शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

समाजवाद का ये कैसा चेहरा [अप्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

सैफई महोत्सव २०१४ 
महान समाजवादी डा. राममनोहर लोहिया के आदर्शों के तथाकथित अनुयायिओं द्वारा यूपी में जो कर्म किया जा रहा है वो समाजवाद जैसी श्रेष्ठ और पवित्र चीज को शर्मसार करने वाला है ! यहाँ हम बात कर रहे हैं यूपी की सपा सरकार, उसके मुख्यमंत्री और नेताओं की ! गौरतलब है कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और उनके सुपुत्र  मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समेत अधिकाधिक सपाई नेता जहाँ मुख्यमंत्री के गाँव सैफई में फ़िल्मी हीरो-हिरोइनों के ठुमके देखने में मस्त थे, वहीँ मुज़फ्फरनगर के तमाम दंगा पीड़ित परिवार अब भी बदहाल राहत कैम्पों में भीषण ठण्ड और बिमारियों के साथ जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करने को बाध्य हैं ! ये अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार द्वारा इन राहत कैम्पों में रहने वाले लोगों के लिए न तो बुनियादी सुविधाओं की कोई व्यवस्था की गई है और न ही उनके पुनर्स्थापन आदि के लिए ही कोई योजना बनाई गई है ! बल्कि जब इन राहत कैम्पों की बदहाली पर मीडिया द्वारा सरकार की आलोचना होने लगी तो राहत कैम्प में रहने वालों को वहाँ से जाने के आदेश दे दिए गए ! इस आदेश पर सफाई देते हुए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव द्वारा बड़ा ही बचकाना और गैरजिम्मेदाराना बयान दिया गया कि राहत कैम्पों में पीड़ित नही, बल्कि सरकार को बदनाम करने के लिए कांग्रेस-भाजपा के लोग रुके हुए हैं ! इसके अतिरिक्त अभी कुछ ही दिन पहले इन राहत कैम्पों में ठण्ड के कारण लगभग ३० बच्चों के मरने की बात भी सामने आयी थी ! पर इसे संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ही कहेंगे कि इसपर यूपी सरकार के विशेष सचिव ने बड़ी बेशर्मी से सफाई देते हुए कहा कि ठण्ड से कोई नही मरता ! अगर ठण्ड से लोग मरते तो साइबेरिया में कोई जिन्दा ही नही रहता ! इससे भी बढ़कर ये कि उन विशेष सचिव पर कोई कार्रवाई करने की बजाय मुख्यमंत्री द्वारा उन्हें सम्हल कर बोलने की नसीहत भर दी गई ! अब सवाल ये है कि क्या लोहिया के आदर्शों पर चलने का दम भरने वाली समाजवादी पार्टी के लिए  समाजवाद की परिभाषा यही है ? क्या एक सरकार का यही कर्तव्य है कि जनता दुर्गति में जीए और वो उत्सव मनाए ? और क्या लोहिया के यही आदर्श हैं ? इन सवालों पर यूपी के सियासी हुक्मरानों के पास सिवाय कुतर्कों के कोई तर्कसंगत और जायज जवाब नही है ! अगर आज डा. लोहिया होते तो निश्चित ही अपने इन तथाकथित अनुयायियों के इस आचरण को देख शर्म से पानी-पानी हो जाते !
सैफई की रंगीनियत और मुज़फ्फरनगर की त्रासदी 
   अब अगर एक नज़र सैफई महोत्सव पर डालें तो बेशक ये एक पारम्परिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम है और ठीक है कि ऐसे कार्यक्रम होते रहने चाहिए ! लेकिन इस कार्यक्रम पर सवाल तब उठे जब एक तरफ मुज़फ्फरनगर के राहत कैम्पों में विस्थापित लोग ठण्ड से बेहाल दिखे और दूसरी तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत प्रदेश के तमाम बड़े नेता इस सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर नाच-नौटंकी का आनंद लेने में मस्त पाए गए ! साथ ही, सपा के तमाम बड़े नेता आज़म खां के नेतृत्व में विदेश भ्रमण पर भी निकले हैं ! ये किसी लिहाज से उचित नही कहा जा सकता कि जिस प्रदेश में हजारों की तादाद में लोग बेघर और बेसहारा होकर जीने को मजबूर हों, वहाँ उनलोगों के पुनर्स्थापन आदि के बजाय सैफई महोत्सव और विदेश भ्रमण जैसे कार्यक्रमों के नाम पर करोड़ो-अरबों रूपयों की फिजूलखर्ची की जाए ! एक आंकड़े के मुताबिक सैफई महोत्सव पर लगभग २ से ३ अरब रूपये खर्च हुए हैं जो कि मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ित परिवारों को पुनर्स्थापन के लिए दिए गए मुआवजे के तीन गुने से भी ज्यादा है ! तिसपर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी सब चिंता-फिकर छोड़ के पूरी तरह से उस महोत्सव में मौजूद रहें ! जब इन बातों की मीडिया द्वारा सामने लाया गया और प्रदेश सरकार की आलोचना होने लगी तो अखिलेश सरकार ने बेहद तानाशाह रवैया अख्तियार करते हुए सैफई महोत्सव के मीडिया कवरेज पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया !

  अब से लगभग दो साल पहले जब यूपी में चुनाव हुए थे तो जनता ने समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मुलायम सिंह का नही, अखिलेश यादव का चेहरा देखकर दिया था ! चूंकि, मुलायम के शासन के गुंडाराज का कड़वा अनुभव लोग पहले से ही महसूस कर चुके थे ! पर फिर भी अखिलेश जैसे युवा मुख्यमंत्री से बदलाव की प्रत्याशा में उन्होंने सपा को बहुमत दिया ! लोगों को आशा थी कि ये युवा नेता अगर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना तो न सिर्फ लोगों की समस्याओं को समझेगा बल्कि भ्रष्ट हो चुकी व्यवस्था को भी बदलेगा और प्रदेश की राजनीति को जाति-धर्म आदि से आगे विकास के पथ पर ले जाएगा ! पर सपा सरकार के इन दो वर्षों के शासन में जनता की ये सभी आकांक्षाएं और उम्मीदें एक-एक करके टूटती और खत्म होती ही दिखी ! इस दौरान जहाँ प्रदेश में अपराध और अपराधियों का बोलबाला बढ़ा वहीँ मुज़फ्फरनगर समेत बहुतों छोटे बड़े दंगों की आग में प्रदेश को जलना पड़ा ! साथ ही, सपा में तमाम दागी नेताओं को जगह भी दिया गया ! तिसपर इन सबमे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की निष्क्रिय सी भूमिका ने ये भी साफ़ कर दिया कि सिर्फ कहने भर के लिए यूपी में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री हैं, वर्ना सत्ता तो अब भी मुलायम सिंह ही संचालित कर रहे हैं ! धीरे-धीरे जनता के सामने सपा सरकार के ढोंग की सारी कलई खुल गई ! डा. राममनोहर लोहिया और उनके समाजवाद के आदर्शों पर अपना एकाधिकार जताने वाली समाजवादी पार्टी का वर्तमान आचरण देखकर तो यही लगता है कि अब उसके लिए लोहिया का समाजवाद सिर्फ प्रतीकात्मकता तक सीमित रह गया है और वो लोहिया के समाजवाद से दूर भोग-विलासिता में कहीं खो गई है ! 

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