शनिवार, 29 नवंबर 2014

कलंकित होता क्रिकेट [दैनिक जागरण राष्ट्रीय में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

दैनिक जागरण 
यह सही है कि आईपीएल ने न सिर्फ भारतीय बल्कि विश्व क्रिकेट का काफी हित किया है, इसके जरिए तमाम खेल प्रतिभाएं निखरकर देश व दुनिया  के सामने आई हैं. जडेजा, आश्विन से लेकर शिखर धवन, अम्बाती रायडू तक तमाम ऐसे खिलाड़ी हैं जो आईपीएल के जरिये ही अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में भी अपना मुकाम बना सके हैं. ये तो आईपीएल के उजले  पक्ष हो गए, लेकिन इसी आईपीएल के स्याह पक्ष भी हैं. ऐसे स्याह पक्ष जिनकी कालिमा से  आईपीएल का सारा उजला पक्ष धूमिल हो जाता है. हम बात कर रहे हैं आईपीएल फिक्सिंग प्रकरण की जिसकी जांच सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में हो रही है. इस प्रकरण पर नज़र जाते ही न सिर्फ इस देश में धर्म माना जाने वाला क्रिकेट कलंकित दिखने लगता है बल्कि क्रिकेट प्रेमियों का इसपर से विश्वास भी डोल जाता है. दरअसल यह मामला तब शुरू हुआ जब पिछले साल मई में राजस्थान रॉयल्स टीम के तीन खिलाड़ियों को स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया. इसके बाद सट्टेबाजों से सम्बन्ध को लेकर बिंदु दारा सिंह भी पकड़े गए. इनसे पूछताछ के बाद इसमें आईपीएल की एक टीम चेन्नई सुपर किंग के मालिक एन श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन की भी पुलिस के सामने पेशी हुई. फिर बीसीसीआई ने दो रिटायर्ड जजों की सदस्यता वाली एक जांच बैठाई जिन्होंने अपनी जांच में सबकुछ  पाक साफ़ घोषित कर दिया. इन्हीं सब प्रकरणों के बाद जैसे-तैसे बढ़ते हुए मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुँचा तो उसके द्वारा इस मामले की निष्पक्ष व स्पष्ट जांच के लिए जस्टिस मुद्गल समिति का गठन कर दिया गया. अब इस मुद्गल समिति की जांच में आईपीएल की जो तस्वीर धीरे-धीरे सामने आ रही है, उसने न सिर्फ क्रिकेट को शर्मसार किया है बल्कि दुनिया के सबसे ताकतवर क्रिकेट बोर्ड को सवालों के घेरे में भी ला दिया है. मुद्गल समिति ने जो जांच रिपोर्ट न्यायालय में पेश की उसमे  खिलाड़ियों व क्रिकेट अधिकारियों आदि के कुल १३ नामों का जिक्र है. हालांकि अभी सिर्फ चार नाम ही सार्वजनिक हुए हैं और किसी खिलाड़ी के नाम को सार्वजनिक करने पर न्यायालय ने रोक लगाई हुई है. चार सार्वजनिक नामों में एन श्रीनिवासन, उनके दामाद मयप्पन, राजस्थान रॉयल के सह मालिक राज कुंद्रा व पूर्व आईपीएल अधिकारी सुन्दर रमन के नाम हैं. इसी सन्दर्भ कोर्ट द्वारा एन श्रीनिवासन को बीसीसीआई का अध्यक्ष पद  व आईपीएल टीम का मालिकाना हक़ दोनों रखने के कारण ‘हितों के टकराव’ की स्थिति पैदा होने की बात कही गई. कोर्ट का यह कहना सही भी है क्योंकि अब बीसीसीआई अध्यक्ष के  नाते जहाँ श्रीनिवासन का दायित्व क्रिकेट को साफ़-सुथरा व विश्वसनीय रखने का होगा, वहीँ बतौर टीम मालिक उनका उदेश्य किसी भी हालत में आईपीएल को जीतना ही रहेगा. यह भी सामने आया है कि आईपीएल में फिक्सिंग के बारे में श्रीनिवासन को जानकारी होती थी. ऐसे में यह क्यों न माना जाय कि एन श्रीनिवासन ने बतौर बीसीसीआई अध्यक्ष अपने पद का दुरूपयोग कर अपनी टीम चेन्नई के जीतने में सहायता की होगी ? स्पष्ट है कि यहाँ हितों का टकराव जैसा मामला रहा है और इस टकराव में कहीं न कहीं श्रीनिवासन ने क्रिकेट के हित की बजाय अपने हित को ज्यादा तवज्जो दिया है. इसीलिए कोर्ट द्वारा श्रीनिवासन की टीम चेन्नई सुपर किंग्स के लिए कहा गया है कि इस टीम को बिना किसी जांच के आईपीएल से बाहर कर देना चाहिए. अब चेन्नई टीम का क्या होगा, यह निर्णय तो बीसीसीआई के हाथ है, लेकिन सही यही होता कि चेन्नई  को बाहर करने की बजाय सिर्फ उन्हीं लोगों पर कारवाई होती जिन्होंने इस प्रतिभावान टीम को फिक्सिंग के कीचड़ में डालकर ख़राब किया. अब जो भी हो, पर इतना तो स्पष्ट है कि बतौर बीसीसीआई अध्यक्ष श्रीनिवासन ने अपनी शक्तियों का काफी दुरूपयोग किया है. इनके द्वारा शक्तियों का दुरूपयोग कहीं न कहीं इस मामले में भी देखा जा सकता है कि  बीसीसीआई फिक्सिंग प्रकरण की जांच के लिए दो रिटायर्ड जजों की अपनी जांच बिठाती है और उस जांच में सबकुछ पाक साफ़ बताया जाता है, जबकि अब जब वही जांच सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित मुद्गल समिति कर रही है तो उपर्युक्त तमाम गोरखधंधे उजागर हुए हैं. कहना गलत नहीं होगा कि बीसीसीआई द्वारा बैठाई गई जांच में श्रीनिवासन के प्रभाववश जानबूझकर चीजों को छिपाया गया व मामले को ख़त्म करने की कोशिश की गई. ये तो शुक्र है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच दल गठित कर दिया अन्यथा क्रिकेट के भीतर मौजूद इस कालिख और इसको लगातार गन्दा कर रहे लोगों का पता शायद देश को चलता ही नहीं.

    इन बातों को देखते हुए क्रिकेट जगत में से ऐसी भी आवाजें उठ रही हैं कि यह सब झमेला आईपीएल के कारण हो रहा है, इसलिए सबसे पहले उसे ही बंद कर देना चाहिए. हालांकि यह मांग किसी लिहाज से तर्कसंगत या उचित नहीं प्रतीत होती. क्योंकि ऐसा कैसे माना जाय कि आईपीएल को बंद कर देने से फिक्सिंग रुक जाएगी और वो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को प्रभावित नहीं करेगी ? तात्पर्य यह है कि आईपीएल को बंद कर देना इस समस्या का समाधान नहीं है, क्योंकि यह समस्या आईपीएल से कहीं अधिक भारतीय क्रिकेट और क्रिकेट बोर्ड की विश्वसनीयता, शुचिता और निष्ठा को प्रभावित करने वाली है. इस समस्या से निपटने के लिए आज सबसे बड़ी जरूरत भारतीय क्रिकेट बोर्ड को राजनीतिकरण से मुक्त करने की है. क्रिकेट बोर्ड के राजनीतिकरण  का मूल कारण यह विडम्बना है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष अक्सर ऐसे व्यक्ति बनते रहे हैं जिनका क्रिकेट से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं होता. कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि से होता है तो कोई बड़ा उद्योगपति. भारतीय क्रिकेट बोर्ड के प्रथम  अध्यक्ष आर ई ग्रांट गोवन से लेकर अबतक राजनीति और उद्योग से जुड़े लोगों का ही भारतीय क्रिकेट बोर्ड पर कब्ज़ा रहा है. अब ऐसे लोगों ने क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष पद पर बैठकर और कुछ तो नहीं, बस भारतीय क्रिकेट बोर्ड का राजनीतिकरण ही किया है. अब क्रिकेट बोर्ड कोई राजनीतिक संस्था तो है नहीं, यह  क्रिकेट की संस्था है और इसका नेतृत्व क्रिकेट से जुड़े व्यक्ति को ही करना चाहिए.  अतः जरूरत है कि बोर्ड के संविधान में परिवर्तन कर अब से यह अनिवार्य किया जाय कि बोर्ड का अध्यक्ष कोई क्रिकेट से जुड़ा व्यक्ति ही बनेगा. ऐसा करके भारतीय क्रिकेट बोर्ड के राजनीतिकरण को रोका जा सकता है. इसके अलावा जरूरत यह भी है कि फिक्सिंग को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं व ऐसा करने वालों को सख्त से सख्त सजा देकर आदर्श स्थापित किया जाए जिससे कि आगे कोई ऐसा न कर सके. अगर भारत सरकार इस विषय में गंभीर होकर उक्त कदम उठाती है तो ही इस देश में धर्म समझे जाने वाले क्रिकेट को उसकी पुरानी प्रतिष्ठा पुनः वापस मिल पाएगी.

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