- पीयूष द्विवेदी भारत
कहते हैं कि ईश्वर मनुष्य को पूर्ण नहीं बनाता, कोई न कोई कमी छोड़ ही देता है। किसीको रूप देता है तो गुण नहीं और किसीको गुण देता है तो रूप में कमी कर देता है। लेकिन, इस बात के अपवाद भी होते हैं, भारतीय सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार श्रीदेवी वैसे ही अपवादों में से एक थीं। उन्हें ईश्वर ने सम्पूर्णता से रचा था। रूप का अपार वैभव भी दिया था और विलक्षण प्रतिभा का खजाना भी। परन्तु, शायद ईश्वर को स्वीकार नहीं था कि उसकी ये मोहक रचना अधिक समय तक आदमियों की दुनिया में रहे, सो उसने बड़ी जल्दी ही भारतीय सिनेमा की इस ‘श्री’ को अपने पास बुला लिया। बीती २५ फरवरी को लगभग चौवन वर्ष की अल्पायु में ही श्रीदेवी भारतीय सिनेमा को सूना करके चली गयीं। पहले खबर थी कि दुबई में एक शादी समारोह में शिरकत करने पहुँची श्रीदेवी को अचानक ही ‘कार्डियक अरेस्ट’ का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गयी, लेकिन अब मृत्यु के कुछ और ही कारण सामने आ रहे हैं। अब जो भी हो, पर यह सच्चाई है कि भारतीय सिनेमा की एक अज़ीम अदाकारा अब हमारे बीच नहीं रही। यह एक विचित्र संयोग ही है कि जिस तारीख को श्रीदेवी ने अपने जीवन की अंतिम साँसें लीं, उस रोज भारतीय सिनेमा की एक और अमर अभिनेत्री दिव्या भारती का जन्मदिन था। दिव्या भारती भी श्रीदेवी की ही तरह रूप और प्रतिभा दोनों से परिपूर्ण अभिनेत्री थीं। उल्लेखनीय होगा कि फिल्म लाडला में अनिल कपूर के साथ पहले दिव्या भारती को लिया गया था, जिसके कुछ दृश्यों की उन्होंने शूटिंग भी की थी, जो बाद में लीक होकर काफी चर्चित रहे और अब भी यूट्यूब पर मौजूद हैं। मगर, फिर किसी वजह से दिव्या इस फिल्म से अलग हो गयीं और उनकी जगह श्रीदेवी को लिया गया। यह फिल्म सुपरहिट रही थी। कहने का आशय यह है कि उस दौर में ये दो अभिनेत्रियाँ थीं, जिनको आवश्यक होने पर एकदूसरे के साथ ‘रिप्लेस’ किया जा सकता था। लेकिन, आज से लगभग ढाई दशक पूर्व मात्र १९ साल की उम्र में दिव्या अचानक ही दुनिया को छोड़कर चली गयीं। आज श्रीदेवी की मौत पर जैसी कसक दिखाई दे रही है, वैसी ही तब दिव्या भारती की मौत पर भी सिनेमाप्रेमियों को हुई थी।
१३ अगस्त, १९६३ को चेन्नई के शिवकाशी में जन्मी श्री अम्मा येंगर अय्यपन के लिए भारतीय सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार श्रीदेवी बन जाने की यात्रा सरल बिलकुल भी नहीं रही। १९७९ में अमोल पालेकर के साथ आई बॉलीवुड में उनकी पहली फिल्म ‘सोलवा सावन’ बुरी तरह से फ्लॉप रही थी। इसके बाद के अगले चार साल उनके लिए काफी कठिन रहे, इस दौरान उन्होंने कई फ़िल्में कीं, लेकिन कोई ख़ास कामयाबी नहीं मिली। आखिर सन १९८३ में के. राघवेन्द्र राव द्वारा निर्देशित फिल्म ‘हिम्मतवाला’ में उन्हें तब के सुपरस्टार जीतेंद्र के साथ मुख्य अभिनेत्री के रूप में लिया गया। ये फिल्म न केवल बड़ी हिट रही बल्कि बॉलीवुड में श्रीदेवी के सफर के लिए मील का पत्थर भी साबित हुई। इस फिल्म का ‘नैनों में सपना’ गीत और उसमें श्रीदेवी द्वारा किया गया नृत्य, दोनों ही आज भी बेहद लोकप्रिय हैं। हिम्मत तो श्री में पहले से ही थी, लेकिन ‘हिम्मतवाला’ की सलफता ने उनमे आत्मविश्वास भी भर दिया और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद उन्होंने मवाली, तोहफा, बलिदान, धरम अधिकारी आदि तमाम सफल मसाला फ़िल्में कीं, जिनमें अभिनय से अधिक उनके रूप-वैभव और लटको-झटकों का चित्रण हुआ था। लेकिन, सन १९८३ में कमल हासन के साथ आई उनकी फिल्म ‘सदमा’ ने उनमे छिपी अभिनय की बहुआयामी क्षमता को लोगों के सामने लाने का काम किया। यह फिल्म व्यावसायिक रूप से तो साधारण सफलता ही प्राप्त कर सकी, लेकिन इसमें श्रीदेवी के अभिनय को भरपूर सराहना मिली। यह उनकी अभिनय क्षमता को उभारने वाली फिल्म साबित हुई। इस फिल्म ने नायक प्रधान फिल्मों के उस दौर में भी श्रीदेवी को एक नायिका के रूप में मजबूती से पेश किया। परिणाम यह हुआ कि इसके बाद आई कई फिल्मों में उनके किरदार को केवल लटको-झटकों तक सीमित रखने की बजाय नायक के बराबर सशक्त ढंग से गढ़ा गया। इस बात का एक सशक्त उदाहरण सन १९९२ में आई ‘खुदा गवाह’, जिसमें अभिनेता की भूमिका में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन थे, में श्रीदेवी द्वारा निभाए गए बेनजीर के किरदार के रूप में देखा जा सकता है। इसके अलावा नगीना, निगाहें, चालबाज, लाडला आदि तमाम और फिल्मों में उनका मजबूत किरदार दिखाई देता है। ये सब फ़िल्में सुपरहिट रही थीं, जिससे जाहिर है कि नायक-प्रधान फिल्मों के उस युग में इस मजबूत नायिका को लोगों ने खूब पसंद किया। हाल के वर्षों में भी उनकी दो फ़िल्में आईं – इंग्लिश-विन्ग्लिश और मॉम – ये दोनों ही फ़िल्में अलग-अलग कथानक के साथ ‘माँ’ के किरदार के इर्द-गिर्द रही थीं। ये फ़िल्में व्यावसायिक रूप से कुछ ख़ास सफल नहीं रहीं, लेकिन इनमें श्रीदेवी द्वारा अभिनीत माँ के किरदार इतने मजबूत और प्रभावी हैं कि हमेशा अविस्मरणीय रहेंगे और इन फिल्मों को भी महत्वपूर्ण बनाए रहेंगे।
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