- पीयूष द्विवेदी भारत
आईनेक्स्ट |
यूँ तो केन्द्र सरकार द्वारा अपने
राजनीतिक हितों के लिए सीबीआई का इस्तेमाल बेशक नया नही है, पर इसबार के हालात
हरबार से काफी अलग और चिंतित करने वाले हैं ! क्योंकि, इसबार देश की सुरक्षा से
जुड़ी दो एजेंसियां आमने-सामने खड़ी, एकदूसरे की नीयत पर प्रश्नचिन्ह लगा रही हैं !
कहना गलत नही होगा कि सुरक्षा एजेंसियों के बीच ये विवाद उपजाकर हमारे सियासी
आकाओं को जो भी लाभ-हानि हो, पर देश की सुरक्षा के लिए ये सिर्फ और सिर्फ खतरनाक ही होगा ! ये इस देश
का दुर्भाग्य ही है कि जिन हुक्मरानों पर इसकी देखरेख और सुरक्षा का दायित्व है
वही अपने चंद सियासी फायदों के लिए इसकी सुरक्षा को हाशिए पर ढकेल रहे हैं !
वर्तमान दौर भारतीय सुरक्षा
के लिहाज से बड़ा ही कठिन और चिन्ताप्रद है ! पाकिस्तान, चीन, आदि देशों से हमें
हमेशा से ही खतरा रहा है जोकि आज और भी प्रबल रूप ले चुका है, तिसपर इन्हीसे
प्रेरित आतंकी संगठनों की भारत विरोधी गतिविधियां, जो हमारे आर्थिक और सामाजिक
ढाँचे को तबाह करने के लिए गतिशील हैं, भी आज हमारी सुरक्षा व्यवस्था के लिए बड़ा
सिरदर्द बन चुकी हैं ! ये सब चिंताएं तो बाह्य सुरक्षा से जुड़ी थीं, पर इन सबसे
अधिक चिंतादायक तो भारत की आतंरिक सुरक्षा से जुड़ी नक्सल समस्या है ! हम लाख
कोशिशों के बाद भी नक्सलियों को मिटाना तो दूर, रोक भी नही पा रहे ! वो जब, जहाँ,
जैसे और जिसपर चाहें हमला कर लेते हैं और हम सिवाय कोरी बयानबाजियों के कुछ ठोस
नही कर पाते ! इन सब बातों को देखते हुवे यही कहा जा सकता है कि अभी भारत की
स्थिति बारूद पर बैठने जैसी भले न हो, पर वो बारूद से घिरा जरूर है, अतः जब भी
विस्फोट होगा भारत उससे अछूता नही रहेगा ! ऐसे में, सरकार का तो यही दायित्व बनता
है कि वो हमारी सुरक्षा एजेंसियों, जांच एजेंसियों तथा आइबी आदि में आपसी तालमेल
स्थापित करवाए तथा इन सबको मिलजुल कर देश की सुरक्षा को चाकचौबंद रखने के लिए
प्रेरित करे, पर यहाँ तो तस्वीर ही दूसरी है ! यहाँ सरकार तालमेल बिठवाना तो छोड़ो,
उलटे झगड़ा लगवाने का काम कर रही है ! और इस झगड़े का पूरा-पूरा असर हमारी सुरक्षा
व्यवस्था पर पड़ना तय है ! गौरतलब है कि इन विवादों के बाद आइबी ने सुरक्षा
एजेंसियों को दी जाने वाली देश की सुरक्षा से जुड़ी अतिसंवेदनशील सूचनाओं में भारी
कमी कर दी है ! उसका कहना है कि जब उसके निदेशक पर संदेह किया और आरोप लगाया जा
रहा है, तो वो किस आधार पर सूचनाएं दे ! इसी संदर्भ में ये लिखना जरूरी होगा कि
बगैर आइबी की सूचनाओं तथा सहयोग के हमारी सुरक्षा एजेंसियों की इतनी क्षमता नही है
कि वो देश की सुरक्षा व्यवस्था को ससहज दुरुस्त रख सकें !
वैसे तो सुरक्षा एजेंसियों
और आइबी के बीच तालमेल न होना हमेशा के लिए खतरनाक है, पर अभी ये खतरा स्वतंत्रता
दिवस की निकटता के कारण और भी प्रबल है ! लगभग दो हप्ते शेष हैं स्वतंत्रता दिवस,
जोकि भारतीय सुरक्षातंत्र के लिए अत्यंत चिन्ताप्रद और चुनौतीपूर्ण होता है, के आगमन में ! ऐसे
में, सत्तापक्ष की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की कोख से जन्मा सीबीआई और आइबी के बीच
का ये विवाद, जिसके थमने के आसार फ़िलहाल तो नही दिख रहे, भय ही पैदा करता है ! वर्तमान
जरूरत तो ये है कि हमारे हुक्मरान अपनी घटिया राजनीतिक महत्वाकांक्षा को छोड़
तत्परता दिखाते हुवे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी इन दोनों एजेंसियों के आला
अधिकारियों के साथ बैठकर, दोनों पक्षों की बातें सुने और चीजों को समझें और
यथासंभव प्रयास करें कि ये विवाद अब और न बढ़ने पाए ! अगर ये नही होता, तो सरकार को इतना प्रयास तो
जरूर करना चाहिए कि इन दोनों एजेंसियों में विवाद से इतर राष्ट्रीय सुरक्षा के
मुद्दे पर तो कम से कम सामंजस्य बन ही जाए ! सरकार को इतना तो जितनी जल्दी हो सके करना
ही होगा, वर्ना ये विवाद राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ, विश्वसमुदाय में भी भारत की
साख पर व्यापक दुष्प्रभाव डालेगा !
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