- पीयूष द्विवेदी भारत
जनसत्ता |
मानव जाति की मूल आवश्यकताओं की बात करें तो
प्रमुखतः रोटी, कपड़ा और मकान का ही नाम आता है ! इनमे भी रोटी सर्वोपरि है !
क्योंकि बिना रोटी के बाकी सब चीजें व्यर्थ सी प्रतीत होती हैं ! रोटी अर्थात भोजन
और बिना भोजन के मनुष्य के लिए एकदिन भी चलना कठिन है ! प्रथमतः प्राणिमात्र के
समस्त संघर्ष इस भोजन को ही केन्द्र में रखकर होते हैं ! साथ ही किसी भी राष्ट्र
के निरंतर प्रगतिशील रहने में भी भोजन की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है ! कारण कि
अगर अमुक राष्ट्र के व्यक्तियों को समुचित भोजन मिलेगा तो ही वो शारीरिक और मानसिक
स्तर पर इस योग्य होंगे कि अपने राष्ट्र को प्रगति के पथ पर लेकर चल सकें ! गौर
करना होगा कि अभी हाल ही में विश्व खाद्य दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट द्वारा
कुछ आंकड़े जारी किए गए जिनके अनुसार पूरी
दुनिया में लगभग ८५ करोड़ लोग आज भी भुखमरी का शिकार हैं ! दुनिया से इतर अगर
भुखमरी की इस समस्या को भारत के संदर्भ में देखें तो हम पाते हैं कि आज भी भारत की
लगभग २२-२५ फिसदी आबादी की हालत ऐसी है कि अगर वो रात में खाकर सोती है तो उसे नही
पता कि अगली सुबह फिर खाने को मिलेगा या नही ! इसे स्थिति की विडम्बना ही कहेंगे
कि जो बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे राष्ट्र आर्थिक दृष्टिकोण से हमारे
सामने कहीं नही ठहरते, उनके यहाँ भी हमसे कम मात्रा में भुखमरी की स्थिति है ! अभी
हाल ही में ग्लोबल हंगर इंडेक्स २०१३ (जीएचआई) द्वारा जारी भुखमरी पर नियंत्रण
करने वाले देशों की सूची में भारत को श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों से भी नीचे
६९ वे स्थान पर रखा गया है ! रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत में अब भी पाँच
साल से कम आयु के ४० फिसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं ! इसी संदर्भ में
उल्लेखनीय होगा कि बांग्लादेश, श्रीलंका आदि देश भारत से सहायता प्राप्त करने वाले
देशों की श्रेणी में आते हैं ! ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि आखिर वो क्या कारण
है कि भुखमरी के मामले में हमारी हालत बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे
देशों से भी बदतर हो रही है ? इस सवाल के यूँ तो कई जवाब हैं, पर प्रमुखतः इसका एक
ही जवाब है वो ये कि भारत के राजनीतिक महकमे में भुखमरी को लेकर कभी संजीदगी दिखाई
ही नही जाती ! बस यही कारण है कि आज भारत में भुखमरी इस कदर विकराल रूप ले चुकी है
कि भुखमरी के मामले में, वो अपने से काफी कमजोर अर्थव्यवस्था वाले राष्ट्रों से भी
बदतर स्थिति में जा चुका है !
एक
अत्यंत महत्वपूर्ण सवाल ये भी है कि हर वर्ष हमारे देश में खाद्यान्न का रिकार्ड
उत्पादन होने के बावजूद क्यों देश की लगभग एक चौथाई आबादी को भुखमरी से गुजरना
पड़ता है ? इस सवाल पर विचार करने पर हम पाते हैं कि भले ही हमारे यहाँ प्रतिवर्ष
अनाज का रिकार्ड उत्पादन होता हो, पर वो अनाज लोगों तक पहुंचने की बजाय गोदामों
में रखे-रखे सड़ जाता है ! ऐसा होने के लिए कारण तो कई हैं, पर कुछ प्रमुख कारणों
पर गौर करें तो इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण कारण ये है कि हमारे यहाँ अनाज लोगों
तक पहुंचाने के लिए समुचित वितरण प्रणाली का खासा अभाव है जिस कारण बहुतों अनाज
गोदामों में रखे-रखे सड़ तो जाता है, पर भूखे लोगों की भूख मिटाने के काम नही आ
पाता ! खाद्य की बर्बादी की ये समस्या सिर्फ भारत में नही बल्कि पूरी दुनिया में
है ! संयुक्त राष्ट्र के एक आंकड़े के मुताबिक पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष १.३ अरब
टन खाद्यान्न खराब होने के कारण फेका जाता है ! जाहिर है कि अनाज के रख-रखाव के
प्रति लापरवाही बरतने के कारण ही ये अनाज खराब हो जाता है !
यहाँ
उल्लेखनीय होगा कि अभी हाल ही में संप्रग अध्यक्षा सोनिया गाँधी की महत्वाकांक्षा
से प्रेरित खाद्य सुरक्षा विधेयक को संसद में पारित किया गया ! इस विधेयक पर
सोनिया गाँधी समेत लगभग सभी कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि ये भारत से भुखमरी की
समस्या को काफी हद तक खत्म कर देगा ! इस संदर्भ में इस विधेयक के कुछ प्रमुख
प्रावधानों के द्वारा अगर ये समझने का प्रयास करें कि आखिर किस प्रकार ये विधेयक
देश से भुखमरी को खत्म करने का दम रखता है, तो निश्चित ही ये विधेयक पूरी तरह से
निराश नही करता, पर साथ ही इसे लेकर कोई बड़ी आशा भी नही पाली जा सकती ! इस विधेयक
में मुख्य प्रावधान यही है कि इसके तहत
कमजोर और गरीब तबके के लोगों को प्रतिमाह काफी सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराया
जाएगा ! बाकी इस विधेयक के प्रावधानों पर पहले ही काफी बात हो चुकी है अतः हम
प्रावधानों को छोड़ते हुए असल बिंदु पर आते हैं ! असल बिंदु ये है कि इस विधेयक में
सस्ता अनाज देने के लिए चाहें जितने भी प्रावधान हों, पर उस अनाज को सस्ती दरों पर
गरीबों तक पहुँचाने के लिए वितरण प्रणाली
के विषय में इस विधेयक में कोई प्रावधान नही है ! लिहाजा इस संभावना से इंकार नही किया
जा सकता कि समुचित वितरण प्रणाली के अभाव में जनता को सस्ती दरों पर दिए जाने वाला
अनाज सम्बंधित अधिकारियों तथा उनके बाद दुकानदारों की धन उगाही का साधन बन जाएगा ! अतः घूम-फिरकर हम
फिर वहीँ आ गए जहाँ से शुरू किए थे !
यहाँ समझना होगा कि आज हमारी पहली जरूरत इस बात
की है कि हम अपनी वितरण प्रणाली को दुरुस्त करें ! एक ऐसी पारदर्शी वितरण प्रणाली
का निर्माण किया जाए जिससे कि वितरण से सम्बंधित अधिकारियों व दुकानदारों की
निगरानी होती रहे तथा गरीबों तक सही ढंग से अनाज पहुँच सकें ! साथ ही अनाज की
रख-रखाव के लिए भी गोदाम आदि की समुचित व्यवस्था की जाए जिससे कि जो हजारों टन
अनाज प्रतिवर्ष रख-रखाव की दुर्व्यवस्था के कारण बेकार हो जाता है, उसे बर्बाद होने
से बचाया और जरूरतमंद लोगों तक पहुँचाया जा सके ! इसके अतिरिक्त जमाखोरों के लिए
कोई सख्त क़ानून लाकर उनपर नियंत्रण की भी जरूरत है ! ये सब करने के बाद ही खाद्य
सम्बन्धी कोई भी योजना या क़ानून जनता का हित करने में सफल होंगे, अन्यथा वो क़ानून
वैसे ही होंगे जैसे किसी मनोरोगी का ईलाज करने के लिए कोई तांत्रिक रखा जाए !
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