सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

सुयोग्यता को सम्मान

  • पीयूष द्विवेदी भारत
गत वर्ष जब पद्म सम्मानों की घोषणा हुई थी, तो उसमें तमाम ऐसे चेहरे सामने आए थे, जो बिना किसी प्रसिद्धि की लालसा के लम्बे समय से अपने-अपने क्षेत्र में उत्तम कार्य कर रहे थे। इसीके साथ सिफारिशों और लॉबियों से मुक्त पद्म सम्मानों की एक नवीन परम्परा का सूत्रपात हुआ था, जिसको बेहतर ढंग से आगे बढ़ाने का काम इस वर्ष भी सरकार ने किया है। इस बार विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित कुल पचासी व्यक्तियों को पद्म सम्मानों से सम्मानित किया गया है, जिनमें तीन पद्म विभूषण, नौ पद्म भूषण और तिहत्तर पद्म श्री पुरस्कार शा
मिल हैं। सम्मानित व्यक्तियों में अनेक ऐसे नाम हैं, विशेष रूप से पद्म श्री की श्रेणी में, जो लम्बे समय से संघर्षपूर्ण ढंग से अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं, मगर अब जाके पद्म सम्मानों के द्वारा उनकी प्रतिभा और कार्य को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है।             

जर्जर शरीर का पहाड़ जैसा मन
भारतीय सेना के पूर्व सिपाही मुरलीकांत पेटकर सन १९६५ के युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए बुरी तरह से घायल होने के बाद बमुश्किल बच तो गए, मगर रीढ़ की हड्डी में गोली लग जाने के कारण कमर से नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। लेकिन, ये अक्षमता भारतीय सेना के इस जांबाज को बिस्तर पर नहीं रोक सकी! अपने उद्यम और कठिन अभ्यास से उन्होंने खुद को पैरालंपिक प्रतियोगिता में तैराकी के लिए केवल तैयार किया बल्कि १९७२ के पैरालम्पिक में देश के लिए प्रथम स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ी भी बने। इस वर्ष इन्हें खेल के क्षेत्र में पद्म श्री प्रदान करने का निर्णय लिया गया है, जो कि निस्संदेह इस सम्मान का सम्मान होने जैसा है।     


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद्म सम्मान की गरिमा को बहाल किया है उनका शुरू से ऐसा कहना था कि पद्म सम्मानों की संख्या सौ के अंदर रहनी चाहिए, जबकि कांग्रेस के जमाने में पद्म सम्मान रेवड़ी की तरह बाँटे जाते थे। २०१४ से इसकी संख्या धीरे-धीरे कम हुई और फिर ऐसी नीति बनी कि लोग खुद पद्म सम्मान के लिए अपने-अपने क्षेत्र के योग्य लोगों को नामित कर सकते हैं। ये नीति इसबार लागू हुई। पहले नामित करने की प्रक्रिया नहीं थी, सरकारी एजेंसियों के माध्यम से जो सुझाव आते थे, उनके आधार पर गृहमंत्रालय एक लम्बी सूची तैयार करता था, जिसमें से लोगों को सम्मान हेतु चुना जाता था। परन्तु, इसबार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह ध्यान रखा कि पद्म सम्मान योग्य लोगों को मिलें और सम्मान की गरिमा भी बनी रहे। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही इसबार लोगों को सम्मान दिए गए हैं, जो कि निस्संदेह एक अच्छी शुरुआत है।
-       रामबहादुर राय, अध्यक्ष, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र

पद्म सम्मान यदि आप किसीको उसके काम पर देना चाहते हैं, तो उसका काम ही देखा जाएगा, चर्चा नहीं। यह बिलकुल ठीक बात है कि बहुत-से लोग अपने क्षेत्र में चुपचाप अपना काम करते रहते हैं, अपनी चर्चा नहीं करवाते और दूसरा कोई अपने आप करता नहीं। ऐसे लोगों को जो अबतक अचर्चित थे, उनके काम के कारण अगर कोई सरकार पद्म सम्मान देती है, तो वो बधाई की पात्र है। पद्म सम्मान एक तरह से सरकारी पहचान की बात है, क्योंकि इसके साथ पैसा या कोई अन्य सुविधा तो है नहीं, सिवाय इसके कि आपको सरकारी आयोजनों में आमंत्रित किया जाएगा। अब अगर सरकारी पहचान इस धरातल पर होती है कि आपने काम किया है, तो यह बहुत अच्छी बात है। मैं तो इसके भी विरुद्ध हूँ कि सांसद या मंत्री के पीछे लगकर आप अपना नाम ऊपर तक पहुंचाएं। बहुत से लोगों को ऐसे भी मिलता है, लेकिन ये कोई अच्छा माध्यम नहीं है। अच्छा माध्यम तो यही है कि आप काम करें और सरकार या उस क्षेत्र से सम्बंधित सरकार के लोग आपको पहचानें तथा आपका नाम सम्मान के लिए चुना जाए। इसबार ऐसा हुआ है, और यह एक अच्छी और प्रशंसनीय शुरुआत है।
                                                                         - नरेंद्र कोहली, वरिष्ठ साहित्यकार

हजारों लोगों को दिया जीवन
कर्णाटक के जनजातीय इलाकों में सात दशकों से लगातार बिना किसी सरकारी सुविधा के अपने अनुभवजन्य ज्ञान के सहारे प्रसव सहायिका का कार्य कर रही सुलगति नरसम्मा को इस वर्ष पद्म श्री प्रदान करने की घोषणा हुई है। गर्भस्थ शिशु की स्वास्थ्य सम्बन्धी स्थितियों का बिना किसी वैज्ञानिक उपकरण के स्पष्ट आकलन करने की अद्भुत क्षमता के कारण नरसम्मा अपने क्षेत्र मेंजननी अम्माके नाम से भी मशहूर हैं।         


परिश्रम और उद्यम ने दिलाई सफलता
देश में उद्यमिता और परिश्रम से सफलता प्राप्त करने की इच्छा रखने वालों को मणिपुर की सुभादानी देवी से जरूर प्रेरणा लेनी चाहिए। पांच भाई-बहनों में दूसरी सुभादानी मणिपुर के (Huikap Mayai Leika नामक स्थान पर) एक साधारण परिवार में पैदा हुईं। उनके पिता बढ़ई थे और माँ सब्जी बेचती थीं। निस्संदेह यहीं से सुभादानी के जीवन में परिश्रम और उद्यम के प्रति आकर्षण जन्मा होगा। अपनी माँ से ही उन्होंने बुनाई सीखी और आगे चलकर इसे ही अपना जीवन-लक्ष्य बना लिया। शादी के पश्चात् उन्होंने धीरे-धीरे अपना अधिकाधिक समय और श्रम हथकरघे पर देना शुरू कर दिया। उनके बुने कपड़ों की ख्याति फैलती गयी। 1993 के दौरान उन्हें वस्त्र निर्माण में उत्कृष्टता के साथ-साथ मोइरंगफी (Moirangpheeएक विशेष प्रकार की साड़ी) के विकास में योगदान के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त प्रदान किया गया था। इसके अलावा हथकरघा विरासत को जीवित रखने में उनके उत्कृष्ट और बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें 2011 में प्रतिष्ठित संत कबीर पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। अब इस वर्ष उन्हें बुनाई जैसी पारंपरिक कला के क्षेत्र में इस महती योगदान के लिए देश का उच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री देने की घोषणा की गयी है। 


जीवनदान देने वाली दादी माँ
केरल के कल्लोर में ताड़ के पत्तों से बने मकान में रहने वाली लक्ष्मी कुट्टी जड़ी-बूटियों के माध्यम से अबतक केवल अपनी याद्दाश्त के दम पर पांच सौ से अधिक प्राकृतिक औषधियों का निर्माण कर चुकी हैं। सर्पदंशित व्यक्ति को जीवनदान देने वाली दवाएं बनाने में उन्हें महारत हासिल है। चूंकि, वे जिस क्षेत्र में रहती हैं, वहां सांप आदि जहरीले जीवों का खतरा बना रहता है, इसलिए उनकी दवाएं वहाँ अत्यंत उपयोगी और कारगर हैं। खबरों के अनुसार, वे अपने इलाके मेंजंगल की दादी माँके संबोधन से भी मशहूर हैं। लक्ष्मी कुट्टी जब पद्म सम्मान ग्रहण करेंगी तो निस्संदेह उन अनेक लोगों की आंखें प्रसन्नता से नम हुई रहेंगी, जिन्हें उनकी दवाओं ने जीवनदान दिया है।

सेवा के सेनानी
पश्चिम बंगाल के 99 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी सुधांशु विश्वास गरीबों और बेसहारा जनों की सहायतार्थ कार्य करते हैं। बेसहारा बच्चों के लिए अनाथालय चलाने से लेकर नि:शुल्क स्कूल के सञ्चालन तक ये गरीबों के लिए विविध प्रकार से लगातार कार्य कर रहे हैं। इन महनीय सामाजिक कार्यों के लिए अबकी समाज-सेवा के क्षेत्र में इन्हें पद्म श्री सम्मान के लिए चुना गया है।  


उचित सम्मान के हकदार
१९७५ में आइआइटी कानपुर से इलेक्ट्रिकल में बीटेक करने वाले अरविन्द गुप्ता ने पढ़ाई पूरी करने के बाद किसी बड़ी नौकरी का रुख करने की बजाय कबाड़ से खिलौने बनाकर बच्चों को पढ़ाने का निश्चय किया। अबतक वे खिलौना निर्माण पर १८ भाषाओं में ६२०० फ़िल्में बना चुके हैं। उनके इस तरीके की ख्याति दुनिया भर में है, मगर देश में उनका यह कार्य बहुत चर्चा नहीं पा सका। लेकिन, अब जब उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में पद्म श्री से सम्मानित किए जाने की घोषणा हुई, तो उनके इस कार्य की चर्चा देश भर में होने लगी है।    

निष्काम कर्मयोगी  
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में स्थित जांजगीर-चंपा प्रभाग के निवासी दामोदर गणेश बापट ने अपना पूरा जीवन ही कुष्ठ रोगियों की सेवा में समर्पित कर दिया है। सन १९६२ में सदाशिव गोविंदराव कात्रे द्वारा स्थापित कुष्ठ आश्रम में सन १९७२ में गणेश बापट भारतीय स्वयंसेवक संघ के वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता के रूप में पहुँचे और फिर वहीं के होकर रह गए। साढ़े चार दशकों से वे नाम और पैसे की चकाचौंध से दूर चुपचाप कुष्ठ रोगियों की सेवा में लगे हैं। गीता केनिष्काम कर्मके सिद्धांत को अपने जीवन में उतारने वाले इस कर्मयोगी को इस वर्ष समाज सेवा के क्षेत्र में पद्म श्री सम्मान के लिए चुना गया है।   

फैलाया शिक्षा का आलोक
देश का पूर्वोत्तर क्षेत्र भी इसबार सरकार की दृष्टि से परे नहीं रहा और पूर्वोत्तर के राज्यों से भी तमाम उपयुक्त व्यक्तियों को खोजकर उन्हें उनका उचित सम्मान प्रदान किया गया है। नागालैंड के पियोंग तेमजिन जमीर ऐसे ही लोगों में से एक हैं, इन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए इस वर्ष पद्म श्री से सम्मानित किया जाएगा।


नर सेवा, नारायण सेवा
जयपुर के त्रिवेणी धाम के ब्रह्मपीठाधीश्वर संत श्री नारायण दास महाराज को अध्यात्म के क्षेत्र में पद्म पुरस्कार के लिए चुना गया है। नारायणदास महाराज बाल-सन्यासी हैं और त्रिवेणी स्थित अपने आश्रम में रहते हैं। लोक कल्याण के क्षेत्र में उनके द्वारा, त्रिवेणी में वेद विद्यालय, अपने गुरू भगवान दास महाराज के नाम से चिमनपुरा में बाबा भगवानदास राजकीय कृषि महाविद्यालय, जगद्गुरू रामानंदाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, लड़कियों के लिए बाबा गंगादास राजकीय परास्नातक महाविद्यालय, अजीतगढ़ में ग्राम पंचायत स्तर पर पहला 100 बेड का सामान्य अस्पताल बाबा नारायणदास राजकीय सामान्य चिकित्सालय आदि की स्थापना करने जैसे अनेक कार्य किए गए हैं। परन्तु, इतना करने के बाद भी इस सन्यासी की सहजता और विनम्रता ऐसी है कि पद्म श्री के लिए नामित होने के बाद एक समाचार पत्र से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘मेरा सम्मान किए जाने पर मुझे दुःख होगा, क्योंकि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जिसके लिए मुझे सम्मान दिया जाए आज जब लोग अपने जरा-जरा से सामाजिक कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित करने में लगे रहते हैं, संत श्री नारायणदास का यह कथन उनकी महानता का ही परिचायक है।   

संकल्प से सफलता
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के एक छोटे-से गाँव हांसपुकुर की रहने वाली सुभाषिनी मिस्त्री को समाजसेवा के क्षेत्र में इस वर्ष पद्म श्री सम्मान प्रदान करने की घोषणा की गयी है। सुभाषिनी की कहानी संकल्प, साधना और सफलता की कहानी है। चिकित्सा की सुविधा होने के कारण पति के अकाल मृत्यु का शिकार हो जाने के बाद सुभाषिनी अकेली तो हो गयीं, मगर कमजोर नहीं हुईं। उन्होंने संकल्प किया कि अब वे अपने इलाके में कम से कम चिकित्सा के अभाव में तो किसीको काल-कवलित नहीं होने देंगी। इसके बाद इस संकल्प की सिद्धि के लिए उनकी साधना और संघर्ष का आरम्भ हुआ। चार-चार बच्चों के पालन-पोषण के साथ अस्पताल की स्थापना के लिए भी धनार्जन की चुनौती उनके सामने थी। सब बच्चों का पालन-पोषण करना संभव होने के कारण उन्हें अपने दो बच्चों को अनाथालय में रखना पड़ा। अक्सर भूखे पेट भी रहना पड़ जाता। इस प्रकार लगभग तीन दशकों के अथक संघर्ष और त्याग के पश्चात् १९९६ में आखिर वे एक अस्पताल की स्थापना करने में सफल हुईं जिसमें गरीबों का मुफ्त इलाज किया जाता है। पच्चीस बिस्तरों का यह अस्पताल संकल्प से सफलता का सर्वोत्तम उदाहरण है। पद्म सम्मान के लिए चुने जाने पर उनका कहना है कि इस सम्मान की ख़ुशी है, परन्तु इससे अस्पताल के विकास में मदद मिले तो उन्हें और ख़ुशी होगी।     

चिकित्सा पेशा नहीं, धर्मार्थ कार्य
कैंसर जैसी घातक बीमारी की सस्ती दवाई अगर आपको चाहिए तो हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में भिक्षु डॉक्टर येशी धोंडेन से बेहतर आपके लिए कोई नहीं हो सकता। तिब्बती चिकित्सा पद्धति से कैंसर सहित विभिन्न बीमारियों का लगभग पाँच दशकों से इलाज कर रहे येशी धोंडेन दलाई लामा के भी चिकित्सक रह चुके हैं। इस वर्ष उनको पद्म श्री से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। सम्मान मिलने की घोषणा के बाद केंद्र सरकार का धन्यवाद करते हुए उन्होंने कहा कि मुझे नहीं मालूम कि यह अवार्ड कैसे मिला। शायद, हजारों मरीजों की दुआओं ने यह सम्मान दिलाया है।     

कला के साधक
संस्कार भारतीके संस्थापक बाबा योगेन्द्र ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने हजारों कला साधकों को एक माला में पिरोने का कठिन काम कर दिखाया है। वे जीवन के शुरुआती दिनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए और संघ के होकर रह गए। कला के प्रति श्रद्धा के चलते उन्होंने देश-विभाजन के समय एक प्रदर्शनी लगाई। जिसने भी इसे देखा, उसकी आंखें नम हो गर्इं। फिर तो ऐसी प्रदर्शनियों का सिलसिला चल पड़ा। शिवाजी, धर्म गंगा, जनता की पुकार, जलता कश्मीर, संकट में गोमाता, 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अमर गाथा, विदेशी षड्यन्त्र, मां की पुकाऱ..आदि ने संवेदनशील मनों को झकझोर दिया।
भारत की विश्व को देननामक उनकी प्रदर्शनी को विदेशों में भी प्रशंसा मिली। कलाकारों को एक मंच पर एकत्र करने के लिए जब 1981 में संस्कार भारतीकी नींव पड़ी तो इसकी कमान बाबा योगेंद्र ने संभाली। उनके अथक परिश्रम से यह संस्था आज कलाकारों की अग्रणी संस्था बन गयी है। शुरू से ही बड़े कलाकारों के चक्कर में पड़ने वाले बाबा योगेंद्र ने नये लोगों को मंच प्रदान किया किन्तु शीर्ष कलासाधकों को भी संस्कार भारती से जोड़ते चले गए। इस वर्ष उन्हें पद्म सम्मान से सम्मानित करने की घोषणा संपूर्ण कला-जगत में हर्ष का संदेश लाई है।
                             
उपर्युक्त नाम तो सिर्फ कुछ प्रमुख उदाहरण भर हैं, अन्यथा तथ्य यही है कि अबकी पद्म सम्मान के लिए चयनित नामों में से अधिकांश लोग प्रसिद्धि की लालसा से मुक्त चुपचाप अपने कर्म में रत रहने वाले हैं। इस वर्ष के पद्म सम्मानों की एक ख़ास बात यह भी है कि इनमें राजधानी दिल्ली का कोई चेहरा नहीं है। ये दिखाता है कि सरकार ने राजधानी में मौजूद लॉबिंग के खिलाड़ियों को एकदम से दरकिनार कर ‘ख़ास कामों’ में लगे देश भर के आम लोगों को सम्मान देने की नीति अपनाई है। देश भर के सत्कार्यरत और प्रतिभासंपन्न लोगों के सम्मान के पश्चात् यह कहना गलत नहीं होगा कि सही अर्थों में पद्म सम्मान का अब जाके राष्ट्रीयकरण हुआ है, जिसके लिए सरकार निस्संदेह सराहना और बधाई की पात्र है।

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