- पीयूष द्विवेदी भारत
जनसंदेश |
आगामी लोकसभा चुनाव में अब बेहद कम समय शेष रह
गया है, ऐसे में देश के सियासी गलियारे में
तमाम तरह के हंगामे होना स्वाभाविक ही है ! इन्ही हंगामों की एक कड़ी तीसरा
मोर्चा भी है ! हालांकि अभी तक तीसरे मोर्चे के विषय में इससे सम्बंधित दलों द्वारा भले ही कोई आधिकारिक घोषणा
नही की गई हो, लेकिन जिस तरह से गैरकांग्रेस-गैरभाजपा दलों के नाम पर आए दिन वाम
और अन्य क्षेत्रीय दलों के सम्मेलन हो रहे हैं तथा उन सम्मेलनों में एक मजबूत
विकल्प देने की बात की जा रही है, वो तो यही संकेत देता है कि कहीं न कहीं तीसरा
मोर्चा एकबार फिर शक्ल लेने की कोशिश कर रहा है ! इस संदर्भ में उल्लेखनीय होगा कि
अभी हाल ही में हुए तथाकथित गैर-कांग्रेस और गैर-भाजपा दलों के एक सम्मेलन में जिस
तरह से सपा, जदयू, माकपा, भाकपा, अन्नाद्रमुक, समेत छोटे-बड़े ११ क्षेत्रीय दलों ने
शिरकत करते हुए कांग्रेस और भाजपा से इतर एक ‘मजबूत विकल्प’ देने की बात कही, उसने
संभावित तीसरे मोर्चे की रूपरेखा काफी हद तक स्पष्ट कर दी है ! इस सम्मेलन में सपा
सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, माकपा अध्यक्ष प्रकाश करात, जदयू नेता नीतीश कुमार
समेत और भी कई दलों के नेता मौजूद रहे ! इस दौरान कांग्रेस-भाजपा दोनों को एक ही
जैसा बताते हुए कहा गया कि ११ दलों का ये मोर्चा कांग्रेस-भाजपा का बेहतर विकल्प
है और देश को एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक व्यवस्था उपलब्ध करवाने में भी सक्षम
है ! हालांकि अभी न तो इस मोर्चे का कोई नामकरण ही हुआ है और न ही इस मोर्चे की
तरफ से पीएम उम्मीदवार के विषय में ही कोई घोषणा की गई है ! इस विषय में इस मोर्चे
के दलों का कहना है कि तीसरे मोर्चे में पीएम का फैसला हमेशा से चुनाव के बाद होता
रहा है और इसबार भी होगा ! अब यहाँ समझने वाली बात ये है कि देश में जब भी तीसरे
मोर्चे की सरकार बनी है उसमें हमेशा ही पीएम पद को लेकर महत्वाकांक्षाएं
टकराती रही हैं और कहना गलत नही होगा कि महत्वाकांक्षाओं के इस टकराव के कारण ही तीसरे
मोर्चे की कोई भी सरकार अपना निश्चित कार्यकाल पूरा नही कर सकी ! इसबार भी धीरे-धीरे शक्ल ले रहे इस तीसरे
मोर्चे के पीएम उम्मीदवार का ऐलान न होने का यही कारण है कि अबतक तीसरे मोर्चे के
दलों के बीच पीएम को लेकर कोई आम सहमति नही बन पाई होगी और बस इसीलिए इस बात को
चुनाव बाद के लिए छोड़ा जा रहा है ! एक बात ये भी है कि तीसरे मोर्चे के दल ये
अच्छे से जानते हैं कि उन्हें इतनी सीटें तो कभी नहीं मिलने वाली जिससे कि वो
केन्द्र की सत्ता तक पहुँच सकें ! मगर संदेह नही कि इन दलों के लिए ये एक संभावना
जरूर खुली है कि अगर कांग्रेसनीत यूपीए नम्बर दो की पार्टी बनती है जिसकी पूरी
संभावना है, तो उससे सहयोग ले-देकर केन्द्र की सत्ता तक पहुंचा जा सकता है ! अब इस
तीसरे मोर्चे की तरफ से चाहे जितना कहा जाए कि चुनाव बाद कांग्रेस-भाजपा किसीसे
किसी भी तरह के समर्थन का लेन-देन नही होगा, पर इतीहास गवाह है कि तीसरा मोर्चा
हमेशा से कांग्रेस के करीब रहा है ! इसी कारण इसबार भी ये तीसरा मोर्चा कांग्रेसनीत
यूपीए की अपेक्षा भाजपानीत राजग को लेकर अधिक सख्त है ! गौर करें तो इस तीसरे
मोर्चे के तमाम दल कांग्रेस के साथ गठबंधन में रह चुके हैं तो सपा अब भी कांग्रेस
की यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है !
इतिहास
गवाह है कि प्रायः आम चुनावों के समय जितनी तीव्रता और ऊर्जा के साथ तीसरा मोर्चा
सक्रिय हो उठता है, चुनाव बाद उतनी ही तीव्रता के साथ विफल होकर शांत भी हो जाता
है ! इसी क्रम में भारतीय राजनीति में तीसरे मोर्चे के सर्वप्रथम उद्भव पर एक सरसरी निगाह डालें तो क्षेत्रीय स्तर पर तो
तीसरा मोर्चा सत्तर के दशक में ही सक्रिय हो गया था जिसने कि बंगाल में सन ६७ से
७१ तक शासन चलाया ! पर राष्ट्रीय राजनीति में तीसरे मोर्चे के उद्भव का मुख्य
बिंदु नब्बे के दशक के अंतिम वर्षों में है जब राष्ट्रीय मोर्चा के तहत देश में
बड़ा राजनीतिक परिवर्तन हुआ और जनता पार्टी की सरकार बनी ! हालाकि ये सरकार अपने
घटक दलों की दलीय महत्वाकांक्षा के कारण अपना कार्यकाल पूरा नही कर सकी ! बहरहाल,
आज जब एकबार फिर लोकसभा चुनाव करीब है और लड़ाई एकदम सीधी मोदी बनाम राहुल हो रही
है ! ऐसे में इस संभावित तीसरे मोर्चे से आम चुनाव में क्या प्रभाव पड़ेगा, ये
विचारणीय है ! वैसे एक बात तो पूरी तरह से साफ़ है कि ये तीसरा मोर्चा कांग्रेस से
कहीं अधिक भाजपा के लिए संकटकारी सिद्ध होगा ! ये संभावना प्रबल है कि अगर भाजपा
या कांग्रेस दोनों ही सरकार बनाने लायक सीटों से वंचित रह जाते हैं जिसकी पूरी
संभावना है, तो इस संभावित तीसरे मोर्चे के इन सभी दलों द्वारा साम्प्रदायिक
शक्तियों को रोकने के नाम पर या तो कांग्रेस को सहयोग दिया जाएगा या फिर उससे
सहयोग लिया जाएगा ! ऐसी स्थिति में भले ही भाजपा नम्बर एक की पार्टी बन कर उभरे,
पर उसके लिए केन्द्र की सत्ता तक पहुंचना कत्तई आसान नही होगा ! बहरहाल, राजनीति
मे क्षण-क्षण में समीकरण बदलते हैं, अतः चुनाव के परिणाम से पहले पूर्णतः कुछ भी
कहना जल्दबाजी ही होगी !
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