रविवार, 1 अप्रैल 2018

पुस्तक समीक्षा : यथार्थ और कल्पना का समुचित मिश्रण [दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत

अंकिता जैन के कहानी संग्रहऐसी वैसी औरतकी कहानियाँ स्त्री-जीवन से जुड़ी ऐसी विविध व्यथाओं को स्वर प्रदान करती हैं, जिनके आधार पर समाज उन्हें पतित घोषित कर देता है। संग्रह में कुल दस कहानियाँ हैं और इनमें से सभी कहानियों की मुख्य पात्र समाज की दृष्टि में पतित हो चुकी एक स्त्री है। अच्छी बात यह है कि ज्यादातर कहानियों में लेखिका ने केन्द्रीय पात्रों के प्रति किसी प्रकार की सहानुभूति जताने या समाज की नजर में खटकते उनके आचरण को सही सिद्ध करने का कोई विशेष प्रयास नहीं किया है, बल्कि वे एक सीमा तक निरपेक्ष भाव से उनकी व्यथा-कथा को शब्द देते हुए शेष सब पाठक पर छोड़ती चली हैं।

इस संग्रह की पहली कहानीमालिन भौजीएक ऐसी विधवा स्त्री की कहानी है, जो पति की मृत्यु के पश्चात् ससुराल मायके द्वारा त्याग दिए जाने के बाद कानूनी लड़ाई के जरिये ससुराल से अपने हिस्से की जमीन-जायदाद प्राप्त कर अकेले रह रही है। शायद कानूनी लड़ाई के दौरान परिचित हुए एक वकील साहब का उसके यहाँ आना-जाना है, जिस कारण समाज उसके चरित्र के प्रति एक संदिग्ध दृष्टि रखता है। हम इस कहानी में देख सकते हैं कि मालिन भौजी का चरित्र एक जुझारू और जिजीविषा से भरी स्त्री का है, परन्तु समाज में उसके संघर्ष की नहीं, चारित्रिक संदिग्धता की ही चर्चा चलती है। छोड़ी हुई औरत, रूम नंबर फिफ्टी आदि भी इसी प्रकार की कहानियाँ हैं, जिनमें लड़कियों की व्यक्तिगत इच्छाओं और आकांक्षाओं से प्रेरित आचरण के आधार पर उन्हें सामाजिक रूप से उच्छृंखल मान लिया जाता है।

एक रात की बातकहानी भी उल्लेखनीय होगी। यह कहानी हमें तब सोचने पर विवश करती है, जब इसकी मुख्य पात्र बीमार और अपाहिज लड़की जुबी, जिसकी उम्र महज दो-चार वर्ष शेष है, अपने मित्र के समक्ष दैहिक सुख की आकांक्षा व्यक्त करती है। उसकी इस इच्छा के समक्ष उसका मित्र जरा असमंजस के पश्चात् आत्मसमर्पण कर देता है। जुबी की यह इच्छा सही है या गलत, इसपर लेखिका ने कोई पक्ष नहीं रखा है, बल्कि सबकुछ पाठक के विवेक पर छोड़ दिया है।

लगभग सभी कहानियों की प्रस्तुति का ढंग एक ही जैसा है, मगर रोचकता से भरपूर है। ये कहानियाँ बेहद शांत ढंग से शुरू होने के बाद कहानी की बजाय किसीकी व्यथाओं की अभिव्यक्ति लगने लगती है, लेकिन तभी अचानक उसका अंत आता है और अंत में कुछ ऐसा नाटकीय-सा घटित होता है कि पाठक को उस कहानी में कहानीपन का अनुभव हो उठता है। ज्यादातर कहानियों में वर्णन के लिए पूर्वदीप्ति (फ्लैशबैक) शैली का प्रयोग हुआ है। लेखिका ने अनावश्यक प्रयोगों में उलझने की बजाय कथा-वस्तु की कसावट पर ध्यान लगाया है, जिसमें वो सफल भी रही हैं। सीधे शब्दों में कहें तो यथार्थ और कल्पना के समुचित मिश्रण से तैयार ये कहानियाँ अपने कथ्य की गंभीरता के बावजूद अपनी रोचक प्रस्तुति के दम पर पाठक को अंत तक बाँधे रखने में कामयाब नजर आती हैं।

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