- पीयूष द्विवेदी भारत
हजारों वर्ष पहले की बात है, अयोध्या में दशरथ
का राज था। उनकी तीन रानियाँ थीं। राम उन्हिकी पहली रानी के लड़के थे। राजा की बाकी
दो रानियों के भी तीन लड़के थे। भरत, लक्ष्मण और शत्रुहन। राजा दशरथ राम को सिंहासन
देना चाहते थे, इसलिए उनकी दूसरी रानी मंथरा ने क्षल से राजा को मार दिया और अपने
बेटे भरत (इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम ‘भारत’ पड़ा) को राजा बनवाने का
आयोजन करने लगी। राम ने इसका विरोध किया तो उसने सैनिकों से राम को भी जंगल में ले
जाकर मारने को कह दिया। सैनिक राम को जंगल में लेकर तो गए, लेकिन उन्हें दया आ गई
और उन्होंने राम को जिन्दा छोड़कर कहा कि कहीं दूर चले जाओ अन्यथा मारे जाओगे। राम
जंगल में भटकते-भटकते लंका पहुँच गए। यहाँ उनकी मुलाकात सीता से हुई। लंका का राजा
कंस बड़ा दुष्ट था और अपनी प्रजा पर बहुत अत्याचार करता था। वहां की प्रजा में केवल
कृष्ण ही उसके विरुद्ध आवाज उठा रहे थे। अब राम जब वहां पहुंचे तो एकदिन कंस के
सैनिकों ने उनपर धावा बोल दिया, पर राम ने अपने पराक्रम से उन्हें मार भगाया। राम
का पराक्रम देख कृष्ण ने सोचा कि राम के सहयोग से कंस का अंत किया जा सकता है।
कृष्ण ने राम से मित्रता कर ली। राम ने कृष्ण को अपनी सारी दुःख-गाथा सुनाई। कृष्ण
ने कहा - अगर तुम कंस को मारने में मेरी सहायता करोगे तो मै भी तुम्हारा राज
दिलाने में तुम्हारी मदद करूँगा। फिर क्या था! कृष्ण और राम ने मिलकर लंका के आम लोगों की एक सेना तैयार कर कंस पर धावा बोल दिया। अब इन दो-दो योद्धाओं का सामना कंस नहीं कर
सका और मारा गया। कृष्ण लंका के राजा बन गए। अब उन्होंने अयोध्या के बारे में
जानकारी मंगाई तो पता चला कि अयोध्या की सेना लंका की सेना से बहुत बड़ी है। तब
काफी सोच-विचारकर कृष्ण ने अपने मित्र और किष्किन्धा के राजा पांच पांडवों से मदद
मांगी। इधर राम ने भी हस्तिनापुर के अपने मित्र सुग्रीव, हनुमान आदि को याद किया।
और इन सब को इकठ्ठा कर एक बड़ी सेना के साथ राम और कृष्ण ने अयोध्या पर हमला कर
दिया। अठ्ठारह दिनों तक बड़ा भीषण युद्ध हुआ, तमाम क्षल प्रपंच हुए। इस युद्ध में
लक्ष्मण और शत्रुहन भरत को धोखा देकर राम के पाले में आ गए। और आखिर में राम और
कृष्ण के आगे भरत ने पराजय स्वीकार ली। राम ने उन्हें क्षमा कर दिया। राम का
राज्याभिषेक हुआ और उन्होंने सीता से विवाह भी कर लिया। अठ्ठारह दिनों के इसी
राम-कृष्ण और भरत आदि के बीच चले युद्ध को ‘महाभारत’ नामक महाकाव्य के नाम से जाना
जाता है।
आवश्यक सूचना: यह सन २०५० की महाभारत की संक्षिप्त कहानी है। वेंडी डोनिगर से लेकर महिषासुर प्रकरण तक आज जिस तरह से इतिहास का
‘ऑपरेशन’ किया जा रहा है, उसे देखते हुए २०५० में ऐसी किसी महाभारत की कहानी के
होने पर कत्तई आश्चर्य नहीं किया जा सकता। फिर भी इससे किसीकी भावनाओं को ठेस
पहुंचे तो क्षमा।
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