मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

आरोप-प्रत्यारोप के बीच गौण होते मुद्दे [डीएनए, जनवाणी, आईनेक्स्ट इंदौर और दैनिक छत्तीसगढ़ में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत 

डीएनए 
बीता रविवार पूरी तरह से रैलियों के नाम रहा ! ये रैलियां इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हैं कि इनमे देश की तीन बड़ी पार्टियों के सर्वोच्च नेता जनता को संबोधित किए ! भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी
दैनिक छत्तीसगढ़ 
से लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी समेत नई नवेली आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल तक सभी इस रविवार को देश के अलग-अलग हिस्सों में रैलियां करके आम जनता से मुखातिब हुए ! नरेंद्र मोदी पगड़ी का प्रतीकवाद लेकर पंजाब के किसानों का दुख-दर्द बांटने लुधियाना पहुंचे तो राहुल गाँधी देहरादून में जनता के सामने अपनी बात रखे, तो वहीँ अरविन्द केजरीवाल भी हरियाणा के रोहतक में जाकर इस लोकसभा चुनाव में अपनी मौजूदगी जाहिर करने की कोशिश किए ! अब अगर रविवार की इन तीनों रैलियों में देश की तीन बड़ी पार्टियों के तीन सर्वोच्च नेताओं द्वारा कही गई बातों पर एक सरसरी निगाह डालते हुए निष्कर्ष पर गौर करें तो स्पष्ट होता है कि इन रैलियों में जनता के लिए आवश्यक मुद्दों पर न के बराबर बात हुई, जबकि एक दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप ज्यादा लगाए गए ! हालांकि इसमें कुछ नया नही है, क्योंकि इससे पहले भी नरेंद्र मोदी या राहुल गाँधी द्वारा अपनी रैलियों में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति ही अधिक की जाती रही है ! हाँ, ये बात चौंकाने वाली जरूर रही कि प्रायः ठोस मुद्दों के साथ जनता के बीच पहुँचने वाले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल भी रोहतक की रैली में हवा-हवाई बातें करते ही नज़र आए !
जनवाणी 
   गौर करें तो लुधियाना में नरेंद्र मोदी का पूरा वक्तव्य हमेशा की तरह कांग्रेस सरकार की बुराइयों के वर्णन को ही समर्पित रहा ! शब्दों पर ध्यान दें तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस अबतक लोगों की आँखों में धूल झोंकती थी, अब मिर्च झोंकने लगी है ! उनका ये भी कहना था कि वो पगड़ी की इज्जत बचाएंगे और पंजाब के किसानों की समस्याओं को खत्म करेंगे ! हालांकि हमेशा की ही तरह यहाँ भी वो ये नही बताए कि अपने वादों को पूरा करने के लिए उनके पास क्या योजना है ? बस ये कहके बचना कि हमने गुजरात में ये किया है, सों देश में भी करेंगे, कत्तई तर्कसंगत नही है ! कारण कि आपने अबतक जो किया वो गुजरात में किया जो कि बस एक राज्य है, पर यहाँ बात पूरे देश की हो रही है ! इसी क्रम में मोदी के बाद अब अगर कुछ बात राहुल गाँधी की देहरादून रैली की करें तो इस रैली में भी राहुल हरबार की तरह कुछ अलग बोलने की कोशिश करते नज़र आए ! पर इस दौरान मोदी पर निशाना साधने से भी वो नही चूके ! उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से मोदी को सत्ता का भूखा बताते हुए कहा कि भाजपा को सिर्फ केन्द्र का भ्रष्टाचार दिखता है, अपने राज्यों का नही ! इसी क्रम में उन्होंने युवाओं को रोजगार देने का भरोसा दिलाया तो महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का समर्थन भी किया ! हालांकि इसपर वो कुछ भी नही बोले कि उनकी ही पार्टी की यूपीए सरकार के शासनकाल में देश में रोजगार का स्तर काफी कम क्यों हुआ है तथा महिला प्रतिनिधित्व की पैरवी करते वक्त भी इसपर उनका ध्यान नही गया कि महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए अत्यंत आवश्यक महिला आरक्षण विधेयक अबतक उनकी सरकार पारित क्यों नही करवा पाई ? जाहिर है कि राहुल गाँधी का अधिकाधिक उद्देश्य सिर्फ भाजपा पर आरोप लगाना था, न कि अपने कार्यों पर कुछ बोलना ! इन्ही सबके बीच अरविन्द केजरीवाल की रोहतक की रैली का जिक्र करना भी आवश्यक है ! रोहतक पहुंचे अरविन्द केजरीवाल के तेवर तो हमेशा की तरह ही तल्ख़ थे और हमेशा की ही तरह उन्होंने एकबार फिर कांग्रेस-भाजपा को बिना किसी तथ्य व प्रमाण के एक बताते हुए खूब निशाने पर लिया ! ‘अम्बानी की गोदी, कांग्रेस और मोदी’ जैसा नारा देते हुए उन्होंने कहा कि इस देश को मुकेश अम्बानी चला रहे हैं ! कुल मिलाकर हमेशा की तरह उन्होंने तथ्यों से परे तमाम आरोप कांग्रेस-भाजपा पर लगाए ! पर इन सबके दौरान वो इसपर खामोश रहे कि जब कांग्रेस इतनी अधिक बुरी है तो फिर उन्होंने उसके  समर्थन से दिल्ली में सरकार क्यों बनाई थी और फिर बिना अपने वादे पूरे किए जनता को अधर में छोड़ कर क्यों चले गए ? इन तीनों रैलियों में तीनों नेताओं के इन वक्तव्यों से कुल मिलाकर स्पष्ट ये तो स्पष्ट है कि ये आम चुनाव मुद्दों से भटकते हुए पक्ष-विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोप के बीच उलझ कर रह गया है !
आईनेक्स्ट 
   ये राजनीति का स्वाभाविक चरित्र है कि इसमे आरोप-प्रत्यारोप का क्रम चलता है ! मगर इसकी भी एक सीमा होती है, एक सलीका होता है ! पर दुर्भाग्य कि आज हमारे नेता आरोप-प्रत्यारोप लगाने के अन्धोत्साह में ऐसे डूबे हैं कि उन्हें  भाषाई सभ्यता तक का भान नही रहा ! इसके अलावा आरोप-प्रत्यारोप की इस राजनीति के बीच जनता से जुड़े भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे गौण होते जा रहे हैं ! इन मुद्दों पर हर दल दुसरे दल को घेरने की कोशिश तो कर रहा है, पर ये बताने की जहमत कोई नही उठा रहा कि अगर उसे सत्ता मिल जाए तो वो इन समस्याओं को कैसे मिटाएगा ! कुल मिलाकर आज की राजनीति का स्वरूप हो गया है कि हर दल सिर्फ अपने सामने वाले दल को नीचा दिखाने में अपनी श्रेष्ठता समझ रहा है ! उसे इससे मतलब नही कि वो कैसा है ! इन सबके बीच जनता की रहनुमाई कौन करे और जनता किससे अपनी समस्याओं का हिसाब व समाधान मांगे, इस यक्ष-प्रश्न का उत्तर हमारे राजनीतिक आकाओं को देना चाहिए !


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें