कबो रहे जे सोन चिरइया,
उहाँ न बा अब सोना चाँदी !
बहत रहे जहँ नदी दूध के,
उहाँ भूखि से मरे अबादी !
चोर पहुँचि गइलन सन सत्ता, धरि नेता जईसन भेषवा !
गाँधीजी के सपना टूटत,
जाता अन्हार में
देसवा !
ढाई सदी रहे गोरन के,
फेर जाके आईल खादी !
लाख पूत आ सेनुर कीमत,
बड़ महंग बा ई आजादी !
बाकिर कीमत आजादी
के, नहीं समझे देस नरेसवा !
गाँधीजी के सपना
टूटत, जाता अन्हार में
देसवा !
भ्रष्टतंत्र के दीमक लागल !
खोखल हो गईल इमान सब !
पईसा की रँगन में रँगि के,
बा बदल गईल इंसान सब !
प्रेम, त्याग, सुख कमे लऊके, बस
लऊके कलह कलेशवा !
गाँधीजी के सपना
टूटत, जाता अन्हार
में देसवा !
अनगिनत समस्या बादो भी,
बा झिलमिल आस के दीयना !
युवा खून, ई
देश बचाई,
बा ई बिस्वास
के दीयना !
युवा बनी जनता के
सेवक, न नेता
जईसन बलेशवा !
गाँधीजी के
सपना पूजी, उबरी
अन्हार से देसवा !
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