बुधवार, 19 नवंबर 2014

दूध की शुद्धता का सवाल [अमर उजाला कॉम्पैक्ट, दबंग दुनिया. नेशनल दुनिया और प्रजातंत्र लाइव में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

अमर उजाला
यों तो दूध को सेहत के लिए अमृत कहा जाता है, पर आज अधिकाधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में इस अमृत समान दूध में विभिन्न प्रकार की मिलावटें कर इसके व्यापारियों द्वारा इसे विष तुल्य बना दिया जा रहा है. कम से कम लागत में अधिकाधिक मुनाफा कमाने की  दुष्प्रवृत्ति के कारण दूध व्यापारियों द्वारा ग्राहक की सेहत से बेपरवाह इसमें पानी से लेकर डिटर्जेंट आदि हानिकारक चीजें तक मिलाई जा रही हैं. दूध में मिलावट की ये समस्या कितनी गंभीर है इसे इसीसे समझा जा सकता है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसपर जब-तब राज्य व केंद्र सरकारों को तरह-तरह के निर्देश दिए जाते रहे हैं. अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दूध में मिलावट की समस्या को बेहद गंभीर बताते हुए केंद्र सरकार से कहा गया है कि वो ‘खाद्य संरक्षा व मानक क़ानून’ में संशोधन के लिए विचार करे. इसके अलावा न्यायालय ने राज्य सरकारों को भी अपने-अपने राज्य में दूध में मिलावट की स्थिति तथा इससे सम्बंधित क़ानून की मौजूदा स्थिति में संशोधन करने या नया क़ानून बनाने आदि सभी पहलुओं पर विचार करके न्यायालय में रिपोर्ट पेश करने को कहा है. उक्त सभी कार्यों के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को चार सप्ताह का समय दिया गया है. इससे पहले भी इसी साल फ़रवरी में शीर्ष न्यायालय द्वारा दूध में मिलावट पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों से सम्बंधित क़ानून को सख्त बनाने के लिए कहा गया था. लेकिन इस दिशा में अबतक कोई प्रगति देखने को नहीं मिली और देश के लगभग सभी राज्यों में दूध में मिलावट बदस्तूर जारी है.
नेशनल दुनिया
   देश में दूध में मिलावट की स्थिति कितनी भयावह है, इसको अभी हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण से प्राप्त कुछ आंकड़ों के जरिये बखूबी समझा जा सकता है. शुद्ध दूध की उपलब्धता के सम्बन्ध में खाद्य सुरक्षा एवं मानक अथारिटी (एफएसएसएआई) द्वारा अभी हाल ही में किए गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में जो तस्वीर सामने आई है, वो न सिर्फ चौंकाती है बल्कि डराती भी है. इस सर्वेक्षण देश भर में परिक्षण किए गए दूध के नमूनों में से ७० फिसद नमूनों में मिलावट पाई गई. चौंकाने वाली बात तो ये है कि इस सर्वेक्षण के अंतर्गत बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओड़िसा, मिजोरम आदि राज्यों के दूध के नमूनों में से तो एक भी नमूना दूध की शुद्धता के मानक के अनुरूप नहीं ठहरा. अर्थात कि सब में भारी मात्रा में मिलावट पाई गई.
प्रजातंत्र लाइव
इनके अतिरिक्त पंजाब के दूध के नमूने में ८१, दिल्ली में ७०, गुजरात में ८९, महाराष्ट्र में ६५, राजस्थान में ७६, जम्मू-कश्मीर में ८३ और मध्य प्रदेश में ४८ प्रतिशत मिलावट पाई गई. गोवा और पुडुचेरी मात्र दो ऐसे प्रदेश हैं जिनके के नमूने शत-प्रतिशत शुद्ध व तय मानकों के अनुरूप थे. मिलावट के लिए प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं में सर्वाधिक मात्रा पानी की है. पानी की मिलावट के पीछे दूध व्यापारियों का सिर्फ इतना उद्देश्य होता है कि कम दूध को ज्यादा करके अधिक मुनाफा कमाया जा सके. अब मुनाफा कमाने के अन्धोत्साह में ये व्यापारी  शायद यह भूल जाते हैं कि पानी की मिलावट से दूध की गुणवत्ता तो नष्ट हो ही जाती है, पानी में मौजूद कीटाणु आदि दूध में पहुंचकर लोगों के स्वास्थ्य को हानि भी पहुँचा सकते हैं. पर इसकी तो छोड़िये, दूध व्यापारियों पर तो मुनाफाखोरी का ऐसा भूत सवार  है कि वे पानी के अलावा डिटर्जेंट से लेकर यूरिया जैसे पदार्थों तक को भी दूध में मिलाने से तनिक भी नहीं कतरा रहे. उपर्युक्त सर्वेक्षण में ही पाया गया है कि दूध के ४६ प्रतिशत नमूनों में जहाँ पानी की मिलावट पाई गई, वहीँ बाकी में डिटर्जेंट, यूरिया आदि की. इन सब आंकड़ों के बाद यह समझना बेहद आसान है कि देश में दूध में मिलावट का धंधा किस स्तर पर चल रहा है. पर विडम्बना ये है कि देश के लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े इस बेहद गंभीर मसले को लेकर देश की शीर्ष अदालत जितनी गंभीर है, उसकी तुलना में इस देश की सरकारें कुछ भी नहीं. सरकारों की अगम्भीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई दफे कहे जाने के बावजूद केंद्र या राज्य सरकारों ने दूध मिलावट की रोकथाम के लिए सम्बंधित क़ानून को सख्त बनाने की दिशा में अबतक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. बहरहाल न्यायालय ने अब यह उम्मीद जताई है कि मौजूदा सरकार संसद के आगामी सत्र में इस सम्बन्ध में क़ानून संशोधन करेगी.

दबंग दुनिया 

   अगर एक नज़र दूध मिलावट के लिए मौजूद क़ानून व सजा आदि पर डालें तो हम समझ सकते हैं कि यहाँ मामला कितना लचर है. अभी दूध में मिलावट करने व इसकी बिक्री करने के लिए न्यूनतम छः महीने की सजा का प्रावधान है जो कि इस अपराध के लिहाज से बेहद कम है. मिलावट का यह अपराध लोगों के जीवन को खतरे में डालने के अपराध जैसा है, अतः इसके लिए क़ानून व सजा आदि एकदम सख्त होनी चाहिए.  पर दूध मिलावट का ये क़ानून ऐसा है कि मिलावटखोर के पकड़े जाने पर भी इसमें सजा की नौबत आती ही नहीं है. क्योंकि इस क़ानून में मिलावट करने वालों के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का कोई प्रावधान नहीं है. अब जब प्राथमिकी ही दर्ज नहीं होती, तो पुलिस कार्रवाई क्योंकर करे. आख़िरकार अधिकाधिक मामले लेन-देन के द्वारा निपटा दिए जाते हैं. इन्ही सब विसंगतियों के मद्देनज़र सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि दूध मिलावट के लिए मौजूदा क़ानून में समुचित संशोधन किए जाएं व इसकी सजा को उम्रकैद कर दिया जाय, लेकिन सरकारें जाने क्यों इसको लेकर अबतक कुछ नहीं की हैं. आज जरूरत ये है कि दूध मिलावट से सम्बंधित क़ानून में संशोधन कर प्राथमिकी दर्ज करने की व्यवस्था लाई जाय तथा इसकी सजा को भी सख्त किया जाय. साथ ही, स्वास्थ्य विभाग में फुड इंस्पेक्टरों की किल्लत को भी दूर करने की जरूरत है जिससे कि मिलावटखोरों के खिलाफ सही ढंग से कारवाई करते हुए उनपर नकेल कसी जा सके. इन सब चीजों के लिए पहली आवश्यकता यही है कि हमारी सरकारें इस मसले की गंभीरता को समझें कि ये इस देश के नागरिकों के स्वास्थ्य से जुड़ा मसला है. अगर केंद्र व राज्य सरकारें इस विषय को लेकर गंभीर होते हुए दृढ इच्छाशक्ति के साथ दूध में मिलावटखोरी की रोकथाम के लिए उक्त कदम उठाती हैं तो धीरे-धीरे ही सही इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है. 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें