शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

सब मिल करें जल संरक्षण [अमर उजाला कॉम्पैक्ट, जनसत्ता और दैनिक जागरण राष्ट्रीय और कल्पतरु एक्सप्रेस में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

अमर उजाला 
प्राणी मात्र के जीवन के लिए वायु के बाद अगर किसी चीज की सर्वाधिक आवश्यकता होती है तो वो है पानी। स्थिति ये है कि बिना पानी के मनुष्य से लेकर पशु-पक्षि, पेड़-पौधों तक किसी के भी जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। लेकिन, आज जिस तरह से मानवीय जरूरतों की पूर्ति के लिए निरंतर व अनवरत भू-जल का दोहन किया जा रहा है, उससे साल दर साल भू-जल का स्तर गिरता जा रहा है। पिछले एक दशक के भीतर भू-जल स्तर में आई गिरावट को अगर इस आंकड़े के जरिये समझने का प्रयास करें तो अब से दस वर्ष पहले तक जहाँ ३० मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था, वहाँ अब पानी के लिए ६० से ७० मीटर तक की खुदाई करनी पड़ती है। साफ़ है कि बीते दस सालों में दुनिया का भू-जल स्तर बड़ी तेजी से घटा है और अब भी बदस्तूर घट रहा है, जो कि बड़ी चिंता का विषय है। अगर केवल भारत की बात करें तो भारतीय केंद्रीय जल आयोग द्वारा अभी हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के अधिकांश बड़े जलाशयों का जलस्तर बीते वर्ष के मुकाबले घटता हुआ पाया गया है।
दैनिक जागरण 
आयोग के अनुसार देश के बारह राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशयों के जलस्तर में काफी गिरावट आई है। आयोग की तरफ से ये भी बताया  गया है कि पिछले वर्ष इन राज्यों का जलस्तर जितना अंकित किया गया था, वो तब ही काफी कम था। लेकिन, इस वर्ष वो गिरकर तब से भी कम हो गया है। गौरतलब है कि केंद्रीय जल आयोग (सीडब्लूसी) देश के ८५ प्रमुख जलाशयों की देख-रेख व भंडारण क्षमता की निगरानी करता है। हालांकि घटते जलस्तर को लेकर जब-तब देश में पर्यावरण विदों द्वारा चिंता जताई जाती रहती हैं, लेकिन जलस्तर को संतुलित रखने के लिए सरकारी स्तर पर कभी कोई ठोस प्रयास किया गया हो, ऐसा नहीं दिखता। अब सवाल ये उठता है कि आखिर भू-जल स्तर के इस तरह निरंतर रूप से गिरते जाने का मुख्य कारण क्या है ?  अगर इस सवाल की तह  में जाते हुए हम घटते भू-जल स्तर के कारणों को समझने का प्रयास करें तो तमाम बातें सामने आती  हैं। घटते भू-जल के लिए सबसे प्रमुख कारण तो उसका अनियंत्रित और अनवरत दोहन ही है। आज दुनिया  अपनी जल जरूरतों की पूर्ति के लिए सर्वाधिक रूप से भू-जल पर ही निर्भर है। लिहाजा, अब एक तरफ तो भू-जल का ये अनवरत दोहन हो रहा है तो वहीँ दूसरी तरफ औद्योगीकरण के अन्धोत्साह में हो रहे प्राकृतिक विनाश के चलते पेड़-पौधों-पहाड़ों आदि की मात्रा में कमी आने के कारण बरसात में भी काफी कमी आ गई है, परिणामतः धरती को भू-जल दोहन के अनुपात में जल की प्राप्ति नहीं हो पा रही है। सीधे शब्दों में कहें तो धरती जितना जल दे रही है, उसे उसके अनुपात में बेहद कम जल मिल रहा है। बस, यही वो प्रमुख कारण है जिससे कि दुनिया का भू-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। दुखद और चिंताजनक बात ये है कि कम हो रहे भू-जल की इस विकट समस्या से निपटने के लिए अब तक वैश्विक स्तर पर कोई भी ठोस पहल होती नहीं दिखी है। ये एक कटु सत्य है कि अगर दुनिया का भू-जल स्तर इसी तरह से गिरता रहा तो कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले समय में लोगों को पीने के लिए भी पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा। 
कल्पतरु एक्सप्रेस

जनसत्ता 
   ऐसा कत्तई नहीं है कि कम हो रहे पानी की इस समस्या का हमारे पास कोई समाधान नहीं है। इस समस्या से निपटने के लिए सबसे बेहतर समाधान तो यही है कि बारिश के पानी का समुचित संरक्षण किया जाए और उसी पानी के जरिये अपनी अधिकाधिक जल जरूरतों की पूर्ति की जाए। बरसात के पानी के संरक्षण के लिए उसके संरक्षण माध्यमों को विकसित करने की जरूरत है, जो कि सरकार के साथ-साथ प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का भी दायित्व है। अभी स्थिति ये है कि समुचित संरक्षण माध्यमों के अभाव में वर्षा का बहुत ज्यादा जल, जो लोगों की तमाम जल जरूरतों को पूरा करने में काम आ सकता है, खराब और बर्बाद हो जाता है। अगर प्रत्येक घर की छत पर वर्षा जल के संरक्षण के लिए एक-दो टंकियां लग जाएँ व घर के आस-पास कुएँ आदि की व्यवस्था हो जाए, तो वर्षा जल का समुचित संरक्षण हो सकेगा, जिससे जल-जरूरतों की पूर्ति के लिए भू-जल पर से लोगों की निर्भरता भी कम हो जाएगी। परिणामतः भू-जल का स्तरीय संतुलन कायम रह सकेगा। इसके अलावा अपने दैनिक कार्यों में सजगता और समझदारी से पानी का उपयोग कर के भी जल संरक्षण किया जा सकता है। जैसे, घर का नल खुला न छोड़ना, साफ़-सफाई आदि कार्यों के लिए खारे जल का उपयोग करना, नहाने के लिए उपकरणों की बजाय साधारण बाल्टी आदि का इस्तेमाल करना आदि तमाम ऐसे सरल उपाय हैं, जिन्हें अपनाकर प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन काफी पानी की बचत कर सकता है। कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि जल संरक्षण के लिए लोगों को सबसे पहले जल के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। जल को खेल-खिलवाड़ की अगंभीर दृष्टि से देखने की बजाय अपनी जरूरत की एक सीमित वस्तु के रूप में देखना होगा। हालांकि, ये चीजें तभी होंगी जब जल की समस्या के प्रति लोगों में आवश्यक जागरूकता आएगी और ये दायित्व दुनिया के उन तमाम देशों जहाँ भू-जल स्तर गिर रहा है, की सरकारों समेत सम्पूर्ण विश्व समुदाय का है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि जल समस्या को लेकर दुनिया में बिलकुल भी जागरूकता अभियान नहीं चलाए जा रहे। बेशक, टीवी, रेडियो आदि माध्यमों से इस दिशा में कुछेक प्रयास जरूर हो रहे हैं, लेकिन गंभीरता के अभाव में वे प्रयास कोई बहुत कारगर सिद्ध होते नहीं दिख रहे। लिहाजा, आज जरूरत ये है कि जल की समस्या को लेकर गंभीर होते हुए न सिर्फ राष्ट्र स्तर पर बल्कि विश्व स्तर पर भी एक ठोस योजना के तहत घटते भू-जल की समस्या की भयावहता व  जल संरक्षण आदि इसके समाधानों के बारे में बताते हुए एक जागरूकता अभियान चलाया जाए, जिससे जल समस्या की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित हो और वे इस समस्या को समझते हुए सजग हो सकें। क्योंकि, ये एक ऐसी समस्या है जो किसी कायदे-क़ानून से नहीं, लोगों की जागरूकता से ही मिट सकती है। लोग जितना जल्दी जल संरक्षण के प्रति जागरुक होंगे, घटते भू-जल स्तर की समस्या से दुनिया को उतनी जल्दी ही राहत मिल सकेगी।

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