गुरुवार, 5 सितंबर 2013

स्वास्थ्य की समस्या से जूझता देश [डीएनए में प्रकाशित]



  • पीयूष द्विवेदी भारत
डीएनए
किसी भी देश के निरंतर रूप से प्रगतिशील रहने के लिए उसके नागरिकों का स्वस्थ और शिक्षित होना एक अनिवार्य भूमिका रखता है ! पर इसमे भी शिक्षा से पहले स्वास्थ्य का ही स्थान आता है ! क्योंकि व्यक्ति जब स्वस्थ रहेगा, तभी शिक्षा के विषय में सोचेगा ! कुल मिलाकर कहने का मतलब ये है कि राष्ट्र के विकास के लिए स्वास्थ्य की जरूरत सर्वोपरी है ! अगर भारत के संदर्भ में इस बात को देखें तो हम पाते हैं कि स्वास्थ्य के मामले में भारत के पास दम भरने के लिए सिवाय चंद कागजी योजनाओं के यथार्थ के धरातल पर कुछ भी खास नही है ! आज भारत की दशा ये है कि स्वास्थ्य के मामले में वो अपने सामने कहीं नही ठहरने वाले बांगलादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों से भी काफी पीछे हो चुका है ! इस कड़वे सच से इंकार नही किया जा सकता कि स्वास्थ्य सम्बन्धी योजनाओं में निवेश के मामले में बांग्लादेश और नेपाल जैसे देश भी भारत से आगे हैं ! एक आंकड़े की माने तो जहाँ भारत द्वारा अपने सकल घरेलू उत्पाद का बमुश्किल एक प्रतिशत स्वास्थ्य संबंधी चीजों पर खर्च किया जाता है ! वहीँ बांग्लादेश और नेपाल आदि देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का डेढ़ प्रतिशत तथा उससे भी अधिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं ! ये आंकड़ा भारत के लिए किसी लिहाज से ठीक नही है ! क्योंकि इन देशों के मुकाबले भारत की आर्थिक दशा काफी बेहतर है जिसका पता इसीसे चलता है कि इन सभी देशों को भारत द्वारा आर्थिक, संसाधनिक आदि तमाम तरह की सहायता दी जाती है ! इसके अतिरिक्त तमाम और भी ऐसे आंकड़े हैं जो भारत की स्वास्थ्य संबंधी दुर्दशा को बखूबी उजागर करते हैं ! जैसे कि जहाँ भारत में प्रसव के दौरान शिशु मृत्यु दर प्रति एक हजार पर ५२ है ! वहीँ श्रीलंका और नेपाल में ये आंकड़ा प्रति १००० पर क्रमशः १८ और ३८ है ! खून की कमी के कारण एनेमिया रोग से पीड़ित भी भारत में बड़ी संख्या में मौजूद हैं ! इनके अतिरिक्त और भी बहुत सारे ऐसे तथ्य जिन्हें देखते हुए सवाल ये उठता है कि आखिर वो कौन सा कारण है कि हम उन देशों से भी स्वास्थ्य के मामले में पिछड़ते जा रहे हैं जो काफी हद तक हमारी मदद पर आश्रित हैं ? यूँ तो इस सवाल के कई जवाब होंगे पर इसका प्रमुख जवाब यही है कि हमने अपने स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों पर अपनी आबादी के मुताबिक न कभी खर्च किया और न ही उसे संजीदा लिया ! स्वास्थ्य सुविधाओं में निवेश की कमी के कारण ही आज स्थिति ये है कि भारत में आबादी के हिसाब से स्वास्थ्य सुविधाएँ न के बराबर दिखती हैं ! हम बात चाहें चिकित्सकों की करें या अस्पताल में होने वाली प्राथमिक सुविधाओं की सब मामलों में भारत फिसड्डी ही साबित होता है ! आंकड़ों के अनुसार जहाँ एक तरफ भारत में २००० लोगों की स्वास्थ्य की देखरेख के लिए मात्र एक चिकित्सक उपलब्ध है ! वहीँ लगभग इतने ही लोगों पर एक बिस्तर की भी उपलब्धता है ! इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि स्वास्थ्य संबंधी लगभग हर क्षेत्र में भारत की स्थिति डवाडोल ही है !
  इसमे कोई दोराय नही कि अगर आप समुचित स्वास्थ्य व्यवस्था चाहते हैं तो इसका एक ही उपाय है कि इस क्षेत्र में अधिकाधिक निवेश करें ! इस संबंध में भारत द्वारा निश्चित ही प्रतिवर्ष अपने स्वास्थ्य संबंधी बजट में कमोबेश वृद्धि की जाती रही है पर इस बड़ी आबादी के देश में वो वृद्धि बहुत कारगर सिद्ध नही हो पाती है ! इसका एक कारण ये भी है कि एक तो सरकार द्वारा स्वीकृत बजट यूँ ही कोई बहुत अधिक नही होता है, तिसपर उसमे भी आधे से अधिक धन योजनाओं में लगने से पहले ही भ्रष्टाचार देवता की भेट चढ़ जाता है !  एनआरएचएम जैसे घोटाले इसका अच्छा उदाहरण हैं ! बहरहाल स्वास्थ्य सुविधाओं से इतर अगर बात बीमारियों की करें तो इस मामले में भी भारत की स्थिति बदतर ही नज़र आती है ! एक सर्वे के मुताबिक दुनिया में होने वाली कुल बीमारियों का पांचवा हिस्सा अकेले भारत में होता है ! इसी संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन की माने तो आज भी भारत की आधे से अधिक आबादी शौचालय से महरूम और खुले में शौच करने के लिए विवश है ! यहाँ समझना होगा कि खुले में शौच के कारण होने वाले प्रदूषण से हैजा, पेचिस, खसरा, मलेरिया, पीलिया आदि तमाम जलजनित संक्रमक बीमारियां पैदा होती हैं ! इसके साथ ही नदी, तालाब आदि खुली जगहों पर लोगों द्वारा शौच तथा तमाम औद्योगिक संस्थानों द्वारा अपने अवशिष्ट पदार्थो का नदियों में निष्काषन किए जाने के कारण दिन पर दिन पेयजल की शुद्धता की समस्या भी बढ़ती जा रही है ! इन सब स्थितियों को देखते हुए इसे वर्तमान दौर का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि स्वास्थ्य के मोर्चे पर इतना पिछड़ने के बाद भी आज भारत में स्वास्थ्य कोई मुद्दा नही है !
  आज जरूरत तो इस बात की है कि हमारे सत्ताधीश सिर्फ स्वास्थ्य सम्बन्धी बजट पेश करके अपने दायित्वों की इतिश्री न समझें ! बल्कि, एक ऐसी पारदर्शी व्यवस्था बनाएं जो यह सुनिश्चित करे कि जनता के पैसे का सही अर्थों में उपयोग हो रहा है या नही ! इसके साथ ही जनता को भी चाहिए कि वो साफ़-सफाई के प्रति जागरुक हो और इस संबंध में सिर्फ सरकार को कोसने की बजाय अपने दायित्वों को समझे तथा उनका निर्वहन भी करे ! इसके अतिरिक्त भारतीय चिकित्सा व्यवस्था में कुछ अमूल-चूल परिवर्तनों पर विचार किए जाने की भी जरूरत है ! इन चीजों को अपनाने से भारत स्वास्थ्य के मामले में एकाएक सर्वोपरी हो जाएगा, ऐसा बिलकुल नही है ! पर इतना अवश्य है कि अगर इन बातों का समुचित ढंग से क्रियान्वयन होता है, तो धीरे-धीरे ही सही भारत भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधारपूर्ण प्रगति की ओर अग्रसर होने लगेगा !  

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