- पीयूष द्विवेदी भारत
डीएनए |
बहरहाल, राजनीतिक दलों से
बात मोड़ते हुए अब हम प्रशासनिक तबके में महिलाओं की अल्प उपस्थिति पर आते हैं ! यहाँ भी हमें बहुत सारे ऐसे
कारण देखने को मिलते हैं जोकि महिलाओं की इस क्षेत्र में अल्प उपस्थिति के लिए
जिम्मेदार हैं ! इसी संदर्भ में उल्लेखनीय होगा कि आज भी देश में ३४ फीसद महिलाएं
ऐसी हैं जिन्हें ठीक ढंग से अपना नाम भी लिखने नही आता ! इसमे कोई संदेह नही कि इन
३४ फीसद अशिक्षित महिलाओं में से अधिकाधिक महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों की हैं ! समझा
जा सकता है कि जिन कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में निकटस्थ विद्यालय हैं, वहाँ तो
लड़कियां कुछ प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर लेती हैं ! पर ऐसे गाँव जहां कोई विद्यालय
ही नही है वहाँ लड़कियों के लिए शिक्षा पाना संभव नही हो पाता ! कारण कि उनके परिवार
पुरुष समाज द्वारा निर्मित तमाम तरह के सामाजिक प्रतिबंधों के कारण उन्हें शिक्षा
के लिए दूर स्थित विद्यालय में जाने नही देता और इस प्रकार हमारी आधी आबादी का एक बड़ा हिस्सा जीवन
में शिक्षा के सुनहरे अध्याय जोड़ने से विमुख रह जाता है ! इस संबंध में अगर ये कहा
जाए तो शायद गलत नही होगा कि महिलाओं-लड़कियों को घर से बाहर न निकलने सम्बन्धी
तमाम नियमों और कायदे-कानूनों समेत तमाम सामाजिक अड़चनों का सृजन करने के पीछे
प्राचीन पुरुष समाज का मुख्य उद्देश्य यही रहा होगा कि महिलाएं कभी बाहरी दुनिया
से रूबरू न हों पाएं ! प्राचीन पुरुष समाज को भय रहा होगा कि अगर महिलाओं ने एकबार
बाहरी दुनिया में कदम रख दिया और उसके हर क्षेत्र में अपना योगदान देने लगीं, तो
पुरुषों की प्रधानता समाप्त होने में देर नही लगेगी ! चूंकि, पुरुष बाहरी जगत पर
अपना एकाधिकार समझते थे और बहुतायत आज भी समझते हैं ! बस इसी कारण प्राचीन पुरुषों
ने तमाम सामाजिक प्रतिबंधों का चक्रव्यूह रचकर महिलाओं को गृह केंद्रित करने का एक
सफल प्रयास किया ! परिणामस्वरूप महिलाओं की स्थिति चूल्हा-चौके और पति-बच्चे तक
सीमित होकर रह गई ! समय के साथ इस स्थिति में बदलाव जरूर हुआ और अब भी हो रहा है,
पर बावजूद इसके आज भी समाज में महिलाओं की स्थिति में कितना सुधार हुआ है इसका अंदाजा
तो उनकी शैक्षिक दशा को देखकर ही लगाया जा सकता है ! इन सबके बाद हम पुनः
प्रशासनिक सेवाओं आदि में महिलाओं की अल्प उपस्थिति पर आएं तो तस्वीर एकदम साफ़ मिलती
है कि जिस देश में लड़कियों की शिक्षा की स्थिति ऐसी हो, वहाँ प्रशासनिक क्षेत्र से लेकर
अन्य किसी भी उच्च शिक्षात्मक अहर्ता वाले क्षेत्र में लड़कियों की अल्प उपस्थिति
को बड़ी सहजता से समझा जा सकता है !
उपर्युक्त सभी बातों को
देखते हुए इतना ही कह सकते हैं कि आज देश में महिलाओं के साथ कुछ भी गलत, विशेषकर
बलात्कार, होने पर जो पुरुष समाज मोमबत्ती और बैनर पोस्टर लिए ‘पीड़िता को इंसाफ,
बलात्कारियों को फांसी’ जैसे नारों के साथ सड़कों पर उतर पड़ता है ! वही पुरुष समाज
सामाजिक-व्यवसायिक क्षेत्रों में स्त्रियों की अल्प उपस्थिति पर कुछ नही बोलता ! इस
संबंध में कुछ न बोलने का कारण यही है कि पुरुष समाज आज भी पूरी तरह से अपने पुरुष
अहं से मुक्त नही हो पाया है ! वो आज भी आतंरिक रूप से यही चाहता है कि स्त्री
बाहरी दुनिया में हस्तक्षेप न करे ! इस
नाते महिलाओं के साथ कुछ गलत होने पर तो वो बोलता है, पर उनके लिए कुछ अच्छा करने
और विकास के रास्ते खोलने पर कभी नही बोलता ! इन तमाम बातों को देखते हुए अगर ये
कहें तो गलत नही होगा कि आज स्त्री की दशा में कुछ तो वास्तविक सुधार हुआ है, स्त्रियां
आगे बढ़ी हैं ! पर उससे बहुत अधिक स्त्री दशा सिर्फ नारों और भाषणों में ही सुधरी
है ! अधिकाधिक सुधार सिर्फ भ्रम है और कुछ
नही !
बहुत बढ़िया आलेख.....
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक विचार...
लेख के प्रकाशन की बधाई भी स्वीकारें..
शुभकामनाएं
अनु
बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय अनुलता जी !
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