बुधवार, 20 जनवरी 2016

आर्थिक असमानता पर कब चेतेंगे [अमर उजाला कॉम्पैक्ट और दबंग दुनिया में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत
     

अमर उजाला कॉम्पैक्ट 
समाज के निचले तबके के हित की बात करने व उसके लिए एक से बढ़कर योजनाए चलाने का दावा दुनिया भर की सरकारें भले करती रही हों, लेकिन इन सब दावों की पोल खोने वाली हकीकत यह है कि दुनिया के १ प्रतिशत लोगों के पास दुनिया के ९९ प्रतिशत लोगों से अधिक संपत्ति है। अंतर्राष्ट्रीय संस्था ऑक्सफेम द्वारा आर्थिक असमानता पर हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में यह आंकड़ा रखा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया के सिर्फ ६२ अमीर लोगों के पास ७६ खरब डॉलर हैं जो कि दुनिया के आधे गरीब लोगों की कुल संपत्ति से अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक़ वर्ष २०१० से अबतक सर्वाधिक अमीर लोगों की संपत्ति में ४४ फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है तो वहीँ साढ़े तीन अरब सर्वाधिक गरीब लोगों की संपत्ति में ४१ फीसदी की कमी हुई है। सन २०१० से लेकर २०१५ के बीच दुनिया के आधे सबसे गरीब लोगों यानी साढ़े तीन अरब लोगों की कुल संपत्ति में ४१ फीसदी की गिरावट आई है, जो कि एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। जबकि इसी कालावधि में दुनिया के ६२ सर्वाधिक अमीर लोगों की संपत्ति ५०० अरब डॉलर से बढ़कर १.७६  ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई है यानी करीब २५०% ज़्यादा। अमीरों के अमीर होने की यह प्रक्रिया किस तीव्रता से चल रही है, इसे रिपोर्ट के इस आंकड़े के जरिये और अच्छे समझा जा सकता है कि वर्ष २०११ में दुनिया की आधी दौलत ३८८ अमीर लोगों के पास थी जो वर्ष २०१२ में १७७ लोगों, वर्ष २०१४ में ८० और वर्ष २०१५ आते-आते महज ६२ लोगों के पास सिमट कर रह गई। स्पष्ट होता है कि दुनिया की सरकारों द्वारा गरीबों के कल्याण की तमाम योजनाए चलाए जाने के बावजूद विगत वर्षों में अमीर और अमीर हुए हैं जबकि गरीब और गरीब होते गए हैं। संयोग यह है कि यह रिपोर्ट उस वक़्त आई है जब अभी हाल ही में दुनिया सर्वाधिक अमीर देश दावोस में वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की बैठक करने जा रहे हैं जहाँ दुनिया में गरीबी कम करने और विकास को बढ़ाने जैसे पहलुओं पर बात की जानी है। ऑक्सफेम की तरफ से कहा गया है कि इस रिपोर्ट को उस बैठक में भी पेश किया जाएगा और मांग की जाएगी कि आर्थिक असमानता की बेहद तेजी से बढ़ रही इस खाई को पाटने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।
  वैसे ऑक्सफेम ने अपनी रिपोर्ट में सिर्फ समस्याएँ ही नहीं गिनाई हैं, बल्कि उनके कारणों पर भी बात की है। रिपोर्ट में सुरसामुख की तरह बढ़ रही इस आर्थिक असमानता के लिए प्रमुख रूप से कर चोरी जैसे कारणों को रेखांकित किया गया है। कहा गया है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कर चुकाने से बचने के लिए तमाम हथकण्डे अपनाती हैं जो कि सामजिक कामकाज पर बेहद गलत प्रभाव डालता है। रिपोर्ट में २०१ शीर्ष कंपनियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि ये कम्पनियां जिन १८८ देशों से सम्बंधित हैं, वहां या तो कर व्यवस्था है ही नहीं और यदि है भी तो काफी छूटों के साथ है। अतः आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए यदि दुनिया के देश वाकई में गंभीर हैं तो उन्हें चाहिए कि अपने यहाँ कर व्यवस्थाओं को दुरुस्त करें जिससे करयुक्त किसी भी संपत्ति पर सही ढंग  से कर वसूला जा सके तथा देश-समाज उससे लाभान्वित हो सके। रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि दुनिया के सर्वाधिक अमीर लोगों द्वारा अर्जित अधिकांश संपत्ति कर बचत करने वाली व्यवस्था के जरिये  इकठ्ठा की गई है। अगर इस धन पर उचित ढंग से कर लगे तो दुनिया की सरकारों को प्रतिवर्ष १९० अरब डॉलर की कमाई हो सकती है जिससे दुनिया में स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में काफी कुछ किया जा सकता है। पर दिक्कत यही है कि व्यवस्था भी धनकुबेरों के पक्ष में ही काम कर रही है, इसीलिए तो दुनिया के तमाम देशों में कर नियम बेहद ढीले हैं या हैं ही नहीं।
दबंग दुनिया 
  

  विचार करें तो ऑक्सफेम की यह रिपोर्ट हमें काफी कुछ सोचने पर विवश करती है। एक तरफ जब दुनिया में मानवाधिकार और जनकल्याण को लेकर तरह-तरह की पहल हो रही हो, उसवक्त दुनिया में गरीबों की यह स्थिति होना दुनिया के गरीबी निवारण के प्रयासों पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। एक आंकड़े के मुताबिक़ आज दुनिया के प्रत्येक ९ में से एक व्यक्ति को भूखे सोना पड़ता है, ऐसे में १ प्रतिशत लोगों की तरफ धन का ये ध्रुवीकरण सवाल खड़ा करता है कि क्यों यह धन सबके पास बराबर-बराबर और जरूरत भर का नहीं हो सकता ? इस सवाल का जवाब यह है कि धन को लेकर समय के साथ हमारी अवधारणा बदलती गई है और इसे जरूरत की बजाय महत्वाकांक्षा की वस्तु बना दिया गया है। यही कारण है कि दुनिया के जिन सर्वाधिक अमीर लोगों के पास इतना धन है, वे भी और धन जुटाने के लिए प्रयास या दुष्प्रयास करने से नहीं चूकते। अगर उन अमीर लोगों से पूछा जाय कि जितना धन उनके  पास है, उसका वे किसलिए इस्तेमाल करेंगे तो निस्संदेह वे निरुत्तर हो जाएंगे। दरअसल उनके लिए इस अबाध धनार्जन का अपना जीवन स्तर बेहतर करने से कोई सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि जीवन की सभी सुख-सुविधाएं इससे काफी कम धन में प्राप्त हो जाने वाली होती हैं और ये सुख-सुविधाएं अमीर लोगों के पास बड़े आराम से उपलब्ध होंगी भी। लेकिन बावजूद इसके अगर वे लगातार धन अर्जन करने के लिए प्रयास करते रहते हैं तो यह सिर्फ उनकी धन-लिप्सा और महत्वाकांक्षा है। लेकिन उन अमीर लोगों को अब ये कौन समझाए कि उनकी धन-लिप्सा के चलते दुनिया के अनगिनत गरीब लोग, जिनके अधिकार के आर्थिक संसाधन हथियाकर वे अमीर बने बैठे हैं, कैसा नारकीय जीवन जीने के लिए विवश हैं।  अब भले ही आर्थिक असमानता की यह त्रासद तस्वीर अमीरों को दिखाई न दे रही हो या देखते हुए भी वे इससे अनजान बन रहे हों, लेकिन हकीकत यही है कि स्थिति दिन ब दिन काफी ख़राब होती जा रही है। यह सही है कि आज गरीब चुप हैं और स्थिति को सहन कर रहे हैं, लेकिन एक समय आएगा कि उनकी सहनशक्ति की सीमा ख़त्म हो जाएगी और तब शायद उनके पास अपने अधिकार के आर्थिक संसाधनों को पाने के लिए सिवाय संघर्ष का रास्ता चुनने के और कोई उपाय नहीं होगा। ऐसे में विश्व की क्या स्थिति होगी, यह कल्पना भी सिहराने वाली है। इस लिहाज से  आर्थिक असमानता की यह समस्या न केवल चिंतित करती है, बल्कि डराती भी है। उचित होगा कि समय रहते इससे दुनिया के अमीर देश व उनके अमीर लोग चेत जाएं और इसके निवारण की दिशा में कदम उठाएं, अन्यथा यह दुनिया के भविष्य के लिए अत्यंत संकटकारी सिद्ध हो सकती है। 

1 टिप्पणी: