शनिवार, 14 अप्रैल 2018

कठुआ के दुखितों की सासाराम और असम पर खामोशी का मतलब समझिये !

  • पीयूष द्विवेदी भारत

जम्मू-कश्मीर के कठुआ में आसिफा नामक एक नाबालिग बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार की नृशंस वारदात ने देश को झकझोर के रख दिया है. मुख्यधारा मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक इस मामले पर हंगामा पसरा हुआ है. निस्संदेह दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए. लेकिन, जिस तरह से इस वारदात को एक ख़ास तबके द्वारा धार्मिक रंग दिया जा रहा है, वो सोचने पर विवश करता है.

जो लोग कठुआ की घटना में कुछ संदिग्ध तत्वों द्वारा 'जय श्री राम' नारा लगाए जाने के बहाने इस घटना को धार्मिक रंग देने की कवायद कर रहे, वे वहीं लोग हैं, जिन्हें दुनिया भर में एक मजहबी वर्चस्व के लिए चल रहे आतंकवाद का कोई मजहब कभी नजर नहीं आता. लेकिन, कठुआ की घटना में उन्हें झट से 'हिन्दू रेपिस्ट' नजर गया. आपके दिमाग में सवाल उठ रहा होगा कि मैं किन लोगों की बात कर रहा हूँ ? चलिए, नीचे एक उदाहरण दे रहा हूँ.

उक्त प्रकार के लोगों में से ही एक हैं रवीश कुमार. पत्रकार हैं. अपने श्रीमुख से ही अपने निडर, निर्भीक, ईमानदार और निष्पक्ष होने का पेट भर बखान रोज अपना प्राइम टाइम शुरू होने से पहले और ख़त्म होने के बाद नियमित करते हैं. ट्रोल किए जाने को लेकर रोते भी हैं और कोई गजब की मशीन है शायद उनके पास, जिससे ट्रोल करने वालों के एक दल-विशेष से पेड होने का पता भी लगा लिए हैं. कौशल इतना ही नहीं है, पत्रकारिता में समय बिताने के कारण भाषा और लेखन में बाजीगरी का हुनर भी इनमें खूब गया है

इन्हें इन दिनों कठुआ की घटना को लेकर इन्हें हमेशा की तरह हिन्दुओं पर खूब गुस्सा रहा है. बस गाली भर नहीं दे रहे, इतनी ही गनीमत है. अपने प्राइम टाइम से लेकर फेसबुक पोस्ट तक में महोदय ने इस वारदात के जरिये हिन्दुओं के आपराधीकरण पर बड़ी चिंता जताई है. दल-विशेष को कोसा भी है. इनकी उपर्युक्त पोस्ट से जाहिर है कि इनकी नजर में हिन्दू आततायी और अपराधी हैं, जबकि मुसलमान परम निर्दोष और मजलूम हैं
लेकिन, लगता है कि कठुआ पर आंसू बहाते-बहाते रवीश जी की आँखे शायद ऐसी धुंधली हो गयीं हैं कि इसी देश में सासाराम और असम के नगांव में हुई दो रेप की वारदातें इन्हें नजर नहीं रहीं. एक लाइन तक इन मामलों पर रवीश जी लिख या बोल नहीं सके हैं अबतक. इन मामलों पर नजर डालते तो मुसलमानों की मजलूमीयत की कहानी नहीं कह पाते.

कठुआ का मामला पुराना हो चुका है, लेकिन उसे फिर भी उठाया जा रहा, जबकि सासाराम और असम के मामले अभी हुए हैं, तो उनपर चुप्पी है. मामले क्या हैं, जरा देखिये तो चुप्पी का मतलब समझ आएगा. असम के नगांव में जाकिर हुसैन नाम के एक शख्स ने एक छः वर्षीय बच्ची को अकेले पाकर पहले उसका बलात्कार किया और फिर उसे आग के हवाले कर दिया. ऐसे ही बिहार के सासाराम में मेराज आलम नामक एक युवक ने अपनी पड़ोस में रहने वाली नाबालिग लड़की फुसलाकार उसके साथ निर्ममतापूर्वक बलात्कार किया.

लेकिन, इन ताजा घटनाओं पर भारी पड़ गया आसिफा के बलात्कार का महीनों पुराना मामला. बात सब मामलों पर होनी चाहिए. लेकिन, कठुआ पर हिन्दू रेपिस्ट का जाप करने वाले इन घटनाओं के आलोक में मुस्लिम रेपिस्ट कहना तो दूर, खुलकर बोल तक नहीं रहे हैं. बलात्कार के मामलों में ये भेद-दृष्टि करने वाले ही वो दोषी हैं, जिनके कारण बलात्कार जैसे मामले पर भी देश का पूरा समाज एक साथ चाहते हुए भी खड़ा नहीं हो पाता. इनका दोहरापन लोगों में एकदूसरे के प्रति नफरत बोता है. सामाजिक समरसता से लेकर अपराध के प्रति समाज के संयुक्त प्रतिरोध की प्रवृत्ति के मिटते जाने के जिम्मेदार इन लोगों की बातों का जवाब देते हुए आम समाज को इन घटनाओं के खिलाफ धर्म-मजहब से ऊपर उठकर एक होकर खड़ा होना चाहिए. तभी हम एक सुरक्षित और स्वस्थ समाज का स्वप्न देख सकते हैं.  

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