- पीयूष द्विवेदी भारत
आईनेक्स्ट |
कुछ साल
पहले दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने कहा था कि अगर उच्च न्यायालयों में
न्यायाधीशों की बढोत्तरी नही की गई तो लंबित पड़े मामलों के निपटारे में ४५० साल का
समय लग सकता है ! अब ये बात सुनने में थोड़ी अटपटी भले लगे, पर भारतीय न्याय
व्यवस्था की वास्तविकता इससे काफी हद तक मिलती-जुलती ही है ! एक आंकड़े की माने तो
अभी देश के उच्च और जिला अदालतों में लगभग तीन करोड़ से अधिक मामले लंबित पड़े अपने
अंजाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं ! इतने अधिक मामले लंबित होने के लिए यूँ तो
छोटे-बड़े बहुत सारे कारण जिम्मेदार हैं, पर यहाँ हम कुछ महत्वपूर्ण कारणों पर बात
करेंगे ! इस संबंध में सबसे बड़ा कारण तो यही है कि आज हमारी न्याय व्यवस्था जजों
की किल्लत से जूझ रही है ! सभी छोटी-बड़ी अदालतों में जजों की संख्या आवश्यकता से
काफी कम है ! एक आंकड़े के अनुसार आज जहाँ देश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों
के ३२ फिसदी पद रिक्त हैं वहीँ निचली अदालतों में भी ये आंकड़ा २० प्रतिशत से ऊपर
है ! समझा जा सकता है कि जिस न्याय व्यवस्था में आवश्यकतानुसार जजों की मौजूदगी ही
न हो वहाँ जनता को तय समय में समुचित न्याय भला कैसे मिल सकता है ! समस्या सिर्फ
इतनी हो तो कहें भी, पर यहाँ तो समस्याओं की फेहरिस्त पड़ी है ! जजों की कमी के
अतिरिक्त पुलिस की धीमी जांच और चार्जशीट दायर करने में की जाने वाली देरी भी एक
प्रमुख कारण है न्यायिक प्रक्रिया में देरी के लिए ! चार्जशीट दायर होने के बाद भी
कितने बार पुलिस की कमजोर और तथ्यहीन जांच के कारण न्यायालय द्वारा उसे दूबारा
चार्जशीट दायर करने के लिए कह दिया जाता है जिस कारण न्यायिक प्रक्रिया में समय की
खासा बर्बादी होती है ! ये तथा और भी बहुतों कारण हैं जिनके चलते हमारी न्याय
व्यवस्था अत्यंत सुस्त रही है और लोगों को न्याय के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता रहा
है ! किसी भी न्याय व्यवस्था के लिए इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण क्या होगा कि कितने
मामलों में अदालत का फैसला आने में इतनी देरी होती है कि मामले से सम्बंधित लोगों
की मौत तक हो जाती है और अदालत का फैसला नही आ पाता है !
सन २००१
में केन्द्र सरकार द्वारा पुराने मामलों के निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों का
गठन किया गया था ! आगे चलकर इन अदालतों के कार्यक्षेत्र में विस्तार हुआ और ये
सिर्फ पुराने पड़े मामलों की बजाय हर तरह के मामले देखने लगीं ! फास्ट ट्रैक
अदालतों की खासियत ये है कि इनमे सामान्य अदालतों की अपेक्षा न्यायिक प्रक्रिया
थोड़ी तेजी से चलती है ! फास्ट ट्रैक अदालतों के काम-काज की तेजी का पता इसी बात से
चलता है कि २००१ से अबतक लगभग १००० फास्ट ट्रैक अदालतों ने तीस लाख से अधिक मामलों
का निपटारा किया है ! वैसे फास्ट ट्रैक अदालतों के फैसलों का प्रायः ये कहकर
आलोचना की जाती है कि ये फैसले जल्दबाजी में लिए गए और गुणवत्ता से हीन होते हैं !
अब जो भी हो, पर भारत के आम आदमी की माने तो फास्ट ट्रैक अदालतें देश की न्याय
व्यवस्था का भला ही कर रही हैं, बुरा नही !
वर्तमान
दौर में भारतीय लोकतंत्र की स्थिति ये है कि उसके तीनों स्तंभों में जनता को अगर
सर्वाधिक विश्वास किसी पर है, तो न्यायपालिका पर ! न्यायपालिका द्वारा सरकार की
मनमानियों पर नियंत्रण लगाने वाले कुछ फैसलों तथा वक्त दर वक्त सरकार को सचेत करते
रहने के कारण जनता अपने लिए न्यायपालिका को एकलौती उम्मीद के रूप में देख रही है !
ऐसी स्थिति में ये आवश्यक हो जाता है कि न्यायपालिका के काम-काज में तेजी आए और जनता
को ससमय समुचित न्याय मिले जिससे उसका विश्वास न्यायपालिका पर और भी मजबूत हो !
साथ ही, न्याय प्रक्रिया इतनी दुरुस्त और तेज हो कि अपराधी उसका भय माने और अपराध
करने से पहले सौ बार सोचें ! इसके लिए पहली जरूरत ये है कि हमारी पुलिस अपनी
ढुलमुल जांच प्रक्रिया को छोड़े और मामलों की तेजी से जांच करे ! दूसरी बात कि
न्यायालयों में रिक्त पड़े जजों के पदों पर यथाशीघ्र जजों की नियुक्ति की जाए तथा आखिर
में हर राज्य में आवश्यकतानुसार फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन करने के साथ-साथ ऐसी
व्यवस्था कायम करने की कोशिश की जाय कि देश की सामान्य अदालतें भी फास्ट ट्रैक
अदालतों की तरह तेजी से काम कर सकें ! अगर ऐसा होता है तभी हम सही मायने में जनता
के मन में भारतीय न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास उत्पन्न कर पाएंगे !
वाह बहुत सार्थक आलेख है पियूष जी मैं भी आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ बहुत बहुत बधाई अपनी कलम की धार को इसी तरह बरकरार रखिये शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय राजेश कुमारी जी !
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