले में देवयानी के भी खिलाफ गैरकानूनी तरीके से फ़्लैट लेने का मामला है ! ये देखते हुए इस बात को बिना किसी आधार के ये स्वीकार नही किया जा सकता कि देवयानी ने अमेरिका में भी फर्जीवाड़ा नही किया होगा ! अतः आदर्श स्थिति तो ये होती कि भारत देवयानी को बरी  करने की मांग से पहले अमेरिका से वो साक्ष्य लेकर उनकी सत्यता का अध्ययन किया होता जिनके आधार पर देवयानी पर आरोप लगे हैं ! साक्ष्यों का अध्ययन करने के बाद जो भी चीजें सामने आतीं उनके आधार पर अमेरिका के सामने भारत को अपनी बात रखनी चाहिए थी ! अगर भारत ऐसा करता तो संभवतः इस मामले में उसे दुनिया के कुछ और देशों से भी नैतिक आधार पर समर्थन मिल गया होता ! पर दुखद कि भारत ने ऐसा कुछ भी नही किया और अतिउत्साह में अमेरिका के प्रति अनावश्यक सख्ती दिखाने लगा ! इसके अलावा एक तथ्य ये भी है कि देवयानी खोब्रागडे पर जिस नौकरानी के आर्थिक शोषण का आरोप लगा है, वो भी भारतीय ही है ! लिहाजा नियम से तो भारत सरकार का उस नौकरानी की हितों की रक्षा के प्रति भी दायित्व होना चाहिए ! पर दुर्भाग्य कि इन सब बातो से इतर भारत सरकार का सारा जोर बस देवयानी खोब्रागडे को इस मामले से बचाने पर रहा और इसी अतिउत्साह में भारत द्वारा इस सहजता से सुलझ जाने वाले मामले को काफी बड़ा और उलझा हुआ बना दिया गया ! इसे भारतीय विदेश नीति की विडम्बना ही कहेंगे कि जब पाकिस्तानी सैनिक हमारे जवानों के सिर काटकर ले जाते हैं या एडवर्ड स्नोडेन द्वारा भारत समेत दुनिया के तमाम देशों की अमेरिकी जासूसी का खुलासा किया जाता है, तो जो भारत सरकार बयानी सख्ती दिखाने के सिवा कुछ नही करती, वही अपने एक राजनयिक के खिलाफ अमेरिका में लगे कुछ आरोपों को हटवाने के लिए इतनी सख्त होती है कि अमेरिका से अपने संबंधों तक की परवाह छोड़ देती है !  इन बातों को देखते हुए साफ़ तौर पर ये समझा जा सकता है कि देवयानी प्रकरण में भारत सरकार कूटनीतिक स्तर पर पूरी तरह से विफल रही है ! कुल मिलाकर इस मामले में अमेरिका के प्रति दिखाई गई भारत की इस अनावश्यक सख्ती से न सिर्फ भारत-अमेरिका  संबंधों में कड़वाहट आने की स्थिति बन गई है, बल्कि दुनिया में भी भारत के बारे में काफी गलत संदेश गया है !

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