सोमवार, 16 अप्रैल 2018

दुनिया के लिए संकट बनता मोटापा [जनसत्ता में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत

संयुक्त राष्ट्र के एक शोध के अनुसार एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में बच्चों में मोटापा बढ़ता पाया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार, पिछले लगभग डेढ़ दशक में पांच साल तक के बच्चों के वजन में 38 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। बच्चों में बढ़ता यह मोटापा इस लिहाज से चिंताजनक है, क्योंकि ये बच्चे बड़े होने पर भी इसी प्रकार मोटापे से ग्रस्त हो सकते हैं और दुनिया में पहले से ही मौजूद मोटापे की समस्या को और बढ़ा सकते हैं।   

इस संदर्भ में गौर करें तो वर्ष 2016 में आई मैकेंजी ग्लोबल इंस्टिट्यूट (एमजीआई) की एक अध्ययन रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया था कि मोटापा दुनिया के लिए धूम्रपान और आतंकवाद के बाद तीसरा सबसे बड़ा संकट बन चुका है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में सामान्य से अधिक वजन वाले लोगों समेत पूरी तरह से मोटापे से ग्रस्त लोगों की संख्या लगभग . अरब बताई गयी, जो कि वैश्विक आबादी का ३० प्रतिशत है। रिपोर्ट में यह आंकड़ा भी रखा गया कि लोगों में बढ़ रहे मोटापे के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष तकरीबन २००० अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ रहा है। अगर दुनिया में इसी तरह मोटापा बढ़ता रहा तो अगले डेढ़ दशक में दुनिया की आधी आबादी के पूरी तरह इसकी चपेट में आने का अनुमान भी लगाया जाता रहा है।

यहाँ गौर करने वाली बात यह भी है कि विकासशील देशों में मोटापे की समस्या का प्रकोप कुछ अधिक ही है। एक आंकड़े के मुताबिक विकासशील देशों में स्वास्थ्य के मद में होने वाले कुल खर्च में मोटापे की हिस्सेदारी यों तो अधिकतम प्रतिशत है, लेकिन अगर इसमें  मोटापाजनित बीमारियों के खर्च को भी जोड़ दें तो ये आंकड़ा २० प्रतिशत के पास पहुँच जाता है। इन तथ्यों को देखते हुए  सर्वाधिक चिंताजनक प्रश्न यह उठता है कि अभी जब दुनिया में ३० फीसद लोग कमोबेश मोटापे से ग्रस्त हैं, तब ये समस्या वैश्विक अर्थव्यवस्था को २००० अरब डॉलर यानि वैश्विक जीडीपी के . प्रतिशत का नुकसान पहुँचा रही है। ऐसे में, अगर अगले डेढ़ दशक में दुनिया की आधी आबादी पूरी तरह से इसकी चपेट में गई, तब यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को कितनी हानि पहुंचाएगा ? संभव है कि तब मोटापा दुनिया के लिए सबसे बड़ी और चुनौतीपूर्ण समस्या बन जाय। एक ऐसी समस्या जिसके लिए दुनिया किसी भी तरह से तैयार हो।

आम तौर पर यह माना जाता है कि मोटापा आर्थिक रूप से संपन्न पश्चिमी देशों की समस्या है, लेकिन यह धारणा पूरी तरह से सही नहीं है। क्योंकि, भारत जैसे अपेक्षाकृत कम संपन्न देश में भी यह समस्या धीरे-धीरे अपने पाँव पसार रही है। उल्लेखनीय होगा कि मोटापे के मामले में भारत का स्थान दुनिया में तीसरा है। पिछले दिनों ग्लोबल अलायंस फॉर इंप्रूव्ड न्यूट्रिशन (गेन) द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मोटापे के मामले में अमेरिका चीन के बाद दुनिया में तीसरा स्थान भारत का ही है इसी अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के कुल मोटापाग्रस्त किशोरों का ११ फीसद और वयस्कों का २० फीसद अकेले भारत में है। चूंकि भारत  की अधिकांश आबादी भोजन प्रेमी है। यही वजह है कि यहाँ स्वादिष्ट भोजनों की विविधता है। पहले लोग यह भोजन करने के बाद खेतों आदि में कठिन शारीरिक परिश्रम करते थे, जिससे वो भोजन शरीर में कैलोरी की मात्रा नहीं बढ़ा पाता था। अब आज के इस आधुनिक सुविधाभोगी दौर में लोग खा तो पहले जैसे या उससे बढ़कर ही रहे हैं, पर शारीरिक परिश्रम ना के बराबर कर रहे हैं। फलस्वरूप मोटापे  भार की समस्या दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ रही है।

इसी क्रम में अगर इस बात पर विचार करें कि आखिर मोटापा किस प्रकार वैश्विक अर्थव्यवस्था को कुप्रभावित करता है, तो कई बातें हमारे सामने आती हैं। दरअसल, मोटापा एक ऐसी समस्या है, जो सिर्फ इससे ग्रस्त व्यक्तियों के निजी व्यक्तित्व को बेढब बनाती है, बल्कि उनके समग्र कार्य-कलापों, कार्य-क्षमताओं  गतिविधियों को भी बुरी तरह से प्रभावित करती है। इसको थोड़ा और अच्छे से समझने की कोशिश करें तो एक तरफ तो मोटे व्यक्तियों की खाद्य आवश्यकता सामान्य व्यक्ति से कहीं अधिक होती है, वहीं दूसरी तरफ वे  अपने सामान्य से अधिक वजन के कारण सामान्य वजनी लोगों की अपेक्षा काफी सुस्त ढुलमुल रवैये वाले हो जाते हैं। साथ ही मोटापे के कारण उनमे अनेक प्रकार की मोटापाजनित बीमारियाँ भी घर कर लेती हैं, जिनके इलाज में भी बहुत व्यय होता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मोटापे से ग्रस्त लोगों की स्वास्थ्य सम्बन्धी लागत जहाँ सामान्य व्यक्ति से बहुत अधिक होती है, वही सुस्त ढुलमुल रवैये के कारण उनकी उत्पादकता का स्तर काफी कम होता है। सीधे शब्दों में कहें, तो मोटे व्यक्तियों में खपत बहुत अधिक होती है, जबकि उनके सुस्त ढुलमुल रवैये के कारण उनकी उत्पादकता बेहद कम होती है। अब मोटे लोगों में खपत और उत्पादकता के बीच का यह असंतुलन ही वो कारण है कि आज मोटापा वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी हानि पहुँचा रहा है।

हालांकि ऐसा नहीं है कि आज दुनिया इस समस्या को लेकर बिलकुल भी सचेत नहीं है। दुनिया में मोटापे को नियंत्रित करने के लिए कमोबेश प्रयास किए जा रहे हैं। ब्रिटेन ने तो बच्चों में बढ़ते मोटापे से निपटने के लिए सॉफ्ट पेय पदार्थों पर शुगर टैक्स लगा दिया है। हालांकि इसे मोटापे से निपटने की आड़ में राजस्व वृद्धि का उपाय माना जा रहा है। वैसे, मोटापे के खात्मे के लिए खाद्य पदार्थों पर कैलोरी पोषण की जानकारी देने से लेकर जन स्वास्थ्य जैसे अभियान चलाने तक के उपायों की लम्बी फेहरिस्त है। हालांकि ऐसे उपाय दुनिया में अपनाए गए हैं, लेकिन इनमे से अधिकाधिक प्रयास मोटापे की रोकथाम में कोई ख़ास कारगर होते नहीं दिख रहे।

विचार करें तो इन उपायों के विशेष रूप से कारगर रहने के पीछे मूल कारण जागरूकता का अभाव है। मोटापा उन्ही लोगों को सर्वाधिक चपेट में लेता है, जो खान-पान के विषय में अजागरूक, केवल स्वादलोभी बेहद आलसी होते हैं। ऐसे लोग स्वाद के चक्कर में उच्च कैलोरीयुक्त खाना तो खूब खाते हैं, लेकिन आलस के मारे उस कैलोरी की मात्रा को  नियंत्रित करने के लिए कोई विशेष व्यायाम आदि  नहीं करते। परिणाम यह होता है कि उनके शरीर में धीरे-धीरे कैलोरी की मात्रा काफी अधिक हो जाती है और वे मोटापे की समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं। अतः कुल मिलाकर स्पष्ट  है कि मोटापे की समस्या पर रोकथाम के लिए सबसे पहली आवश्यकता जागरूकता लाने की है।

इसके अलावा इस दिशा में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यूएन में रखी गईअंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की सोच को यूएन की मान्यता मिलना भी काफी कारगर सिद्ध हो सकता  है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस जैसी चीज से योग व्यायाम आदि  को लेकर लोगों में स्वतः ही काफी जागरूकता आएगी। अब अगर लोग अपने जीवन में नियमित योग व्यायाम को स्थान देने लगें तो मोटापे की समस्या को छूमंतर होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। अब चाहें जैसे हो, लेकिन अगर दुनिया को मोटापे की इस समस्या से बचना है, तो उसे अभी से इस दिशा में गंभीर होते हुए उपर्युक्त प्रयास करने की जरूरत है। अगर अभी इसको लेकर गंभीरता दिखाई गई, तो संभव है कि एक समय ऐसा जाएगा जब दुनिया के लिए मोटापे की इस समस्या से मुक्ति पाना तो दूर, इसको झेलना मुश्किल हो जाएगा।

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