गुरुवार, 7 जनवरी 2016

पठानकोट आतंकी हमले का निहितार्थ [नेशनल दुनिया में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

नेशनल दुनिया 
अभी देश नए साल के जश्न में ही डूबा  था कि साल के दूसरे ही दिन कुछ आतंकियों ने सुबह चार बजे पंजाब के पठानकोट स्थित वायुसेना के एयरबेस पर हमला कर देश को हतप्रभ कर दिया। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार आतंकी सेना की ही वर्दी पहनकर आए और फिर ग्रेनेड और बंदूकों आदि से हमला करने लगे। लम्बे समय तक सेना और आतंकियों के बीच चले संघर्ष के बाद आखिर सेना और पंजाब की स्वाट फोर्स की कार्रवाई में छहों आतंकियों को मार गिराया गया। लेकिन इस पूरी कार्रवाई में हमारे सात जवान भी शहीद हो गए।  इस समस्त घटनाक्रम के बाद हमेशा की तरह एकबार फिर निंदा, श्रद्धांजलि और आरोप-प्रत्यारोप के राजनीतिक प्रलाप का दौर शुरू हो गया। राष्ट्रपति ने इन हमलों की निंदा की तो प्रधानमंत्री ने जवानों पर गर्व होने की बात कही तो वहीँ गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस हमले में पाकिस्तान के हाथ होने का बयान दिया गया। वहीँ विपक्ष की तरफ से इस हमले को घुमा-फिराकर सरकार की नाकामी से लेकर प्रधानमंत्री मोदी के हालिया पाकिस्तान दौरे की विफलता के रूप में बताया जाने लगा है। अब जैसे इस देश में ये आतंकी हमला कोई नया नहीं है, वैसे ही उसके बाद होने वाले ये राजनीतिक क्रियाकलाप भी नए नहीं है। अभी कुछ ही महीने पहले पंजाब के ही गुरदासपुर जिले के दीनानगर थाने पर भी आतंकियों ने हमला किया था, तब भी हमारे हुक्मरानों की तरफ से कुछ ऐसी ही प्रतिक्रियाएं देखने-सुनने को मिली थीं।  बहरहाल, इन राजनीतिक गतिविधियों से इतर प्रश्न यह उठता है कि क्या पंजाब सरकार समेत केंद्र सरकार ने भी विगत जुलाई में हुए गुरदासपुर आतंकी हमले से कोई सबक नहीं लिया कि छः महीने के भीतर ही पंजाब में फिर आतंकी हमला हो गया ? चौंकाने वाला तथ्य तो यह भी है कि गुरदासपुर हमला जहां पुलिस थाने पर हुआ था, वहीँ ये ताज़ा पठानकोट हमला हमारी वायुसेना के एयरबेस पर हुआ है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि पंजाब में जब पुलिस और सेना के ठिकाने ही आतंकियों से अछूते नहीं है तो आम लोगों की सुरक्षा के विषय में क्या कहा जा  सकता है ? दरअसल बात यह है कि वाकई में पंजाब सरकार ने गुरदासपुर आतंकी हमले से कोई सबक नहीं सीखा है। गौर करें तो जब गुरदासपुर हमला हुआ था, उस समय भी हमले से कुछ रोज पहले देश के ख़ुफ़िया ब्यूरों द्वारा वैसे किसी हमले की गुप्त सूचना दी गई थी जिसे केंद्र ने राज्य सरकार से साझा भी किया था। बावजूद इसके पंजाब सरकार चेती नहीं जिसके कारण गुरदासपुर हमला हुआ। प्राप्त जानकारी के अनुसार ताज़ा पठानकोट हमले से पहले भी ख़ुफ़िया इनपुट थी, लेकिन इसबार भी राज्य सरकार हमला रोकने में विफल ही रही। राज्य सरकार तो जो है सो है ही, केंद्र सरकार भी शायद गुरदासपुर  से कोई सबक नहीं ली है, अन्यथा वो तो इस हमले के ख़ुफ़िया इनपुट पर राज्य सरकार के लिए विशेष अलर्ट जारी कर  देती तथा उससे सुरक्षा सम्बन्धी सूचनाओं का पूरा आदान-प्रदान होता तो शायद यह हमला टाला जा सकता था।  स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं इस मामले में केंद्र और पंजाब सरकार के बीच बेहतर तालमेल का अभाव रहा है। लेकिन केंद्र की तरफ से तो यह कहा जा रहा है कि ख़ुफ़िया सूचना थी, इसीलिए हमले में अधिक नुकसान नहीं हुआ वरना यह हमला और बड़ा हो सकता था। सवाल यह है  कि कुछ आतंकी दुनिया की तीसरी सर्वश्रेष्ठ वायुसेना के एयरबेस पर पहुंचकर कोहराम मचा देते हैं जिनको रोकने में सात जवानों की मौत हो जाती है और कई घायल हो जाते हैं, यह क्या छोटा हमला है ? तो क्या अभी देश इससे भी बड़ा हमला होने के लिए इंतजार कर रहा है कि जब कोई इससे भी बड़ा हमला होगा, तब केंद्र और राज्य सरकारें बेहतर तालमेल दिखाएंगी ? अब सरकार को यह कौन समझाए कि देश के एक ही राज्य में छः महीने के अन्दर  पुलिस थाने और वायुसेना के ठिकाने पर क्रमशः आतंकी हमले होना न केवल देश की सुरक्षा व्यवस्था के दृष्टिकोण से चिंताजनक है, बल्कि दुनिया में भारत को शर्मिंदा करने वाला भी है।
  अब चूंकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर इस हमले में पाकिस्तानी तत्वों का हाथ होने का संकेत कर चुके हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल इस हमले में पाकिस्तानी संलिप्तता के साक्ष्य भी पाकिस्तान को सौंप चुके हैं। इन बातों को देखते हुए विपक्ष से लेकर सोशल मीडिया पर मौजूद आम लोगों द्वारा मोदी के अनौपचारिक पाक दौरे आदि के जरिये पाकिस्तान से भारत की सम्बन्ध बहाली की कोशिश को कठघरे में खड़ा करते हुए तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। विपक्ष जहाँ अपने चरित्र के अनुरूप इसे सरकार की सुरक्षा से लेकर कूटनीतिक विफलता तक कह रहा है, वहीँ आम लोगों की राय है कि मौजूदा मोदी सरकार भी पिछली मनमोहन सरकार की तरह ही पाकिस्तान के प्रति सिर्फ शब्दों में ‘कड़ा रुख’ अख्तियार करने वाली नीति पर ही चल रही है। गौर करें तो भारत-पाक संबंधों के इतिहास जो भारत के उदार प्रयासों और पाकिस्तान के कुटिल आघातों से भरा पड़ा है, को देखते हुए लोगों का यह आक्रोश स्वाभाविक ही है।  लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि हम दोस्त चुन सकते हैं, पड़ोसी नहीं और पाकिस्तान जैसा भी हो, हमारा पडोसी है। अतः उससे सम्बन्ध बेहतर होना आवश्यक है। रही बात वर्तमान स्थिति की तो प्रधानमंत्री मोदी की हालिया अनौपचारिक पाक यात्रा ने दोनों देशों के संबंधों में जो गर्मजोशी लाई है, वो अभूतपूर्व है। और इस हमले के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने प्रधानमंत्री मोदी से न केवल फोन कर बात की है, बल्कि इसमें पाकिस्तानी संलिप्तता को स्वीकारते हुए कार्रवाई का भरोसा भी दिया है। अतः इस हमले को इस रूप में भी देखा जा सकता है कि पाकिस्तान के कुछ नापाक तत्वों खासकर उसकी सेना और आईएसआई समेत दुनिया के कुछ देश, जो नहीं चाहते कि भारत-पाक संबंधों में बेहतरी आए, द्वारा मौजूदा सम्बन्ध बहाली की कोशिशों को ख़त्म करने के लिए इस आतंकी हमले के रूप में एक दाव चला गया हो। इतिहास गवाह है कि जब-जब  भारत-पाक संबंधों में बहाली की कोई ठोस कोशिश हुई है, तब-तब या तो पाक सेना या फिर उससे प्रेरित नापाक तत्वों द्वारा भारत में कुछ न कुछ कोहराम मचाके सम्बन्ध बहाली की कवायदों को रोक दिया गया है। अब यह तो सर्वविदित है कि पाकिस्तानी हुकूमत का उसकी सेना पर कोई विशेष नियंत्रण नहीं है, अतः पाकिस्तानी हुकूमत भी सेना के इन कुत्सित प्रपंचों में शामिल होगी इसकी उम्मीद न के बराबर है। इन सब बातों को देखते हुए भारत के लिए यही उचित होगा कि वो अपनी सुरक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से चाक-चौबंद करे जिससे लाख कोशिश करने के बाद भी कोई देश पर हमला न कर सके। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान में मौजूद नापाक तत्वों की शिनाख्त कर न केवल उनकी हकीकत  दुनिया के सामने लाइ जाय, बल्कि पाकिस्तानी हुकूमत के साथ मिलकर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी की जाय। साथ ही, इन गतिविधियों के समान्तर  पाकिस्तानी हुकूमत से बातचीत भी जारी रहनी चाहिए। क्योंकि दोनों देशों के बीच बातचीत का चलते रहना एक बड़ा उपाय है, जिससे पाकिस्तान के नापाक तत्वों के मंसूबों को ध्वस्त करते हुए उनका मुह बंद किया जा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें