शनिवार, 21 अप्रैल 2018

महाभारतयुगीन विज्ञान, कम्यूटर-इन्टरनेट जैसी मामूली चीजों से कहीं आगे की 'चीज' था !


  • पीयूष द्विवेदी भारत 

त्रिपुरा के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री विप्लब देब ने महाभारत युग में कंप्यूटर-इन्टरनेट होने की बात क्या कही, विपक्षियों से लेकर सोशल मीडिया के धुरंधर उन पर पिल पड़े हैं। सोशल मीडिया पर तरह-तरह के चुटकुले चलाए जाने लगे हैं। एकसुर में राय यह है कि महाभारत युग में इन्टरनेट की बात करना, वर्तमान विज्ञान का अपमान है। मेरा मानना है कि विप्लब देब का बयान गलत है, लेकिन इसलिए नहीं कि उन्होंने बिना किसी प्रमाण के महाभारत युग में कंप्यूटर-इन्टरनेट होने का दावा कर दिया, बल्कि इसलिए कि वे महाभारत जैसे महान युग में कंप्यूटर-इन्टरनेट जैसी मामूली चीजों की बात कर रहे हैं। हालांकि महाभारत का युग त्रेता-सतयुग के विज्ञान की अपेक्षा पिछड़ चुका था, परन्तु तब भी आज के इस कथित महान आधुनिक और वैज्ञानिक युग से कहीं अधिक आधुनिक और वैज्ञानिक था। महाभारतकालीन आविष्कारों और क्षमताओं के संभव होने के विषय में आज का विज्ञान सोच भी नहीं सकता, इसलिए जब-तब उसे काल्पनिक कहकर अपना मन बहलाता रहता है। महाभारतयुगीन विज्ञान कैसा था, आइये उसे कुछ उदाहरणों से समझते हैं।

संचार
महाभारत के युग में संचार की तकनीक आज से कहीं आगे थी। उस दौर में दूरदराज के लोगों से संपर्क के लिए किसी उपग्रह या उपकरण की आवश्यकता ही नहीं थी, क्योंकि तब मानसिक तरंगों से संपर्क की क्षमता विकसित कर ली गयी थी। चीरहरण के समय असहाय द्रोपदी ने किसी फोन या ईमेल से नहीं, ध्यानस्थ अवस्था में मानसिक तरंगों से कृष्ण को पुकारा और वे तत्काल आकर उसकी रक्षा किए। किसी सूचना को बहुतायत लोगों में प्रसारित करने के लिए तब सोशल मीडिया की आवश्यकता इसलिए भी नहीं थी कि बहुधा तब के लोगों ने मन की गति अर्जित कर ली थी। लोग हवाई मार्ग से भी बिना किसी वाहन के आने-जाने में सक्षम थे। नारद, परशुराम, हनुमान जैसे इसके अनेक उदाहरण हैं। इसके अलावा विमान भी तब अत्यंत तीव्रगामी थे, सो सूचनाओं का आदान-प्रदान कोई बड़ी कठिनाई की बात नहीं थी।

पंचतत्वों पर विजय
आज का विज्ञान अभी प्रकृति के तत्वों को समझने में लगा है, उस दौर में लोगों ने इन तत्वों पर विजय प्राप्त कर इन्हें नियंत्रित कर लिया था। उदाहरण के लिए तब प्रकाश पर विजय प्राप्त कर बहुत से लोगों ने गायब होने की क्षमता विकसित कर ली थी। वे प्रकाश की किरणों को मनचाहे ढंग से नियंत्रित कर सकते थे हवा पर विजय प्राप्त कर लोग उड़ सकते थे। जल की धार को स्तंभित कर सकते थे। कहने का अर्थ है कि उस दौर में लोग प्रकृति पर विजय पाने में सक्षम थे, मगर इस शक्ति में उन्मत्त उसका ध्वंस नहीं करते थे।

वास्तुकला
उस दौर का वास्तु विज्ञान ऐसा था कि खंडहर खांडवप्रस्थ को शिल्पी मयदानव कुछ ही समय में अद्भुत और अकल्पनीय इन्द्रप्रस्थ बना देता था। समुद्र में विश्वकर्मा द्वारिका खड़ी कर देते थे। लाख के महल से पांडवों के भागने के लिए लम्बी-सी सुरंग मात्र कुछ कारीगर चंद दिनों में बना डालते थे।

अस्त्र विज्ञान
अस्त्र विज्ञान के मामले में तो उस दौर के समक्ष आज का विज्ञान दूर-दूर तक खड़ा नजर नहीं आता। पहली चीज कि उस दौर के प्रक्षेपास्त्रों के निर्माण में आज की तरह कोई भारी धनराशि नहीं व्यय होती थी। उन्हें मानसिक साधना और ऊर्जा से तैयार किया जाता था। वे मन और मंत्रशक्ति द्वारा  संचालित होते थे। मारकता आज के अस्त्रों की अपेक्षा कहीं अधिक थी लेकिन, उनकी सबसे विशेष बात अचूक लक्ष्यभेद की उनकी क्षमता थी। जिस लक्ष्य को निश्चित करके उनका प्रयोग किया जाता वे उसीपर पड़ते थे, बीच में किसीको क्षति नहीं पहुँचाते। उदाहरण देखिये कि जब अश्वत्थामा ने पांडव-कुल विनाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को लक्ष्य कर ब्रह्मास्त्र चलाया तो वो उस गर्भस्थ शिशु को ही जाकर लगा, उससे उत्तरा को कोई क्षति नहीं हुई। इसी तरह जयद्रथ वध के समय अर्जुन का अस्त्र ऐसे संचालित था कि जयद्रथ का मस्तक काटकर कहीं इधर-उधर नहीं गिरा दिया, बल्कि नपे-तुले ढंग से ले जाकर कोसो दूर वन में तप कर रहे उसके पिता की गोद में गिराया। कृष्ण का सुदर्शन चक्र तो ऐसे कौशलों के लिए विख्यात ही है।

ऐसे और भी बहुत से उदाहरण हैं, जो साबित करते हैं कि महाभारतयुगीन विज्ञान और तकनीक आज से कहीं अधिक विकसित और आधुनिक थी। उस दौर में कम्प्यूटर-इन्टरनेट जैसी चीजें अगर नहीं थीं, तो इसलिए नहीं कि उनका निर्माण संभव नहीं रहा होगा, बल्कि इसलिए कि तब इन साधारण चीजों की आवश्यकता ही नहीं थी।

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