रविवार, 23 जुलाई 2017

पुस्तक समीक्षा : इश्क में हो जाने वाली असली 'गंदी बात' की कहानी [दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित]

  • पीयूष द्विवेदी भारत
क्षितिज रॉय का उपन्यास ‘गंदी बात’ इश्क के कई पहलुओं पर बड़े बेबाक और बेफाट लहजे में अपनी बात रखता है। ये किताब हमें दिखाती है कि आज के दौर में मासूमियत भरे इश्क के लिए कहीं कोई गुंजाइश नहीं बची है। आज आप इश्क को सिर्फ इश्क की तरह नहीं कर सकते। दो दिलों के मासूम से इश्क में उनके जाने-अनजाने और चाहे-अनचाहे कैसे समय और समाज की ज़रूरतें घुसपैठ कर उसकी मासूमियत छीन लेती हैं, इसको क्षितिज ने अपनी इस किताब में बड़ी साफगोई से बयान कर दिया है। प्यार में हो जाने वाली ये समय और समाज की घुसपैठ ही उसकी असली ‘गंदी बात’ है।

ये कहानी पटना के गोल्डन और डेजी की है। गोल्डन, पटना की गलियों में पला-बढ़ा एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का विशुद्ध आवारा-लोफर और ज़िन्दगी को लेकर एकदम बेपरवाह लड़का तो डेजी, पटना के ही एक सुशिक्षित और संपन्न परिवार की एक लक्ष्य-केन्द्रित किन्तु बेहद बिंदास लड़की। इन दोनों में इश्क हो जाता है। पटना की गलियों, खेतों, नुक्कड़ों से लेकर सिनेमा हालों और चाट-पकौड़ी की दुकानों के बीच ये इश्क जवान होता है। फिर डेजी डीयू के लेडी श्रीराम कॉलेज में पढ़ने दिल्ली चली जाती है, तो उसकी याद में डूबा गोल्डन भी महीने भर में ही घर पर अपनी माँ से दिल्ली में नौकरी लगने का झूठ बोलकर उसके पीछे-पीछे दिल्ली पहुँच जाता है। अब यहाँ से कहानी रंग बदलती है। इनके मासूम इश्क में धीरे-धीरे दिल्ली दस्तक देने लगती है।

दैनिक जागरण
डेजी कॉलेज के गर्ल्स होस्टल में है, उसे दिल्ली समझ नहीं आ रही। दूसरी तरफ उसके प्यार के भूखे गोल्डन के लिए तो ये शहर एकदम अपरिचित है। खैर, कुछ नाटकीय परिस्थितियों के द्वारा वह शहर के एक गुंडे का ड्राईवर बन जाता है। दोनों का इश्क जारी रहता है, पर दोनों को एक दूसरे में बदलाव महसूस होने लगता है। पटना में सलमान खान की फैन डेजी यहाँ कब अंग्रेजी रॉक स्टारों की फैन बन जाती है, उसे अंदाज़ा भी नहीं होता। वहीं, पटना में डेजी के गुस्से और गालियों का मज़ा लेने वाला गोल्डन कब उसे गुस्से में गालियाँ देने लगता है, उसे भी पता नहीं चलता। दोनों के अपने तर्क हैं, अपने कारण हैं। दोनों ही सही भी लगते हैं और गलत भी। हर अगले अध्याय के साथ पाठक को खुद-ब-खुद उनके इश्क से गायब हो रही मासूमियत महसूस होने लगती है। हर युवा पाठक को इस कहानी में अपने किरदार का कुछ न कुछ अक्स जरूर नज़र आएगा। पाठक के प्रति ये सहज संप्रेषणीयता इस कथानक की बड़ी सफलता है। 

कथानक के अलावा उसके प्रस्तुतिकरण की शैली भी प्रभावित करती है। चिट्ठियों की शैली में कहानी को प्रस्तुत करने से इसकी रोचकता में निश्चित तौर पर काफी वृद्धि हुई है। इन चिट्ठियों की धार में पाठक बहता चला जाता है। हालांकि भाषा कहीं-कहीं थोड़ी बनावटी हो जाती है और खालिस देसज शब्दों के साथ अचानक आ जाने वाले तत्सम शब्द खटक जाते हैं, मगर समग्र रूप से भाषा को कथानक और परिवेश के अनुरूप उपयुक्त ही माना जाएगा। गोल्डन-डेजी के सेक्स का जिस सांकेतिक भाषा में चित्रण किया गया है, वो सांकेतिकता ही किसी भी मुख्यधारा के साहित्य और पोर्न साहित्य के बीच का अंतर है। इसके लिए लेखक विशेष रूप से तारीफ़ के हकदार हैं। कुल मिलाकर कथानक से लेकर भाषा-शैली और चरित्र-चित्रण तक हर स्तर पर यह उपन्यास सहज ही प्रभावित करता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें