बुधवार, 4 सितंबर 2013

चुनौतियों भरा मानसून सत्र [दैनिक जागरण राष्ट्रीय में प्रकाशित]




  • पीयूष द्विवेदी भारत 
दैनिक जागरण राष्ट्रीय
जैसा कि हम देख चुके हैं कि संसद का पिछला दो-तीन सत्र बिना किसी काम-काज के ही सत्ता पक्ष के अड़ियल रवैये और विपक्ष के हंगामे की भेट चढ़ चुका हैं ! यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि संसद के ये पिछले सत्र जिन मुद्दों के कारण हंगामे की भेंट चढ़े हैं उन मुद्दों पर अभी भी कुछ खास समाधान नहीं तलाशा जा सका है ! बल्कि, विवादास्पद मुद्दों की सूची में कुछ इजाफा ही हुआ है ! ऐसे में संसद के आगामी मानसून सत्र के विषय में प्रधानमंत्री का ये कहना कि वो रचनात्मक-फलदायी होगा, उम्मीदों के साथ-साथ बहुत सारे सवाल भी खड़े करता  है ! गौरतलब है कि संसद के आगामी सत्र में सभी दलों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा बीते दिनों एक सर्वदलीय बैठक बुलाई गयी थी ! परन्तु इस बैठक के बाद मुख्य विपक्षी दल भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस सहित सपा आदि दलों की ओर से जिस तरह के बयान आये हैं, उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि कहीं संसद के आगामी सत्र में भी बीतें सत्रों की पुनरावृत्ति न हो जाय ! कभी सरकार की घटक रही तृणमूल कांग्रेस संसदीय सत्र को सुचारू रूप से चलाने के पक्ष में तो है, पर इस शर्त के साथ कि दार्जलिंग में उठ रहे अलग गोरखालैण्ड की मांग को सरकार द्वारा तरजीह न दी जाए ! दूसरी तरफ, बेशक सपा द्वारा वर्तमान सरकार को बाहर से समर्थन दिया जा रहा हो, पर इस संसदीय सत्र में सपा के सुर भी सरकार के खिलाफ ही रहने के आसार हैं ! सपा का कहना है कि अगर सरकार द्वारा अपने खाद्य सुरक्षा विधेयक में से किसान-विरोधी बातों को नही हटाया गया, तो सपा इसका खुलकर विरोध करेगी ! इन सबके बाद अब हम बात करते हैं विपक्ष की भूमिका में बैठी भाजपा की ! भाजपा के लिए ये सत्र सरकार को घेरने के लिए संभावनाओं से भरा पड़ा है ! क्योंकि महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, आदि तमाम मुद्दों पर ये सरकार पहले से ही बैकफुट पर है ! ऐसे में भाजपा चाहेगी कि इन मुद्दों का भरपूर राजनीतिक लाभ लिया जाए और सरकार को पूरी तरह से दबाया जाए !  यहाँ हमें ध्यान देना होगा कि पिछले संसदीय सत्रों में कोई काम-काज न होने के कारण सरकार के कई महत्वपूर्ण विधेयक अभी संसद में पारित होने की राह देख रहे हैं और इसके साथ ही लोकसभा चुनाव में अब अधिक समय शेष नही है ! अतः जहाँ सरकार का पूरा जोर होगा कि इस मानसून सत्र में लंबित पड़े अधिकाधिक विधेयकों को पारित करवा के निकट आ रहे लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी धूमिल हुई छवि को कुछ ठीक करे ! वहीँ लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ही मुख्य विपक्षी दल बीजेपी का भी पूरा प्रयास होगा कि इस संसदीय सत्र में उत्तराखण्ड त्रासदी, रुपये के अवमूल्यन, एफडीआई, तेलंगाना  आदि तमाम मुद्दों पर सरकार के प्रति किसी भी तरह की ढील न बरती जाए ! हालाकि विपक्ष में होने के नाते बीजेपी का ऐसा रुख अख्तियार करना राजनीतिक अवसरवादिता का परिचायक होने के साथ-साथ राजनीतिक दृष्टिकोण से सही भी है ! क्योंकि, राजनीति में अवसर और मुद्दा ये दो चीजें सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है और आज भाजपा के पास सरकार पर हावी होने के लिए ये दोनों ही चीजें हैं ! कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि आगामी संसदीय सत्र जहाँ विपक्ष के लिए सरकार को घेरने के लिहाज से महत्वपूर्ण है ! वहीँ, सरकार के लिए अपने लंबित पड़े तमाम विधेयकों को पारित करवाकर अपनी खराब हो चुकी छवि को कुछ ठीक करने का एक अच्छा मौका है ! साफ़ है कि ये सत्र सरकार के लिए बेहद चुनौतियों भरा डगर है जिसमे उसको लोकसभा चुनाव के लिहाज से तैयार होना बेहद जरूरी है !  

 आंकड़ों की माने तो जहाँ सरकार के लंबित विधेयकों की सूची सैकड़ा पार कर चुकी है ! वहीँ इस संसदीय सत्र में सरकार के महत्वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा विधेयक समेत छोटे-बड़े  चौवालीस विधेयक सूचीबद्ध किए गए हैं ! इन विधेयकों में तमाम ऐसे भी विधेयक हैं, जो सालों से लोकसभा और राज्यसभा के बीच अटके पड़े हैं ! जिनमे कि लोकपाल, न्यायिक जवाबदेही, आदि तमाम विधेयक सालों से पारित होने की कतार में खड़े अपनी राह देख रहे हैं ! इनके अतिरिक्त छः अध्यादेश भी पारित होने की कतार में खड़े हैं जिनमे कि खाद्य सुरक्षा विधेयक भी शामिल है ! यहाँ हमें ये भी देखना होगा कि ५ अगस्त से ३० अगस्त तक चलने वाले इस संसदीय सत्र में कुल १६ दिन काम होगा ! ऐसे में, यह स्वीकारना बहुत कठिन है कि विपक्ष के विरोध जो कि प्रत्याशित है, के बीच सरकार अपने इन विधेयकों को पारित करवाने में सफल हो पाएगी ! लोकसभा चुनाव के लिहाज से यह सत्र सबसे महत्वपूर्ण साबित होने वाला है और यही वो सत्र है जिसमे काफी कुछ स्पष्ट भी हो सकता है ! अगर सरकार इन विधेयकों को पारित करवाने में सफल होती है तो चुनाव मैदान में उसको अपनी कामयाबी गिनाने के लिए पर्याप्त साजो-सामान होगा एवं विपक्ष के लिए घेरने का कम से कम अवसर ! फिलहाल राजनीतिक हालातों को देखकर ऐसा नहीं लगता कि सब सरकार के लिहाज से आसानी से हो पायेगा ! अडचने इस सत्र की भी कम नहीं हैं और अगर सब कुछ ठीक नहीं हुआ तो यह सत्र भी हंगामे और विरोध की भेंट चढ़ता नजर आ सकता है ! जो भी हो, लेकिन संसद की कार्यवाही ठप होना सरकार के लिहाज से ठीक नहीं है !


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