शनिवार, 1 नवंबर 2014

सैन्य आधुनिकीकरण की दिशा में बड़े कदम [दैनिक जागरण राष्ट्रीय में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

दैनिक जागरण 
मोदी सरकार द्वारा भारतीय सेनाओं के लिए ८० हजार करोड़ के आवश्यक साजो-सामान की खरीद व निर्माण का जो निर्णय लिया गया है, वो न सिर्फ हमारी सेनाओं को मजबूती देने वाला है, बल्कि ज़माने से ठण्डे बस्ते में पड़े सेनाओं के आधुनिकीकरण की दिशा में भी बड़ा कदम है। गौरतलब है कि अभी हाल ही में रक्षा खरीद परिषद् की बैठक में ये निर्णय लिया गया है कि देश की तीनों सेनाओं के लिए आवश्यक हथियारों व साजो-सामान की खरीद के लिए ८० हजार करोड़ रूपये खर्च किए जाएंगे। इसके अंतर्गत ५० हजार करोड़ की लागत से नौ सेना के लिए देश में ही ६ पनडुब्बियों का निर्माण किया जाएगा। इसमें प्रधानमंत्री के मेक इन इण्डिया कार्यक्रम का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। थल सेना के लिए इजरायल से ८३५६ टैंक रोधी स्पाइक मिसाईलों व इनके लांचरों की खरीद के लिए   ३२०० करोड़ रूपये रखे गए हैं। इसके अतिरिक्त डोरनियर विमान, इनफेंट्री वाहनों समेत तमाम और चीजों की खरीद का भी निर्णय लिया गया है। इससे पहले भी बीती जुलाई में सत्ता संभालते ही मोदी सरकार द्वारा २१ हजार करोड़ के रक्षा खरीद प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी, जिसके अंतर्गत जंगी जहाजों, गश्ती पोतों आदि के निर्माण का निर्णय लिया गया था। इसके अतिरिक्त बीते अगस्त महीने में सेनाओं को आधुनिक बनाने के लिए की जाने वाली तमाम रक्षा खरीदों के लिए ही १७ हजार करोड़ के मद को भी मंजूरी दी गई। और इन सबके बाद अब ये ८० हजार करोड़ की रक्षा खरीद का ऐलान भी हमारे सामने है। इन सब चीजों से स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार पूर्ववर्ती संप्रग सरकार की तरह देश की सेनाओं की आवश्यकताओं को लेकर कोई समझौता करने को कत्तई तैयार नहीं है।
  दरअसल, जिस सेना के हाथ में देश की रक्षा की जिम्मेदारी है, लम्बे समय से आवश्यक उपकरणों के अभाव में उसकी हालत काफी कमजोर सी हो रही है। हालांकि बावजूद इसके ऐसा नहीं है कि हमारी सेनाएं देश की रक्षा करने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन फिर भी जब सामने चीन और पाकिस्तान जैसे खतरनाक और संदिग्ध पड़ोसी मौजूद हों, तो देश की सेनाओं का पूरी तरह से मजबूत और आधुनिक उपकरणों से युक्त होना अनिवार्य हो जाता है। गौर करें तो चीन लगातार अपनी सेनाओं का आधुनिकीकरण करता रहा है और आज उसकी सेना का प्रत्येक अंग युद्ध की आधुनिक तकनीक में सिद्धहस्त है। पर संप्रग सरकार के दस साल के शासन काल में तकनिकी प्रक्रियाओं में उलझे रहने व निर्णय न लिए जाने के कारण हमारी सेनाएं पड़ोसी देश चीन की सेनाओं के मुकाबले पीछे काफी चली गयी हैं। यह सही है कि अपने शासन के दौरान संप्रग सरकार ने देश के रक्षा बजट को राजग सरकार के ६० हजार करोड़ से बढ़ाते-बढ़ाते २ लाख करोड़ तक कर दिया, पर हमें यह भी नहीं भूलना चहिए कि इस दौरान वैश्विक स्तर पर रूपया बेहद कमजोर भी हुआ है। इसके अतिरिक्त सवाल यह भी है कि क्या इस बजट का सेना के लिए  कोई विशेष उपयोग हो सका ? क्या यह बजट पूरी तरह से सेना के सशक्तिकरण के काम आया ? इन सवालों का जवाब नकारात्मक ही है। क्योंकि संप्रग सरकार के शासनकाल में सेनाओं के लिए की जाने वाली अधिकाधिक खरीद किसी न किसी कारणवश रक्षा व वित्त मंत्रालय की फाइलों में ही चक्कर काटती रहीं। कुछ रक्षा व वित्त मंत्रालय के बीच सही तालमेल न होने के कारण तो कुछ तकनिकी प्रक्रियाओं को पार न करने के कारण अधिकाधिक रक्षा खरीद अधर में ही लटकी रहीं। संप्रग सरकार के समय रक्षा खरीदों में धीमी गति होने का एक बड़ा कारण यह भी था कि वो सरकार अधिकाधिक रक्षा खरीद विदेशी कंपनियों से करती थी। इसमे होता ये था कि उन विदेशी कंपनियों से खरीद के दौरान कभी कीमत बढ़ने तो कभी उपकरणों की गुणवत्ता आदि को लेकर सरकार का विवाद हो जाता। परिणामतः रक्षा खरीद ठण्डे बस्ते में चली जाती और संप्रग सरकार उधर से आँख बंद कर लेती। लेकिन मोदी सरकार द्वारा  अबतक  रक्षा खरीद पर लिए गए निर्णयों से इतना तो साफ़ हो गया है कि यह सरकार रक्षा खरीद के मामले में विदेशी कंपनियों से अधिक भारतीय कंपनियों को ही तरजीह देने का मन रखती है। उदाहरणार्थ अगर अभी हुए इस ताज़ा ८० हजार करोड़ के खरीद के ऐलान पर ही गौर करें तो इसमें से ५० हजार करोड़ की पनडुब्बियों का निर्माण भारतीय कंपनियों द्वारा देश में ही किया जाएगा। इसके अलावा अधिकाधिक रक्षा खरीद भारतीय कंपनियों से ही करने का निर्णय सरकार द्वारा लिया गया है।

  बहरहाल, यह तो स्पष्ट है कि सेनाओं जरूरतों के प्रति  संप्रग सरकार के लचर व लापरवाह रवैये के कारण हमारी सेनाएं  समय के साथ आधुनिक उपकरणों व हथियारों आदि से काफी हद तक वंचित रहीं। इसीके मद्देनज़र भारतीय सेनाओं के आधुनिकीकरण की बात तमाम रक्षा विशेषज्ञों समेत खुद सेना से जुड़े लोगों द्वारा  भी लगातार की जाती रही। पर अब जिस तरह से मोदी सरकार द्वारा अपने अबतक के काफी कम समय के शासनकाल में ही हमारी सेनाओं की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निर्णय पर निर्णय लिए जा रहे हैं, इसे देखते हुए यह उम्मीद तो जगती ही है कि यह सरकार सेनाओं को लेकर बेहद गंभीर है। कह सकते हैं कि कम से कम हमारी सेनाओं के तो अच्छे दिनों की शुरुआत हो ही गई है। 

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