मंगलवार, 24 सितंबर 2013

बिछ चुकी है लोकसभा चुनाव की बिसात [डीएनए में प्रकाशित]


  • पीयूष द्विवेदी भारत 
डीएनए
तमाम अंदरूनी विरोधों को दरकिनार करते हुए आखिर भाजपा ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी को अपना पीएम उम्मीदवार घोषित कर ही दिया ! वैसे ये तो लगभग तय ही था कि चाहें आडवाणी या कोई भी नेता कितना भी विरोध कर ले, पर भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ही होंगे ! बहरहाल मोदी को अपना पीएम उम्मीदवार घोषीत करने के साथ ही भाजपा ने आगामी लोकसभा के मद्देनजर अपनी चुनावी रणनीति भी काफी हद तक साफ़ कर दी है ! अब इसमे कोई संदेह नही रह गया कि भाजपा लोकसभा चुनाव २०१४ नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के दम पर ही लड़ने का निश्चय कर चुकी है और इसके लिए वो कोई भी कीमत चुकाने को तैयार है ! स्थिति ये है कि अब भाजपा के लिए छोटे-बड़े किसी नेता के रूठने-मानने से कहीं ज्यादा महत्व इस बात का है कि वो मोदी के नेतृत्व में लड़े ! कारण कि जनता में तो मोदी की जो लहर है सों है ही, इसके अतिरिक्त भाजपा की सबसे बड़ी ताकत संघ परिवार भी मोदी पर अत्यंत मेहरबान है ! अब मोदी पर संघ की मेहरबानी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मोदी के लिए संघ ने अपने अत्यंत प्रिय आडवाणी के विरोध तक को नजरंदाज करने में कोई कोताही नहीं की ! समझना आसान है कि भाजपा की तरफ से आगामी लोकसभा चुनाव की बिसात पर अपनी सबसे महत्वपूर्ण चाल चली जा चुकी है ! अब उस चाल का असर कितना और कैसा होगा, ये तो भविष्य के गर्भ में छुपा है ! पर एक बात एकदम साफ़-साफ़ समझी जा सकती है कि मोदी की विशाल लोकप्रियता और वर्तमान यूपीए सरकार की सभी क्षेत्रों में लगातार हो रही नाकामी से उपजे सत्ता-विरोधी रुझान का मिलाजुला प्रभाव आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से भाजपा के लिए काफी शुभ संकेत दे रहा है ! लिहाजा अगर आज भाजपा अपने गठबंधन का कुशलतापूर्वक प्रबंधन करने में सफलता पा ले, तो इससे कत्तई इंकार नही किया जा सकता कि आगामी लोकसभा चुनाव में उसके लिए सत्ता के दरवाजे खुलने की संभावना प्रबल हो जाएगी ! यहाँ गठबंधन के प्रबंधन की बात पर जोर इसलिए दिया जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा का पहले से ही कमजोर गठबंधन आज और भी कमजोर हो चुका है जो कि  उसके लिए निश्चित ही एक बड़ी चिंता का विषय है ! इस संदर्भ में भाजपा के गठबंधन राजग पर एक सरसरी निगाह डाले तो हम देखते हैं कि बिहार में भाजपा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण सहयोगी जदयू मोदी के ही कारण भाजपा से अलग हो चुका है और संदेह नही कि देर सबेर वो कांग्रेस से हाथ मिला ही लेगा ! साफ़ है कि इससे जहाँ भाजपा बिहार में कमजोर होगी, वहीँ कांग्रेस को मजबूती मिलेगी ! इसके अतिरिक्त भाजपा के और भी कई छोटे-बड़े घटकों का रुख मोदी को लेकर अभी कुछ साफ़ नहीं है ! अतः कुल मिलाकर कह सकते हैं कि अब राजनाथ सिंह लाख कहें कि मोदी को लेकर राजग में कोई मतभेद नही है, पर उनकी ये बात इतनी आसानी से गले नही उतरती ! क्योंकि शिवसेना आदि भाजपा के कई घटकों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, अक्सर मोदी विरोधी आवाजें सुनने को मिलती रही हैं ! फिर भी हो सकता है कि भाजपा के इन घटक दलों ने मोदी के नाम पर सहमति दे दी हो, पर इससे भी इंकार नही किया जा सकता कि वो सहमति सिर्फ क्षणिक हो न कि स्थायी ! इस नाते भाजपा के लिए उचित होगा कि वो इस विषय में सावधान रहे ! क्योंकि एक बात तो तय है कि भाजपा, कांग्रेस या अन्य कोई भी चाहें जितने दाव-पेंच लगा ले, पर लोकसभा २०१४ में सरकार उसीकी बनेगी जिसका गठबंधन मजबूत होगा ! 
  उपर्युक्त बातें भाजपा की करने के बाद आवश्यक हो जाता है कि एक नजर केन्द्र में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस पर भी डाली जाए ! कांग्रेस के संदर्भ में बात की शुरुआत यहीं से करनी होगी कि फिलहाल उसके लिए समय कुछ खास ठीक नही चल रहा ! केन्द्र में मौजूद उसकी यूपीए सरकार की हर मोर्चे पर लगातार हो रही नाकामी तथा केंद्रीय मंत्रियों के एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचारी कारनामें उजागर होने  के कारण   उसके प्रति जनता में गुस्से का माहौल दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है ! इसके अतिरिक्त कांग्रेस के लिए समस्या ये भी है कि जनता के गुस्से को कम करने के लिए उसके द्वारा किए जा रहे प्रयास भी कोई खासा प्रभाव नही दिखा रहे ! वैसे थोड़ा विचार करते ही समझ में आ जाता है कि इन तमाम मुश्किल परिस्थितियों के बीच आगामी लोकसभा २०१४ की चुनावी बिसात के लिए कांग्रेस के पास दो महत्वपूर्ण चालें हैं जिनमे से एक चाल खाद्य सुरक्षा विधेयक को पारित करवाके वो चल भी चुकी है ! इसके बाद उसकी दूसरी चाल राहुल गांधी को अपने पीएम प्रत्याशी के रूप में आधिकारिक रूप से घोषित करने की है ! पर पूरी संभावना है कि ये घोषणा चुनाव के अतिनिकट आ जाने पर ही की जाएगी ! क्योंकि अभी काग्रेस को लेकर जनता में जो गुस्सा है उसे देखते हुए इस घोषणा से उसे कोई लाभ नही होने वाला ! फ़िलहाल कांग्रेस के लिए इस घोषणा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण ये है कि वो अपने प्रति जनता में व्याप्त आक्रोश को कम करे ! खाद्य सुरक्षा विधेयक तथा बीते संसदीय सत्र में पारित हुए और भी कई विधेयकों के द्वारा वो यही करने का प्रयास कर रही है ! अब इसमे उसे कहाँ तक सफलता मिलती है, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा ! पर इतना जरूर कहा जा सकता  है कि फिलहाल अगर गठबंधन को छोड़कर देखें तो कांग्रेस और भाजपा में भाजपा का पलड़ा अधिक भारी नजर आता है ! इसका कुछ कुछ संकेत तो अभी हाल ही में आए डूसू चुनाव के परिणामों में भी देखा जा सकता है कि कैसे चार में से तीन सीटों पर भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी का कब्ज़ा रहा !
  बहरहाल, अभी लोकसभा चुनाव में कई महीने शेष हैं ! ऐसे में पूरी तरह से कुछ भी कहना कठिन होगा ! क्योंकि राजनीति में एक दिन में समीकरण बदल जाते हैं ! वैसे भी इस देश का पिछले दो-ढाई दशकों का राजनीतिक इतिहास बड़ी और अप्रत्याशित उलट-फेरों से भरा पड़ा है ! अतः आगामी लोकसभा चुनाव के विषय में स्पष्टतः अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी ही होगी ! हम अनुमान व्यक्त कर सकते हैं, भविष्यवाणी नही कर सकते !

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