शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

नौकरशाहों के निलंबन नियमों में परिवर्तन का अर्थ [दबंग दुनिया में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

दबंग दुनिया 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने वक्तव्यों में सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों को यह कहते रहे हैं कि वे निडर और दबावमुक्त होकर निर्णय लें। अब इस दिशा में उनकी सरकार की तरफ से एक बेहद महत्वपूर्ण कदम भी उठाया गया है। वह कदम ये है कि केंद्र सरकार द्वारा नौकरशाहों के निलंबन सम्बन्धी नियमों में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जिनके बाद नौकरशाहों पर से राजनीतिक नियंत्रण या उनके कार्य में राजनीतिक हस्तक्षेप के कम होने की पूरी संभावना है। दरअसल नए नियमों के मुताबिक़ अब केंद्र के अधीन कार्यरत नौकरशाहों समेत अखिल भारतीय सेवा के तहत देश भर में कार्य कर रहे आईएएस, आईपीएस व आईएफओएस अधिकारियों को सम्बंधित राज्य सरकार द्वारा पहले की तरह सीधे-सीधे निलंबित नहीं किया जा सकेगा। अब यदि कोई केन्द्रीय मंत्रालय या राज्य सरकार ऐसे किसी अधिकारी का निलम्बन करती है तो इसकी सूचना अगले ४८ घंटे के अन्दर पीएमओ को देनी होगी तथा १५ दिन के भीतर निलम्बन के कारण आदि की विस्तृत रिपोर्ट भी सौंपनी होगी। साथ ही निलंबन की न्यूनतम अवधि जो पहले तीन महीने थी, को घटाकर अब दो महीने कर दिया गया है जिसे कि अब पहले की तरह छः महीने की बजाय अधिक से अधिक चार महीने तक ही बढ़ाया जा सकता है। इन बदले नियमों पर केन्द्रीय कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘‘सरकार का उद्देश्य नौकरशाही से भ्रष्टाचार मिटाना है और हम अधिकार अनुकूल वातारण मुहैया कराना चाहते हैं ताकि कोई भी अधिकारी सरकारी नियमों से भयभीत होकर अपना प्रदर्शन नहीं छोड़े। नए नियम ईमानदार अधिकारियों को प्रोत्साहित करेंगे और सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करेंगे।’’ माना जा रहा है कि इन नए नियमों के आने के बाद से नौकरशाह खुलकर और निडर होकर निर्णय कर सकेंगे तथा नेताओं द्वारा अपने हित के लिए उनका मनचाहा इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। बेशक बदले नियमों से तमाम उम्मीदें जगती हैं, लेकिन उम्मीदों के साथ कई सवाल भी उठते हैं. मोटे तौर पर सवाल यह है कि ये बदले नियम कितने कारगर होंगे ? 
  इसी क्रम में यदि पुराने नियमों के तहत नौकरशाहों के निलंबन की स्थिति पर नज़र डालें तो दरअसल पुराने नियमों के तहत राज्य सरकार या केन्द्रीय मंत्रालय मनचाहे ढंग से किसी अधिकारी-कर्मचारी को निलम्बित कर सकते थे, क्योंकि इस सम्बन्ध में उनके ऊपर कोई जवाबदेही नहीं थी। इस स्थिति का विशेष दुरूपयोग राज्य सरकारों द्वारा किया जाता रहा है। नौकरशाहों को निलंबित करने का भय दिखाकर राजनीतिक आकाओं द्वारा उनसे मनचाहे ढंग से अपने काम करवाने, उन्हें इमानदारी से काम करने से रोकने और अपने व्यक्तिगत हित से सम्बंधित निर्णय लेने के लिए दबाव बनाने आदि के तमाम मामले सामने आते रहे हैं। होता ये है कि अगर कोई अधिकारी ईमानदारी से अपने विभाग का काम करने लगे जिससे किसी गैरकानूनी धंधों वालों के काम में बाँधा पहुँचती हो, तो पहले तो उस अधिकारी को रिश्वत के जरिये रोकने की कोशिश की जाती हैं। यदि रिश्वत से अधिकारी नहीं दबा तो फिर अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर उसका निलंबन या तबादला करवा दिया जाता है। ऐसे ही अगर अधिकारी के इमानदार होने के कारण किसी नेता के भ्रष्टाचार आदि के उजागर होने का संकट हो तो भी अधिकारियों को निलंबित या तबादला आदि करने का भय दिखाकर उनके कार्य में हस्तक्षेप किया जाने लगता है। उदाहरण के तौर पर आईएएस अशोक खेमका का नाम उल्लेखनीय होगा जिन्हें उनकी ईमानदार कार्यशैली और भ्रष्टाचार के प्रति असहिष्णु रुख के कारण अपने अबतक के २१ वर्षों के कार्यकाल के दौरान ४० बार तबादले का सामना करना पड़ चुका है। इन बातों से स्पष्ट है कि देश की नौकरशाही के कार्यों में सियासी आकाओं द्वारा बड़े स्तर पर हस्तक्षेप किया जाता है।    
  अब प्रश्न यह उठता है कि क्या नौकरशाहों के निलम्बन सम्बन्धी नए नियम आने के बाद नौकरशाहों को वाकई में कार्य करने में राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्ति मिलेगी तथा वह निडर होकर निर्णय कर सकेंगे ? इस प्रश्न का उत्तर ‘हाँ’ और ‘ना’ का मिश्रित रूप है। क्योंकि यह सही है कि इन नए नियमों के बाद अधिकारियों के निलंबन के प्रति तो राज्य सरकारें और केंद्र सरकार के मंत्रालय जवाबदेह हो जाएंगे, लेकिन तबादला करने का निरंकुश अधिकार अब भी उनके हाथ में ही रहेगा। और गौर करें तो तबादलों के मामले निलंबन की अपेक्षा अधिक सामने आते हैं और इस हथकण्डे का इस्तेमाल राजनीतिक आकाओं द्वारा ज्यादा किया जाता है। क्योंकि निलंबन की स्थिति में कुछ महीने बाद सम्बंधित  अधिकारी फिर उसी स्थान या पद पर कार्यरत हो जाता है, जबकि तबादला करके अधिकारी को मामले से ही एकदम अलग कर दिया जाता है। अतः समझना कठिन नहीं है कि अधिकारी के कार्य को प्रभावित करने के लिए राजनीतिक आकाओं द्वारा तबादला निलंबन से अधिक प्रयोग किया जाने वाला हथियार है। अतः कहना गलत नहीं होगा कि नौकरशाहों के निलंबन के सम्बन्ध में राज्य सरकारों आदि की पीएमओ के प्रति जवाबदेही भले सुनिश्चित की गई है, लेकिन इस नियम को तनी और व्यापक करने की जरूरत है। अर्थात कि निलंबन की ही तरह ही तबादले को लेकर भी राज्य सरकारों आदि की पीएमओ के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए। ऐसा करके ही हम सही मायने में नौकरशाहों को काम करने के लिए स्वतंत्र और निडर वातावरण दे पाएंगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें